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अंक संदर्भ- 17 जनवरी, 2015
आवरण कथा 'संगम सज्जन शक्ति का' से स्पष्ट हुआ कि पुणे में आयोजित शिवशक्ति संगम में देश ने न केवल स्वयंसेवकों की शक्ति देखी बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत के उद्बोधन के माध्यम से समाज को राष्ट्र विरोधी आसुरी शक्तियों को जांचने-परखने और उनके समाधान का ज्ञान भी मिला। संघ के स्वयंसेवकों ने इस संगम में जिस प्रकार का अनुशासन दिखाया है उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। शिवशक्ति संगम सत्यम शिवम सुन्दम् के ध्येय वाक्य को साकार कर रहा था।
—हरिओम जोशी, चतुर्वेदी नगर, भिण्ड(म.प्र.)
ङ्म शिवशक्ति संगम का दृश्य बड़ा ही मनमोहक था। लाखों गणवेशधारी स्वयंसेवक अनुशासन के सूत्र से बंधे थे। भारत माता की जय और सिर्फ भारत के उत्थान की ही बात होते देख समाज का प्रत्येक वर्ग इस संगम को देखकर गदगद अवश्य हुआ होगा। वर्तमान में देश और समाज की रक्षा के लिए ऐसे शक्ति संगम का आयोजन स्थान-स्थान पर होना ही चाहिए क्योंकि यह हिन्दुत्व की शक्ति को दर्शाता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देशप्रेम से ओतप्रोत समाज को विश्व को सामने खड़ा करना चाहता है और उसका यह प्रयास आज फलीभूत हो रहा है।
—रूपसिंह सोमवंशी, निम्बाहेड़ा (राज.)
बढ़ता कन्वर्जन
रपट 'पढ़ाई के नाम पर यह कैसी प्रार्थना' ईसाई मिशनरियों के झूठ से पर्दा उठाती है। मिशनरी हरदम कहते हैं कि हम सेवा कर रहे हैं लेकिन सेवा की आड़ में उनका एक ही उद्देश्य होता है वह है कन्वर्जन। इस रपट में उनका झूठ खुल गया है। यह ऐसा पहला मौका नहीं है जब इनके काले कारनामों का खुलासा हुआ हो। इससे पहले भी इनके काले कारनामें देश के सामने आ चुके हैं। लेकिन कुछ लोग फिर भी इन्हें सेवा दूत मानते हैं और इनके झांसे में आते चले जाते हैं। मिशनरियों का सिर्फ एक ही उद्देश्य है कि किसी भी तरह ज्यादा से ज्यादा हिन्दुओं का कन्वर्जन करो। उसके लिए प्रलोभन से लेकर शिक्षा, सेवा, रोग दूर करने एवं अन्य छल-प्रपंचों का वे सहारा लेते हैं।
—बी.एल.सचदेवा, 263, आईएनए बाजार (नई दिल्ली)
ङ्म चंगाई सभा वनवासियों को बरगलाने और फुसलाने का एक बड़ा अच्छा जरिया है। इसकी आड़ में वे इन भोले-भाले वनवासियों की रोग-बीमारी दूर करने का ड्रामा करते हैं और फिर धीरे से उन्हें विश्वास दिलाकर कन्वर्ट कर लेते हैं। ऐसा नहीं है कि कुछ खास स्थानों पर ईसाई मिशनरी चंगाई सभाएं करते हों। आज देश का शायद ही ऐसा कोई स्थान हो जहां मिशनरियों की वक्र दृष्टि न पहुंची हो और वहां इस तरह से बरगलाने के कार्यक्रम न आयोजित किए जाते हों। बड़ा दु:खद है कि खुलेआम मिशनरी इस तरह से लोगों को कन्वर्ट करती रहती हैं और इन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। सभी राज्य सरकारों को इस पर ध्यान देना होगा और ऐसी सभाओं पर तत्काल रोग लगानी होगी।
—शिवांग गुप्ता, रानीगांव (जम्मू-कश्मीर)
मालदा पर मौन सियासी सूरमा
'दंगाइयों का दुस्साहस, मीडिया ममता मौन' रपट ममता बनर्जी और पुलिस प्रशासन की हकीकत को बयां करती है। दादरी पर असहिष्णुता का राग अलापने वाले मालदा पर मौन साधे हुए हैं। क्या मालदा में जिन हिन्दुओं को निशाना बनाया गया वे अखलाक की तरह मानव नहीं थे? अगर थे तो फिर मालदा पर चुप्पी क्यों? असल में यही मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति है। पूर्णिया और मालदा की घटना को सामान्य घटना बताकर पल्ला झाड़ने वाले तथाकथित सेकुलरों को अब देश का संवैधानिक व पंथनिरपेक्ष ढांचा टूटता हुआ नजर नहीं आता? आज कश्मीर की राह पर बंंगाल और असम को जलाने का कुचक्र रचा जा रहा है। सरकार इस षड्यंत्र को समझे और जो भी देशविरोधी तत्व इस प्रकार की कुपित चाल रच रहे हैं उन पर कड़ी कार्रवाई करे।
—रमेश कुमार मिश्र, अंबेडकरनगर (उ.प्र.)
ङ्म मालदा में मुस्लिम समुदाय द्वारा की गई हिंसा एवं तोड़फोड़ किसी भी सभ्य देश और समाज के माथे पर बदनुमा दाग है। यह न केवल दु:खद है बल्कि शर्म की बात है कि पंथनिरपेक्षता का दंभ भरने वाले राजनीतिक दल और मीडिया इस हमले के बाद मौन साधे हैं। क्या इसलिए कि जो पीडि़त हैं वे हिन्दू हैं और जिन्होंने हमला किया है वह मुसलमान। क्या यह न्याय है? मजहबी उन्माद के उठते फन को कुचलना होगा क्योंकि यह देश के लिए घातक है।
—मनोहर मंजुल, पिपल्या-बुजुर्ग (म.प्र.)
ङ्म 'उन्माद और आतंक की राह' रपट सटीक विश्लेषण करती है। देश के विभिन्न हिस्सों में वर्तमान में कई कट्टरपंथी गुट सक्रिय हैं जो आतंक की फसल बोने की फिराक में है। उनके बहकावे में आकर दर्जनों मुसलमान लड़कों ने सीरिया और इराक जाने के प्रयास किए। ऐसी खबरें चिन्ताजनक हैं। असल में कुछ उन्मादी गुट नहीं चाहते कि भारत में शान्ति रहे। इसलिए वे इन लड़कों को बहकाने में लगे हुए हैं। मुस्लिम समाज को ऐसे लोगों से सचेत रहना होगा क्योंकि यही देश के दुश्मन हैं।
—राम प्रकाश वर्मा, सीधी (म.प्र.)
ङ्म मजहबी उन्मादियों द्वारा पश्चिम बंगाल के मालदा में जो हुआ वह एक राजनीति से प्रेरित हिंसा थी। बंगाल में विधानसभा चुनाव नजदीक है। ऐसे में ममता सरकार कट्टरपंथी मुसलमानों के हौसले बढ़ाने और उनके द्वारा किए जा रहे आपराधिक कार्यों को दबाने का काम कर रही है। ममता जानती हैं कि बंगाल में मुसलमान ही उनका वोट बैंक है जो उनके साथ है। ऐसे में उन पर कार्रवाई करने के बजाय उनका हौसला बढ़ाना वोट बैंक को और मजबूती देगा। केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह इस हमले की निष्पक्ष जांच कराये और जो भी इसमें दोषी पाया जाये उसको कड़ी सजा दी जाए। —हरिहर सिंह चौहान, इंदौर(म.प्र.)
ङ्म देश की जनता को धीरे-धीरे यह बात समझ में आने लगी है कि सेकुलर दलों ने जो पंथ निरपेक्षता का नकली मुखौटा लगा रखा है वह हिन्दुओं के लिए अलग और अन्य मत-पंथों के लिए अलग है। यही कारण है कि इतना लंबा समय बीत जाने के बाद भी मालदा देश के तथाकथित सेकुलर नेताओं के लिए पर्यटन स्थल नहीं बन पा रहा है। जबकि दादरी रोटियां सेंकने का केन्द्र बन गया था।
—मृत्युंजय दीक्षित, फतेहगंज गल्ला मंडी, लखनऊ (उ.प्र.)
गिरता शिक्षा का स्तर
आज दिन प्रतिदिन पढ़ाई का स्तर गिरता जा रहा है। प्राथमिक स्कूल के कक्षा चार के कई बच्चों को ठीक ढंग से संपूर्ण अच्छरों का ज्ञान तक नहीं होता है। इससे समझा जा सकता कि आने वाला हमारा भविष्य कैसा है। असल में इन बच्चों की भी गलती नहीं है। जिन सरकारी स्कूलों में वे पढ़ते हैं उन स्कूल के अध्यापकों को पढ़ाई के अलावा सभी काम करने होते हैं। उनके पास बहुत कम ही बार समय होता है जब वे ठीक ढंग से बच्चों को पढ़ा सकें। नहीं तो उनका सारा समय खाने से लेकर रजिस्टर और वजीफा से लेकर ड्रेस वितरण में ही जाया होता है। इस सभी के कारण स्थिति बड़ी दयनीय है। अगर बच्चों का भविष्य सुधारना है तो सरकारों को इस ओर ध्यान देना होगा। शिक्षा तंत्र में जो खामियां हैं उनको सुधारना होगा। तब ही जाकर प्राथमिक स्कूलों की हालत में सुधार आने वाला है।
—श्रीराम वर्मा, त्रिनगर (दिल्ली)
धैर्य रखने का समय
अभी भारतीय जनता पार्टी को केन्द्र में सरकार बनाए हुए दो साल भी पूरे नहीं हुए हैं लेकिन कुछ लोग सरकार की आलोचना करने पर ऐसे उतारू हैं जैसे राजग सरकार को सालों साल हो गए हों। मेरा ऐसे लोगों से सिर्फ एक ही बात का कहना है कि उन्होंने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाया है वे जादूगर नहीं है जो इतने कम समय में सब ठीक कर देंगे। उन्होंने देश से पूरे पांच साल का समय मांगा है। इसलिए देश की जनता को पांच साल तो धैर्य रखना ही चाहिए।
—मलय मिश्र, अंबेडकरनगर (उ.प्र.)
पुरस्कृत पत्र
विरोध का एकतरफा रवैया क्यों?
मुसलमान इस देश में कितना असहिष्णु है उसके कई उदाहरण हाल ही में देश ने देखे। एक सामान्य व्यक्ति के पैगम्बर मोहम्मद पर की गई टिप्पणी के बाद पूरे देश में अशान्ति उत्पन्न हो गई। जहां देखा वहां उत्पात मचाया, हिन्दुओं के घरों पर हमला किया, लूटपाट की, दुकानें तोड़ी, पुलिस को मारा। मुसलमान इस कदर आहत हो गए कि उन्होंने देश के खिलाफ भी जिंदाबाद-मुर्दाबाद करने में कोई हिचक नहीं की। इस देश के मुसलमान और मजहबी संस्थाएं तब अपना मुंह सिल लेती हैं जब इनकी ही कौम द्वारा हिन्दुओं के आस्था प्रतीकों पर हमला किया जाता है। तब किसी मुल्ला-मौलवी द्वारा इसके विरोध में कोई आवाज नहीं आती। सेकुलर हर समय हिन्दू समाज को ही असहिष्णुता का दोषी ठहराते रहते हैं। इस देश का दुर्भाग्य है कि अपने को सेकुलर कहने वाले दल और नेता हिन्दू की बात आते ही अपने सुर बदल लेते हैं जबकि अन्य मत-पंथों की बात पर वे कुछ और ही बोलते हैं। अगर कोई मुसलमान हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान करता है, उनके मर्यादाहीन चित्र बनाता है तो उसे उसकी कलाकारी से जोड़ते हुए सहिष्णुता के मेडल से सम्मानित किया जाता है। लेकिन ठीक इसके उलट अगर कोई हिन्दू मुस्लिम आराध्यों के विरुद्ध कोई बात भी बोल दे तो देश में आग लग जाती है, ऐसा क्यों? जब कट्टरपंथी मुसलमान गो हत्या करे, गो मांस का भक्षण करे तो वह सहिष्णु और जब हिन्दू गो माता की रक्षा की बात करे तो वह असहिष्णु हो जाता है। आज विश्व के सामने यह सचाई नहीं छिप सकती है कि दुनिया का हर आतंकी दुर्भाग्य से मुसलमान बन रहा है। जब आतंकी याकूब मेनन की शव यात्रा निकलती है तो उसमें शामिल लाखों मुसलमान होते हैं पर उस बात पर कथित सेकुलर दल अपना मुंह सिल लेते हैं। क्या सिर्फ हिन्दुओं का विरोध ही उनका एक मात्र उद्देश्य है?
—मनीष पाण्डे, पत्रकार रोड न.-21, निकट बार एसोशियेशन, फैजाबाद (उ.प्र.)
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