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यदि खेल की प्रतिष्ठा और उसकी छवि धूमिल हो जाए तो फिर बचता ही क्या है- यह एक छोटा सा वाक्य सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर. एम. लोढ़ा ने आईपीएल स्पॉट व मैच फिक्सिंग प्रकरण पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा। वाक्य बहुत छोटा, पर सारगर्भित है। इसमें भारतीय क्रिकेट में गहराई तक जड़ें जमा चुके भ्रष्टाचार और उसमें लिप्त चंद लोगों के खिलाफ फैसला सुनाने के बावजूद न्यायपालिका की सीमाएं और उसकी मजबूरी का आभास हो रहा था। न्यायमूर्ति लोढ़ा कमेटी के फैसले से इतर देखें तो अब क्रिकेट के प्रति दीवानगी की हद तक लगाव दिखाने की कोई जायज वजह नहीं दिखती।
न्यायमूर्ति लोढ़ा कमेटी ने जो फैसला सुनाया, उससे कई ऐसे सवाल खड़े हो गए हैं, जिनका जवाब आज हर क्रिकेट प्रेमी क्रिकेट आकाओं से जानना चाहता है। क्रिकेट प्रेमियों को गुरुनाथ मयप्पन (चेन्नई सुपर किंग्स के टीम प्रिंसीपल और बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष एन श्रीनिवासन के दामाद) और राज कुंद्रा (राजस्थान रायल्स के सह मालिक) की मैच फिक्सिंग व स्पॉट फिक्सिंग सहित सट्टेबाजी में लिप्तता के बाद अब जब पता चला कि उनके साथ भारी विश्वासघात किया गया है तो क्या क्रिकेट वापस खेल प्रेमियों का विश्वास जीत पाएगा? जिन क्रिकेट प्रेमियों की वजह से क्रिकेट बोर्ड और खिलाडि़यों ने करोड़ों-अरबों रुपये कमा लिये, क्या इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) उन्हीं दर्शकों व खेलप्रेमियों को धोखा देने का सिलसिला जारी रहेगा? क्या इन्हीं भोले-भाले दर्शकों की बदौलत अकूत पैसा कमाते हुए नायक का दर्जा हासिल करने वाले क्रिकेटरों की पूजा अब भी लोग करेंगे? क्या चंद पैसे कमाने के लिए अपने विकेट गंवा देने वाले बल्लेबाज और जानबूझकर खराब गेंद डालने वाले गेंदबाजों को अब भी आईपीएल जैसे लोकप्रिय मंच का इस्तेमाल करने दिया जाएगा? क्या गुरुनाथ मयप्पन और राज कुंद्रा जैसे सटट्ेबाजों को अब भी दोनों हाथों से करोड़ों कमाने की छूट मिलनी चाहिए? क्या इन दोनों पर लगे आरोप सिद्ध होने के बावजूद मिली सजा (भारतीय क्रिकेट से आजीवन नहीं जुड़ पाएंगे) काफी है? क्या आईपीएल की दो फ्रेंचाइजियों, चेन्नई सुपर किंग्स और राजस्थान रायल्स को दो साल के लिए निलंबित करने के बाद क्या भारतीय क्रिकेट फिर से एक 'जेंटलमैन' गेम बन जाएगा? इस तरह के तमाम ऐसे सवाल हैं जो क्रिकेट प्रेमियों के दिमाग में खटकते हैं।
अब बीसीसीआई की है जिम्मेदारी
हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने आईपीएल से जुड़े दोषी अधिकारियों (गुरुनाथ और राज कुंद्रा) को आजीवन प्रतिबंधित कर और दोनों की टीमों को दो साल के लिए निलंबित कर एक कड़ा संदेश दिया है कि क्रिकेट में भ्रष्टाचार को अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। लेकिन आगे शक के दायरे में जो कुछ खिलाड़ी या अधिकारी बचे हैं, उनके मामले में बीसीसीआई को ही फैसला करना है। यही नहीं, आईपीएल के अगले सत्र में निलंबित दो टीमों की जगह दो नई टीमों को शामिल किया जाएगा या फिर कुछ पुरानी टीम को ही मौका मिलेगा, इसका फैसला भी बोर्ड को ही करना है। जिस बीसीसीआई ने आज तक राज कुंद्रा और मयप्पन जैसे लोगों की कारस्तानियों के आगे आंखें मूंद लीं या शक के दायरे में आए खिलाड़ी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, उसी बोर्ड पर कितना भरोसा किया जा सकता है। बहरहाल, सर्वोच्च न्यायालय ने बोर्ड को खतरे की घंटी का आभास करा दिया है। अब बोर्ड की जिम्मेदारी है कि वह भारतीय क्रिकेट पर लगी कालिख को कैसे मिटाता है।
आईपीएल की शुरुआती गलत परंपरा
वर्ष 2008 में जब से आईपीएल की शुरुआत हुई, तब से लेकर आज तक यह रोमांचक मुकाबलों के अलावा गलत कामों के लिए ज्यादा सुर्खियों में रहा। शुरू में मैच के बाद देर रात तक चलने वाली पार्टियों में जमकर शराबखोरी और नाच-गाने के बीच तमाम विवाद हुए और उसे बंद कर दिया गया। कई खिलाड़ी नशेबाजी में लिप्त पाए गए तो चीयर गर्ल्स ने भी क्रिकेटरों पर बदतमीजी के आरोप लगाए। इसी तरह, वित्तीय अनियमितताओं के लेकर आईपीएल के पूर्व चेयरमैन ललित मोदी पर गंभीर आरोप लगे तो उन्हें दोषी सिद्ध करने वाले एन.श्रीनिवासन खुद अपने दामाद मयप्पन और राज कुंद्रा को बचाने में लगे रहे।
आकाओं ने बनाया धंधे का जरिया
देश में आज किसी भी खेल से जुड़े खिलाडि़यों की तुलना में क्रिकेटर ज्यादा अमीर होते हैं, यह बात किसी से छुपी नहीं है। फिर, आईपीएल की शुरुआत के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर के भारतीय क्रिकेटर तो अरबों में खेलने ही लगे, राष्ट्रीय स्तर के क्रिकेटर भी करोड़पति बन गए। लेकिन ज्यादा पैसा कमाने की ललक और चमक-दमक हासिल करने की चाहत ने कई खिलाडि़यों को राज कुंद्रा व मयप्पन जैसे दागियों की जाल में फंसा दिया। इस बीच, आईपीएल से किसी न किसी तरह से जुड़े पूर्व क्रिकेटरों और अधिकारियों की भूमिका भी सराहनीय नहीं रही। बताने की जरूरत नहीं है कि बिना आग के धुआं नहीं उठता और जब मीडिया या पुलिस को कहीं धुआं उठता दिखा तो उन्होंने अपनी पूरी जिम्मेदारी निभाई। -प्रवीण सिन्हा
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