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मुझे तीन वर्ष पहले 'इमैनुअल सेवा गु्रप इंडिया' का संस्थापक देवराज डॉ. हेडगेवार अस्पताल में मिला था। उसने मुझे परेशान देख तीनों बच्चों को पढ़ाने, रोजगार देने और मकान देने की बात कही। उसके बाद देवराज मेरे बच्चों को पढ़ाने के लिए अपने साथ ले गया। पहले वह मेरे कहने पर बच्चों को मिलवाने के लिए ले आता था और उन्हें अपने साथ ही ले जाता था। इस बार मुझे बिसरख आश्रय घर में आई एक महिला ने बताया कि वहां रहने वाले बच्चों को पढ़ाने के नाम पर परेशान किया जाता है। तभी से मुझे अपने बच्चों की चिंता सताने लगी, देवराज ने दबाव बढ़ने पर मुझे मकान खाली करने की धमकी दे डाली।'
यह कहानी है ग्रेटर नोएडा के बिसरख निवासी नूतन की, जिसकी गरीबी दूर करने का वायदा कर देवराज उसके जिगर के टुकड़ों को अपने साथ ले गया। यदि नूतन ने बच्चों से मिलने के लिए चाइल्ड हेल्पलाइन से संपर्क न किया होता तो बिसरख और मेरठ से 30 बच्चे मुक्त न होते। बिसरख पुलिस ने बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था की शिकायत पर मामला भी दर्ज कर लिया है। इस प्रकरण से एक बार फिर खुलासा हुआ कि किस तरह ईसाई मिशनरी देश में गरीब बच्चों को शिक्षा मुहैया कराने के नाम पर उनका गुपचुप तरीके से कन्वर्जन करने में जुटी हैं। भोले-भाले नाबालिग बच्चों को प्रार्थना के नाम पर चर्च ले जाकर उनका नाम बदल दिया जाता है। मिशनरी चाल से अनजान बच्चे बड़े होने तक ईसाई बन जाते हैं।
बिसरख निवासी नूतन ने गत 27 दिसम्बर को नोएडा में बच्चों के अधिकारों के लिए कार्य करने वाली एक संस्था के पदाधिकारियों से अपनी दो बेटी व एक बेटे को इमैनुअल संस्था द्वारा जबरन रखे जाने के संबंध में शिकायत की थी। इसके बाद संस्था ने जिला बाल संरक्षण अधिकारी (डीपीओ) और बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) गौतमबुद्धनगर की अगुआई मंे बच्चों की तलाश शुरू कर दी गई। गत 29 दिसम्बर को सूचना मिली कि बिसरख थाना क्षेत्र अंतर्गत सरस्वती कुंज में कुछ बच्चों को इमैनुअल आश्रय घर में रखा गया है, जहां से उन्हें जल्द ही दूसरी जगह भेजा जा रहा है। सूचना के आधार पर उसी रात 9 बजे छापेमारी कर 4 से 12 वर्ष की आयु वाले 7 बच्चों को वहां से मुक्त करा लिया गया, जो कि वहां कार्यरत भोला और पिंकी के साथ रह रहे थे। जांच में पाया गया कि गैर पंजीकृत संस्था में बच्चों को अवैध रूप से रखा गया था। इन दोनों कर्मचारियों से मालूम हुआ कि संस्था को जोशुआ देवराज नामक व्यक्ति चला रहा है और वही इसका संस्थापक है।
इस छापेमारी में एक विशेष बात यह सामने आई कि आश्रय घर से कुछ ही दिन पूर्व चार लड़कियों को किसी दूसरे स्थान पर भेज दिया गया जिनके कपड़े अलमारी में रखे मिले। बिसरख में बच्चियों के नहीं मिलने पर नूतन की जानकारी के आधार पर उसी रात मेरठ चाइल्ड लाइन/जनहित फाउंडेशन से संपर्क किया गया। इसके बाद मेरठ के जिला बाल संरक्षण अधिकारी पुष्पेंद्र सिंह के साथ मिलकर जनहित फाउंडेशन की निदेशक अनीता राणा ने गत 30 दिसम्बर की सुबह ई-ब्लॉक शास्त्री नगर के एक मकान में छापेमारी की। वहां से 23 बच्चों को मुक्त करवाया गया। इस आश्रय घर को भी जोशुआ देवराज की इमैनुअल संस्था द्वारा चलाया जा रहा था। यहां 6 से 16 वर्ष की आयु के 14 लड़के और 9 लड़कियां रह रहे थे। यहां दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, बिहार, ओडिशा और अन्य राज्यों से बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा मुहैया करवाने के नाम पर रखा गया था।
मौके पर संस्था में एक अमरीकी युवती गेलेना कैटलीना मिली, जो बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाती थी, लेकिन वहां गए जांच दल को बच्चों से पता लगा कि वह बाइबिल पढ़ाने के अलावा उनसे ईसाई प्रार्थना करवाती थी। जिला बाल संरक्षण जांच दल को इमैनुअल संस्था के कर्मचारियों ने बताया कि कैटलीना वहां एक सप्ताह पूर्व आई थी। इसके उलट पड़ोस के लोगों ने बताया कि कैटलीना काफी पहले से संस्था में आती-जाती थी। वहां नूतन की दोनों बच्चियां भी बरामद हो गईं। हैरानी की बात यह है कि दोनों बच्चियों का नाम प्रियंका प्रजापति और प्राप्ति प्रजापति से बदलकर प्रियंका मसीह और प्राप्ति मसीह कर दिया गया था। इन सभी बच्चों को डेढ़ वर्ष से यहां पर रखा गया था और संस्था बिना पंजीकरण के ही चल रही थी।
मौके पर छापेमारी करने गए दल को बच्चों से पूछताछ में कई चौकाने वाली जानकारियां मिलीं। बच्चों के दो-दो नाम होना, हिन्दू बच्चों से ईसाई मत की प्रार्थना करवाना और लंबे समय से बच्चों को उनके माता-पिता से न मिलवाना आदि। दूसरी तरफ नूतन के बेटे गौरव को नोएडा-मेरठ में हुई छापेमारी के बाद देवराज का कोई मित्र बिसरख में छोड़कर चला गया, उसे बहनों से काफी दूर देहरादून के आश्रय घर में रखा गया था। छापेमारी के बाद इमैनुअल संस्था से जुड़े मसीह ने बच्चों को मुक्त कराने वाली संस्था के नोएडा सेक्टर-16 स्थित कार्यालय पहंुचकर बच्चे वापस करने को कहा और नहीं लौटाने पर संस्था के कर्मचारी सत्यप्रकाश को फोन पर बुरा अंजाम भुगतने व संस्था के कार्यालय पर ताला लगाने की धमकी दी गई।
गौतमबुद्धनगर जिला के पुलिस अधीक्षक (अपराध) विश्वजीत श्रीवास्तव कहते हैं कि बच्चों को बिसरख में बिना पंजीकरण के आश्रय घर में रखा गया था। इन बच्चों के माता-पिता को कई प्रकार के प्रलोभन दिए गए थे। बच्चों को मुक्त कराने वाली संस्था के सदस्यों को धमकी दी जा रही थी। इस संबंध में बिसरख थाना क्षेत्र में मामला दर्ज किया गया है। तीन लोगों से पूछताछ की गई है और मामले की जांच जारी है। इसे महज एक संयोग कहें या साजिश कि 14 मई, 2014 को दक्षिण पश्चिम जिला, दिल्ली की बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) और पुलिस की संयुक्त छापेमारी में दिल्ली के छावला इलाके में इमैनुअल नामक संस्था से बाल कल्याण समिति ने 54 बच्चों को मुक्त कराया था। यह 'चिल्ड्रन होम' भी पांच वर्षों से बिना पंजीकरण के चलाया जा रहा था। इसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, मणिपुर और झारखंड के बच्चों को शिक्षा और देखभाल के नाम पर रखा गया था। अभिभावकों ने समिति को बताया था कि जब कभी बच्चे अपने घर जाते थे तो उनके पास बाइबिल होती थी। बाल मजदूरी मुक्ति कार्यक्रम एवं अभियान के निदेशक, बचपन बचाओ आंदोलन के राकेश सेंगर ने बताया कि इन बच्चों की देखभाल करने वाले आश्रय घरों में किशोर न्याय अधिनियम 2000 के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है।
ईसाई मिशनरी किस तरीके से बच्चों को शिक्षा देने के नाम पर कन्वर्ट कर रही हैं, इसका खुलासा 'पाञ्चजन्य' ने 4 जनवरी, 2015 के अंक में किया था। दिल्ली के नजफगढ़
स्थित प्रेमधाम आश्रम में चल रहे 'ह्यूमन केयर इंटरनेशनल' में गरीब बच्चांे को शिक्षा देने के नाम पर उनके दसवीं कक्षा के प्रमाणपत्र में मिशनरी वाला गरीब बच्चों के जीवित
माता-पिता के नाम की जगह अपना और
पत्नी का नाम लिखवा देता था। नोएडा व मेरठ में हुई छापेमारी से स्पष्ट है कि राज्यों में मिशनरियां बिना पंजीकरण के चल रही हैं और इस ओर राज्य सरकारों का रवैया उदासीन ही बना हुआ है।
ईसाई पंथ की प्रार्थना नहीं करने पर बच्चों को मिलती थी यातनाएं
तीन साल से पहले माता-पिता को नहीं थी बच्चों से मिलने की अनुमति
देश में बिना पंजीकरण के चलाए जा रहे हैं आश्रय घर लड़के-लड़कियों को रखा जा रहा था एक साथबाल संरक्षण कानून के संबंध में
किशोर न्याय अधिनियम के दिशा-निर्देशों उल्लंघन जारी
राहुल शर्मा
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