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बिजली पैदा तो रही है, लेकिन इसका प्रबंधन राजनैतिक कारणों से ठीक से नहीं हुआ है। इसे देखते हुए हमने चार शहरों में बिजली वितरण का काम हाथ में लिया है
डॉ. सुभाष चंद्रा, सांसद (राज्यसभा)
देश में एक बड़ी क्रांति हो रही है, जिसके साक्षी हम सब हैं। अगर कहूं कि मैं और मेरा संस्थान इस क्रांति के साझीदार हैं तो गलत नहीं होगा। बीते कुछ साल से हम एक ऐसे काम में लगे हुए हैं, जिससे देश की कई समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है। ये हैं गैर परंपरागत स्रोतों से बिजली का उत्पादन। चाहे वह सौर ऊर्जाहो, पवन ऊर्जा, पनबिजली हो या कूड़े से बनने वाली बिजली। आजादी के इतने साल के बाद भी ऊर्जा के लिए हम विदेशों पर ही निर्भर हैं, चाहे वह पेट्रोलियम उत्पाद हो या कोयला। हम सालाना पांच लाख करोड़ रुपये से ज्य़ादा का कच्चा और करीब 28,000 करोड़ रुपये का कोयला हर साल आयात कर रहे हैं। अगर हम आयात बिल में करीब 10 फीसदी की भी कटौती कर सकें तो सालाना करीब 53,000 करोड़ रुपये की बचत होगी। इसका इस्तेमाल स्कूल, अस्पताल, सड़कें और लोगों को रोजगार देने में किया जा सकेगा। इसी सोच के साथ हमने ऊर्जा के क्षेत्र में कदम रखा कि आयात बिल कम करने के लिए जो भी हो सकेगा, हम करेंगे। इसके लिए दोतरफा प्रयासों की जरूरत है। पहला, बिजली पैदा करने की और दूसरा उसके सही प्रबंधन की। हम दोनों ही क्षेत्रों में काम कर रहे हैं।
आने वाले समय में गाड़ियां पेट्रोल और डीजल की बजाए बिजली से चलेंगी। इस दिशा में काम शुरू हो चुका है। ई-रिक्शा इसका बड़ा उदाहरण है। हालांकि अभी ये छोटे मार्गों पर चल रहे हैं और मास ट्रांसपोर्टेशन में छोटी भूमिका निभा रहे हैं। लेकिन तकनीक बेहतर होने पर बड़े वाहन भी इससे चलने लगेंगे। ऐसे में कच्चे तेल पर हमारी निर्भरता कम होगी। इसे देखते हुए गैर परंपरागत स्रोतों से ऊर्जा उत्पादन और भी महत्वपूर्ण हो गया है। देश में सौर, पवन, हाइड्रो और कई दूसरे तरीके हैं जिनसे ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। अगर बंजर जमीन पर देशभर में केवल सोलर प्लांट्स ही लगाए जाएं तो देश की जरूरत के दोगुना से ज्य़ादा बिजली पैदा की जा सकती है। एक अनुमान के मुताबिक, देश में सोलर पैनल से बिजली पैदा करने की कुल संभावना करीब सात लाख मेगावाट है। इससे 50 लाख से ज्य़ादा लोगों को रोजगार मिल सकता है। हवा से बिजली बनाने की कुल क्षमता 45,000 मेगावाट है। लेकिन इसका भी बेहतर इस्तेमाल नहीं हो पाया है। हालांकि सरकार और कंपनियां इस दिशा में काम कर रही हैं। इसी तरह छोटे हाइड्रो प्रोजेक्ट्स लगाकर छोटी नदियों के पानी का बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है। गांवों में गोबर गैस प्लांट लगाकर बिजली और र्इंधन समस्या दूर की जा सकती है। हमने यह सोचकर सौर ऊर्जा के क्षेत्र में कदम रखा था कि थर्मल प्लांट से पर्यावरण को नुकसान होता है और देश पर आयात का बोझ भी पड़ता है। देश में अभी सौर ऊर्जा की 12 परियोजनाएं चल रही हैं, जिनमें से 6 चालू हो गई हैं और हमारी क्षमता करीब 700 मेगावाट का हो गई है। पवन ऊर्जा और हाइड्रो में भी हमारे संस्थान काम कर रहे हैं ताकि बिजली के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाया जा सके। इस बीच हमने एक बड़ा सफल प्रयोग किया है। हमने कूड़े से बिजली बनाने के लिए मध्यप्रदेश के जबलपुर में 11 मेगावाट का वेस्ट टू एनर्जी प्लांट लगाया है। यह देश का सबसे उन्नत तकनीक वाला प्लांट है। इसमें शहर के कूड़े से बिजली पैदा होती है, जिससे पूरे शहर को बिजली मिल रही है। देश में कूड़े के ढेर लग रहे हैं। ऐसे में बड़े शहरों में ऐसे प्लांट्स लगाने की जरूरत है। हम देश में करीब 16 शहरों में ये प्लांट लगा रहे हैं।
बिजली पैदा तो रही है, लेकिन इसका प्रबंधन राजनैतिक कारणों से ठीक से नहीं हुआ है। इसे देखेते हुए हमने चार शहरों में बिजली वितरण का काम हाथ में लिया है। इनमें से नागपुर में बिजली वितरण में होने वाले नुकसान को 35 फीसदी तक घटाकर करीब 15 फीसदी तक ले आए हैं। इसके लिए हमने एक नया प्रयोग किया, जिसमें पूर्णिमा के दिन स्ट्रीट लाइट बंद रखी, क्योंकि उस दिन चांद की रोशनी इतनी ज्य़ादा होती है कि लाइट की जरूरत ही नहीं होती। इससे बड़ी मात्रा में बिजली बचाई जा सकी। कुछ अन्य प्रयोग भी कर रहे हैं ताकि बिजली वितरण के बेहतर प्रबंधन से इसका सही इस्तेमाल कर पाएं।
केंद्र में मोदी की सरकार आने के बाद गैर परंपरागत ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से काम हुआ है। खासकर सोलर टैरिफ काफी कम हुए हैं। इसका सीधा फायदा राज्यों के बिजली बोर्ड और ग्राहकों को हो रहा है। अब जरूरत नई तकनीक ईजाद करने की है ताकि पेट्रोलियम उत्पादों पर निर्भरता घटे और देश का विदेशी मुद्रा भंडार देश के
काम आए।
(दीपक उपाध्याय से बातचीत के आधार पर)
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