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कन्नूर जिले में वडिक्कल रामाकृष्णन के बाद पनंुदा चंद्रन रा.स्व.संघ के दूसरे बलिदानी थे। चन्द्रन के छोटे भाई पुरुषू कहते हैं, ''मेरे भाई की हत्या उस समय की गई जब वे संघ स्थान पर शाखा में थे। वे पनुंदा शाखा के मुख्य शिक्षक थे।''
चन्द्रन की अपनी एक छोटी दुकान थी जिससे उनका परिवार चलता था। पुरुषू अपने बड़े भाई को याद करते हुए कहते हैं, ''वे मुश्किल से 18 वर्ष के थे जब उनकी हत्या कर दी गई। वे कई कम्युनिस्टों को रा.स्व.संघ में ले आए थे। मेरा परिवार एक कम्युनिस्ट परिवार था।
मेरे पिताजी भी एक कम्युनिस्ट थे। इसलिए माकपा यह कभी सहन नहीं करती थी कि एक कम्युनिस्ट संघ का स्वयंसेवक बन जाए।'' एक वरिष्ठ स्वयंसेवक बताते हैं कि उस समय शाखाओं की संख्या बहुत कम थी। इसलिए जो स्वयंसेवक कन्नूर के सुदूर क्षेत्रों में रहते थे, उनके लिए सायं शाखा सुविधाजनक होती थी। यह हत्या 2 सितंबर, 1978 की शाम को हुई थी। पुरुषू और उनके कुछ पुराने मित्र याद करते हैं कि चन्द्रन तलासेरी के बे्रनन कॉलेज में एक सक्रिय एसएफआई कार्यकर्ता थे। बाद में वे अभाविप से जुड़ गए। पुरुषू आगे कहते हैं, ''उस हत्या के बाद हमारे पूरे परिवार ने माकपा से दूरी बना ली थी।''
इस हत्या को माकपा के स्थानीय गुंडों ने अंजाम दिया था। चन्द्रन के एक साथी उस दिन की घटना को याद करते हुए बताते हैं, ''उस शाम को माकपा के 4 गुंडों ने शाखा पर तलवारें लहराते हुए एक मासूम किशोर चन्द्रन पर बेरहमी से हमला किया।'' चंद्रन के साथियों ने सड़क पर दौड़ते हुए उन्हें अस्पताल पहुंचाने की कोशिश की। रास्ते में चन्द्रन ने चेतना में आते हुए साथियों से कहा, 'दूसरा स्वयंसेवक भी घायल हुआ है। उसे भी किसी नजदीकी अस्पताल में ले चलो।'' एक स्वयंसेवक याद करते हुए कहते हैं,''जैसे ही लोग रवि की खोज में गए इस बीच देरी के चलते चन्द्रन की स्थिति और बुरी होती चली गई। आज रवि उसी गांव में स्टेशनरी स्टोर चला रहे हैं।'' पुलिस ने 4 लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया लेकिन पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में केस को निरस्त कर दिया गया। चन्द्रन के 87 वर्षीय वयोवृद्ध, अस्वस्थ पिता नानु अपने बेटे को एक प्रतिभाशाली छात्र के रूप में याद करते हैं।
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