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पंचायत चुनावों में महिलाओं की भागीदारी ने बदली हरियाणा की तस्वीर
हरियाणा देश का वह राज्य जिसमें खाप पंचायतों के कड़े फैसले आए दिन चर्चा में बने रहते हैं। महिलाओं को जहां अभी तक फरमान सुनाए जाते थे, आज उसी राज्य की महिलाएं सरपंच और जिला पंचायत की सदस्य बनकर जनप्रतिनिधि के रूप में विकास करने का प्रण कर चुकी हैं। घर की रसोई संभालने वाली महिला आज गांव का नेतृत्व कर रही हैं। हरियाणा के पंचायत चुनावों में 54 फीसद युवाओं का निर्विरोध चुनकर आना और राज्य के 41 फीसद गांवों में महिलाओं को मिली चौधराई नई परम्परा की सूचक है।
ऐसा पहली बार हुआ है कि जब घर तक सीमित रहने वाली महिलाएं समाज में सुधार की बयार लेकर आएंगी। जीतकर आई महिला प्रत्याशियों में उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाएं भी शामिल हैं। परिवार और समाज की पीड़ा को करीब से समझने वाली महिलाएं समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने का दम भर रही हैं। राज्य में इस तरह का बदलाव पहली बार है कि जब शिक्षा की दृष्टि से 2,559 महिलाएं सरपंच बनी हैं।
खास बात यह है कि सरपंच बनने वाली महिलाओं की औसत आयु 32 वर्ष है, जो समाज से बेरोजगारी दूर करने और गांव को नशा-मुक्त बनाने का संकल्प लिए हुए हैं। अनुसूचित जाति वर्ग से 42 फीसद महिलाएं चुनकर आई हैं जिनमें से 9.5 फीसद महिलाएं स्नातक हैं। ये शिक्षित महिलाएं मानती हैं कि 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' के नारे को बढ़ावा देने के साथ-साथ दहेज प्रथा दूर करने के लिए जागरूकता लानी होगी, तभी 'बेटी बोझ नहीं' का सपना साकार होगा। हरियाणा के इतिहास पर यदि नजर दौड़ाएं तो कभी कांग्रेस के शासनकाल में महिलाओं की पंचायत चुनावों में इस स्तर पर भागीदारी नहीं रही है, लेकिन अब की बार सरपंच और जिला परिषद की सदस्य के रूप में जीतकर महिलाएं मुखिया बन गई हैं। राज्य के प्रत्येक जिले में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी महिलाओं के राजनीति में अग्रसर होने का सूचक है। माना जा रहा है कि चुनाव में प्रत्याशी के शिक्षित होने की अनिवार्यता के चलते ही शिक्षित और युवा वर्ग को नेतृत्व करने का अवसर मिल सका।
कैथल के गदला स्थित पत्ती अफगान डेरा से सरपंच बनीं 23 वर्षीय वीरपाल कौर एम. कॉम. हैं। उनके परिवार में सास कुलदीप और ससुर साहब सिंह पिछले 10 वर्षों से राजनीति मंे सक्रिय हैं और यह तीसरी बार है कि जब गांव का मुखिया परिवार से ही चुना गया है। वीरपाल कौर कहती हैं गांव में युवाओं की बढ़ती बेरोजगारी और कम होती खेती को देखकर उन्हें राजनीति में आने की प्रेरणा मिली। इसके लिए उन्होंने आईसीआईसीआई बैंक से नौकरी तक छोड़ दी। उन्हें प्रतिद्वंद्वी रमन कौर से मात्र एक वोट से जीत मिली है। कम उम्र में सरपंच बनने का श्रेय परिवार के पूर्व मुखियाओं पर वे क्षेत्र की जनता के भरोसे को देती हैं। वे कहती हैं, ''कन्या भ्रूण हत्या और दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए मैं घर-घर जाकर लोगों को जागरूक करूंगी।''
कुरुक्षेत्र जिले के वार्ड-छह से जिला परिषद की सदस्य चुनकर आईं 33 वर्षीय रीना सैनी एम. ए., बी. एड. हैं। उन्होंने अपनी प्रतिद्वंद्वी मीनाक्षी को 3,200 मतों से पराजित किया। रीना कहती हैं कि समाज में युवाओं में बढ़ती नशे की लत को दूर करने के लिए आगे आना होगा। समाज में सुधार की दृष्टि से ही वे राजनीति में उतरी हैं। वे मानती हैं कि आज लोग बड़ी संख्या में गांव से शहर की ओर पलायन कर रहे हैं। गांवों में विकास कर इस पलायन को रोकना होगा क्योंकि गांव समृद्ध होने पर ही देश सबल बनेगा।
कुरुक्षेत्र के तंगौर गांव से जिला परिषद की सदस्य चुनी गईं 44 वर्षीय रेणुका बाला युवाओं का उत्थान करना और बुजुर्गों को सम्मान देना चाहती हैं। उनका बेटा राहुल राणा प्रदेश में भाजपा युवा मोर्चे का महासचिव है। बेटे की राजनीति में सक्रियता को देखते हुए उन्होंने जिला परिषद के चुनाव में अपना भाग्य आजमाया। उन्हें 6,700 मतों से जीत हासिल हुई है। दसवीं कक्षा तक पढ़ाई करने वाली रेणुका कहती हैं, ''समाज में बदलाव के लिए भविष्य के रूप में युवा पीढ़ी और बुजुर्गों को धरोहर के रूप में मानकर काम करना होगा।'' वे मानती हैं कि इसके लिए महिलाओं का शिक्षित होना बेहद जरूरी है क्योंकि वे परिवार की रीढ़ होती हैं और पूरे परिवार का जिम्मा उन्हीं के कंधों पर होता है। वे महिलाओं के उत्थान के लिए नई-नई योजनाएं शुरू करने के पक्ष में हैं।
दूसरी ओर मूल रूप से पश्चिम बंगाल की रहने वाली रेणु डूम ने करनाल के धुमसी गांव में सरपंच का चुनाव जीतकर क्षेत्रवाद की परम्परा को तोड़ दिया। 37 वर्षीय रेणु अनुसूचित जाति से संबंध रखती हैं और उनका विवाह पिछड़े वर्ग के एक परिवार में हुआ। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी राजकुमार को 81 मतों से पराजित किया। वे सरकार की नीतियों से जनता को पूर्ण लाभ नहीं मिलने से राजनीति में उतरी हैं। रेणु कहती हैं, ''वास्तव में सरकार की योजनाएं आम जनता तक नहीं पहुंच पाती हैं और उसका लाभ संपन्न वर्ग के लोग ही उठा पाते हैं। इसी अव्यवस्था को दूर करने के लिए वे राजनीति में उतरी हूं।''
रेणु चाहती हैं कि कॉलोनियों में रहने वाला गरीब बच्चा भी शिक्षक हो जिससे पूरा समाज शिक्षित हो सके। महिलाओं की पंचायती चुनाव में बढ़ती सहभागिता समाज में बदलाव लेकर आएगी। नवनिर्वाचित महिलाएं भी अब राज्य में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर जिला परिषद और पंचायत स्तर पर प्रतिनिधित्व करें। हरियाणा में पिछले दिनों शिशु कन्या का बढ़ा लिंगानुपात और अब पंचायत चुनाव में उनकी बढ़ती संख्या राज्य में सकारात्मक परिवर्तन का संकेत दे रही है। राहुल शर्मा और गणेश दत्त वत्स कुरुक्षेत्र से
मुझे परिवार से राजनीति में आकर जनता की सेवा करने की प्रेरणा मिली। गांव के युवाओं को खेती के अलावा आज रोजगार के अन्य साधनों की जरूरत है। मैं छोटे स्तर पर शुरू होने वाले लघु उद्योगों की गांव में शुरुआत करने के लिए प्रयासरत हूं जिससे युवकों को रोजगार उपलब्ध करवा सकूं।
-वीरपाल कौर,कैथल के गदला स्थित पत्ती अफगान डेरा से सरपंच
मेरा सपना समाज के गरीब वर्ग का उत्थान करना है। जरूरतमंद लोग आज भी सरकारी योजनाओं का पूरी तरह से लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। समाज में सभी वर्ग के लोगों को बराबरी से लाभ मिले और भेदभाव दूर हो, यही मेरा उद्देश्य है। गरीब बच्चे शिक्षा प्राप्त कर आगे बढ़ें। कॉलोनियों का विकास भी करूंगी
-रेणु डूम, करनाल के धुमसी गांव से सरपंच
युवा हमारा भविष्य हैं जिसके लिए उन्हें शिक्षित और संस्कारित करना आवश्यक है। समाज में सबके शिक्षित होने पर ही सभी का विकास संभव है। महिलाओं पर परिवार की जिम्मेदारी है और वही परिवार की मजबूत कड़ी होती हैं। मैं महिलाओं के लिए नई योजनाओं की शुरुआत करना चाहती हूं।
-रेणुका बाला,कुरुक्षेत्र के तंगौर गांव से जिला परिषद की सदस्य
मेरा सपना समाज के गरीब वर्ग का उत्थान करना है। जरूरतमंद लोग आज भी सरकारी योजनाओं का पूरी तरह से लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। समाज में सभी वर्ग के लोगों को बराबरी से लाभ मिले और भेदभाव दूर हो, यही मेरा उद्देश्य है। गरीब बच्चे शिक्षा प्राप्त कर आगे बढ़ें। कॉलोनियों का विकास भी करूंगी।
-रेणु डूम, करनाल के धुमसी गांव से सरपंच
2,559महिलाएं सरपंच बनी हैं, इस बार 6,187 गांवों से।
पिछले चुनावों में यह आंकड़ा था2,283
राज्य में 41.36%गांवों की चौधराई महिलाओं के हाथ आई।
2,559कुल महिलाएं शैक्षिक पृष्ठभूमि के चलते बनीं सरपंच।
पांचवें पंचायत चुनाव की खास बातें
अनुसूचित जाति वर्ग के 1,434 सरपंचों में से 600 यानी 41.8 फीसद महिलाओं का आंकड़ा रहा है।
इस बार सरपंचों की औसत आयु 36 वर्ष, पुरुष सरपंचों की 39 वर्ष और महिलाओं की 32 वर्ष रही है।
पंचायत चुनावों में शिक्षित प्रत्याशी होने की अनिवार्यता के चलते ही विभिन्न वर्गों के प्रत्याशी विजयी रहे हैं।
इनमें 10 फीसद स्नातक, 45 फीसद दसवीं कक्षा से ज्यादा शिक्षित हैं और 32. 8 फीसद आठवीं कक्षा पास हैं।
अनुसूचित जाति वर्ग से 2010 के मुकाबले इस बार सरपंचों की संख्या दोगुना हुई है।
पिछली बार इस वर्ग में जहां 841 सरपंच थे, इस बार 1,434 सरपंच चुने गए हैं। इसी तरह सामान्य वर्ग में भी अनुसूचित जाति के सरपंच बनने का आंकड़ा बढ़ा है।
9 गांव ऐसे बताए गए हैं, जहां जाट परिवारों में अनुसूचित परिवारों से आई बहुओं ने चौधराई संभाल कर परिवार का सम्मान बढ़ाया है।
अनुसूचित जाति वर्ग के कुल 8़ 51 फीसद सरपंच स्नातक हैं, उनमें भी 9. 51 फीसद महिला सरपंच हैं।
ल्ल इस बार 1,677 सरपंच पिछड़े वर्ग से आए हैं, जो कुल सरपंचों का 27. 10 फीसद है।
1,905 पद चुनाव के बाद भी रिक्त हैं, जिनमें कोई भी नामांकन न होने से चुनाव नहीं हो सका। इनमें सरपंच के 5, पंचों के 1,898 और पंचायत समिति के 2 पद रिक्त रह गए हैं।
चुनाव में 51 फीसद पदों पर जनप्रतिनिधियों का निर्विरोध चयन हुआ है, जबकि गत पंचायत चुनावों में यह आंकड़ा 34़1 फीसद रहा।
ल्ल पंच पदों के लिए सबसे अधिक सर्वसम्मति बनी, पंचों के कुल 62,500 पदों में से 36,376 पंचों को सर्वसम्मति से चुना गया।
सरपंचों के 6,199 पदों में से 257 गांवों के सरपंच भी निर्विरोध चुने गए हैं, वहीं 36 ग्राम पंचायतें सरपंच सहित चुनी गई हैं।
ल्ल पंचायतों के स्तर पर सरकार 197 करोड़ रुपए विकास के लिए उपलब्ध कराएगी।
सर्वसम्मति से चुने गए सरपंच के लिए 5 लाख रुपए और पंच के लिए 50,000 रू. गांव के विकास हेतु अलग से देने की बात कही
गई है।
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