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नेहरू के काल से ही भारत में मुस्लिम वोट राजनीतिक दलों को ललचाते रहे हैं। मुसलमानों के एकमुश्त वोट पाने के लिए राजनीतिक दल उन्हें आरक्षण देने के वादे करते रहे हैं, भले ही उनकी ऐसी घोषणाएं संविधान के दायरे से बाहर हों। न्यायालयों के एक नहीं, अनेक फैसलों से मजहबी आरक्षण की सीमा तय होने के बावजूद तेलंगाना सरकार मुसलमानों को पिछले दरवाजे से और ज्यादा आरक्षण देने पर आमादा है
सतीश पेडणेकर
हैदराबाद के निजाम के साथ तेलंगाना और महाराष्ट्र के मराठवाड़ा के विशाल भूभाग पर चार सदियों तक राज करके सत्ता का उपभोग करने वालों के वारिसों को लगता है कि भारत के आजाद होते ही वे इतने पिछड़ गए हैं कि उन्हें आरक्षण की जरूरत है। 4 प्रतिशत आरक्षण उन्हें मिला हुआ है, मगर वह काफी नहीं, चुनावी वोट बैंक को साधने के चक्कर में तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) की सरकार के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने यह घोषणा की कि उनकी सरकार विधानसभा के अगले सत्र में मुसलमानों को 12 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए बिल पेश करेगी।
यह घोषणा जितनी साधारण लगती है उतनी है नहीं, क्योंकि हमारे देश में मजहबी आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान है ही नहीं। इसके बावजूद टीआरएस ने न केवल 2.5 साल पहले चुनाव के दौरान मुसलमानों को 12 प्रतिशत आरक्षण का वायदा किया था वरन् यह जानते हुए कि मजहबी आधार पर आरक्षण का बिल किसी भी अदालत में टिक नहीं पाएगा, वह इस आशय का बिल पास करने जा रही है।
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की इस बाबत घोषणा से ही स्पष्ट था कि उनके इरादे नेक नहीं हैं। उनकी सरकार ने राज्य में अल्पसंख्यकों की स्थिति का आकलन करने के लिए सुधीर आयोग भी बनाया था जो अपनी रिपोर्ट सौंप चुका है। सुधीर आयोग ने मुसलमानों को 7 से 12 प्रतिशत आरक्षण की सीमा बढ़ाने की सिफारिश की थी। इसी आधार पर पिछड़ा वर्ग आयोग भी मौजूदा आरक्षण की सीमा बढ़ाने की सिफारिश कर सकता है। तेलंगाना में वर्तमान में मुसलमानों को दिए जा रहे 4 प्रतिशत आरक्षण का मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है।
इस बार राव सरकार ने मुस्लिम आरक्षण देने के लिए नया पैंतरा अपनाया है। उनकी सरकार केंद्र से इस कानून को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने का अनुरोध करेगी। अगर केंद्र सरकार उनका अनुरोध स्वीकार नहीं करेगी तो वे अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे। चंद्रशेखर राव का यह भी कहना है कि अगर तमिलनाडु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित अधिकतम 50 फीसदी सीमा से ज्यादा आरक्षण दे सकता है तो तेलंगाना क्यों नहीं? तमिलनाडु ने 1994 में मुसलमानों को 12 फीसदी आरक्षण दिया था, जिसके बाद कुल आरक्षण 69 फीसदी हो गया था। हालांकि, इस कानून को संविधान की 9वीं अनुसूची में डाल दिया गया था। संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल कानून न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर होते हैं। अब तेलंगाना भी इसी विकल्प का सहारा लेना चाहता है। आरक्षण पर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने कहा है कि देश में मजहब आधारित आरक्षण देना संभव नहीं है, आरक्षण केवल संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप दिया जा सकता है। उनका सवाल था कि '400 साल तक शासन करने वाले निजाम के उत्तराधिकारी आरक्षण कैसे मांग सकते हैं?'
राज्य की मुस्लिम पार्टी एमआईएम के नेता औवेसी भाई मुसलमानों के लिए कोटा मांग रहे हैं। वैसे मुसलमानों की निचली जातियों को पहले ही आरक्षण नीति का फायदा मिल रहा है। औवेसी मांग करते हैं कि सिर्फ गरीब मुसलमानों को नहीं, बल्कि सारे मुसलमानों को आरक्षण का फायदा मिलना चाहिए। औवेसी के लिए लोग नहीं बल्कि इस्लाम कसौटी है। ठीक वैसे ही जैसे बंटवारे से पहले यह जिन्ना के लिए थी। 2011 की जनगणना के मुताबिक तेलंगाना में 44़ 64 लाख मुसलमान हैं जो आबादी के 12.7 प्रतिशत हैं। दरअसल 2007 में आंध्र के कांग्रेसी मुख्यमंत्री वाई. एस. राजशेखर रेड्डी ने आंध्र प्रदेश आरक्षण कानून पास करके तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के मुसलमानों को 4 प्रतिशत आरक्षण दिया था। यह आरक्षण देने के लिए उन्हें काफी पापड़ बेलने पड़े थे। दरअसल 2005 में वाईएसआर ने तो उन्हें 5 प्रतिशत आरक्षण दिया था मगर आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने उसे खारिज कर दिया था, क्योंकि इसके करने से कुल आरक्षण 51 प्रतिशत हो रहा था जो सर्वोच्च न्यायालय के उस आदेश का उल्लंघन था, जिसके मुताबिक आरक्षण केवल 50 प्रतिशत ही हो सकता है। इसलिए उन्होंने 2 साल बाद मुसलमानों के 14 गरीब समुदायों के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया। इसे भी अदालत में चुनौती दी गई, जिसे 2008 में एक सात सदस्यीय बेंच को सौंप दिया गया था। आंध्र प्रदेश सरकार ने न्यायालय से अपील की कि यथास्थिति बनाए रखी जाए। इसलिए उस आरक्षण को जारी रहने दिया गया मगर यह इस पर निर्भर करेगा कि आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय का क्या फैसला आता है।
2010 में उच्च न्यायालय की बेंच ने 5-2 के बहुमत से इस आरक्षण को अवैध करार दिया। आखिर में मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा जिसने इस आरक्षण को जारी रखने की अनुमति दी और इस मामले को संविधान बेंच को सौंप दिया। उसका फैसला आने तक दोनों राज्यों, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में मुस्लिमों को 4 प्रतिशत आरक्षण जारी रहेगा।
मगर इस बीच जाने कैसे मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव के दिमाग में सभी मुसलमानों को पिछड़ा बताकर उन्हें 12 प्रतिशत आरक्षण देने का विचार आया। इससे भी आरक्षण प्रतिशत से ज्यादा हो जाएगा इसलिए वे इसे संविधान की 9वीं अनुसूची में डालना चाहते हैं ताकि अदालत में चुनौती न दी जा सके। वैसे तेलंगाना राष्ट्र समिति जानती है कि केंद्र की राजग सरकार इसकी इजाजत नहीं देगी। इसलिए मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव के बेटे के. टी. रामाराव ने कहा कि तेलंगाना का सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल जल्द ही केंद्र सरकार से मिलेगा और अनुरोध करेगा कि तेलंगाना के मुसलमानों को 12 प्रतिशत आरक्षण की इजाजत दे जिस तरह तमिलनाडु को दी गई है। लेकिन बाद में 76वां संविधान संशोधन हुआ जिसके कारण तमिलनाडु का आरक्षण भी 9वीं सूची में संरक्षित नहीं रहा। तमिलनाडु के 69 प्रतिशत आरक्षण को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है, जिस पर फैसला आने का इंतजार है।
इस कारण तेलंगाना के 12 प्रतिशत आरक्षण की वैधता को लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है। नतीजतन चंद्रशेखर राव की स्थिति बड़ी अजीब हो गई है। उन्होंने मुसलमानों में उम्मीदें जगा दी हैं मगर राह आसान नहीं है। दूसरी तरफ अन्य पिछड़े वर्गों का आरक्षण कम कर उससे मुसलमानों को आरक्षण देना भी उनके लिए संभव नहीं होगा, क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें ओबीसी जातियों के कोप का शिकार होना पडे़गा।
दरअसल तेलंगाना ही नहीं, कई राज्यों की सरकारें संवैधानिक आधार पर संभव न होने पर भी मुसलमानों को मजहबी आधार पर आरक्षण देने का वादा करती हैं। महाराष्ट्र की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सरकार ने 16 प्रतिशत मराठा आरक्षण के साथ मुसलमानों को भी 5 प्रतिशत आरक्षण दिया था जिसे उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था। अब महाराष्ट्र में नए सिरे से मुसलमानों को आरक्षण देने की मांग जोर पकड़ती जा रही है।
पिछले दिनों प्रदेश के मराठवाड़ा इलाके के बीड़ जिले में इन मुद्दों को लेकर विशाल मार्च निकाला गया़ इस तरह की मांग पर मराठवाड़ा में मुस्लिम समुदाय की यह चौथी रैली थी। समुदाय इन रैलियों के जरिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में दखल का विरोध भी कर रहा है। इसके अलावा 'आतंकवाद के नाम पर मुसलमानों को परेशान करने' का भी मुद्दा भी इन विरोध प्रदर्शनों में उठाया जा रहा है। बहरहाल सेकुलरवाद के नाम पर मुसलमानों के एकमुश्त वोट पाने की लालसा रखने वाली राजनीति ने उनको आरक्षण देना अपनी वोट राजनीति का हथियार बनाया हुआ है।
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