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काशी हिंदू विश्वविद्यालय का उद्देश्य सदैव से राष्ट्र निर्माण के साथ भविष्य निर्माण रहा है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी विश्वविद्यालय से जुड़ी तमाम बातों के बीच जब इस कथन का प्रयोग करते हैं तो अनायास हमारा ध्यान भारत की उस समृद्ध पुरातन शिक्षा पद्धति की ओर चला जाता है जब गुरुकुलों या प्रमुख शिक्षा केन्द्रों का ध्येय यही हुआ करता था। समय ने करवट बदली तो शिक्षा केन्द्रों की शिक्षा पद्धति बदल गई। लेकिन नहीं बदला तो वह है काशी हिंदू विश्वविद्यालय।
दरअसल काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने दो वर्ष पहले कुछ कार्यों को मूर्त रूप देने की योजना बनाई थी, इसमें से अधिकतर कार्य आज या तो पूरे हो चुके हैं या फिर पूरे होने के कगार पर हैं। इसमें कुछ कार्य ऐसे हैं जो अकेले इसी विवि. में हुए हैं। भारत अध्ययन केन्द्र इसमें प्रमुख है। केन्द्र के कोऑर्डिनेटर डॉ. सदाशिव द्विवेदी स्थापना के पीछे का उद्देश्य बताते हैं, ''प्राच्य और आधुनिक विद्याएं शुरू से काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाती रही हैं। लेकिन स्वतंत्रता के बाद प्राच्य विद्याओं के सूत्र जिन पर हम चलते आ रहे थे, वे हमारे व्यवहार से दूर होते चले गए। हमारा प्राचीन विद्याओं का जो आधार था वह नष्ट होने लगा या यूं कहें कि धीरे-धीरे पिछड़ता चला गया। हम जानते हैं कि प्राच्य विद्याओं में उच्चतम मूल्य हैं लेकिन वे आज व्यवहार में नहीं हैं। इससे शिक्षा की मूल भावना का क्षय हुआ है।'' उन्होंने इसी संदर्भ में कहा,''भारत अध्ययन केन्द्र का प्रमुख उदद्ेश्य सर्वप्रथम इस असंबद्धता को दूर
करना है। साथ ही नई पीढ़ी को भारतीय विद्याओं के महत्व से परिचित कराना है। इससे विद्यार्थी धीरे-धीरे भारतीयता की ओर
उन्मुख होंगे। और यही विश्वविद्यालय का अभीष्ट है, जो पूरा होगा।''
परिसर में इसके अलावा भी कुछ नए कार्य चल रहे हैं जिनमें सौर ऊर्जा से जुड़ी एक परियोजना भी है, जिस पर तेजी से काम चल रहा है। इस परियोजना का लाभ यह होगा कि इसके शुरू होते ही विवि. का बिजली का बोझ काफी कम हो जाएगा। परिसर में सोलर पॉवर परियोजना के सचिव सदस्य रूपेश श्रीवास्तव बताते हैं,''विश्वविद्यालय में सौर ऊर्जा की जिस परियोजना की पहल हुई, उसके पीछे एक कारण यह था कि परिसर का बिजली का बिल अधिक आता था। इस पर मंथन हुआ और यह निकलकर आया कि हमें वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर ध्यान देना होगा, जिससे बिजली बिल का बोझ कम हो। एक कमेटी बनाई गई और तय हुआ कि जितनी भी इमारतें हैं, उनकी छतों पर सौर ऊर्जा के पैनल लगेंगे। हम लोगों ने पायलट प्रोजेक्ट के तहत यह काम शुरू किया और विवि. की तीन इमारतों पर 200 किलोवॉट का पैनल लगाया, जिसका प्रदर्शन ठीक रहा। इसी को देखते हुए परिसर में 8 मेगावॉट की क्षमता का पैनल और लगाने जा रहे हैं। इससे विवि. को आने वाले दिनों में भरपूर मात्रा में ऊर्जा मिलेगी।'' वे बताते हैं कि साल के अंत तक यह कार्य पूरा हो जाएगा। इसी तरह विवि. में पीएनजी (पाइप्ड नेचुरल गैस) को भी परिसर के हर आवास तक पहुंचाने का काम चल रहा है। विश्वविद्यालय में पीएनजी के संबंध में बनी कमेटी के सदस्य सचिव वी.एस.विद्यार्थी बताते हैं,''पीएनजी भारत सरकार का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है। घरों में पाइप के जरिए गैस आपूर्ति की जाए ताकि नागरिकों को सस्ता और सुरक्षित ईंधन मिल सके। सरकार की यह महत्वाकांक्षी परियोजना जिन 30 शहरों में लॉन्च हुई उसमें काशी भी है। इसी के तहत विवि. में भी इसको पहुंचाने का कार्य प्रगति पर है। दीपावली के अंत तक यह कार्य पूरा हो जाएगा और सभी घरों में पाइप से गैस पहुंचने लगेगी।'' विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी (कार्यकारी) डॉ. राजेश सिंह के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में विवि. ने विभिन्न स्तर पर कुछ कार्य प्रस्तावित किए थे जो पूर्ण हो रहे हैं। चाहे बात वाईफाई, भारत अध्ययन केन्द्र की हो या फिर महामना सेंटर ऑफ एक्सिलंेस इन क्लाइमेट चेंज रिसर्च की। वे बताते हैं,''विश्वविद्यालय महामना के आदर्शों के अनुरूप उत्तरोत्तर अग्रसर है। यह सत्य है कि यह अपने आप में अनूठा विश्वविद्यालय और देश के अन्य विश्वविद्यालयों से भिन्न है। जिस तरह से विश्वविद्यालय प्रगति कर रहा है, वह संकल्प बताता है कि आने वाले दिनों में यह विश्वस्तर पर शिक्षा के क्षेत्र में भारत का प्रतिनिधित्व करेगा।''
विश्वविद्यालय में 15 वर्ष पहले से ही अपना कंप्यूटर नेटवर्क है और उसी समय से हर विभाग और छात्रावास में कंप्यूटर और इंटरनेट की सुविधाएं भी उपलब्ध रही हैं। लेकिन कुछ समय से इसमें लगातार समस्या आ रही थी। 2016 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय का एक प्रस्ताव था कि सभी केन्द्रीय विश्वविद्यालय वाईफाई होंगे। जिसके बाद 38 केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के मध्य एक अनुबंध हुआ। इसी के तहत नवंबर,2016 में बीएचयू में भी काम शुरू हो गया। वाईफाई परियोजना के नोडल अधिकारी डॉ. विवेक सिंह बताते हैं कि अभी यह कार्य बिल्कुल अंतिम चरण पर है और अगस्त तक पूर्ण हो जाएगा। जिसके बाद परिसर की 293 इमारतें जिसमें विभाग व छात्रावास शामिल हैं नए कंप्यूटर नेटवर्क से जुड़ जाएंगी। वर्ष 2015 में पेरिस में जलवायु परिवर्तन पर विश्व के अनेक देशों ने चिंता व्यक्त करते हुए सुझाव दिया था कि सभी देश जलवायु परिवर्तन पर कुछ ठोस कदम उठाएं, ताकि आने वाले दिनों में यह खतरा कम हो सके। भारत की ओर से इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उपस्थित थे। उसी के बाद 22 फरवरी, 2016 को प्रधानमंत्री का काशी हिंदू विश्वविद्यालय आना हुआ था और उस दौरान उन्होंने सुझाव दिया था कि जलवायु परिवर्तन पर विश्वविद्यालय द्वारा कुछ ठोस कार्य होना चाहिए। जलवायु परिवर्तन केन्द्र के प्रो. आर. के. मल्ला बताते हैं,''प्रधानमंत्री जी के सुझाव के बाद विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग को यह प्रस्ताव भेजा गया जो स्वीकृत होकर आ गया। बीएचयू के अलावा आईआई एस-बेंगलुरू, आईआईटी दिल्ली, मुंबई और खड़गपुर में भी यह केन्द्र होगा। लेकिन विश्वविद्यालयों में यह पहला विश्वविद्यालय है जहां यह केन्द्र है। विश्वविद्यालय के इस केन्द्र का नाम महामना सेंटर ऑफ एक्सिलंेस इन क्लाइमेट चेंज रिसर्च रखा गया है।'' वे कहते हैं कि इस केन्द्र में तकनीकी के माध्यम से वर्तमान और भविष्य में पर्यावरण में जो बदलाव आ रहे हैं उन पर शोध होगा। आने वाले दिनों में इसका असर जमीन पर भी देखने को मिलेगा।'' बहरहाल, विश्वविद्यालय में स्थापित नए केन्द्रों में पर्यावरण, भारतीय संस्कृति और दर्शन पर होने वाले शोधों से न केवल समाज को नई दिशा मिलेगी, बल्कि समस्त राष्ट्र इससे लाभान्वित होगा। – अश्वनी मिश्र
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