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2015 में जहां केन्द्र में मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने शासन का एक साल पूरा करके 'मोस्ट वैल्यूड नेशन्स' की पांत में भारत को ला खड़ा किया, वहीं इस साल के दौरान हुए लोकसभा उपचुनावों और विभिन्न विधानसभा चुनावों के दौरान राजनीतिक वार्ता-व्यवहार ने नई नीचाइयां छुईं। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आआपा ने फरवरी 2015 में विधानसभा चुनावों में जहां सफलता पाई वहीं राजनीतिक जुमलेबाजी और बयानबाजी में छिछोरेपन की हद भी पार कर दी।
मि. क्लीन का लेबल लगाने वाले केजरीवाल खुद उन लालू यादव के गले लगते नजर आए जो भ्रष्टाचार के पर्याय का रुतबा पाए हुए हैं। उधर आजम खां और मुलायम सिंह एक दूसरे को हल्केपन में पछाड़ते नजर आए। 10 जनपथ और उसके दरबारियों ने तो जैसे अपनी मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा को हर बात के लिए पानी पी-पीकर कोसने का थोक में ठेका उठा रखा था। लालू और नीतीश कुमार ने बिहार चुनाव जीतने के लिए पुरानी रंजिशों को भुलाकर भाजपा को घेरने का झंडा उठा रखा था। जबकि सब जानते हैं कि इस गठजोड़ में सहज को छोड़कर सब कुछ था। यही जोड़ी थी जिसको बिहार में फिर से स्थापित करने के लिए 'असहिष्णु' राजनीति की गोटियां बिठाई गई थीं। सीबीआई ने मुख्यमंत्री केजरीवाल के मुख्य सचिव के दफ्तर पर छापा क्या मारा, वे अपने आपे से बाहर हो गए और प्रधानमंत्री के लिए जिस तरह की बातें कीं उनसे दिल्लीवासियों के मन में सवाल उठा कि क्या ये बयान सच में उस आदमी के मुंह से आए हैं जो कभी आईआरएस अधिकारी होने का दंभ करता था। केजरीवाल का कहना था-'मोदी जब राजनीतिक रूप से मेरा मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं तो वे इस तरह की कायरता पर उतर पाए हैं। मोदी कायर और मनोरोगी हैं।' उनको गले लगाने वाले लालू यादव कौन कम रहे, उन्होंने भी बिहार चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री के प्रति शब्दों के चयन में निहायत घटिया प्रदर्शन किया।
उत्तर प्रदेश में आजम खां किस तरह नफरत की राजनीति करते रहे उसकी मिसाल पेरिस हमले के फौरन बाद दिखी। उस हमले को लेकर जब सारी दुनिया सकते में थी और आतंकवादियों के विरुद्ध एकजुट होने का आह्वान किया जा रहा था उस वक्त उ. प्र. के नगर विकास मंत्री आजम खां ने यह बोलकर जख्म पर नमक छिड़का कि हमले जिस वजह से हुए उसे देखना चाहिए। उनको हमलों में मारे गए निर्दोष नागरिकों से कोई सहानुभूति नहीं थी, बल्कि वे एक तरह से हत्यारों की कारगुजारी को शह देते ही प्रतीत हुए। भारत के प्रति उनके मन में कैसा भाव है वह उनके इस बयान से झलक गया-'मैंने भारत मां को डायन कहा है। मैं आज भी अपने उस बयान पर कायम हूं। जो मां अपने बच्चों के खून की प्यासी है, वह मां नहीं हो सकती।'असहिष्णु राजनीति के एक और चेहरे असदुद्दीन ओवैसी भी उन्मादी बयानों के लिए जाने जाते हैं। जहां एक ओर अदालत के फैसले के बाद भी अयोध्या में सबकी सहमति से मंदिर बनाने की बात हो रही है वहीं उनका अलग राग सुनाई दिया-'अयोध्या में राम मंदिर नहीं, बाबरी मस्जिद बनकर रहेगी।' चुके हुए कांग्रेसी नेता श्रीप्रकाश जायसवाल ने कांग्रेसी संस्कृति पर चलते हुए कहा-'मोदी की कथनी-करनी में फर्क है। ऐसे व्यक्ति पर देश की जनता कैसे भरोसा कर सकती है, जो देश में कुछ कहता हो और विदेश में कुछ बोलता हो। आज देश पर ऐसी ताकतंे मुंहबाएं खड़ी हैं, जो हिन्दुस्थान की अस्मिता को लील जाना चाहती हैं।' कोई जायसवाल को समझाए कि मोदी के नेतृत्व में आज देश दुनिया में खोई साख फिर से पाने लगा है। ऐसे में उनके ये बचकाना बयान क्या दर्शाते हैं?
मोदी जब राजनीतिक रूप से मेरा मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं तो वे इस तरह की कायरता पर उतर पाए हैं। मोदी कायर और मनोरोगी हैं।'
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