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नारीवाद, वंचित, गरीबी, भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता आदि से सम्बंधित रचनाओं की पुनरावृत्ति साहित्य में दिखाई पड़ी। समस्या की जड़ तक पहुंचने की न कोई दृष्टि और न सार्थक पहल। लेखकों के एक वर्ग ने जो काम पुरस्कार वापसी के नाम पर किया वही निरंतर अपने लेखन में भी किया
—सीतेश आलोक, वरिष्ठ साहित्यकार
साहित्य समाज का आइना होता है और इसमें समाज एवं देश में विद्यमान वातावरण की प्रतिध्वनि व्यक्त होती दिखाई पड़ती है। एक सच्चा रचनाकार अपने समय के यथार्थ को तो अपने रचनाकर्म में उकेरता ही है, इसके साथ ही समकालीन समस्याओं के स्थाई समाधान के उपाय भी सुझाता है। भारतीय साहित्य प्राचीन संस्कृत के समृद्घ ज्ञान वाङ्गमय के साथ पालि, प्रकृत और अपभ्रंश साहित्य को संजोते हुए संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल 22 भाषाओं, हिंदी समेत तमिल, तेलुगु, उडि़या, बंगला, मराठी, पंजाबी, के समृद्घ साहित्य को समेटता है।
यह भी कड़वी सच्चाई है कि 1914 में रवीन्द्रनाथ ठाकुर को गीतांजलि के लिए नोबल पुरस्कार मिला था उसके बाद आज सौ साल बाद भी भारत की किसी भी भाषा के रचनाकार को यह सम्मान नहीं मिला है और निश्चित रूप से यह गहन चिंता का विषय है कि क्या हमारी भाषाओं में ऐसा नहीं लिखा जा रहा है जिसकी झलक या प्रतिश्रुति वैश्विक मंचों पर सुनायी पड़े। अपने देश में साहित्य राजनीतिक बाड़ों और विचारधाराओं में बंधा है जिसका प्रमाण हाल तक केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के विरुद्घ चलाया गया सुनियोजित-प्रायोजित असहिष्णुता अभियान है।
समाज और देश के हित में कुछ दूरदर्शी विमर्श भी निकलकर आये होंगे। भारत में 16वां विश्व हिंदी सम्मलेन संपन्न हुआ तो इससे पूर्व बैंकाक में विश्व संस्कृत सम्मलेन भी। हिन्दी के शीर्ष आलोचक डॉ़ विश्वनाथ त्रिपाठी को प्रतिष्ठित मूर्तिदेवी सम्मान मिला तो वरिष्ठ साहित्यकार डॉ़ रामदरश मिश्र को साहित्य अकादमी सम्मान। संस्कृत में रामशंकर अवस्थी तो अंग्रेजी के लिए यह साइरस मिस्त्री को प्राप्त हुआ। इस वर्ष साहित्य जगत को कई रचनाकारों की क्षति भी उठानी पड़ी, इनमें सचेतन कहानी के सूत्रधारों में एक सरदार महीप सिंह शामिल हैं।
वर्ष-2015 की साहित्यिक उपलब्धि और हलचल पर वरिष्ठ साहित्यकार श्री सीतेश आलोक कहते हैं- 'साहित्य को समाज का दर्पण अकारण नहीं कहा गया। साहित्य में भी वह सब कुछ देखने को मिला जो समाज झेल रहा है। वही नारीवाद, वंचित, गरीबी, भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता आदि संबंधी रचनाओं की पुनरावृत्ति, कहीं भी समस्या की जड़ तक पहुंचने की न कोई दृष्टि और न सार्थक सोच।
लेखकों के एक वर्ग ने जो काम पुरस्कार वापसी के नाम पर किया वही निरंतर अपने लेखन में किया। एक संकेत मात्र सही किन्तु समाचार ये भी है कि गत दो-तीन दशकों से निरंतर दिए जाने वाले भारतभूषण कविता पुरस्कार के लिए निर्णायक मंडल को इस वर्ष कोई भी रचना पुरस्कार योग्य नहीं मिली हां यदि समग्र प्रकाशित सामग्री की दृष्टि से देखें तो वर्ष 2015 उर्वरक रहा किन्तु पठन-पाठन की दृष्टि से स्थिति संदिग्ध ही रही।' ल्ल
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