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एक जलजला सा आ गया है रिलायंस की जिओ सेवा से1 दिसम्बर तक मुफ्त वॉयस और डेटा का उपभोग करने को लालायित उपभोक्ताओं को इसकी अन्य शर्तों के बारे में पूरी जानकारी शायद न हो। रिलायंस पर पहले से शक करने वालों की भी संख्या कम नहीं है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस क्षेत्र के अनेक दिग्गज अपनी दरें कब कम करते हैं। प्रतियोगिता बढ़ने के आसार जो हैं
प्रमोद जोशी
अग्रेजी के 'डिसरप्टिव' शब्द के हिन्दी में ज्यादातर अर्थ नकारात्मक हैं। मसलन बाधाकारी, हानिकारक, विध्वंसकारी वगैरह। जैसे सृजन के लिए संहार जरूरी है, वैसे ही आधुनिक तकनीक के संदर्भ में इसके मायने सकारात्मक हैं। इनोवेशन वह है जो नयापन लाने के लिए पुराने को खत्म कर दे। जैसे सीएफएल ने परम्परागत बल्ब के चलन को खत्म किया और अब एलईडी सीएफएल को खत्म कर रहा है। इस शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल लेखक क्लेटन एम. क्रिस्टेनसेन ने 1995 में किया, जो इस वक्त हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में प्राध्यापक हैं। वैसे सारे इनोवेशन डिसरप्टिव नहीं होते, पर मोबाइल फोन है, जिसने परम्परागत फोन को अब लगभग खत्म कर दिया है। अब जब हम मोबाइल टेलीफोनी की चौथी पीढ़ी की पीठ पर सवारी कर रहे हैं, सम्भावना इस बात की है कि 2-जी और 3-जी की छुट्टी हो जाए। ऐसा होगा, पर कब और कैसे? रिलायंस जिओ के बाजार में उतरने ने ऐसे ही कुछ सवालों को जन्म दिया है।
रिलायंस उद्योग समूह की घोषणा का सबसे बड़ा पहलू है वॉयस और डेटा के फर्क का खत्म होना। यह इंटरनेट क्रांति का बिगुल बजना है। इससे एक तरफ उपभोक्ताओं में उत्साह है, साथ ही संदेह भी, क्योंकि इसकी पूर्ववर्ती रिलायंस मोबाइल सेवा की छवि उपभोक्ताओं के मन में अच्छी नहीं है। हाल में गूगल की एशिया-प्रशांत भाषा प्रमुख ऋचा सिंह चित्रांशी ने राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के छात्रों से कहा कि 2020 तक भारत की ऑनलाइन जनसंख्या 50 करोड़ पार कर जाएगी। कुछ लोग कहते हैं कि यह संख्या 60 करोड़ से ज्यादा होगी। इनमें से ज्यादातर लोग भारतीय भाषाओं के जानकार होंगे। यह सामान्य खबर है, पर इसके निहितार्थ असाधारण हैं।
भारत संचार-क्रांति की तीसरी लहर देख रहा है। पहली लहर संचार के निजीकरण की थी तो दूसरी स्मार्ट-फोन की। पर अभी तक हम 'वॉयस कल्चर' में थे। अब हम 'डेटा कल्चर' के दौर में प्रवेश कर रहे हैं। कनेक्टिविटी ने 'डायरेक्ट डेमोक्रेसी' की सैद्धांतिक सम्भावनाओं को बढ़ा दिया है। गोकि उस राह पर अभी काफी दूर तक चलना है, पर भारत जैसे साधनहीन समाज में इंटरनेट से बदलाव के नए रास्ते खुल रहे हैं। आंकड़ों की भाषा में बात करना इन दिनों मुश्किल हो रहा है, क्योंकि आंकड़े भी तेजी से बदल रहे हैं। देखना यह होगा कि 4-जी की ताजा दौड़ 2-जी और 3-जी को कब तक और किस तरह खत्म करेगी।
रिलायंस-जिओ या आर-जिओ की घोषणाओं के बाद नए फोन कनेक्शन के लिए तमाम शहरों में लम्बी कतारें लग रही हैं। यों भी 31 दिसम्बर तक यह सेवा मुफ्त है, इसलिए इसमें जोखिम नहीं है। दूसरी ओर मौजूदा मोबाइल ऑपरेटरों ने इस घोषणा को खतरे की घंटी माना है। अभी तक देश के तीन बड़े ऑपरेटर 'कार्टल' की तरह काम कर रहे थे। आर-जिओ उनके प्रतिस्पर्धी के रूप में सामने आया है। देश के सबसे बड़े मोबाइल समूह भारती एयरटेल के सामने भी अस्तित्व का संकट है। लगता यही है कि कड़ी प्रतियोगिता अंतत: कनेक्टिविटी को बेहतर बनाएगी।
'इंटर-कनेक्टिविटी' का झंझट
आर-जिओ सेवाएं शुरू होने के बाद जो पहली परेशानी खड़ी हुई है वह है मोबाइल सेवाओं के बीच इंटर-कनेक्टिविटी। रिलायंस जिओ का कहना है कि ''इस उद्योग से जुड़े ऑपरेटर पॉइंट्स ऑफ इंटरकनेक्ट (पीओआई) उपलब्ध नहीं करा रहे हैं, जिससे हमारे नेटवर्क की हर रोज दस करोड़ कॉल ड्रॉप हो रहीं। इस काम में नियामक संस्था 'ट्राई' को भी हस्तक्षेप करना होगा।'' वर्तमान मोबाइल ऑपरेटरों का कहना है कि बढ़े हुए 'ट्रैफिक' के लिए इंटर-कनेक्टिविटी यूजर चार्ज लगाया जाना चाहिए। एयरटेल के अध्यक्ष सुनील भारती मित्तल ने भरोसा दिलाया है कि इस समस्या का समाधान कर लिया जाएगा। अलबत्ता प्रतिस्पर्धी समूहों ने अपने 'प्लान' को लेकर मोर्चाबंदी शुरू कर दी है, पर यह लड़ाई लंबी है क्योंकि दूरसंचार नियमों में बदलाव के कारण मोबाइल सेवा में वॉयस और डेटा के बीच फर्क खत्म हो गया है, जबकि वर्तमान ऑपरेटर दोनों के बीच अंतर को स्थायी मानकर चल रहे थे।
मुकेश अंबानी ने 1 सितंबर, 2016 को जो घोषणाएं कीं, उन्हें मोटे तौर तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है। 1. जिओ डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को वास्तव में जमीन पर उतारेगा, 2. वह डेटा यानी इंटरनेट को जनता तक पहुंचाएगा, जो जागरूकता और सशक्तीकरण के सबसे ताकतवर औजार के रूप में उभर रहा है और 3. जिओ ने मोबाइल फोन में डेटा और वॉयस के फर्क को खत्म करके एक बंडल के रूप में देने का फैसला किया है, जो अपने आप में क्रांतिकारी बात है।
रिलायंस को सरकारी सहारा
रिलायंस उद्योग की खासियत रही है कि उसे सायास या अनायास सरकारी नीतियों में हेर-फेर का फायदा मिलता रहा है। उसके संचालकों के पास राष्ट्रीय नीतियों के भीतर से अपने लिए लाभकारी स्थितियां तैयार करने का कौशल है। शिकायतें हैं कि सरकार ने स्पेक्ट्रम नीलामी की शर्तों को बदल कर रिलायंस समूह को फायदा पहुंचाया है। जिस वक्त मई-जून 2010 में स्पेक्ट्रम की नीलामी हो रही थी, केवल एक अनाम कंपनी इंफोटेल ब्रॉडबैंड सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड (आईबीएसपीएल) ने सभी 22 टेलीकॉम सर्किल के लिए ब्रॉडबैंड वायरलेस एक्सेस (बीडब्लूए/4-जी) के अंतर्गत 'मोबाइल डेटा ओनली' सेवाओं के तहत स्पेक्ट्रम हासिल किया। उद्देश्य था-ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट का विस्तार।
जिस वक्त स्पेक्ट्रम की नीलामी की जा रही थी, तब साफ तौर पर कहा गया कि यह डेटा के लिए है, आवाज के लिए नहीं। अगर दूसरी कंपनियों को यह पता होता कि इसका इस्तेमाल आवाज के लिए भी हो सकता है तो वे इसमें दिलचस्पी लेतीं। पर ऐसा नहीं हुआ। रिलायंस ने इन्फोटेल ब्रॉडबैंड सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड (आईबीएसपीएल) की मार्फत नीलामी में हिस्सा लिया। नीलामी में भाग लेने के लिए कोई न्यूनतम योग्यता निर्धारित होती तो इस कम्पनी को भाग लेने का मौका ही नहीं मिलता। अनाम सी कम्पनी के भाग लेने पर दूसरी बड़ी कंपनियों ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया। रिलायंस इसमें शामिल होती तो दूसरी कंपनियों के कान खड़े होते।
चूंकि यह स्पेक्ट्रम डेटा के लिए था, इसलिए स्पेक्ट्रम यूजर चार्ज (एसयूसी) राजस्व का एक फीसदी था, जबकि वॉयस का स्पेक्ट्रम लेने वालों के लिए चार फीसदी। यह काफी बड़ा अंतर था। संयोग से सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया। सीएजी ने इस बात की ओर इशारा किया है कि शुरू में यही बात थी कि यह स्पेक्ट्रम डेटा के लिए है। सेंटर फॉर 'पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन' के वकील प्रशांत भूषण के अनुसार इसमें नियामक संस्था 'ट्राई' की भूमिका नहीं है, बल्कि सरकार की है, जिसने नियमों में हेर-फेर किया। रोचक बात यह है कि यह काम पिछली सरकार ने किया है। वर्तमान सरकार उस सरकार के काम को आगे बढ़ा रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने वर्तमान सरकार के सामने एसयूसी बढ़ाने का विकल्प रखा था। पर सरकार ने कुछ किया नहीं।
'डेटा प्लस वॉयस' का चमत्कार
इस स्पेक्ट्रम की नीलामी के वक्त माना गया कि यह डेटा के लिए है, आवाज के लिए नहीं। मगर रिलायंस ने यह दूर की कौड़ी पकड़ ली। अगर बाकी कंपनियां भी इस तरह सोचतीं और तेजी से पहल करतीं तो स्थितियां बाजार के लिए और बेहतर होंगी। बहरहाल जनवरी 2013 में जब आईबीएसपीएल ने रिलायंस जिओ इन्फोकॉम लिमिटेड का रूप लिया तब कुछ बातें स्पष्ट हुईं। फिर सरकारी नीतियों के कारण बीडब्लूए/4-जी के तहत मोबाइल डेटा ओनली लाइसेंस बीडब्लूए प्लस वॉयस में बदल गया।
बीडब्लूए/4-जी सेवाओं के लिए दूरसंचार विभाग ने 800, 1800 और 2300 मेगाहर्ट्ज बैंड के स्पेक्ट्रम ब्लॉक जारी किए हैं। आर-जिओ के पास 20 सर्किल में 800 और 1800 मेगाहर्ट्ज के और आईबीएसपीएल की मार्फत सभी 22 सर्किल में 2300 मेगाहर्ट्ज के स्पेक्ट्रम हैं। रिलायंस ने इस काम पर करीब 15 अरब डॉलर की रकम लगाई है जो रिलायंस उद्योग के 20 अरब डॉलर के कैश रिजर्व का करीब तीन चौथाई है। आर-जिओ ने तकरीबन 70,000 स्थानों पर काम पूरा कर लिया है। लगभग एक लाख किलोमीटर में फाइबर ऑप्टिक केबल बिछाया जा चुका है। इसके अलावा उसके पास अनिल अंबानी की आर-कॉम का तकरीबन 70,000 किलोमीटर फाइबर ऑप्टिक केबल अलग से है।
रिलायंस के प्रतिस्पर्धियों ने समय रहते तकनीकी इनोवेशन का सहारा नहीं लिया। रिलायंस अपनी सेवाएं एलटीई (लांग टर्म इवॉल्यूशन) प्लेटफॉर्म पर दे रही है। अक्तूबर 2010 में इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशंस यूनियन (आईटीयू) ने व्यवस्था दी कि एलटीई को 4-जी के रूप में मान्यता दी जाती है। आर-जिओ के अलावा देश में भारती एयरटेल, एयरसेल, आइडिया, टेलेनॉर और वोडाफोन के पास भी यह तकनीक है। फर्क यह है कि इन ऑपरेटरों ने इसका इस्तेमाल केवल डेटा ट्रांस्मिशन के लिए किया, गोकि उनके पास भी यूनिफाइड लाइसेंस है।
निष्क्रिय ऑपरेटर
2013 में भारत के दूरसंचार विभाग ने वॉयस, वीडियो और डेटा के बढ़ते कन्वर्जेंस की जरूरत को समझते हुए नियमों में बदलाव करते हुए उनके लाइसेंसों को यूनिफाइड लाइसेंस बना दिया। पर किसी भी ऑपरेटर ने वॉयस ओवर एलटीई (वोल्टे) तकनीक का फायदा उठाने के बारे में नहीं सोचा। वे सिर्फ डेटा ट्रांसफर के लिए ही इसका इस्तेमाल करते रहे। उधर आर-जिओ ने इसका आधार ढांचा बनाने में जबरदस्त निवेश करना शुरू कर दिया।
मोबाइल क्रांति के पहले दौर में रिलायंस ने खुद को प्रतियोगिता से बचा लिया और अब लगभग मोनोपॉली की स्थिति बना ली है। हालांकि इस बात का इंतजार करना होगा कि प्रतियोगिता का पहला दौर कैसे बीतता है। आर-जिओ को पूरे देश में 4-जी सेवा देनी है। क्या उसने इतने टावर खड़े किए हैं कि पूरे देश में निर्बाध सेवा दी जा सके? क्या उसका पहले साल में ही दस करोड़ ग्राहकों का आधार तैयार हो पाएगा? क्या वह दुनिया में संचार क्रांति का आधार ढांचा तैयार करने में सफल होगी?
यह भी देखना है कि उपभोक्ता उसके प्लान की ढकी-छिपी बातों को अच्छी तरह समझने के बाद भी क्या उसे जारी रखेंगे? चूंकि 31 दिसंबर तक सेवा मुफ्त है, इसलिए सही परिणाम उसके बाद ही सामने आएंगे। लगता यही है कि इस बार रिलायंस काफी तैयारी के साथ उतरी है। उसके पास पंूजी की कमी नहीं है। उसने अपने 'बैकएंड' विकास यानी टावरों और फाइबर ऑप्टिक केबल पर काफी निवेश किया है।
महत्व वॉयस का
रिलायंस का आग्रह वॉयस के बजाय डेटा पर है। पर वास्तव में देश के सभी ऑपरेटरों का तकरीबन 75 फीसदी कारोबार वॉयस आधारित है। चूंकि रिलायंस ने मुफ्त वॉयस सेवा का वादा किया है इसलिए शेष ऑपरेटरों के मन में दहशत है। क्या इसका मतलब यह लगाया जाए कि रिलायंस ने डेटा की मार्फत वॉयस के कारोबार को हासिल करने का रास्ता चुना है? जिओ ने पिछले छह साल में यानी स्पेक्ट्रम की नीलामी के बाद से तकनीक हासिल करने पर तकरीबन एक लाख करोड़ रुपए के निवेश का दावा किया है।
इतने भारी 'ट्रैफिक' को संभालने के लिए भी तकनीक चाहिए। उसकी कोशिश है कि एक साल के भीतर दस करोड़ नए ग्राहकों को जोड़ लिया जाए। यह काफी महत्वाकांक्षी योजना है। जिओ के पास पूरे देश का स्पेक्ट्रम है। इसलिए उसके पास पूरे देश के ग्राहकों तक जाने के लिए तकनीक होनी चाहिए। यहां एक भारी जोखिम भी है। यदि इतने ज्यादा 'ट्रैफिक' को संभालने में दिक्कत आई तो यह सेवा पुरानी रिलायंस सेवा की गति को प्राप्त हो जाएगी।
देश में 2-जी और 3-जी सेवाएं भी अभी चल रही हैं। जिओ 2-जी या 3-जी सेवा नहीं देगा। उसे 4-जी सेवा देनी है, जिसके लिए उसने एलटीई तकनीक हासिल की है। साथ ही पिछले कुछ वर्षों में उसने जबरदस्त फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क बना लिया है। हमारे उपभोक्ता का मिजाज पश्चिमी उपभोक्ता जैसा नहीं है। हमारे यहां आज भी 'मिस्ड कॉल' की मार्फत संदेश देने की परम्परा है। जिओ की सेवा वॉयसओवर एलटीई तकनीक से लैस है। इसमें आवाज और डेटा एक मार्ग से आएंगे। इसके फायदे और नुकसान को अगले कुछ महीनों बाद ही समझा जा सकेगा।
डेटा की राह क्यों?
एक सवाल यह भी है कि यदि रिलायंस की दिलचस्पी वॉयस में है तो उसने डेटा का रास्ता क्यों पकड़ा? और नीति-निर्धारकों तथा नियामकों ने डेटा के रास्ते से वॉयस में आने की अनुमति क्योंकर दी? मार्च 2016 में फिक्की की एक बैठक में मुकेश अंबानी ने कहा था कि देश में प्रति व्यक्ति डेटा उपभोग 0.14 गीगाबाइट ही है। पर यह कम उपभोग में मांग की कमी के कारण है या उसके महंगे होने के कारण?
चूंकि अब डेटा सेवा के दाम गिरेंगे तो इसका असर वर्तमान सेवा प्रदाताओं के डेटा उपभोक्ताओं पर भी पड़ेगा जो प्रतियोगिता न होने के कारण महंगी सेवा ले रहे थे। वर्तमान ऑपरेटरों के लिए चुनौती उनकी अपनी टेक्नोलॉजी भी है। जिओ के पास बेहतर तकनीक है और शुरू में उसके पास भारी 'ट्रैफिक' भी नहीं होगा। ऐसे में उसकी 'डेटा स्पीड' बेहतर होगी। रिलायंस को पहले साल की बेहतर रपट चाहिए। एक बार माहौल बना तो भविष्य में उसका कारोबार बढ़ेगा। इससे वर्तमान ऑपरेटर अपनी डेटा सेवाओं के दाम घटाएंगे और तकनीक पर भी पैसा लगाएंगे। अभी देश में तीन बड़े ऑपरेटर हैं-एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया। सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) पर इन्हीं तीन का वर्चस्व है। इस एसोसिएशन में राजस्व के आधार पर प्रभाव है। अभी जिओ का राजस्व नहीं है, इसलिए इसमें उसकी आवाज नहीं है। पर भविष्य में स्थितियां बदलेंगी। यह सच है कि रिलायंस को अतीत में सरकारी दफ्तरों में समर्थन आसानी से मिलता था, पर अब उसके मुकाबले तीनों ऑपरेटर समर्थ हैं। उनके पास भी साधन हैं। इसलिए इस प्रतियोगिता का फायदा सामान्य उपभोक्ता को मिलेगा। अभी तीन बड़े ऑपरेटरों ने 'कार्टल' जैसा बना रखा है। रिलायंस को पैर जमाने के लिए इस 'कार्टल' से अलग रहकर काम करना होगा। जब उसके पैर जम जाएंगे तब उसका व्यवहार भी बदलेगा। फिलहाल उसके प्रतियोगी रुख के कारण उपभोक्ता बेहतर सेवा की उम्मीद कर सकता है।
ऐसा समझा जा रहा है कि भारतीय उपभोक्ता इंटरनेट की मार्फत बातें करने (यानी वॉयस ओवर इंटरनेट-वीओआईपी) के प्रति आकर्षित होगा। हालांकि स्काइप और व्हाट्सऐप वगैरह पहले से यह सेवा दे रहे हैं। ज्यादातर भारतीय ऑपरेटरों के पास इसकी तकनीक नहीं है और नियामक संस्था से अनुमति भी नहीं है। इसमें वॉयस ही डेटा होगी, इसलिए जिस कॉल पर एक मिनट का 60 से 70 पैसे प्रति मिनट वसूला जा रहा है, वह दो पैसे प्रति मिनट की हो जाएगी। विशेषज्ञों का मानना है कि वर्तमान ऑपरेटर इस पर नहीं जाएंगे, क्योंकि इससे उनके राजस्व में कमी आ जाएगी।
भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे तेजी से बढ़ रहे स्मार्टफोन बाजारों में एक है। रिसर्च फर्म आइडीसी के अनुसार यहां 2015 में करीब 10 करोड़ 36 लाख स्मार्टफोन बिके, जो 2014 के मुकाबले 28.8 फीसदी ज्यादा थे। इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या के लिहाज से 27.7 करोड़ उपभोक्ताओं के साथ भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है।
चीन पहले स्थान पर है और अमेरिका तीसरे पर। यह भी सही है कि इतनी तेज गति से आगे बढ़ने के बावजूद हमारी दूरसंचार सेवाओं की गुणवत्ता में उतना तेज सुधार नहीं हुआ है। सबसे बड़ी शिकायत कॉल ड्रॉप की है। भारतीय दूरसंचार कंपनियों ने ग्राहकों की संख्या में इजाफे का लाभ उठाने के साथ उसके हिसाब से स्पेक्ट्रम और टावर जैसे निर्णायक ढांचे में पर्याप्त निवेश नहीं किया है। इस वजह से फोन अक्सर कट जाता है।
क्या खास है आर-जिओ में?
रिलायंस डिजिटल स्टोर के बाहर सिम लेने के लिए लंबी कतारें लगी होने की खबरें हैं। हालांकि सिम फ्री है, पर खबरें हैं कि कई जगह उसके लिए रुपए लिए जा रहे हैं। ज्यादातर लोगों के मन में सवाल है कि कोई कंपनी इतना सस्ता डेटा प्लान, फ्री मैसेजिंग और फ्री वॉयस कॉल कैसे दे सकती है? मोटे तौर पर हर प्लान में 'अनलिमिटेड नाइट फ्री' डेटा है। सभी वॉयस कॉल हमेशा फ्री हैं। 50 रुपए 1 जीबी 4-जी डेटा कंपनी दे रही है। ग्राहकों के लिए 6,000 फिल्में और गाने फ्री। जिओ नेटवर्क पर एसएमएस फ्री। भारत के 30,000 स्कूलों और कॉलेज में लगेगा जिओ वाई-फाई। छात्रों को 25 प्रतिशत डेटा मिलेगा। त्योहारों पर ग्राहकों से कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लिया जाएगा और दिसंबर तक जिओ मुफ्त सेवा देगी। 5 सितंबर से शुरू हुए 'ट्रायल पीरियड' में 31 दिसंबर तक सभी सेवाएं फ्री हैं। इसके बाद 'प्लान' के हिसाब से आप रिचार्ज कराकर सेवाएं प्राप्त कर सकते हैं। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि कॉल के दौरान डेटा कटेगा या नहीं, पर यह बात साफ है कि वॉयस ही डेटा है।
इतना सस्ता भी नहीं
मोटे तौर पर रिलायंस जिओ की घोषणाएं आकर्षक हैं, पर उनका करीब से अध्ययन करने पर उनमें काफी झोल नजर आते हैं। साथ ही कुछ बातें अभी स्पष्ट हैं भी नहीं। आर-जिओ ने पूरी योजना को जिस तरीके से पेश किया है, वह भी नाटकीय है। यह देखने की जरूरत है कि जिओ के 'प्लान' क्या इतने सस्ते हैं, जितना दावा किया जा रहा है। फ्री वॉयस देने से कंपनी का कोई वर्तमान प्रभावित नहीं होगा, क्योंकि उसके पास वॉयस के ग्राहक हैं ही नहीं। दूसरे, वॉयस ही डेटा है। उसके प्लान में सबसे सस्ता प्लान 28 दिन के लिए 149 रुपए, वर्तमान ऑपरेटरों के वॉयस प्लान से महंगा ही है। 19 रुपए में एक दिन की मुफ्त वॉयस और 0.1 जीबी डेटा, जो रात में 'अनलिमिटेड' है सस्ता लगता है। पर उसे महीने में बदलें तो 570 रुपए होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि हरेक प्लान को सावधानी से देखें तो वह इतना सस्ता नहीं है, जितना बताया जा रहा है।
बीएसएनएल क्यों नहीं
जब रिलायंस और दूसरे ऑपरेटर प्रतियोगिता में हैं तब सार्वजनिक स्वामित्व वाली संस्था बीएसएनएल पीछे क्यों है? खबर यह है कि बीएसएनएल भी अपने दाम कम करने जा रहा है। बीएसएनएल कॉलिंग भी मुफ्त होने जा रही है। बीएसएनएल 2-जी और 3-जी पर भी यह सुविधा देने जा रहा है। देश के पूरे मोबाइल बाजार में बीएसएनएल का करीब साढ़े आठ फीसदी हिस्सा है। बीएसएनएल की घोषणा से एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया पर भी दबाव बढ़ेगा। यानी कुल मिलाकर मोबाइल की दरें कम होने की राह खुलेगी। देश में अभी सभी मोबाइल कंपनियों के करीब 22,000 'प्लान' चल रहे हैं। इन्हें आसान बनाना चाहिए।
इसका मतलब है कि दरों में तेज गिरावट होगी। इसकी वजह से शायद कुछ कंपनियों का राजस्व अगले दो साल में आधा ही रह जाएगा। पर अच्छी सेवा देने वालों का कारोबार बढ़ेगा भी, क्योंकि डेटा का इस्तेमाल बढ़ेगा। भारत में डेटा की दरें इस वक्त काफी ज्यादा हैं। आज भी हम अपनी आय का काफी बड़ा हिस्सा मोबाइल फोन पर खर्च कर रहे हैं। दुनिया 2020 में 5-जी का इंतजार कर रही है, जिसकी गति 4-जी से कई गुना ज्यादा होगी। हमें चार साल बाद ही उस गति को पकड़ने की कोशिश करनीचाहिए।
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