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60 वर्ष पहले पाञ्चजन्य के पन्नों से
मंत्री द्वारा गम्भीर आरोप: गौतम-गुप्ता चकचक, मुख्यमंत्री को कार्यसमिति में न रखे जाने की मांग
(निज प्रतिनिधि द्वारा)
लखनऊ। ''कांग्रेसियों में कुछ ऐसे लोग हैं जो अपने कृत्यों से कांग्रेस को बदनाम करते हैं। ये लोग हत्यारों और डाकुओं को शरण देते हैं। इन लोगों से उच्च कोटि के कांग्रेसी नेता बड़े गौरव के साथ मिलते भी हैं।'' ये शब्द किसी कांग्रेस विरोधी व्यक्ति के नहीं, उ.प्र. सरकार के एक मंत्री के हैं जो उसने अभी हाल में हुई प्रादेशिक कांग्रेस कमेटी की बैठक में आने वालेे आलोचकों पर आरोप लगाते हुए कहे।
28 तथा 29 अप्रैल को लखनऊ में हुई उ.प्र. कांग्रेस कमेटी की बैठक सामान्य बैठक न होकर कांग्रेस के विभिन्न गुटों की अखाड़ेबाजी कही जा सकती है। जिस प्रकार एक गुट ने दूसरे गुट पर आरोप और लांछन लगाए, उसे देखकर शायद विरोधी दल के सदस्य भी हतप्रभ रह जाते। व्यक्तिगत प्रत्यालोचना को भी खुलकर स्थान दिया गया।
प्रथम दिवस योजना मंत्री चन्द्रभानु गुप्ता तथा भूतपूर्व मंत्री श्री मोहनलाल गौतम के बीच काफी तड़क-फड़क रही। तड़क-फड़क तब शुरू हुई जब एक प्रस्ताव पर बोलते हुए गौतम ने सरकार पर आरोप लगाए, ''यद्यपि हम कहते हैं कि प्रथम पञ्चवर्षीय योजना के फलस्वरूप सर्वाधिक प्रगति हुई है तथापि वास्तव में ऐसा नहीं है।''
श्री गौतम ने आगे कहा, ''जहां तक शिक्षा की प्रगति का सम्बंध है। उ.प्र. बीसवां राज्य है। प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चों की संख्या में भी कमी हुई है। आर्थिक क्षेत्र में राज्य में विभिन्न उद्योगों के अन्तर्गत 2,42,000 कर्मचारी कार्य करते थे, किन्तु अब केवल 25,000 ही कार्य करते हैं। ऐसी स्थिति में हम सर्वाधिक प्रगति कैसे कह सकते हैं।''
श्री गौतम ने आगे आरोप लगाए कि बिक्री कर अध्यादेश जारी करने से पूर्व मंत्रियों को नि:शुल्क चिकित्सा, आवास व्यवस्था तथा उपमंत्रियों की नि:शुल्क चिकित्सा सम्बंधी विधेयक उपस्थित किया गया था। परिणामत: जनता के मस्तिष्क पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ा। श्री गौतम ने यह भी आरोप लगाया कि निम्नतम तथा उच्चतम वेतनों के बीच विद्यमान अन्तर मिटाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया है।
उद्योगों के विकास के निमित्त दिए जाने वाले कर्जे की आलोचना करते हुए श्री गौतम ने कहा सन् 1947 की अपेक्षा उद्योगपति अपने को आदर्श व सुरक्षित समझने लगे हैं। यदि जनता के धन को इस प्रकार उद्योगों में लगाया गया तो पूंजीपति और मालदार होते जाएंगे।
प्रादेशिक कांग्रेसाध्यक्ष श्री मनीश्वरदत्त उपाध्याय ने इस अवसर पर कहा कि उपचुनावों में हार का कारण कांग्रेस की कमजोरियां हैं। श्री उपाध्याय ने यह भी कहा कि अपनी इच्छा का प्रत्याशी न होने पर कांग्रेसी उसका विरोध करते हैं।
जमींदारी उन्मूलन से किसानों को क्या मिला
सब किसान भूमिधर नहीं बन सके
किसानों को 20 गुना लगान देना पड़ा
जमींदारों का स्थान सरकार ने ले लिया
क्या पराधीनता के वे दिन याद हैं, जब स्वतंत्रता-संग्राम के सेनानी, जिनके हाथों में आज देश का सत्ता है, ग्रामों में आते थे और कहते थे, 'हमारी गरीबी के कारण अंग्रेज हैं, विषमता का कारण राजे- महाराजे और जमींदार हैं तथा अन्याय एवं अत्याचार के कारण पुलिस, पटवारी और कचहरियां हैं। जब अंग्रेज चले जाएंगे, गरीबी मिट जाएगी। जमींदारी और जागीरदारी की समाप्ति के साथ ही विषमता का नाश हो जाएगा। और पंचायतराज की स्थापना से पटवारियों की धांधली, पुलिस की मनमानी तथा कचहरियों की दौड़ से छुटकारा मिल जाएगा।' ये विचार हैं भारतीय जनसंघ, पूर्वी उ.प्र. के संगठन मंत्री श्री हरिश्चन्द्र के। उन्होंने कहा, अंग्रेजों को गए नौ वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, जमींदारी समाप्त हुए चार साल हो चुके हैं और पंचायतराज की भी स्थापना हो चुकी है, परन्तु स्वाधीनता का एक भी सपना अभी साकार नहीं हो पाया है।
विकास-योजनाओं का केन्द्र गांवों को बनाया जाए।
बड़े खेद का विषय है कि अब भी सरकार की सारी शक्ति तथा जनता का सारा धन लखनऊ तथा दिल्ली को ही सजाने में लग रहा है और ग्रामीण जनों पर लगान तथा टैक्स का भारी बोझ बढ़ता जा रहा है। अपनी गरीबी और बेकारी के कारण गांव का किसान शहरों की ओर भागता जा रहा है। फलस्वरूप गांव उजड़ते जा रहे हैं। हमारे इस कथन का यह आशय नहीं कि नगरवासियों को सरकार की ओर से जो सुविधाएं दी जा रही हैं, उनमें कमी की जाए। अमीष्ट यह है कि गांवों की उपेक्षा न हो। क्योंकि गांवों के सुखद एवं स्वावलम्बी जीवन के विकास में ही देश का वास्तविक विकास है।
कृषि-उपज के मूल्य (भाव)
ं''किसान केवल अनाज या कच्चे माल का उत्पादक न होकर उद्योगों में बनाए जाने वाले माल का बहुत बड़ा ग्राहक भी होता है। अत: किसान को उसकी कृषि-उपज के मूल्यों में संतुलन भी होना चाहिए। खेती से उपजने वाले माल और कारखाने में तैयार होने वाले माल के मूल्यों में समानता न होने के कारण उसके प्रारंभिक निर्माताओं और श्रमिकों पर त्याग करने की विवशता बलात लादी जाती है। इन गरीब किसानों एवं खेतिहर श्रमिकों का शोषण करने में उद्योगपति, व्यापारी, सरकार के वित्त निगम, कृषि-मूल्य आयोग, खाद्य निगम, सबका योगदान होता है। गन्ना उपजाने वाले किसान ने निजी एवं सहकारी चीनी कारखानों तथा कपास उपजाने वाले किसान ने भारतीय कपास निगम या अन्य 'मार्केटिंग फेडरेशन' के बारे में यही अनुभव किया गया।''
-पं. दीनदयाल उपाध्याय (पं. दीनदयाल उपाध्याय विचार-दर्शन खण्ड-4, पृष्ठ संख्या-60)
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