|
बाबा साहब ने कहा था कि वामपंथी अपने राजनैतिक हितों के लिए मजदूरों का शोषण करते हैं सीपीएम ने केरल में यही बात सिद्ध की है। 1958 में मंगलौर गणेश बीड़ी फैक्ट्री को कम्युनिस्ट मजदूर संघों द्वारा बंद कराने से सैकड़ों कामगार बेरोजगार हो गए थे। इस गतिरोध को दूर करने के लिए कन्नूर क्षेत्र के स्वयंसेवकों ने उन श्रमिकों के पुनर्वास का फैसला किया जिसमें कम्युनिस्ट भी शामिल थे। उन्होंने महालक्ष्मी एजेंसी नाम से बीडी मार्केटिंग एजेंसी शुरू की। एक लोकप्रिय स्वयंसेवक श्री चन्द्रशेखरन को जनरल मैनेजर नियुक्त किया गया। उन्होंने बीड़ी बनाने की छोटी इकाइयों की स्थापना कर बेरोजगार लोगों को रोजगार देने का काम किया। इससे प्रभावित होकर अधिकतर कामगार और बहुत से कम्युनिस्ट राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जनसंघ में शामिल हो गए।
यह एक अवसर था जब वे संघ को जान सकते थे। उधर कम्युनिस्ट इस नई बीड़ी कंपनी को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानने लगे। क्षेत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अभूतपूर्व वृद्धि से चिंतित कम्युनिस्ट पार्टी ने योजनाबद्ध तरीके से स्वयंसेवकों और इस कंपनी पर हमले करने शुरू किये। उन्होंने उसकी टक्कर में दिनेश बीड़ी कंपनी शुरू की। सरकार के मजबूत समर्थन और अन्य जगहों से होती फंडिग से उन्होंने कार्यकर्ताओं के बीच जड़ें जमानी शुरू कर दीं। लोगों को अपनी ओर लाने के लिए पद-प्रतिष्ठा का लोभ दिया।
1990 के दशक के उत्तरार्ध में कन्नूर के तटीय क्षेत्रों, खासकर अझीक्कल में, स्वयंसेवकों के सामने एक अजीब सी स्थिति पैदा हो गई जब माकपा ने अपने 'मोकेरी कामरेडो' के मुकदमों का खर्चा जुगाड़ने के लिए एक अनुदान कार्यक्रम शुरू किया। ये 'मोकेरी कामरेड' ही थे जिन्होंने के.टी.जयकृष्णन मास्टर की हत्या की थी, जो उस वक्त भाजयुमो के प्रदेश उपाध्यक्ष थे। मछली पकड़ने का रोजगार कर रहे ज्यादातर स्वयंसेवक 'चे गुवेरा' नाम की नाव पर मजदूर थे और यह नाव माकपा के पैसे पर चल रही कंपनी की थी। माकपा ने सब मजदूरों से उन हत्यारों को छुड़ाने के लिए दान के तौर पर 2-2 हजार रुपये मांगे थे। अपने साथी स्वयंसेवक के हत्यारों को छुड़ाने के लिए पैसा दान करना उन कामगारों के लिए आत्मघाती और हैरान करने वाला था। वे पहले ही कई साल से कंपनी के स्वामियों और दलालों के दोहन से परेशान थे। इसलिए बिना ज्यादा वक्त गवाए, उन्होंने कंपनी को छोड़ने का फैसला कर लिया। बाद में स्वयंसेवकों ने बैंकों से कर्ज और दान लेकर करीब 30 लाख रुपये जुटाये और मछुआरों के लिए एक नई नावें खरीदी गईं। वह पहल अच्छा परिणाम लाई, सैकड़ों लोगों को रोजगार मिला।
इसी दौरान कन्नूर जिले मेें स्वयंसेवकों ने उन महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सूक्ष्म वित्त प्रयास, कामधेनु शुरू किया। यह सिर्फ एक सूक्ष्म वित्त समूह ही नहीं था, इसने विभिन्न कार्यक्रमों के जरिये जिले की महिलाओं को संगठित करने का एक मंच भी तैयार किया। ये एक विशाल सांस्कृतिक अभियान भी बन गया। इसके जरिये सांस्कृतिक शिक्षा का प्रसार किया गया, जिसमें पारिवारिक मूल्य, आध्यात्मिकता आदि शामिल थे। बाद में इसे दूसरे कई सरकार द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमों और सहकार भारती के इसी तरह के प्रयासों के साथ जोड़ दिया गया।
कन्नूर जिले के स्वयंसेवकों ने पूरे राज्य में राखी बनाने की जिम्मेदारी भी ली है। इससे अनेक परिवारों को पूरे साल रोजगार मिलता है।
टिप्पणियाँ