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सनसनीखेज खबरें परोसने की होड़ में लगे चैनल अपने सामाजिक दायित्व और नैतिकता से परे जा रहे
नारद
चौबीस घंटे के समाचार चैनल देश में कई तरह की समस्याओं को जन्म दे रहे हैं। सनसनीखेज खबरों की होड़ में अक्सर वे उस लक्ष्मण रेखा को पार करते रहते हैं जो उन्होंने खुद अपने लिए खींची है। बीते हफ्ते आतंकवादी मसूद अजहर का एक ध्वनि संदेश सभी चैनलों, अखबारों और न्यूज वेबसाइटों के पास पहुंचा। 6-7 मिनट के इस संदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक के लिए जहर भरा हुआ था। इसमें देश के लिए धमकी और कट्टरपंथी मुसलमानों के लिए एक छिपा हुआ संदेश था। टीआरपी की होड़ कहें या अपरिपक्वता, छोटे-बड़े सभी चैनलों ने इसे फौरन सुनाना शुरू कर दिया। क्रांतिकारी चैनल ने तो बिना संपादित किए पूरा संदेश प्रसारित कर दिया। आतंकवादी संगठन चाहते भी यही थे और उनकी इच्छा हमारे देश के समाचार माध्यमों ने पूरी कर दी।
ऐसा पहली बार नहीं है। इससे पहले सैयद सलाहुद्दीन जैसे दुर्दांत आतंकवादी से लेकर हुर्रियत के छोटे-बड़े पाकिस्तानपरस्तों के संदेश भारतीय न्यूज चैनलों पर जगह पाते रहे हैं। ऐसे वक्त में जब दुश्मन देश भारत के खिलाफ दुष्प्रचार की लड़ाई छेड़े हुए हैं, हमारा मीडिया अगर उन्हें मंच दे रहा है तो यह चिंता की बात है। आजकल भारतीय अखबार, चैनल और वेबसाइट चीन के दुष्प्रचार का भी माध्यम बने हुए हैं। सिक्किम सीमा पर भारत के हाथों मुंह की खाने के बाद चीन भी दुष्प्रचार का ही सहारा ले रहा है। भारतीय मीडिया का एक तबका जाने-अनजाने उसका मददगार बन रहा है। जब विवाद शुरू हुआ था, तभी लगभग सभी ने खबर दी थी कि चीन की सेना ने भारत के 2 बंकर तबाह कर दिए। जबकि वह दावा बिल्कुल गलत था। इसके बाद भी चीनी सेना के युद्धाभ्यास की ज्यादातर तस्वीरें और खबरें वहीं के मीडिया के हवाले से आईं। जबकि उनमें से ज्यादातर पुरानी और दूसरी जगहों की थीं।
जब भी चीन की बात आती है, भारतीय मीडिया के एक तबके में एक खास तरह की स्वामिभक्ति झलकने लगती है। यह वह वामपंथी तबका है जो चीन को आदर्श राज्य के तौर पर देखता है और मानता है कि वह जो कुछ कर रहा है, वही सही है। वे इस बात को खुलकर नहीं कह सकते तो इशारों में समझाते हैं कि देखो, कैसे चीन की सैन्य शक्ति भारत के मुकाबले कई गुना ज्यादा है। लेकिन यह नहीं बताते कि रणनीतिक और कूटनीतिक तौर पर भारत ने चीन के
आसपास जो घेरा बंदी की है, उसके कारण वह बौखलाया हुआ है।
माकपा के मुखपत्र ‘पीपुल्स डेमोक्रेसी’ ने तो एक तरह से खुलकर लिखा कि सिक्किम में भारत का रुख गलत और चीन का सही है। लेकिन भारतीय मीडिया ने इस राय पर एक बार भी सीताराम येचुरी से सवाल पूछने की जरूरत नहीं समझी कि क्या उनका दल एक बार फिर से 1962 के युद्ध वाली गद्दारी दोहराने की फिराक में है। वामपंथियों जैसी ही स्थिति गांधी परिवार की भी मालूम होती है जिसका चीन के राजदूत के साथ कुछ ज्यादा ही उठना-बैठना हो रहा है।
पीट-पीट कर हत्या यानी लिंचिंग की कुछ घटनाओं को तूल देकर मीडिया यह जताता रहा है कि पूरे देश में मुसलमान असुरक्षित हैं और हिंदुत्ववादी संगठन उन्हें निशाना बना रहे हैं। लेकिन जैसे ही इस धारणा को तोड़ने वाली कोई खबर आती है, मामला रफा-दफा हो जाता है। आजमगढ़ के सरायमीर में शिवकुमार नाम के लड़के को तालिबान की तरह हाथ-पैर में बिजली के तार बांधकर झटके दिए गए। इसका वीडियो दिल दहलाने वाला था। पीड़ित का कहना है कि मुसलमान लड़के मोदी और योगी को गालियां दे रहे थे, जब उसने रोका तो झगड़ा हुआ।
उधर आपात्काल के अत्याचारों पर बनी फिल्म ‘इंदु सरकार’ के खिलाफ कांग्रेसी विरोध-प्रदर्शन जारी है। फिल्म के निर्देशक मधुर भंडारकर ने राहुल गांधी को ट्वीट कर पूछा कि मुझे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कब मिलेगी? लेकिन वास्तव में यह सवाल मीडिया के लिए है। पुणे और नागपुर में जब फिल्म की यूनिट पर हमला हुआ, उन्हें होटल में नजरबंद कर दिया गया तो दिल्ली के किसी चैनल और अखबार ने खबर तक दिखाने की जरूरत नहीं समझी। जो मीडिया अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश की आत्मा और इतिहास पर चोट करने वालों के साथ खड़ा हो जाता है, वह आपातकाल पर बनी एक फिल्म का साथ क्यों नहीं दे पा रहा है? आधे-अधूरे मन से कुछ जगहों पर खबरें जरूर दिख रही हैं, लेकिन वैसी बेचैनी नहीं दिखती जैसा रानी पद्मावती पर फिल्म बना रही यूनिट पर हमले के वक्त हुआ था।
उधर सच दिखाने का दावा करने वाले एनडीटीवी का सच सामने आ गया। आयकर ट्रिब्यूनल ने हवाला के मामले में उसे दोषी ठहराया है। इसके तहत उसे भारी जुर्माना भरना पड़ सकता है। कुछ अंग्रेजी और कारोबारी अखबारों को छोड़ दें तो मीडिया ने इस पर चुप्पी साधे रखी। वे दिग्गज संपादक और पत्रकार भी मुंह सिले रहे जो एनडीटीवी पर छापों को प्रेस की आजादी पर हमला बता रहे थे। ल्ल
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