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अभी तक विज्ञान अपने आप को ही सब कुछ मानता था। पर अब वह भी बदल रहा है। उसे भी लग गया है कि प्रकृति भी कोई चीज है। वह भी प्रकृति के निकट आने के लिए लालायित है। यह सब कुछ आध्यात्मिक जगत की ओर बढ़ने के ही संकेत हैं।
—गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद जी
सनातन संस्कृति मुझे कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति देती है। एवं वांछित सफलता प्राप्त करने में सहयोग करती है।' यह कहना है नतालिया दिमित्री वालकोवा का। वालकोवा मास्को (रूस) में रहती हैं और सनातन धर्म के बहुआयामी स्वरूप एवं उसमें निहित चयन की स्वतंत्रता से अत्यधिक प्रभावित हैं। अकेले रूस ही नहीं बल्कि इंग्लैंड, अमरीका, कनाडा, फ्रांस,जर्मनी एवं अन्य कई देशों के लोग सनातन धर्म की ओर खिंचे चले आ रहे हैं। ये सभी लोग शान्ति की चाह में आ रहे हैं। इनके पास सभी सुख-सुविधाएं हैं फिर भी तृप्ति नहीं है। भौतिक सुख-सुविधाएं जहां एक ओर बढ़ी हैं वहीं दूसरी ओर व्यक्ति की क्षमता में कमी आई है। सुख के स्थान पर और ज्यादा मानसिक कष्ट से लोग ग्रसित हुए हैं। यानी सब कुछ है फिर भी मन को शान्ति नहीं है।
गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ. प्रणव पड्या इस विषय पर कहते हैं,'आज विश्व का रुख अध्यात्म की ओर बड़ी ही तेजी से मुड़ रहा है। अतृप्त इच्छाओं की पूर्ति न हो पाने के कारण लोग सनातन धर्म की ओर खिंचे चले आ रहे हैं। भोगवाद की पूर्ति ने मानव को विकलांग बना दिया है और यह किसी एक देश की स्थिति नहीं बल्कि अधिकतर देशांे की स्थिति है।' वे आगे कहते हैं,' आज रूस से अधिकतर टूटे हुए देशों के लोग बड़ी संख्या में आध्यात्मिक शान्ति पाने के लिए भारत आ रहे हैं। वहीं यूरोप के अधिकतर देशों में लोग शान्ति के लिए सनातन धर्म का रास्ता अपना रहे हैं। अमरीका में पिछले कुछ वर्षों में इसका चलन अत्यधिक तेजी के साथ बढ़ा है और वर्ष 2015 में उसमें और गति देखने में आई है।'
दिनोंदिन अध्यात्म को जानने-समझने की लोगों में रुचि बढ़ रही है। सायमन डेनिस न्यू हैम्पशायर (अमरीका) में रहते हैं। सनातन धर्म में सभी समस्याओं का समाधान है ऐसा वे मानते हैं। वे कहते हैं,'भारत के उच्च आध्यात्मिक वातावरण एवं नित्य यज्ञ करने के कारण मेरे मन में एक परिवर्तन हुआ है। इसके कारण ही मेरे व्यक्तित्व में भी परिवर्तन आया है।'
गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज अध्यात्म की ओर विश्व की बढ़ती रुचि पर कहते हैं,'आज भौतिकवाद चरम पर है। सुख के स्थान पर कष्ट ज्यादा बढ़ रहे हैं। विश्व के लोगों को लगने लगा है कि मानसिक सुख केवल और केवल सनातन धर्म में ही समाहित है। अध्यात्म को अपनाने के सिवाय अन्य कोई विकल्प उनके पास नहीं है। सनातन धर्म ही है, जो वैश्विक शान्ति की बात करता है, मानव ही नहीं प्राणी मात्र में ईश्वर को देखता है। इन सभी बातों को लोग जान और समझ रहे हैं इसी कारण विश्व इसकी ओर आकर्षित हो रहा है।'
इस वर्ष आध्यात्मिक जगत की ओर विश्व के बढ़ते रुझान पर कहते हैं,'अभी तक विज्ञान अपने आप को ही सब कुछ मानता था। पर अब वह भी बदल रहा है। उसे भी लगा है कि प्रकृति भी कोई चीज है। वह भी प्रकृति के निकट आने के लिए लालायित है। यह सब कुछ आध्यात्मिक जगत की ओर बढ़ने के ही तो संकेत हैं।'
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