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एक घेरा या बहुचक्रीय व्यवस्था? वास्तव में कितने वलय के सुरक्षा व्यवस्था को अभेद बना सकते हैं? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका सभी को स्वीकार्य, समाधानकारक उत्तर आज तक दुनिया के शीर्ष सुरक्षा विशेषज्ञों के पास नहीं है। हर दूसरा उत्तर पहले में संशय की सेंध लगाता है। पहला घेरा पुख्ता है तो दूसरा क्यों? और यदि एक चरमरा सकता है तो अगला क्यों नहीं?
क्या इस पहेली का उत्तर तलाशा जा सकता है? दरअसल तकनीकी उन्नति, धुंधलाती राजनैतिक सीमाओं और विश्व व्यवस्था के पिघले ध्रुवों ने सुरक्षा से जुड़े सवालों को इतना जटिल बना दिया है कि किसी एक पहलू पर विचार समग्र हल की ओर नहीं ले जा सकता जब तक कि उससे जुड़े दूसरे, दूसरे से जुड़े तीसरे और दोनों से जुड़े चौथे पहलू को खंगाला न जाए। कोई भी जंजीर उतनी ही मजबूत होती है जितनी उसकी सबसे कमजोर कड़ी। तो क्या अलग-अलग जंजीरें कुछ कडि़यां आपस में जोड़कर ज्यादा बेहतर मजबूती पा सकती हैं। यह सरल नहीं है परंतु रक्षा, सुरक्षा और आतंकवाद से लड़ाई को देखते हुए विविध क्षेत्रों में तार्किक, पारदर्शी और मानवीय साझापन आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। मिलकर चलने का यह भाव अंतरराष्ट्रीय गठजोड़ों से लेकर पलटनों के कदमताल तक गूंज भी रहा है।
दुनिया बदल गई है, तेजी से बदल रही है। यह बदलाव अतल गहराइयों में डूबी नाभिकीय पनडुब्बियों, राडार की आंखों में धूल झोंकने वाले लड़ाकू विमानों और किसी भारी एसयूवी सरीखी गति रखने वाले टैंकों तक ही नहीं आया बल्कि रणक्षेत्र भी परिवर्तित हो रहे हैं। हुंकार भरते योद्घाओं की जगह शांत और शातिर साइबर आर्मी, चमकती संगीन की जगह सिलिकान चिप़.़ खतरे अब नए रूपों में लहरा रहे हैं।
आयुध दिखते हैं, दिखाए जाते हैं, आतंकी और विस्फोटक छिपते हैं, छिपाए जाते हैं और साइबर हमलावऱ.़! ये तो लगभग अदृश्य ही हैं! फिर?
जवाब यहीं हैं, हर खतरे को उसकी मांद में पकड़ने और पछाड़ने के लिए अलग-तरह की तैयारी आज की जरूरत है। किन्तु केवल क्षेत्र विषय में विशिष्टता से वांछित परिणाम प्राप्त नहीं किए जा सकते। समझ और सक्रियता के साथ समन्वय ही आज का सबसे बड़ा
मंत्र है।
जल-थल और नभ यदि अलग-अलग होने पर भी एक सुरक्षा चक्र हैं तो अर्धसैनिक व पुलिसबल इस चक्र को भीतर से मजबूती देने वाली पंक्तियां हैं। एक के बिना दूसरा अधूरा है। साइबर सुरक्षा और गुप्तचर सूचनाएं न दिखने वाला ऐसा कवच है जो आघातों से तो बचाता ही है, युद्घ सरीखी स्थितियों में बढ़त भी दिलाता है। इसके अतिरिक्त बदलते भू-राजनैतिक परिदृश्य को पढ़ने और आवश्यकतानुसार पहल करने की क्षमता राजनीति को युद्घ आरंभ होने से पूर्व ही इसके सबसे प्रभावी हथियार के तौर पर स्थापित करती है।
स्थिति जटिल है, मुद्दा बड़ा है और इस देश से, हम सबसे जुड़ा है, इसलिए अपने वार्षिक 'सुरक्षा पर संवाद' विमर्श में हमने वर्तमान परिस्थितियों में बदलती सुरक्षा चुनौतियों को समझने और इनके समाधानों तक पहुंचने की कोशिश की है। देश के ख्यात सुरक्षा विशेषज्ञों के सहभाग से 26 दिसंबर को दिल्ली में हुआ यह आयोजन सफल रहा। इस मंथन के दौरान उठे सवाल और निष्कर्ष रूप में सामने आए विचार पाञ्चजन्य के गणतंत्र दिवस विशेषांक में आलेखों के रूप में अब आपके हाथों में हैं। आपको यह अंक कैसा लगा, हमें
अवश्य बताएं।
पाञ्चजन्य के पाठकों, वितरकों, विज्ञापनदाताओं और सभी शुभचिंतकों को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं।
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