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अमरीका (फीनिक्स) में रात के करीब 10 बज रहे थे। मैं ऑफिस से अपने निवास पर पहुंचा ही था। कुछ समय बाद सोशल मीडिया पर सक्रिय हुआ तो देखा कि चेन्नै में भयंकर बाढ़ आई है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के वीडियो और फोटो कुछ ही समय में सोशल मीडिया पर छा चुके थे। जो तस्वीर मैं देख रहा था, उससे चेन्नै के हालात का अंदाजा बड़ी ही आसानी से लग रहा था।'
…अमरीका में बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत और सेवा इंटरनेशनल से वर्षों से जुड़े रत्नेश मिश्र चेन्नै बाढ़ की इन खबरों से बेचैन तो हुए परंतु दूर बैठे होने के बाद भी सेवा के सूत्र जोड़ने के लिए पूरी तरह सक्रिय हो गए। जैसे ही सोशल मीडिया के माध्यम से यह समाचार फैलना शुरू हुआ कि चेन्नै के रामापुरम् में असहनीय दर्द झेलती एक गर्भवती महिला बाढ़ में फंसी है, उन्होंने तत्काल एनडीआरएफ और सेवा भारती के कार्यकर्ताओं को इससे अवगत कराया। महिला को तत्काल दवा की आवश्यकता थी। लेकिन चारों ओर पानी ही पानी था। दूर-दूर तक सहायता की कोई उम्मीद नहीं दिखाई दे रही थी। एनडीआरएफ की टीम ने मौके का जायजा लिया। कुछ जवान हेलीकॉप्टर से उस स्थान पर तत्काल पहुंचे और काफी परिश्रम के बाद उस महिला को उस स्थान से निकालकर अस्पताल में भर्ती कराया, जहां महिला ने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया था। मन में अपार खुशी हो रही थी। कुछ गर्व की अनुभूति भी हुई कि मैं इस समय देश मंे नहीं तो क्या हुआ, यहां से भी पीडि़तों की सेवा तो कर सकता हूं।
रत्नेश मिश्र को गौरव और आत्मसंतोष का अनुभव कराने वाली ऐसी छोटी-छोटी घटनाएं विदेश में बैठे कई भारतीयों को सेवा और सहायता के अभियान से जुड़ने के लिए प्रेरित कर रही थीं। कई ऐसे भारतवंशी थे, जिन्होंने अपना सब काम छोड़कर लगातार कई-कई दिनों तक ट्विटर, फेसबुक और व्हाट्सएप के जरिए पल-पल घटनाओं पर नजर रखते हुए पीडि़तों तक हरसंभव मदद पहंुचाई।
गणेश रामकृष्णन् (न्यूजर्सी), अचलेश अमर (ह्यूस्टन), स्वदेश कटोच (अटलांटा) और सचिन चितलांगिया (ह्यूस्टन) ये सभी रत्नेश की ही कतार के, ऐसे ही सेवाभावी भारतवंशी हैं, जो दूर जरूर थे, लेकिन सोशल मीडिया के जरिये पल-पल के घटनाक्रम पर नजर बनाये हुए थे।
अचलेश अमर अपने अपने अनुभव साझा करते हुए कहते हैं,'हम लोगों ने तत्काल 'चेन्नै फ्लड' नाम से एक फेसबुक समूह तैयार किया। साथ ही ट्विटर पर '#उँील्लल्लं्रफं्रल्ल२ऌी'स्र' के नाम से टैग करना शुरू किया। मैं और मेरे सहयोगी सोशल मीडिया से प्राप्त हो रहे संदेशों के जरिये देश और विदेश के लोगों को सहायता देने का काम बराबर कर रहे थे। इसके अलावा हम लोगों ने तत्काल एक व्हाट्सएप समूह बनाया, जिसका नाम रखा 'तमिलनाडु फ्लड रिलीफ'। इस पर भी लगातार लोगों की ओर से सहायता की मांग आ रही थी। जो भी हम से सहायता मांगता था हम उनके नम्बर और स्थान लिख लेते, उनसे अगर बात हो सकती थी तो बात भी करते थे। सत्यता जानने के बाद हम सेवा भारती के कार्यकर्ताओं को उनके बारे में बताते थे,जो उन तक मदद पहुंचाने का कार्य करते थे। अगर कहीं ज्यादा समस्या दिखाई देती थी सेना को पूरी घटना से अवगत कराते थे। सेना उस पर तत्काल कार्रवाई कर रही थी। जैसे-जैसे लोगों को हमारे जरिये मदद मिल रही थी वैसे-वैसे और भी लोग हमसे जुड़ते जा रहे थे। फेसबुक पर बनाये गए इस समूह में दो दिन बाद ही हजारों की संख्या में लोग एक मिशन के तौर पर जुड़ते चले गए।'
824 क्षेत्रों में राहत देने का काम कर रहे थे स्वयंसेवक
5500 स्वयंसेवकों ने किया सेवा कार्य
1500 महिलाओं ने विभिन्न स्थानों पर किए सेवाकार्य
17 दिन स्वयंसेवकों ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में लगातार किया राहत कार्य
'स्वयंसेवकों ने जीता सबका मन'
'चेन्नै की आपदा वास्तव में बड़ी भयानक थी लेकिन स्वयंसेवकों ने जिस प्रकार सेवाकार्य किया उसकी देश और दुनिया ने मुक्त कंठ से सराहना की। हालांकि आपदा बड़ी भयानक थी और यह हमारे लिए किसी चुनौती से कम नहीं थी। चुनौती यह थी कि इस बाढ़ में लाखों लोग फंसे थे उन लोगों तक जल्द से जल्द राहत कैसे पहुंचे, अगर कोई बीमार है तो उसे चिकित्सा सुविधा कैसे मिले, भोजन कैसे उपलब्ध हो एवं अन्य जरूरत का सामान कैसे उपलब्ध हो। लेकिन स्वयंसेवकों ने इस चुनौती को न केवल स्वीकारा बल्कि उससे जीत कर बाहर आए। इन्होंने इस आपदा में अपनी और अपनी जान की परवाह किए बिना मानवता की सेवा की।' यह कहना है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर तमिलनाडु प्रांत के सेवा प्रमुख राम राजशेखर का। वे कहते हैं,'कुछ स्वयंसेवक ऐसे थे,जिनके घर स्वयं पानी में जलमग्न हो गये थे लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी और अपने घर की चिंता छोड़कर आपदा में सेवाकार्य के लिए लग गए। बाढ़ के शुरुआती 17 दिन स्वयंसेवकों ने लगातार काम किया। इस पूरी आपदा में 5500 स्वयंसेवक सेवा कार्यों में लगे, जिनमें 1500 महिलाएं भी शामिल थीं। चेन्नै के 824 क्षेत्रों में स्वयंसेवक बराबर राहत देने का काम कर रहे थे। साथ ही सेवा इंटरनेशनल, जो विदेश में सेवा कायोंर् को देखती है, ने भी इस आपदा में बहुत महती भूमिका निभाई, जिसके कारण विदेश के बहुत से लोगों ने न केवल हमारे स्वयंसेवकों के कार्य को सराहा बल्कि भूरिभूरि प्रसंशा की।'
चेन्नै के सेवा दूत
ल्लरत्नेश मिश्रा, फीनिक्स, अमरीका
बाढ़ के बाद तत्काल फेसबुक और व्हाट्सएप समूह बनाया। इस पर जो भी सहायता मांग रहा था, उनकी पूरी स्थिति जानकर फौरन सेवा भारती के कार्यकर्ताओं को इसके बारे में बताते थे। सेवा भारती के कार्यकर्ता तत्काल मौके पर जाकर उनको राहत देने का काम करते थे।
ल्लअचलेश अमर, ह्यूस्टन, अमरीका
बाढ़ के बाद से ट्विटर पर पूरी नजर रख रहे थे। जैसे ही उनसे यहां कोई सहायता मांगता था वे सेना, अन्य सामाजिक संगठनों एवं सेवा भारती को उसके बारे में बताते थे। साथ ही उन लोगों से बराबर संपर्क भी रखने का प्रयास कर रहे थे, जो ऐसी स्थिति में फंसे थे।
ल्लस्वदेश कटोच, अटलांटा, अमरीका
बाढ़ के बाद अमरीका में रह रहे भारतवंशियों से संपर्क स्थापित करना। ज्यादा से ज्यादा आर्थिक मदद कैसे जुटायी जाये, इसके लिए सोशल मीडिया के जरिए अमरीका के विभिन्न शहरों में रह रहे अप्रवासियों से संपर्क स्थापित करना। इसी अपील के चलते इन लोगों को काफी मदद मिलने लगी। चेन्नै बाढ़ के लिए करीब 60 लाख रुपये इसी प्रकार एकत्र किए।
'उनका दर्द नहीं देखा गया'
निर्मल धर्मलिंगम चेन्नै के विलिवक्कम क्षेत्र से हैं। विलिवक्कम बाढ़ से अत्यधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक था। आपदा के बारे में निर्मल बताते हैं, 'मेरा घर पानी में पूरी तरह से डूब गया था। दूर-दूर तक पानी दिखाई दे रहा था। हजारों लोग इसमें फंसे थे। लोगों को तत्काल राहत की जरूर थी। पर सरकार की ओर से उन्हें कोई राहत फौरी तौर पर नहीं मिल पा रही थी। मेरा भी घर बाढ़ में डूबा था लेकिन मुझे न अपनी चिंता थी और न ही अपने घर की। मुझे चिंता थी बाढ़ में फंसे लोगों की, जो राहत के लिए आस लगाये हुए थे। मुझसे यह दृश्य देखा नहीं जा रहा था। मैंने स्थानीय स्वयंसेवकों को साथ लिया और सेवाकार्य के लिए जुट गया। मैंने रात-दिन लगकर लगातार 7 दिन तक सेवा भारती के साथ लोगों को राहत पहुचंाने का काम किया।
अश्वनी मिश्र
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