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पिछले कुछ समय से कोयले की कमी और उससे होने वाले प्रदूषण के कारण दुनियाभर के देशों ने थर्मल प्लांट से तौबा करना शुरू कर दिया है। वहीं, परमाणु ऊर्जा को लेकर सुरक्षा के सवाल हमेशा उत्पन्न होते रहे हैं। लेकिन बिजली किस तरीके से पैदा की जाए, इसे लेकर सभी की अलग-अलग राय है। इसे देखते हुए सौर, बायोमास और पवन से बिजली उत्पादन के लिए कई देशों में प्रयोग किए जा रहे हैं। जर्मनी ऐसा देश है, जहां पूरी तरह से नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल हो रहा है।
भारत में भी विंड फार्म लगाए जा रहे हैं और तमिलनाडु, महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने तो इसमें क्रांति कर दी है। पिछले कुछ सालों में देश में हवा से बिजली बनाने की क्षमता करीब 32,000 मेगावाट से अधिक हो गई है। ईएंडवाई की एक रिपोर्ट के मुताबिक रिन्यूएबल अंतरराष्ट्रीय इन्वेस्टर इंडेक्स में अमेरिका को पीछे छोड़कर भारत दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। बेशक हवा से बिजली बनाने को लेकर बड़े जोर-शोर से बात चल रही हो, लेकिन आज भी यह आम जन के इस्तेमाल में नहीं आया है। दूसरी ओर, आम लोगों ने सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। इसी को आसान बनाने के लिए केरल के दो भाइयों अरुण और अनूप ने एक ऐसा विंड टरबाइन बनाया है, जिसकी लागत करीब 50,000 रुपये है और इससे एक घंटे में 3 से 5 किलोवाट तक की बिजली पैदा की जा सकती है।
अरुण बताते हैं कि देश में अभी तक टरबाइन आयात की जाती हैं, जिसकी कीमत कम से कम दो लाख रुपये होती है। देश में बिजली की कमी को देखते हुए यह टरबाइन लोगों के लिए महत्वपूर्ण हो सकती हैं। खास बात यह है कि यह टरबाइन पोर्टेबल है। अगर यह प्रयोग सफल रहा तो लोगों को बिजली की समस्या से छुटकारा मिल सकता है, वह भी बिना अधिक खर्च किए। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान जैसे राज्यों में तेज हवाएं चलती हैं, जहां यह टरबाइन काफी कारगर साबित हो सकती है।
नीति आयोग में सलाहकार सुरेंद्र सूद बताते हैं कि पवन ऊर्जा के क्षेत्र में पिछले कुछ साल में बहुत काम हुआ है। खासकर इसकी क्षमता में विस्तार हुआ है। पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान पवन ऊर्जा की क्षमता में 5,400 मेगावाट का विस्तार हुआ है, जबकि लक्ष्य 4,000 मेगावाट का था। यह एक बड़ी उपलब्धि है। मौजूदा वित्तीय वर्ष में सरकार ने 6,000 मेगावाट का लक्ष्य रखा है। उम्मीद है कि इस बार भी इस क्षेत्र में बेहतर काम होगा। साथ ही, हवा से बिजली बनाने पर पहले बहुत अधिक खर्च आता था। इसके अलावा, इसकी क्षमता के करीब 15 फीसदी तक ही बिजली पैदा होती थी। लेकिन अब लागत में काफी कमी आई है और उत्पादन भी बढ़ा है। अभी हाल के कुछ महीनों में प्रति यूनिट औसतन खर्च पांच रुपये आता था, जो घटकर 3.47 रुपये प्रति यूनिट पर आ गया है। देश में तटीय इलाकों और मध्य भारत में हवाएं तेज रफ्तार से चलती हैं। इसलिए ये टरबाइन से बिजली बनाने के लिए अनुकूल हैं। इसी कारण से तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में पवन ऊर्जा की काफी संभावनाएं हैं। केंद्र सरकार ने 2022 तक नवीकरणीय ऊर्जा से 1.75 लाख मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा है। हालांकि हवा से बिजली बनाने में अभी तक सबसे बड़ी समस्या यह थी कि इन्हें
ग्रिड से जोड़ना आसान नहीं था। लेकिन नई नीति के तहत सरकार ने बड़े विंड फार्म को मंजूरी देना शुरू किया है, जिसके फलस्वरूप बिजली का उत्पादन भी अच्छा हो रहा है। इसके अलावा, इस बिजली को आम उपभोक्ताओं तक पहुंचाना भी आसान हो गया है। ल्ल
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