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अप्पाला प्रसाद
तेलंगाना में करीमनगर जिले के केशवपत्तनम मंडल स्थित मेटपल्ली (चिन्ना) गांव ने सामाजिक समरसता की एक मिसाल पेश की है। इस गांव ने एक सार्वजनिक श्मशान का निर्माण किया है। ‘दसारी रंगैया श्मशान वाटिका’ सभी वर्गों के लोगों के लिए है। गांव के बुजुर्गों ने सामाजिक सद्भाव पैदा करने के लिए एक आंदोलन की नींव रखी है, जिसके तहत सभी जातियों के लोग इस श्मशान का इस्तेमाल कर सकेंगे। राज्य के इतिहास में यह एक बेजोड़ काम है। अन्य गांवों की तरह एक कदम बढ़ाकर इस गांव ने शानदार आदर्श प्रस्तुत किया है। खासकर, उस समय जब हिन्दू समाज में छुआछूत की जटिल गांठें ढीली पड़ रही हैं।
हुस्नाबाद के उपनिरीक्षक श्री भूमैया और श्री तुमल्ला श्रीराम रेड्डी की अगुआई में इस दिव्य कार्य को अंजाम दिया गया। एक समय था जब सभी को अंतिम संस्कार की सार्वजनिक सुविधा उपलब्ध कराने के लिए वर्ग विभाजन को लेकर जातिगत राजनीति की जाती थी, उस समय इन्होंने श्मशान के लिए 20-30 कुंता (दक्षिण भारत में प्रचलित भूमि मापक) जमीन दान दी और 20 लाख रुपये खर्च किए। इसमें दो शवों की अंत्येष्टि एक साथ की जा सकती है। सामान्यतया दाह संस्कार पर 15,000 रुपये खर्च होते हैं, जबकि यहां सिर्फ 5,000 रुपये ही खर्च आता है। पेशे से मिस्तत्री श्री सत्यम यहां का रखरखाव और संगठन द्वारा दी जा रही सुविधाओं की देखभाल करते हैं। इस काम में श्री रवि और श्री एल्ला रेड्डी सहित अन्य लोग उनका सहयोग करते हैं। इस श्मशान का उद्घाटन फरवरी 2016 में किया गया था और जून, 2016 तक यहां नौ शवों की अंत्येष्टि की जा चुकी थी जिनमें दो अनुसूचित जाति समुदाय के थे। इस श्मशान में लकड़ी और नहाने के लिए पानी की भी सुविधा है। मेटपल्ली गांव की यह उपलब्धि उन लोगों के मुंह पर एक तमाचा है जो माइक पर चिल्लाते फिरते हैं कि ‘अगड़ी जातियों के अत्याचारों में वृद्धि’ हुई है। यह उनके लिए भी एक संदेश है जो इस कुतर्क के साथ छुआछूत का समर्थन करते हैं कि सभी अंगुलियां एक समान नहीं होती हैं। इसके अलावा, इस गांव की उपलब्धि एक सबक भी है, जो सिखाता है कि आपस में लड़ने की बजाय गांव के बुजुर्गों और युवाओं को जाति से इतर हर व्यक्ति का सम्मान करना और समरसता की भावना का निर्माण जरूरी। 2015 को विजयादशमी पर अपने संबोधन में सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने हिन्दू समाज से मंदिरों, श्मशानों और जल स्रोतों तक सभी हिंदुओं की पहुंच सुनिश्चित करने का आह्वान किया था। मेटपल्ली गांव उस दिशा में एक उदाहरण के रूप में सामने आया है।
(लेखक सामाजिक समरसता वेदिका से संबद्ध हैं)
पहले सर्वेक्षण कराया
मेटपल्ली गांव में श्मशान निर्माण से पहले तेलंगाना में सर्वेक्षण कराया गया था। इसमें राज्य के राजस्व वाले 10 जिलों के 527 गांवों को शामिल किया गया था। सर्वेक्षण के दौरान जुटाए गए आंकड़ों को सरसंघचालक के साथ साझा किया गया। इसमें से उन्होंने तीन बिंदुओं पर गौर किया। पहला, 55 गांवों को मंदिरों में प्रवेश की इजाजत नहीं थी। यानी 10.5 फीसदी लोगों को मंदिरों से वंचित रखा गया था। दूसरा, 25 गांवों में सार्वजनिक जल स्रोत नहीं थे, जिनका प्रयोग सभी वर्गों के लोग कर सकें। इसका मतलब यह कि 5 फीसदी लोग इससे प्रभावित थे। तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण बिंदु था कि 205 गांवों में सभी के लिए एक श्मशान नहीं था। सर्वेक्षण के आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए समरसता वेदिका के सदस्यों ने गांवों के बुजुर्गों के साथ विचार-विमर्श किया। इसके बाद गांवों में बदलाव लाने के लिए काम शुरू हुआ। श्मशान का निर्माण उसी का परिणाम है। इन दस जिलों में लोगों को स्थानीय मुद्दों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए 14 स्थानों पर महिला समावेश कार्यक्रम चलाए गए।
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