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राजेश के शरीर पर 41 घाव बताते हैं कि केरल में किस तरह लाल आतंक हावी है। खुलेआम माकपा के गुंडे संघ कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतर रहे हैं लेकिन केरल की राज्य सरकार उन पर कार्रवाई करने के बजाए उन्हें संरक्षण दे रही
लोकेन्द्र सिंह
केरल पूरी तरह से हिंसक कम्युनिस्ट विचारधारा की प्रयोगशाला बन गया है। यहां जिस तरह से वैचारिक असहमतियों को खत्म किया जा रहा है, वह वामपंथी विचार के असल व्यवहार का प्रदर्शन है। केरल में जब से कम्युनिस्ट सत्ता में आए हैं, तब से कानून का राज खत्म हो गया है। जिस तरह चिह्नित करके राष्ट्रीय विचारों से ओतप्रोत लोगों की हत्याएं की जा रही हैं, उसे देख कर यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि केरल में जंगलराज आ गया है। लाल आतंक अपने चरम की ओर बढ़ रहा है। पिछले दिनों एक बार फिर हिंसक कामरेडों ने ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक राजेश की सरेआम निर्मम हत्या की। हिंसक भीड़ ने 34 वर्षीय राजेश को पहले हॉकी स्टिक से क्रूरता से पीटा, फिर उनके शरीर पर धारदार हथियारों से दर्जनों वार किए। राजेश तकरीबन 20 मिनट तक सड़क पर तड़पते रहे। उन्हें अस्पताल ले जाया गया, किंतु डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
छोटी-छोटी घटनाओं को एक समुदाय से जोड़कर मामले को तूल देने वाला मीडिया और ‘अवार्ड वापसी गैंग’ को केरल में होती हिंसा दिखाई नहीं देती। लेकिन यही लोग दूसरी तरफ हरियाणा के जुनैद की हत्या को लेकर देश में 'मॉब लिंचिंग' के खिलाफ आंदोलन चला रहे हैं। राजेश की हत्या भी भीड़ ने की, लेकिन ‘मॉब लिंचिंग गिरोह’ इसे लेकर हल्ला मचाना तो दूर मुंह से आवाज तक नहीं निकाल
रहा है।
विरोध प्रदर्शन का यह चयनित और बनावटी दृष्टिकोण ही उनकी प्रत्येक मुहिम को खोखला सिद्ध कर देता है। धूर्तता की हद तब पार हो जाती है, जब इस हिंसा को राजनीतिक और वैचारिक संघर्ष का नाम देकर पल्ला झाड़ा जाता है। इसका मतलब क्या हुआ? क्या सभ्य समाज में राजनीतिक और वैचारिक असहमति के नाम पर होने वाली हत्याएं स्वीकार्य होनी चाहिए? लाल आतंक पर पर्दा डालने के लिए वामपंथियों ने सुनियोजित ढंग से यह भी स्थापित करने की कोशिश की कि केरल में राजनीतिक हिंसा दोनों तरफ से है।
यह कैसे संभव हो सकता है कि एक सामान्य घटना को भी बढ़ा-चढ़ा कर चर्चा में लेकर आने वाला ‘झूठों का गिरोह’ केरल में ‘दूसरे पक्ष’ की हिंसा को उभार नहीं सका है? दरअसल, राजनीतिक हिंसा कम्युनिस्ट विचारधारा का एक अंग है। इसलिए कम्युनिस्ट सरकार के संरक्षण में होने वाली राजनीतिक हिंसा पर चर्चा नहीं की जाती।
एक राज्य में जब गुण्डाराज बढ़ जाता है, निर्दोष लोगों की हत्याओं के साथ ही अन्य प्रकार के अपराध बढ़ जाते हैं, तब सामान्य तौर पर माना जाता है कि राज्य सरकार असफल साबित हो रही है। कानून पर सरकार का नियंत्रण नहीं रहा। किंतु, केरल के संदर्भ में यह सामान्य विचार वास्तविकता का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। विरोधी विचारधारा के लोगों की हत्याएं तो किसी भी कम्युनिस्ट सरकार की सफलता का पैमाना है। उसी पैमाने पर खरा उतरने का प्रयास केरल की कम्युनिस्ट सरकार कर रही है। इस बात को समझने के लिए हमें रूस से लेकर चीन की साम्यवादी सरकारों के कार्यकाल में बड़े पैमाने पर हुईं हिंसक कार्रवाइयों को जानना चाहिए।
दुनिया में कम्युनिस्ट सरकारों से मतभिन्नता रखने वाले लोगों की बड़े पैमाने पर हत्याएं की गई हैं। जब हम इतिहास की किताब के पन्न पलटेंगे, तब पाएंगे कि रूस में लेनिन और स्टालिन, रूमानिया में चाऊशेस्यू, पोलैंड में जारू जेलोस्की, हंगरी में ग्रांज, पूर्वी जर्मनी में होनेकर, चेकोस्लोवाकिया में ह्मूसांक, बुल्गारिया में जिकोव और चीन में माओ-त्से-तुंग ने किस तरह नरसंहार मचाया। इन अधिनायकों ने सैनिक शक्ति, यातना-शिविरों और असंख्य व्यक्तियों को देश-निर्वासन करके भारी आतंक का राज स्थापित किया। मार्क्सवादी रूढ़िवादिता ने कंबोडिया में पोल पॉट के द्वारा वहां की संस्कृति के विद्वानों को मौत के घाट उतार दिया। कम्युनिस्ट स्वयं मानते हैं कि उनकी विचारधारा में असहमतियों के सुर स्वीकार्य नहीं हैं। अपने से अलग विचार के लिए कोई स्थान नहीं है। यही सब कम्युनिस्टों ने भारत में किया है, जहां-जहां उनकी सरकारें रही हैं।
संघ कार्य से भयभीत कम्युनिस्ट
केरल में लाल आतंक बढ़ने के जो कारण हैं उनमें प्रमुख है राज्य में राष्ट्रीय विचारों का बढ़ता प्रभाव। अपने गढ़ में तेजी से बढ़ते राष्ट्रीय विचार के प्रभाव से कम्युनिस्ट भयभीत हैं। अपनी बची-खुची जमीन को बचाने के लिए वह पूरी ताकत लगा रहे हैं। माकपा से जुड़े अराजक तत्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी से जुड़े लोगों के घरों पर हमले करके उनमें भय पैदा करना चाहते हैं।
ऐसा करके वे शेष समाज को संदेश देना चाहते हैं कि राष्ट्रीय विचार से दूर रहो, वरना मारे जाओगे। हालांकि, यह हिंसक विचारधारा अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पा रही है, क्योंकि केरल के समाज को इनका राष्ट्र विरोधी व्यवहार समझ आने लगा है। यही कारण है विपरीत परिस्थितियों में भी केरल में संघ कार्य बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2013-14 में केरल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की लगभग 4000 शाखाएं थीं, जो आज की स्थिति में बढ़कर 5500 से अधिक हो गई हैं। केरल का युवा बड़ी संख्या में संघ से जुड़ रहा है।
केरल बंद को मिला समाज का समर्थन
तथाकथित सेकुलरों से उम्मीद नहीं थी कि वह राजेश की हत्या के खिलाफ धरना-प्रदर्शन करेंगे इसलिए भारतीय जनता पार्टी ने 30 जुलाई को लाल आतंक के विरुद्ध राज्यव्यापी हड़ताल की घोषणा की थी जिसे राष्ट्रवादी विचारधारा से जुड़े लोगों भरपूर समर्थन मिला। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष श्री कुम्मनम राजशेखरन ने इन हत्याओं पर कहा,‘‘हमले के पीछे माकपा का हाथ है।’’ हालांकि माकपा ने इस आरोप से पल्ला झाड़ लिया। लेकिन, हकीकत सबको पता है। केरल की पुलिस ने स्वयं माना है कि राजेश की हत्या करने वालों में माकपा का कार्यकर्ता शामिल है।
क्या केरल की सरकार इस प्रश्न का जवाब दे सकती है कि माकपा के सत्ता में आने के बाद से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं पर हमले क्यों बढ़ गए और उनकी हत्याएं क्यों की जा रही हैं? मई-2016 से अब तक संघ और भाजपा के लगभग 20 कार्यकतार्ओं की हत्या की जा चुकी हैं। एक-दो हत्याओं को लेकर ‘असहिष्णुता’ की मुहिम चलाकर पूरे देश को बदनाम करने वाले झूठों के समूह ने इतनी बड़ी संख्या में हुई हत्याओं पर बेशर्मी से चुप्पी ओढ़ रखी है।
निशाने पर राष्ट्रवादी कार्यकर्ता
19 फरवरी, 2016 को 27 वर्षीय सुजीत की उनके परिवार के सामने ही माकपा के गुंडों ने गला काटकर हत्या कर दी।
19 मई, 2016 को त्रिशूर जिले में भाजपा कार्यकर्ता प्रमोद की हत्या की गई। उनके सिर पर ईंट से वार किया गया, जिसके कारण उनकी मौत हो गई।
11 जुलाई, 2016 को भारतीय मजदूर
संघ के सी.के. रामचंद्रन की, घर में
4 सितंबर, 2016 को कन्नूर में संघ के कार्यकर्ता बिनेश की हत्या की गई।
अक्तूबर, 2016 में 26 साल के रेमिथ की हत्या की गई। चौदह साल पहले ऐसे ही उसके पिता को भी मारा गया था।
28 दिसंबर, 2016 की रात कोझीकोड के पलक्कड़ में माकपा गुंडों ने भाजपा नेता राधाकृष्णन के घर पर पेट्रोल बम से उस वक्त हमला किया, जब उनका समूचा परिवार गहरी नींद में था। सोते हुए लोगों को आग के हवाले करके बदमाश भाग गए। इस हमले में भाजपा की मंडल कार्यकारिणी के सदस्य 44 वर्षीय राधाकृष्णन, उनके भाई कन्नन और भाभी विमला की मौत हो गई। राधाकृष्णनन ने उसी दिन दम तोड़ दिया था जबकि आग से बुरी तरह झुलसे कन्नन और उनकी पत्नी विमला की इलाज के दौरान मौत हो गई।
18 जनवरी, 2017 को कन्नूर में भाजपा के कार्यकर्ता मुल्लाप्रम एजुथान संतोष की हत्या की गई। संतोष की हत्या माकपा के गुंडों ने उस वक्त कर दी, जब वह रात में अपने घर में अकेले थे।
ल्ल 12 मई, 2017 को मोटर साइकिल से जा रहे ए.वी. बीजू को कार से टक्कर मारकर सड़क पर गिराया और बाद में तलवार से हमला कर हत्या कर दी।
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