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भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी की जीवनसंगिनी श्रीमती कमला आडवाणी का 6 अप्रैल को नई दिल्ली में निधन हो गया। प्रभात कुमार कर रहे हैं उनका पुण्य स्मरण
विगत लगभग बीस वषोंर् से जब श्रद्घेय श्री लालकृष्ण आडवाणी से विशेष संपर्क हुआ, तब से पूरे आडवाणी परिवार के सभी सदस्यों के साथ मेरा बहुत आत्मीय संबंध रहा है और इस गहरे संबंध के पीछे थी ताई की निश्छल मुस्कान और रिश्तों के प्रति गहरी आस्था। स्नेह, ममता और अपनत्व की प्रतिमूर्ति कमला ताई अब हमारे बीच नहीं हैं। जो उनसे मिलता, उनका हो जाता था। राजनीति के शिखरपुरुष की पत्नी होने का दंभ उन्हें छू तक नहीं गया था। बड़े से बडे़ राजनेता से लेकर सामान्य कार्यकर्ता और अपने घर में कार्यरत कर्मचारियों से भी उनका आत्मीयतापूर्ण व्यवहार था। हां, वे अनुशासनप्रिय थीं, सफाई पसंद थीं और बेबाक बात करती थीं। उन्होंने अपने आप को पूरी तरह घर-परिवार के लिए समर्पित कर दिया था, इसलिए वे घर की धुरी थीं। इतने सेवक-चाकर होने के बावजूद वे स्वयं सुबह नाश्ते की मेज पर आडवाणी जी के लिए फल काटती थीं, उन्हें परोसती थीं। वे प्रतिभा दीदी और जयंत भाई की भी चिंता करती थीं। वे एक कुशल गृहिणी थीं, जो अन्नपूर्णा की तरह समय-असमय आनेवाले हर अभ्यागत को आग्रहपूर्वक भोजन
कराती थीं।
ताईजी एक कुशल प्रबंधक थीं, जो घर-परिजनों के साथ-साथ घर में स्थित कार्यालय, यहां तक कि बैंक और आयकर के मामलों को भी संभालती थीं। वे अपव्यय को गलत मानती थीं और बचत व निवेश के प्रति आग्रही थीं। घर में किसी के जन्मदिन, विवाह की वर्षगांठ या किसी अन्य अवसर पर स्नेहीजन फूलों के महंगे गुलदस्ते लाते थे तो वे असहज हो जाती थीं। एक दिन उन्होंने मुझे स्नेहीपूर्ण झिड़की दी कि कम-से-कम तुम पुष्पगुच्छ न लाकर प्रतीकात्मक एक फूल ही लाया करो और तब से मैं जब भी किसी अवसर पर उन्हें प्रणाम करने गया, केवल एक फूल लेकर ही जाता रहा।
कमला ताई एक आदर्श पत्नी थीं। वे जिस समर्पित भाव से आडवाणी जी के सब कार्य देखती थीं, वह वर्णनातीत है। इस दंपती को हम आदर्श दंपती कह सकते हैं सबके लिए अनुकरणीय, सबके लिए वंदनीय। यह पारस्परिकता, प्रेम, समर्पण और एक-दूसरे के प्रति सम्मान-सद्भाव आज के युवा दंपतियों के लिए अनुकरणीय उदाहरण है। मैं कह सकता हूँ कि आडवाणीजी सार्वजनिक जीवन में आज जो कुछ हैं, उसके पीछे कमला ताई की तपस्या है, त्याग है, खुद की आकांक्षाओं का बलिदान है। वे थीं, इसलिए आडवाणी आश्वस्त थे घर-परिवार की ओर से और उन्होंने भी अपना सर्वस्व पार्टी, संगठन और विचार परिवार के लिए समर्पित कर दिया।
कमला ताई ने ही प्रतिभा दीदी और जयंत भाई को गढ़ा, उन्हें संस्कार दिए। आज जब किसी भी राजनीतिज्ञ के परिजनों की प्रबल अपेक्षाएं रहती हैं, आडवाणी परिवार इसका अपवाद है। किसी भी परिजन में न राजनीति में आने की इच्छा और न कोई अन्य लाभ उठाने की मनोवृत्ति। यह दुर्लभ ही है और इसके पीछे आडवाणी दंपती की संतोष और थोड़े में ही काम चलाने की प्रवृत्ति की शक्ति है। कभी पद का लाभ न उठाने के संस्कार ही तो ऐसे भाव मन में उत्पन्न करते हैं। 51 वर्ष के लंबे वैवाहिक जीवन में कमला ताई छाया की तरह आडवाणी के साथ रहीं। विपरीत परिस्थितियों में, भयंकर अभाव के दिनों में वे उनका संबल बनीं। वे स्मरण करती थीं आपातकाल के वे दिन जब दोनों बच्चे छोटे थे और आडवाणी मीसाबंदी। संघर्ष के उन दिनों में भी वे जीवट के साथ परिवार को सहेजे रहीं। आडवाणी ने भी नियम बनाया था कि जब वे गृह मंत्री रहे, उप-प्रधानमंत्री रहे, तब भी दोपहर का भोजन यथासंभव घर आकर ही करते थे, क्योंकि ताईजी प्रतीक्षारत रहती थीं। इसलिए वे अपनी सहेलियों के साथ कहीं बाहर जाने का कार्यक्रम नहीं बनाती थीं कि दोपहर को आडवाणीजी घर आकर भोजन करेंगे।
मेरे मस्तिष्क में सैकड़ों घटनाएं उमड़ रही हैं या मन भरा हुआ है उनके जाने से। वे ममता की छांह देनेवाला एक वटवृक्ष थीं। उनकी स्मृति हमारे हृदय-पटल पर अंकित रहेगी और उनका सादगीपूर्ण व आतिथ्यभाव से परिपूर्ण जीवन हमारा जीवन-पथ
प्रशस्त करेगा।
पिछले लगभग ढाई वषोंर् से वे अस्वस्थ थीं। पूरे परिवार, विशेषकर प्रतिभा दीदी ने बहुत सेवा-परिचर्या की। दीदी ने तो अपने व्यावसायिक दायित्वों को भी तिलांजलि दे दी। कमला ताई श्री लालकृष्ण आडवाणी जी द्वारा राष्ट्र-जागरण के लिए की गईं सभी यात्राओं की सहयात्री रहीं। भीषण गरमी-उमस में रथ पर सवार रहीं, ताकि उनकी छोटी-से-छोटी आवश्यकताओं का ध्यान रख सकें। इसलिए आडवाणी ने भी नियम बना लिया कि वे कहीं प्रवास पर जाएंगे तो रात्रि में वापस दिल्ली जरूर आ जाएँगे, ताकि अधिकाधिक समय प्रतिभा ताई के साथ रहें। उनके चरणों में अश्रुपूरित विनम्र श्रद्घांजलि!
(लेखक प्रभात प्रकाशन, दिल्ली के निदेशक हैं)
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