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अश्वनी मिश्र त्र्यम्बकेश्वर से लौटकर
द्धा मुंबई के कांदीवली इलाके से हैं। उनके लिए कुंभ में आना और यहां के सांस्कृतिक वातावरण में अपने को रचा-बसा देना यह उनके बचपन का एक सपना था, इसके लिए उन्होंने क्रू पर नाविक दल की व्यस्तताभरी नौकरी से अवकाश लिया और सीधे घर से अपनी मां को लेकर त्र्यम्बकेश्वर सिंहस्थ कुंभ पहुंची। कुशावर्त कुंड में डुबकी लगा लेने के बाद अब उन्हें लगता है कि बचपन का सपना पूरा हो गया। यहां के सांस्कृतिक वातावरण और देश-दुनिया से आए श्रद्धालुओं की आभाओं से कुंभ का तेज निखर रहा था। साधु-संन्यासी, इंजीनियर, डॉक्टर, वैज्ञानिक, अधिकारी और आम नागरिक सभी अपनी मुक्ति और पाप के नाश के लिए कुंभ में दौड़े चले आ रहे थे। यह नजारा देखकर उनके मन में अपार प्रसन्नता हो रही थी तो वहीं एक बात उठ रही थी कि जहां आज के अत्याधुनिक और भागमभाग भरे जीवन में किसी को भी 1 मिनट का समय नहीं है, उस वक्त बिना किसी निमंत्रण के करोड़ों लोग कुंभ में दौड़े चले आ रहे थे। यह आस्था और श्रद्धा नहीं तो क्या थी? उन्हें लगता है कि भारत के लोग कितने भी आधुनिक क्यों न हो जाएं अपनी जड़ों व धर्मव्यवस्था से जुड़ाव रखते हैं और इस कुंभ के माध्यम से देश के लोगों ने यह साबित कर दिया है।’ ऐसे ही एक और युवा श्रद्धालु हैं पीयूष वर्मा। पेशे से इंजीनियर हैं। उनसे जब सवाल किया कि एक युवा होने के साथ-साथ आप इंजीनियर हैं और आज के दौर में अध्यात्म और आधुनिकता दोनों के साथ कदम मिलाकर चल रहे हैं। जहां कुछ लोग कहते हैं कि इस तरह के आयोजन रूढ़िवादी हैं। आपको क्या लगता हैं? वे कहते हैं ‘जो ऐसा सोचते हैं उनकी सोच में विकृति है। अध्यात्मक हमें जीवन में शक्ति प्रदान करता है। इसी शक्ति के बल पर हम जीवन में और अधिक ऊर्जा के साथ लगते हैं। धर्म का भाव हमें हमारे जन्म से मिला है। हमारी पीढ़ियों का पुण्य है जो हमें ऐसे सनातन धर्म में जन्म लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।’ वे कहते हैं ‘मुझे नहीं लगता आप किसी भी पेशे में जाए वहां लोग अध्यात्म से जुड़े न हों, शायद ऐसा संभव नहीं है। क्योंकि यही एक मात्र ऐसी विषयवस्तु है जो हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।’ वह कुंभ में अच्छी लगने और प्रेरणा वाली बात पर कहते हैं ‘जो भारतीय व्यवस्था और वर्णव्यवस्था को संदर्भित करते हुए टिप्पणी करते हैं और इसी आड़ में समाज बांटते हैं उन्हें ऐसे आयोजन में जरूर आना चाहिए। यहां आकर वे देखेंगे कि भारत अब भी एक सूत्र में बंधा है। सभी को साथ लेकर चलने की प्रेरणा संत जन दे रहे हैं। कोई भेदभाव नहीं, कोई छुआछूत नहीं, कोई मतान्तर नहीं। ऐसा माहौल सिर्फ और सिर्फ भारत और सनातन व्यवस्था में दिख सकता है।’
धरती पर होने वाले सबसे बड़े धार्मिक समागमों में से एक कुंभ मेला वर्तमान में त्र्यम्बकेश्वर-नासिक में चल रहा है, सांस्कृतिक एकसूत्रता के संगम में देश-दुनिया से यहां पर लोग भागे चले आ रहे हैं। 12 वर्ष के अंतराल बाद कुंभ मेले का आयोजन होता है। हिन्दू पञ्चांग के अनुसार माघ माह में जब सूर्य और बृहस्पति एक साथ सिंह राशि में प्रवेश करते हैं तब त्र्यम्बकेश्वर में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। त्र्यम्बकेश्वर में धार्मिक, आध्यात्मिक और संस्कृति का महापर्व अपने पूरे उत्साह पर है। यहां आकर भारत के लोग ही नहीं विश्व के अनेक देशों के लोग आत्मशुद्धि और आत्मकल्याण के लिए चले आ रहे थे। संतों के साथ बैठकर शिक्षा ले रहे हैं और जीवन को सार्थक बनाने के उपाय ढूंढ रहे थे। वैसे इस बार का कुंभ मेला अपने आप में कुछ अलग था। क्योंकि आज की दुनिया 21वीं सदी में अत्याधुनिक जीवन जी रही है। साइबर तकनीकि के दम पर देश आगे बड़ रहे हैं। तो वहीं भारत अपनी सनातन धर्म की पैतृक व्यवस्थाओं को अंगीकार करते हुए इस दौर में भी कदम से कदम मिलाकर चल रहा है। एक तरफ भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विश्व में डिजिटल इंडिया का झंडा गाढ़ रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ भारत में चले रहे कुंभ में लोग कुशावर्त कुंड में डुबकी लगाकर अपनी मुक्ति की कामना कर रहे हैं। आध्यात्मिक और अत्याधुनिक, दो शक्तियां समन्वित तरीके से एक दूसरे के साथ चल रही हैं। अपने आप में यह अनूठा संयोग है, जिसे पूरी दुनिया देख रही है।
विश्व के सबसे बड़े आयोजनों में शुमार होने वाले कुंभ की शुरुआत 14 जुलाई, 2015 को त्र्यम्बकेश्वर के साधुग्राम में त्रयम्बकेश्वर पुरोहित संघ द्वारा ध्वजारोहण करके हुई तो यहां का दृश्य देखने वाला था। वायुसेना के हेलीकॉप्टर ने आसमान ने साधु-संन्यासियों पर पुष्पवर्षा की। देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह सहित अनेक पूज्य साधु-संत इस उत्सव के पर मुख्यरूप से उपस्थित थे। ध्वजारोहण होते ही सनातन और भगवा रंग में रंगा त्र्यंबकेश्वर-नासिक मानो जगमगा उठा था। चेतना का महापर्व धार्मिक जागृति द्वारा मानवता, त्याग, सेवा, उपकार, प्रेम, सदाचरण, अनुशासन, अहिंसा, सत्संग, भक्ति-भाव व सभी को साथ लेकर चलने की प्रेरणा दे रहा था। जिसके बाद 25 अगस्त को पहले शाही स्नान में करीब 20 लाख से ज्यादा लोगों ने गोदावरी और कुशावर्त कुंड में डुबकी लगाई। वहीं दूसरे और तीसरे शाही स्नान में करीब 2 करोड़ लोगों ने स्नान करके अपने जीवन को ऊर्ध्वगामी बनाकर जीवन पथ पर और शक्ति के साथ लगने की कामना की।
आस्था के अलग-अलग रंग
त्र्यंबकेश्वर-नासिक कुंभ में आस्था के अलग-अलग रंग दिखाई दे रहे थे। कोई शैव तो कोई वैष्णव, कोई भभूत लपेटे बैठा था तो कोई धूनी रमाए। इनमें से कुछ ऐसे थे जिनके तन पर एक भी वस्त्र नहीं और ऐसी अवस्था में भी वह साधना में रत। ऐसे ही एक संन्यासी स्वामी श्री गुरुप्रसाद जी महाराज जो राजस्थान के चुरू से थे। साधुग्राम में धूनी रमाये अपने भक्तों के साथ बैठे और आध्यात्मिक चर्चा में व्यस्त थे। पास बैठने पर मैनें महसूस किया कि वहां पर देश ही नहीं दुनिया की समस्याओं पर चर्चा हो रही थी। हमने एक सवाल स्वामी जी से किया कि साधु-संन्यासी कुंभ में आकर क्या करते हैं ? विश्व के लोग जहां एक ओर अपने मत-पंथ से दूर हो रहे हैं तो वहीं भारत में इस अत्याधुनिक दौर में भी धार्मिक भाव बढ़ रहा है, इसका कारण क्या है? इसका उत्तर देते हुए स्वामी श्री गुरुप्रसाद जी कहा, ‘धर्मों विश्वस्य जगत: प्रतिष्ठा। यानी धर्म ही संपूर्ण जगत का आधार है। भारत सनातनधर्मियों का देश है। यहां आस्था जन्म से होती है। अन्य मत-पंथ के लोग इसलिए दूर हो रहे हैं क्योंकि उनको अपने मत-पंथ पर शंका है। वे मन को शान्त करने के लिए अपने मत-पंथों का सहारा लेते हैं और जब उन्हें वहां शान्ति नहीं मिलती तब वे अनीश्वरवादी या मत का विरोध करने लगते हैं। लेकिन भारत के लोग इससे बिल्कुल भिन्न हैं। वे जन्म से लेकर अंत और उसके बाद भी ईश्वर की ही शरण में जाने की इच्छा रखते हैं।’ वे आगे कहते हैं ‘इस 21वीं सदी के दौर में जैसा मैं देख रहा हूं खासकर युवाओं में, धर्म और अध्यात्म के प्रति झुकाव बढ़ रहा है। वे अब धर्म शास्त्रों का अध्ययन कर रहे हैं और ईश्वर को जानने का प्रयास कर रहे हैं।’ वहीं पंचदशनाम आह्वान अखाड़े के महामंत्री श्री सत्यगिरी जी महाराज कहते हैं ‘कुंभ और भारत का आपस में एक संबंध है। कुंभ अनादि काल से चला आ रहा है। हमने एक सवाल किया कि कुछ सेकुलर कुंभ को हिन्दुत्व का दिखावा कहते हैं, इस पर आप क्या कहेंगे? वे कहते हैं, ‘सनातन धर्म पर ऐसे लोग युगों से ऐसा कहकर प्रहार करते आए हैं। पर उनका क्या हुआ? क्या सनातन व्यवस्था, धार्मिक आयोजनों में लोगों का आना, उनकी श्रद्धा और आस्था में कमी आई ? नहीं। क्योंकि जहां सनातन हैं वहीं पर सत्य है और जहां सत्य है वहीं पर ईश्वर है। इसलिए भारत में साक्षात ईश्वर का वास है। इसलिए ऐसे लोगों के चिल्लाने से कुछ नहीं होने वाला।’
एक तरफ भारत के प्रधानमंत्री विश्व में डिजिटल इंडिया का झंडा गाड़ रहे हैं तो ठीक उसी समय दूसरी ओर त्र्यम्बकेश्वर-नासिक में धरती पर होने वाले सबसे बड़े धार्मिक समागम में देश-दुनिया के लोग पवित्र कुंड में स्नान करके अपनी मुक्ति की कामना कर रहे हैं। चेतना का महापर्व धार्मिक जागृति द्वारा मानवता, त्याग, सेवा, उपकार, प्रेम, सदाचरण, अनुशासन, अहिंसा, सत्संग, भक्ति-भाव व सभी को साथ लेकर चलने की प्रेरणा दे रहा है। सांस्कृतिक समरसता के इस अनूठे संगम में भारत 21वीं सदी के दौर में दुनिया को संदेश दे रहा है कि भारत के लोग कितने भी आधुनिक क्यों न हो जाएं उनकी पहचान यही सनातन संस्कृति है।
प्राचीन परंपरा
सूर्य एवं गुरू सिंह राशि में प्रकट होने पर कुंभ मेले का आयोजन त्रयंबकेश्वर-नासिक में कुशावर्त व गोदावरी के पवित्र कुंड पर होता है, जिसे विश्व में सिंहस्थ कुंभ के नाम से पुकारा जाता है। सिंहस्थ कुंभ के आयोजन की एक प्राचीन परंपरा है। साथ ही इसके आयोजन के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। प्रसंग है कि भगवान विष्णु के निर्देशानुसार देवों तथा असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया और अंत में इससे अमृत कलश निकला। धन्वन्तरि अमृतकुंभ को लेकर निकले ही थे कि देवों के संकेत से इन्द्र के पुत्र जयंत अमृतकुंभ को लेकर वहां से भाग निकले। दैत्यों ने उनका पीछा किया। देवों ने जयंत से कलश लेने के लिए उन पर हमला कर दिया। जयंत और अमृतकलश की रक्षा के लिए देवों ने दैत्यों के साथ युद्ध किया जो 12 दिनों तक चलता रहा। दोनों दलों के संघर्ष में अमृतकलश से पृथ्वी पर चार स्थानों पर अमृत की बूंदें छलककर गिर गई थीं। ये चार स्थान हरिद्वार,प्रयागराज नासिक और उज्जैन थे। तब से यहीं पर कुंभ का आयोजन होता है।
मैं इस प्रकार के आयोजन में वहली बार शामिल हो रहा हूं। ऐसा आकर्षण मैंने कभी और कहीं नहीं देखा। भारत के बारे में जैसा सुनता और पढ़ता आया था आज वैसा ही यहां देख रहा हूं। – लुका, पोलैंड
कुंभ और भारत का आपस में एक संबंध है। कुंभ अनादि काल से चला आ रहा है। कुछ लोग ऐसे आयोजनों पर कटाक्ष करते हैं। असल में उन्हें सनातन व्यवस्था का ज्ञान नहीं है जिसके कारण वे ऐसा कह रहे हैं। -श्री सत्यगिरी जी महाराज, त्रयम्बकेश्वर
जो भारतीय व्यवस्था और वर्णव्यवस्था को संदर्भित करते हुए टिप्पणी करते हैं और इसी आड़ में समाज को बांटते हैं उन्हें ऐसे आयोजन में जरूर आना चाहिए। वे यहां देखेंगे कि भारत अब भी एक सूत्र में बंधा है।
-पीयूष वर्मा, गुजरात
साधु-संन्यासी, इंजीनियर, डॉक्टर, वैज्ञानिक, अधिकारी और आमनागरिक सभी अपनी मुक्ति और पाप के नाश के लिए कुंभ में दौड़े चले आ रहे थे। यह आस्था नहीं तो क्या है?
-श्रद्धा,कांदीवली, मुंबई‘
सुहाई सनातनी हवा
मैं इस प्रकार के पहले आयोजन में शामिल हो रहा हूं। ऐसा तेज आकर्षण मैंने कभी और कहीं नहीं देखा। भारत के बारे में जैसा सुनता और पढ़ता आया था आज वैसा ही यहां देख रहा हूं। सनातन संस्कृति की झलक देखकर मन प्रसन्न हो रहा है।’ यह कहना है पोलैंड के लुका का। पेशे से पत्रकार लुका कुंभ में समाचार संकलन के लिए 1 महीने से त्रयंबकेश्वर-नासिक में हैं। घूम-घूमकर चीजों को जान रहे हैं और साधु-संन्यासियों से मिलकर कुंभ और भारत के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने का प्रयास कर रहे हैं। वे कहते हैं ‘पहले मेरे पीढ़ी के लोग बौद्ध मत के अनुयायी थे। लेकिन उसी में से कुछ लोग पोलैंड चले आए जिसके बाद उन्होंने मत परिवर्तन कर लिया। लेकिन आज भी मेरा और परिवार का भारत और यहां की संस्कृति से जुड़ाव है। मैं सनातन व्यवस्था में आस्था रखता हूं। मैं यहां साधु-संन्यासियों को देखता हूं तो शान्ति मिलती है। इनमें सहिष्षणुता, सदभाव और सत्यता साफ झलकती है। ऐसा वातावरण मैं अन्य स्थान पर नहीं देख पाता हूं।’ ऐसे ही एक और विदेशी युवक जिमयूहा हैं जो फ्रांस के रहने वाले हैं और कुंभ पर शोध कर रहे हैं। वे यहां के लोगों और व्यवस्थाओं को देखकर तारीफ करते हैं। उनकी आस्था को देखकर आश्चर्यचकित होते हैं। जब उनसे सवाल किया कि कुंभ पर ही शोध क्यों? वे कहते हैं ‘मैं भारत को जानने और समझने के लिए अध्ययनरत रहता हूं। यहां का इतिहास और अध्यात्म अपने आप में अद्वितीय है। रही शोध की बात तो कुंभ के विषय में मैंने वर्षों से सुन रखा था कि यह विश्व का सबसे बड़ा आयोजन होता है। करोड़ों लोग यहां आते हैं और इतनी भारी भीड़ के बाद सब कुछ बड़ी सहजता से संपन्न हो जाता है। यह अपने आप में विशेष है। इसलिए मेरा मन हुआ ऐसे आयोजन को देखना अवश्य ही चाहिए और इस पर शोध करना चाहिए कि आखिर इतना बड़ा आयोजन सहजता के साथ कैसे संपन्न हो जाता है। भारत का कुंभ उत्सव अपने आप में अनोखा है। इसकी अन्य किसी आयोजन-मेले से तुलना नहीं की जा सकती।
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