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सोलर पंप लगाकर किसान बिजली की आंख मिचौली से छुटकारा तो पा ही सकते हैं, खेतों को सींच कर अपनी आय भी बढ़ा सकते हैंल्ल दीपक उपाध्याय
पिछले दिनों देश की पहली सोलर ट्रेन पटरियों पर दौड़ी। यह मात्र एक ट्रेन नहीं थी, बल्कि एक विकासशील देश को विकसित देशों की कतार में खड़ा करने की दिशा में एक कदम था। हालांकि पूरी ट्रेन सोलर पैनल से नहीं चली। लेकिन इसके डिब्बों में चलने वाले पंखे और बल्ब इसी पैनल से रोशन हो रहे थे। भविष्य में ट्रेन में चलने वाले एयर कंडीशनर को भी सोलर पैनल से चलाने की योजना बनाई जा रही है। दरअसल सूरज की किरणों में इतनी शक्ति है कि वह इनसानों की बनाई मशीनों को चला सकती है। कुछ साल पहले तक इस दिशा में केवल सोचा जा रहा था, लेकिन अब इसे किया जा रहा है। चाहे सोलर पैनल से चलने वाली कारें हों, हवाई जहाज हों या ट्रेन, केवल बड़े स्तर पर ही नहीं, छोटे स्तर पर भी ये सोलर पैनल बेहद कारगर साबित हो रहे हैं। खासकर किसानों के लिए तो ये कमाई के साधन साबित हो रहे हैं।
भारत धीरे-धीरे हरित ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। बीते तीन साल में ऊर्जा क्षेत्र की तस्वीर बदल गई है। सौर ऊर्जा की लागत में कमी आने की वजह से अब यह ताप बिजली से मुकाबले की स्थिति में है।
— पीयूष गोयल, केंद्रीय ऊर्जा मंत्री
देवानंद यादव किसान हैं और उत्तर प्रदेश में औरेया जिले के तैयबपुर गांव में रहते हैं। उनके पास आठ एकड़ जमीन है। करीब पांच माह पहले तक देवानंद खेतों की सिंचाई को लेकर परेशान रहते थे। कारण यह था कि इलाके में कभी बिजली आती थी और कभी नहीं भी आती थी। इससे उन्हें सिंचाई के लिए समुचित बिजली नहीं मिल पाती थी। इसके लिए वे डीजल पंप पर निर्भर थे। लेकिन डीजल पर उन्हें सालाना 22,000 रुपये खर्च करने पड़ते थे। काफी सोच-विचार के बाद उन्होंने कुछ माह पहले खेत में सोलर पंप लगवाया। पिछले पांच महीने से देवानंद खुश हैं, क्योंकि न केवल उन्हें डीजल पंप से छुटकारा मिल गया, बल्कि डीजल भरकर रखने की परेशानी भी दूर हो गई। अब वह डीजल पर सालाना होने वाले खर्च को तो बचा ही रहे हैं, गांव के दूसरे किसानों के खेतों में पानी पहुंचाकर अतिरिक्त कमाई भी कर रहे हैं। इस दौरान देवानंद सोलर पंप से सिंचाई कर करीब 10,000 रुपये कमा चुके हैं। इसे देखकर गांव के दूसरे किसान भी सरकारी सब्सिडी पर सोलर पंप लगाने की कोशिश कर रहे हैं। सोलर पंप लगाने के लिए सरकार 90 फीसदी अनुदान देती है, जबकि 10 फीसदी राशि किसानों को देनी पड़ती है।
नीति आयोग में सलाहकार विजय कुमार बताते हैं कि जब किसान वैकल्पिक ऊर्जा का इस्तेमाल करेंगे तो इससे परंपरागत तरीके से उत्पन्न होने वाली बिजली की बचत होगी। इसके अलावा, वितरण के दौरान जो बिजली बर्बाद हो जाती है, वह भी रुकेगी। इससे बिजली बोर्ड का घाटा कम करने में मदद मिलेगी और जिन इलाकों में बिजली की आपूर्ति कम है, वहां ज्यादा बिजली पहुंचाई जा सकेगी। मतलब यह कि सरकार और आम आदमी, दोनों की समस्या कम होगी। खेतों के अलावा, लोग घरों में भी सोलर पैनल लगाकर कमाई कर सकते हैं। एनडीएमसी में निदेशक रहते हुए हरित ऊर्जा पर काम करने वाले ओपी मिश्र के मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति घर की छत पर सोलर पैनल लगाता है तो इससे वह एक बल्ब, पंखा और दूसरे उपकरण चला सकता है। जब वह सौर ऊर्जा से इन उपकरणों को चलाएगा तो बिजली की खपत नहीं होगी। साथ ही, उसके सोलर पैनल से जो बिजली ग्रिड में जाएगी, उसका फायदा उसे बिजली बिल में मिलेगा। गौरतलब है कि देश में लगभग 300 दिन से अधिक सूरज निकलता है जिसके कारण यहां सौर ऊर्जा की संभावनाएं बहुत अधिक हैं।
कड़ी धूप में सौर उत्पाद पूरी क्षमता से काम करते हैं, लेकिन बादल होने या बरसात के दिनों में इनकी क्षमता कम हो जाती है। इस स्थिति से निबटने के लिए ज्यादातर उत्पादों में ग्रिड से बिजली प्राप्त करने का विकल्प भी होता है यानी इन्हें बिजली से भी चलाया जा सकता है। एक पैनल से करीब 200-300 वाट बिजली पैदा होती है। अगर छत पर चार-पांच पैनल लगाने लायक जगह हो तो घर की जरूरतों के लिए करीब एक किलोवाट बिजली आराम से बनाई जा सकती है।
केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारें भी सोलर पैनल लगाने के लिए रियायतें दे रही हैं। आजकल दूर-दराज के गांव भी रात को रोशन रहते हैं, क्योंकि सौर ऊर्जा से चलने वाली लालटेन और दूसरे उपकरणों का इस्तेमाल होने लगा है। खासकर पहाड़ी और आदिवासी इलाकों में तो ये उपकरण वरदान साबित हो रहे हैं। सौर ऊर्जा का सबसे बड़ा फायदा यह है कि न केवल इससे मुफ्त बिजली उत्पन्न होती है, बल्कि यह प्राकृतिक तरीक से बिजली बनाती है जिससे प्रदूषण नहीं होता। केंद्र सरकार का लक्ष्य 2020 तक सौर ऊर्जा क्षमता को बढ़ाकर 40,000 मेगावाट करने का है। देश में सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन तेजी से बढ़ा है और पिछले तीन वर्षों के दौरान यह 9,000 मेगावाट तक पहुंच गया है।
2014 तक यह महज 2,000 मेगावाट के आसपास ही था। केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल बताते हैं कि देश में जितनी बिजली उत्पादन की क्षमता है, उसमें 60-65 फीसदी हिस्सेदारी हरित ऊर्जा की है। जैसे-जैसे देश में सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन बढ़ रहा है, बिजली की दरें भी तेजी से गिर रही हैं। दो साल पहले तक हरित ऊर्जा की दर 6-7 रुपये यूनिट हुआ करती थी जो अब औसतन 3 रुपये यूनिट तक आ गई है। कुछ कंपनियों ने तो कई जगहों पर सोलर प्लांट के लिए तीन रुपये प्रति यूनिट से भी कम की बोली लगाई है। राजस्थान के भादला में 200 मेगावाट के सोलर पार्क के लिए एसीएमई सोलर होल्डिंग्स ने प्रति यूनिट 2.44 रुपये की बोली लगाई है, जो अभी तक का सबसे कम टैरिफ है। संभव है, आने वाले दिनों में बिजली दरें और कम हो जाएं।
भारत के सौर कार्यक्रम को लेकर दुनियाभर में गहमागहमी है। इसी वजह से दुनिया की कुछ बड़ी कंपनियां न केवल भारतीय कंपनियों के साथ करार कर रही हैं, बल्कि कई मामलों में तो भारतीय कंपनियों को धन भी मुहैया करा रही हैं। विश्व बैंक ने हाल ही सोलर प्लांट के लिए करीब 4,000 करोड़ रुपये का कर्ज मंजूर किया है। उम्मीद है कि भारत सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश हो जाएगा।
वैकल्पिक ऊर्जा: देश को आत्मनिर्भर बनाने का माध्यम
पिछले तीन साल से पूरे देश के ऊर्जा जगत में दो ही बातें चल रही हैं, पहला कोयले की कमी और दूसरा वैकल्पिक ऊर्जा पर जोर। दरअसल, पेट्रोलियम पदार्थों के भंडार तेजी से खत्म हो रहे हैं। जिस रफ्तार से खपत बढ़ी है, उसके हिसाब से पेट्रोलियम पदार्थों के भंडार 50 सालों तक ही चलेंगे। इसके बाद ये या तो खत्म हो जाएंगे या इतने महंगे हो जाएंगे कि इन्हें खरीदना ही मुश्किल होगा। इसके अलावा, जैव र्इंधन पर्यावरण के लिए भी नुकसानदेह हैं। इसीलिए दुनिया का ध्यान वैकल्पिक ऊर्जा की ओर है, जिससे भारत भी अछूता नहीं है। इस दिशा में सरकार ही नहीं, कंपनियां भी लगातार कोशिशें कर रही हैं। पिछले तीन साल भारत में वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्र में सबसे ज्य़ादा काम हुआ है। वैकल्पिक ऊर्जा में सौर, पवन, बायोमास, और छोटे हाइड्रो प्रोजेक्ट्स आते हैं। हालांकि वैकल्पिक ऊर्जा में बायोमास पर उतना जोर नहीं है, जितना सौर, पवन और हाइड्रो पर है। लेकिन यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें गांवों को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। अगर गांव आत्मनिर्भर हो गए तो देश भी आत्मनिर्भर हो जाएगा। देश में बायोमास से करीब 25,000 मेगावाट बिजली उत्पादन किया जा सकता है। इतनी बिजली देश के एक लाख गांवों को रोशन करने के लिए काफी है। इसके अलावा, बायोमास प्लांट से रसोई गैस भी मिलती है और जो अवशेष बच जाता है, वह खेतों के लिए खाद का काम करता है।
नारायण गोशाला के प्रधान अनिल बताते हैं कि उनके पास करीब 600 गायें हैं। इनसे दिन का करीब 10 ट्रॉली गोबर तो हो ही जाता है। एक साल पहले इस गोबर को डालने का खर्चा ही इतना हो जाता था कि बहुत से लोगों को इसे मुफ्त में देना पड़ता था। लेकिन एक साल पहले हमने गोबर गैस प्लांट लगाया। अब इस प्लांट के जरिए न केवल गोशाला को बिजली मिल रही है, बल्कि हम गांव में भी बिजली आपूर्ति कर रहे हैं। इसके अलावा, गांव की महिलाएं खाना बनाने में इस प्लांट में बनने वाली गैस का इस्तेमाल कर रही है। हमने एक कॉमन रूम बना दिया है, जिसमें कुछ चूल्हे लगाए गए हैं।
गांव की महिलाएं यहां आकर खाना बनाती हैं। इससे उनकी र्इंधन की समस्या भी दूर हो गई। साथ ही, हमने गांव में कुछ स्ट्रीट लाइटें भी लगवा दी हैं जो इसी गोबर गैस प्लांट से रोशन हो रही हैं। कुल मिलाकर कहें तो गांव के लिए प्लांट बहुत बढ़िया रहा है। साथ ही हमें भी इससे कुछ आमदनी हो रही है। अब गोबर डालने की परेशानी भी खत्म हो गई। बिजली भी मिल रही है और बाद में जो बच जाता है किसान उसके अच्छे पैसे दे रहे हैं। हरियाणा सरकार ने इन गोशालाओं के साथ एक नया प्रयोग किया था। राज्य सरकार ने हांसी के पास हरियाणा गोशाला में एक ऐसा प्लांट लगाया जो गोबर गैस को सिलेंडर में भरकर बेच रहा है। इस काम को कर रही कंपनी आॅप्शन एनर्जी के चेयरमैन भगवत नेगी के मुताबिक, गोबर गैस एक ऐसी गैस है जिसका इस्तेमाल कई तरीके से किया जा सकता है। इसको एलपीजी की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता है और सीएनजी की तरह भी। गोबर गैस को पाइपलाइन से घरों में पहुंचाया जा सकता है या सिलेंडर में भरकर भी बेचा जा सकता है। इसके अलावा, सीएनजी गाड़ी चलाने के लिए भी इसे इस्तेमाल किया जा सकता है। इसकी कीमत करीब 15 रुपये किलो पड़ती है जो काफी सस्ती है। हालांकि इस प्रोजेक्ट के कमर्शियल करने तक इनको छोटे-छोटे स्तर पर ही चलाना होगा। जानकार मानते हैं कि अगर खाद कंपनियों को सरकार गोबर खाद बेचने का आदेश दे दे तो इससे भी काफी फायदा हो सकता है। कंपनियां अगर उर्वरक में 10 फीसदी गोबर मिलाकर बेचें तो इससे गोबर खाद का इस्तेमाल तो बढ़ेगा ही, उर्वरक आयात में भी कमी आएगी।
जानकार मानते हैं कि सबसे बड़ी परेशानी गोबर को इकट्ठा करना है। अगर इसको ठीक तरीके से किया जाए तो यह संभव हो सकता है। इसके लिए गोबर बैंक बनाया जा सकता है, जिसमें गोबर जमा किए जाएं। बाद में इनका इस्तेमाल प्लांट चलाने में किया जाए। अगर यह संभव हो गया तो पूरे गांव को बिजली मिल सकेगी।
भारत सौर ऊर्जा का सबसे बड़ा बाजार!
भारत दुनिया के सबसे बड़े नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार कार्यक्रम को बढ़ावा दे रहा है। इसे देखते हुए सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत सबसे बड़ा बाजार बन सकता है। देश में सौर ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ने से न केवल जीडीपी दर बढ़ेगी, बल्कि भारत सुपर पावर बनने की राह पर आगे बढ़ सकेगा। इस क्षेत्र में असीम संभावनाओं को देखते हुए विदेशी कंपनियां भारत में निवेश की इच्छुक रही हैं।
सौर ऊर्जा
देश में 2035 तक सौर ऊर्जा की मांग में सात गुना इजाफा होने की संभावना है। अगले तीन वर्ष में सौर ऊर्जा उत्पादन बढ़कर 20,000 मेगावाट होने की उम्मीद है, जबकि 2022 तक सरकार का लक्ष्य 100 मेगावाट उत्पादन का है। वहीं, सोलर पार्क स्कीम के तहत उत्पादन दोगुना यानी 20 मेगावाट से बढ़कर 40 मेगावाट हो गया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि देशभर में 1991 से 2014 के बीच 11,600 सोलर पंप लगाए गए थे, 2014-17 के बीच इनकी संख्या 1.1 लाख हो गई है। सौर ऊर्जा टैरिफ में 75 फीसदी से अधिक की गिरावट आई है और यह 2.44 रुपये प्रति यूनिट के न्यूनतम स्तर पर आ गया है। वहीं, पवन ऊर्जा टैरिफ को 3.46 रुपये प्रति यूनिट तक लाने में सफलता मिली है।
लक्ष्य
भारत ने 2022 तक 175 गीगावाट हरित ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है। पिछले तीन वर्ष के दौरान सौर ऊर्जा उत्पादन स्थापित क्षमता से चार गुना बढ़कर 10,000 मेगावाट को पार कर गया है। हालांकि अभी यह बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता का 16 फीसदी है, जिसे बढ़ाकर 60 फीसदी करने का लक्ष्य है। ‘प्रयास’ योजना के तहत 2030 तक सरकार कुल ऊर्जा का 40 फीसदी हरित ऊर्जा से उत्पादन करना चाहती है। इसके लिए सोलर पैनल निर्माण को 210 अरब रुपये की सरकारी सहायता दी जा रही है।
दो दोस्तों का अनूठा बिजनेस मॉडल
देश में सौर ऊर्जा की जरूरतों को देखते हुए दिल्ली आईआईटी की पढ़ाई करने वाले दो दास्तों, शुभम संदीप और निमेष गुप्ता ने कुछ साल पहले एक कंपनी बनाई। सबसे पहले उन्होंने अमेरिका और जर्मनी में बिजली उत्पादन और वितरण की बारीकियों को समझा। इसके बाद दोनों ने एयॉन सोलारिस नाम से कंपनी बनाई। शुरुआत में इसमें कुल सात लोग थे। उनकी कंपनी ने सबसे पहले उन्होंने हैदराबाद में एक कॉरपोरेट टावर पर 40 किलोवाट का सोलर प्लांट लगाया। यह सफल रहा। इनकी कंपनी घरों की छतों पर सोलर पैनल लगाने के लिए भवन मालिक से जगह लीज पर लेती है और प्लांट लगाने का खर्च भी वहन करती है। लीज के तहत उस व्यक्ति को सौर ऊर्जा से बनने वाली बिजली के इस्तेमाल के बदले में एक तय राशि देनी होती है। लीज की मियाद पूरी होने पर सोलर प्लांट उस व्यक्ति का हो जाता है। उनकी कंपनी अब बिजली बेचने के बारे में भी विचार कर रही है। इसके लिए कंपनी ने साल में 400 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा है
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