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शायरा बानो का मामला बाहर आते ही पूरे देश में मुस्लिम महिलाएं कहने लगी हैं कि जबरन तलाक देना बंद हो, महिलाओं को भी सम्मान के साथ जीने का अधिकार दो, नहीं तो क्रांति के लिए तैयार रहो
अरुण कुमार सिंह
तलाक-तलाक-तलाक एकबारगी तीन दफा बोलकर अपनी बीवी को घर से बाहर कर देने वाले मुसलमान पुरुषों के विरुद्ध पूरे देश में आवाज उठने लगी है। सर्वोच्च न्यायालय में शायरा बानो के मामले की सुनवाई को देखते हुए जगह-जगह पक्ष और विपक्ष में गोष्ठियां होने लगी हैं। यही नहीं, चार-चार विवाह करने वाले पुरुषों को भी धिक्कार की नजर से देखा जाने लगा है। कई मुसलमान महिलाएं मानती हैं कि पुरुष सिर्फ अय्याशी के लिए ऐसा करते हैं। कहीं भी इस तरह के तलाक और एक से अधिक निकाह करने की बात नहीं लिखी हुई है। श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर) में मुसलमान लड़कियों की तालीम के लिए काम करने वाली संस्था 'मदर वुमेन वेल्फेयर ऑर्गनाइजेशन, जे. एण्ड के.' की अध्यक्ष मुमताज जहां कहती हैं, ''मुसलमान मर्द अपने हिसाब से कुरान की आयतों की व्याख्या करते हैं। इस वजह से अनेक मुसलमान महिलाएं बेघर होकर सड़कों पर आ जाती हैं और उनके बच्चे दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो जाते हैं।'' मुमताज कहती हैं, ''अल्लाह ताला को तलाक मंजूर नहीं है। गुस्से में तलाक तो कुरान के खिलाफ है। कुरान में लिखा गया है कि यदि पति-पत्नी एक-दूसरे को बिलकुल बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हों तो आपस में बातचीत करके तलाक दिया जा सकता है।'' मुमताज यह भी कहती हैं कि एक से ज्यादा निकाह करना गलत है। कुरान में कहा गया है कि यदि पहली बीवी सहमत हो तो कोई पति दूसरी शादी कर सकता है। लेकिन मुसलमान पुरुष अपने मौफाद (फायदे) के लिए इसका भी गलत अर्थ निकालते हैं और मौज-मस्ती के लिए दूसरी, तीसरी शादी करते हैं। उनका कहना है कि अब मुसलमान महिलाएं यह सब बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं।
मुमताज की बातों का समर्थन खेड़ा (गुजरात) की पार्षद अस्मा खान भी करती हैं। वह कहती हैं, ''यदि मुसलमान समाज में कोई क्रांति आएगी तो महिलाएं ही लाएंगी। महिलाएं हिजाब पहनकर घर में बैठने को तैयार नहीं हैं। देश के अनेक हिस्सों में मुसलमान महिलाएं अपने पर हो रहे जुर्म के खिलाफ आवाज उठा रही हैं। उनकी आवाज बेकार नहीं जाएगी।'' अस्मा कहती हैं, कुछ वर्ष पहले तक मुसलमान महिलाओं के अधिकारों की बात करने वाले जब मुहल्ले में किसी के घर जाते थे तो लोग अपने दरवाजे बंद कर लेते थे। लेकिन अब वे लोग मानने लगे हैं कि पुरुष की तरह ही महिलाओं को भी जीने का अधिकार है। इससे जाहिर होता है कि लोगों में जागृति आई है। अस्मा यह भी कहती हैं कि कुरान में जितनी बार मर्द शब्द का उल्लेख हुआ है, उतनी ही बार औरत शब्द का भी हुआ है। इसका मतलब है अल्लाह ने औरत और मर्द को बराबर माना है। इसलिए खुदा की खातिर महिलाओं के साथ नाइंसाफी मत करो।
ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की संस्थापक और अध्यक्ष शाइस्ता अंबर कहती हैं, ''शायरा बानो के साथ नाइंसाफी हुई है। तलाक के प्रावधान का गलत इस्तेमाल हुआ है। कुरानशरीफ के कानून की जानकारी नहीं होने की वजह से यह स्थिति पैदा हुई है। उसे न्याय मिलना चाहिए।'' इस मामले में शाइस्ता की राय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की राय से अलग है। बोर्ड ने कहा है कि शायरा का अदालत में जाना गलत है, वह इस्लामी कानून को चुनौती दे रही है। साथ ही यह भी कहा है कि अदालत के बहाने सरकार इस्लामी कानून में दखल देना चाहती है। बोर्ड इसका विरोध करेगा। शाइस्ता भी कहती हैं कि किसी को भी इस्लामी कानून में दखल नहीं देना चाहिए, लेकिन किसी के बुनियादी हक को मारा भी नहीं जाना चाहिए। यह कुरानशरीफ में भी लिखा गया है। यह शायरा के जीवन का सवाल है। इस उम्र में वह कहां जाएगी, किसके साथ रहेगी, क्या खाएगी? इसी सबके लिए तो वह अदालत गई है। शाइस्ता ने यह भी कहा कि इस्लामी कानून और भारतीय संविधान में कोई फर्क नहीं है। भारतीय संविधान मानवाधिकार की रक्षा की बात करता है और इस्लामी कानून भी यही कहता है।
राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के महिला प्रकोष्ठ की सह संयोजिका शहनाज अफजाल तो उन मुसलमानों को खूब खरी-खोटी सुनाती हैं, जो एक बीवी के रहते हुए दूसरी शादी करते हैं। वह कहती हैं, '' अय्याशी के लिए चार-चार शादियां करने वालों को शर्म आनी चाहिए। अपनी बेटी की उम्र से निकाह करने वालों का बड़े पैमाने पर विरोध हो तो मुसलमान लड़कियां सुखमय जीवन जी सकती हैं।'' शहनाज कहती हैं, ज्यादातर मुसलमान पुरुषों की सोच है कि महिलाएं ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करें। ऐसे लोग महिलाओं के दुश्मन हैं। एक महिला बच्चा पैदा करने में इतना दर्द सहती है कि कहा जाता है कि उसका पुनर्जन्म होता है। ये लोग एक महिला को अनेक बच्चे पैदा करने के लिए मजबूर कर उसकी सेहत बिगाड़ते हैं और फिर किसी दूसरी औरत के चक्कर में उसे एक सेकेण्ड में घर से बाहर भी कर देते हैं। यह सब तब तक होता रहेगा जब तक हम इनका सख्त विरोध नहीं करेंगे। अच्छी बात है कि कुछ लोग महिलाओं के हितों के बारे में सोचने लगे हैं। एक दिन अच्छा नतीजा निकल सकता है।
इसी अच्छे नतीजे के लिए कार्यरत हैं डॉ. नाहिद जफर शेख। नई दिल्ली में मौलाना आजाद शिक्षा प्रतिष्ठान की कोषाध्यक्ष के तौर पर कार्य कर रहीं डॉ. शेख कहती हैं, ''मुसलमान औरतों के साथ जो भी समस्याएं हैं, उनकी जड़ में अशिक्षा है। सिर्फ शिक्षा (तालीम) ही उन्हें हर समस्या से लड़ने की ताकत दे सकती है। इसके लिए मेरा पूरा खानदान लगा है।'' डॉ. शेख यह भी कहती हैं कि अफसोस ही है कि भारत में रहने वाले मुसलमान अपनी सुविधा के अनुसार मुस्लिम पर्सनल लॉ की बात करते हैं। जब इन्हें तलाक देना होता है या निकाह करना होता है तो शरिया कानून की बात करते हैं, पर जब सम्पत्ति की बात आती है तो सामान्य अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं। लेकिन खुशी की बात है कि देश में शरिया कानून को न मानने वालों की संख्या बढ़ रही है।
इन महिलाओं के विचारों से यह उम्मीद जगी है कि जो लोग शरिया कानून की आड़ में समाज को बहकाते हैं, महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव को जायज ठहराते हैं, उनकी दुकानें बंद होंगी और हर मुस्लिम महिला को सम्मान के साथ जीने का अधिकार मिलेगा। ल्ल
शायरा बानो के साथ नाइंसाफी हुई है। तलाक के प्रावधान का गलत इस्तेमाल हुआ है। कुरानशरीफ के कानून की जानकारी नहीं होने की वजह से यह स्थिति पैदा हुई है। उसे न्याय मिलना चाहिए।
— शाइस्ता अंबर
संस्थापक और अध्यक्ष, ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड
मुसलमान मर्द अपने हिसाब से कुरान की आयतों की व्याख्या करते हैं। इस वजह से अनेक मुसलमान महिलाएं बेघर होकर सड़कों पर आ जाती हैं और उनके बच्चे दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो जाते हैं।
— मुमताज जहां
अध्यक्ष, मदर वुमेन वेल्फेयर ऑर्गनाइजेशन
यदि मुसलमान समाज में कोई क्रांति आएगी तो महिलाएं ही लाएंगी। महिलाएं हिजाब पहनकर घर में बैठने को तैयार नहीं हैं। देश के अनेक हिस्सों में मुसलमान महिलाएं अपने पर हो रहे जुर्म के खिलाफ आवाज उठा रही हैं।
— अस्मा खान, पार्षद, खेड़ा (गुजरात)
अय्याशी के लिए चार-चार शादियां करने वालों को शर्म आनी चाहिए। अपनी बेटी की उम्र से निकाह करने वालों का बड़े पैमाने पर विरोध हो तो मुसलमान लड़कियां सुखमय जीवन जी सकती हैं।
— शहनाज अफजाल
सह संयोजिका, महिला प्रकोष्ठ, राष्ट्रीय मुस्लिम मंच
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