असली सबक से दूर मदरसे
December 7, 2023
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
Panchjanya
  • ‌
  • भारत
  • विश्व
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • बिजनेस
  • अधिक ⋮
    • राज्य
    • वेब स्टोरी
    • Vocal4Local
    • विश्लेषण
    • मत अभिमत
    • रक्षा
    • संस्कृति
    • विज्ञान और तकनीक
    • खेल
    • मनोरंजन
    • शिक्षा
    • साक्षात्कार
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • लव जिहाद
    • ऑटो
    • जीवनशैली
    • पर्यावरण
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • जनजातीय नायक
SUBSCRIBE
No Result
View All Result
  • ‌
  • भारत
  • विश्व
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • बिजनेस
  • अधिक ⋮
    • राज्य
    • वेब स्टोरी
    • Vocal4Local
    • विश्लेषण
    • मत अभिमत
    • रक्षा
    • संस्कृति
    • विज्ञान और तकनीक
    • खेल
    • मनोरंजन
    • शिक्षा
    • साक्षात्कार
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • लव जिहाद
    • ऑटो
    • जीवनशैली
    • पर्यावरण
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • जनजातीय नायक
No Result
View All Result
Panchjanya
  • होम
  • भारत
  • विश्व
  • सम्पादकीय
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • संघ
  • पत्रिका
  • वेब स्टोरी
  • My States
  • Vocal4Local
होम Archive

असली सबक से दूर मदरसे

by
Jul 18, 2015, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 18 Jul 2015 12:51:37

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस सचमुच बधाई के पात्र हैं। उन्होंने ऐसा कदम उठाया है जिसे उठाने की हिम्मत घोर प्रगतिशील मुख्यमंत्री भी कभी नहीं कर पाए। यह कदम है उन मदरसों को स्कूल न मानना जिनमें गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान आदि विषय नहीं पढ़ाये जाते। पहली नजर में यह फैसला बहुत अमानवीय लग सकता है कि मदरसे को इसलिए स्कूल न माना जाएगा, क्योंकि वे इस्लामी तालीम देते हैं और भारत जैसे पंथनिरपेक्ष देश में ऐसा होना बहुत खराब बात है। यही कारण है कि एकाध दिन मीडिया में बहुत बवाल हुआ कि 'रा.स्व. संघ के राज' में कैसा अंधेर हो रहा है। लेकिन जब असलियत पता चली तो कुछ ही समय में मामला ठंडा पड़ गया। मीडिया को भी लगा होगा कि यह कदम बहुत पहले ही उठाया जाना चाहिए था। दरअसल यह कदम तो उन मुख्यमंत्रियों द्वारा उठाया जाना जाहिए था जो सेकुलरवाद का जाप करते नहीं अघाते, मगर वोट बैंक की याद आते ही सब कुछ भूलकर वही बेढंगी चाल चलने लगते हैं। आखिर बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधता,किसकी शामत आई थी कि अल्पसंख्यक वोट खोता?
दरअसल देवेंद्र फड़नवीस ने जिस मुद्दे को आगे बढ़ाया है वह काफी पुराना है। आजादी के बाद लंबे समय से इसे सुलझाने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन इसे जितनी गंभीरता से करने की कोशिश करनी चाहिए वह राज्य सरकारों में नजर नहीं आती। दरअसल आजादी के बाद से ही देश में 'नेशनल सिस्टम ऑफ एजुकेशन' या राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था को विकसित करने की कोशिश की जा रही है। इसको मूर्तरूप देने के लिए दौलत सिंह कोठारी आयोग ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1968 बनाई थी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति और 1975 से बने हर पाठ्यक्रम का उद्देश्य राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था को आकार देना है। देश 10+2 व्यवस्था को स्थापित करने की कोशिश कर रहा है क्योंकि एकीकृत संरचना के बगैर राज्यों की उपलब्धियों की तुलना नहीं की जा सकती। इसके अलावा राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1986 के मुताबिक राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था राष्ट्रीय पाठ्यक्रम पर आधारित होगी जिसमें कुछ समान और  आधारभूत बातें होंगी, लेकिन बाकी मामलों में लचीलापन रहेगा। आधारभूत ढांचे में भारत का स्वतंत्रता आंदोलन, संवैधानिक दायित्व और राष्ट्रीय पहचान से जुड़े अन्य मुद्दे होंगे। इस आधारभूत ढांचे को इस तरह गढ़ा जाएगा कि वह भारत की सामासिक  संस्कृृति, समानतावाद, लोकतंत्र, पंथनिरपेक्षता, स्त्री-पुरुष समानता, पर्यावरण की रक्षा, सामाजिक विषमता का उन्मूलन, छोटे परिवार की महत्ता और वैज्ञानिक दृष्टि आदि मूल्यों को प्रोत्साहन दे। यह वैकल्पिक नहीं, राज्यों की पाठ्यचर्या का अंग होगा। माध्यमिक स्तर पर भाषा, गणित, सामाजिक अध्ययन और विज्ञान पाठ्यचर्या का हिस्सा होंगे।
इसके अलावा कला शिक्षा, कार्यानुभव, स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षा भी माध्यमिक स्तर पर पाठ्यचर्या का हिस्सा होंगे। लेकिन ये राज्यों में अलग-अलग होंगे। इन सबमें महत्वपूर्ण बात है देशभर में आधारभूत पाठ्यचर्या। शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद यदि महाराष्ट्र शिक्षा अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद द्वारा तय की गई पाठ्यचर्या में भाषा, गणित, विज्ञान, सामाजिक अध्ययन विषय हैं तो यह आवश्यक है कि सभी छात्र ये सभी विषय पढ़ें। ऐसा न होने तक प्राथमिक शिक्षा पूर्ण होने की शर्त पूरी नहीं होती। इसलिए राज्य सरकार इस बात का सर्वे कर रही है कि किन छात्रों को शिक्षा के अधिकार कानून के तहत शिक्षा नहीं मिल रही। उसे उन सभी छात्रों को वह शिक्षा दिलानी है, चाहे वे छात्र मदरसे के हों या वैदिक पाठशालाओं के। यदि किन्हीं मदरसों या वैदिक स्कूलों में निर्धारित में से एक भी विषय कम पढ़ाया जाता है तो शिक्षा का अधिकार कानून के तहत इन्हें स्कूल नहीं माना जा सकता। तकनीकी तौर पर उन्हें स्कूल न जाने वाले छात्र ही कहना पड़ेगा, भले ही वे किसी विश्वविद्यालय में चले जाएं, कोई प्रतियोगी परीक्षा पास कर लें या सिविल सेवा में पास हो जाएं। क्योंकि राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था का मकसद छात्रों को  केवल जीविका और रोजगार के लिए तैयार करना नहीं है वरन् देश के स्वतंत्रता आंदोलन, राष्ट्रीय अस्मिता को विकसित करना और वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा करना भी है। इसके लिए गणित, विज्ञान और सामाजिक अध्ययन को आवश्यक माना गया है।
यदि किसी मदरसे या वैदिक पाठशाला में पांथिक शिक्षा के साथ-साथ इन विषयों को भी पढ़ाया जाता है तभी उसे बाकायदा स्कूल माना जाएगा। लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो राज्य सरकार उन्हें स्कूल न जाने वाले छात्र कहेगी। यहां एक और बात भी उल्लेखनीय है कि विषय के अध्ययन का मतलब सरकार द्वारा निर्धारित पठ्यक्रम से है। जैसे कोई अफ्रीका या यूरोप या इस्लाम का इतिहास पढ़े और भारत और उसके स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास न पढ़े तो यह नहीं कहा जा सकता कि वह निर्धारित पाठ्यक्रम को पूरा कर रहा है। बताया जाता है कि कई राज्यों ने मदरसा स्कूलों को मान्यता दे रखी है। यदि वे सभी निर्धारित विषयों को पढ़ाते हैं तो यह मान्यता सही है। यदि वे सभी निर्धारित विषय नहीं पढ़ा रहे हैं फिर भी उन्हें स्कूल के रूप में मान्यता प्राप्त है तो ऐसे राज्य अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ रहे हैं। वे राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1968, राष्ट्रीय पाठ्यचर्या-2005 और शिक्षा का अधिकार कानून के नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। उन पर मुकदमा भी चल सकता है।

दरअसल जिन मुद्दों  पर देश में आम सहमति है उन्हें लागू करना राज्य सरकारों का कर्तव्य है। यदि कोई राज्य सरकार इन्हें गंभीरता से लागू करने की कोशिश करती है तो इस पर विवाद खड़ा करने के बजाय उसकी सराहना  की जानी चाहिए। दरअसल फड़नवीस की भाजपा सरकार उन नियमों को लागू कर रही है जो कांग्रेस के शासनकाल में बने थे पर जिन्हें खुद कांग्रेस ने कभी लागू नहीं किया। वैसे महाराष्ट्र सरकार यह स्पष्ट कर चुकी है कि जिन मदरसों में ये विषय नहीं पढ़ाए जाते उन्हें वह ये विषय पढ़ाने के लिए आर्थिक मदद देने को तैयार है। इसके बावजूद मदरसे कई तरह के कारण बताकर इसका विरोध कर रहे हैं।
कुछ मदरसों की दलील है कि सरकार इस आर्थिक मदद की आड़ में मजहबी मामलों में दखलंदाजी कर सकती है। कुछ मदरसा समर्थक कहते हैं कि कि सच्चर कमेटी के अनुसार केवल चार प्रतिशत मुस्लिम बच्चे ही मदरसे में जाते हैं, बाकी 96 फीसदी बच्चे या तो अन्य स्कूलों में पढ़ते हैं या कहीं नहीं पढ़ते। सरकार इन चार प्रतिशत बच्चों को लेकर क्यों इतना परेशान है? मदरसों के आधुनिकीकरण के विरोध का एक और कारण बताते हुए कुछ और मुस्लिम नेता कहते हैं, 'निजी मदरसों के सामने एक खतरा यह भी है कि अगर सरकार इन मदरसों की मदद के लिए आगे आती है तो उन्हें अरब देशों से मिलने वाली सहायता बंद हो सकती है।' कुछ मुस्लिम संगठन सरकार के इस फैसले के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाने की बात कर रहे हैं। ऐसे में राज्य के शिक्षामंत्री विनोद तावड़े ने बहुत पते के बात कही कि 'मुझे आश्चर्य है, सरकार के प्रगतिशील कदम की आलोचना की जा रही है। हम तो मदरसा शिक्षा में विज्ञान, गणित और सामाजिक अध्ययन को जोड़कर उसकी गुणवत्ता बढ़ाना चाहते हैं।'
सारे देश में हजारों की संख्या में मदरसे हैं, जो मुख्य रूप से देवबंद, बरेलवी और नदवा (लखनऊ) जैसे किसी एक मजहबी शिक्षा केंद्र की विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें से अधिकांश मदरसे निजी तौर पर मजहबी संस्थाओं द्वारा चलाए जाते हैं। ये मदरसे सरकारी सहायता स्वीकार नहीं करते। दूसरे प्रकार के मदरसे वे हैं, जो सरकारी सहायता व अनुदान से चलते हैं। जाहिर है, जो मदरसे सरकारी अनुदान स्वीकार नहीं करते, वे सरकार के 'आधुनिकीकरण कार्यक्रम' को भी स्वीकार नहीं करते, जिसमें उनकी स्वतंत्रता छिनने का खतरा हो? इससे पहले संप्रग सरकार की 'मदरसों के आधुनिकीकरण' की ऐसी ही एक योजना इसलिए नाकाम हो गई, क्योंकि देवबंद, नदवा और बरेलवी विचारधारा से जुड़े निजी मदरसों ने इस योजना का कड़ा विरोध किया था। वैसे आधुनिक शिक्षा प्राप्त अधिकांश मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने मदरसों के आधुनिकीकरण कार्यक्रम का स्वागत किया है।
मदरसों की पढ़ाई हमेशा ही विवादों के घेरे में रही है। पिछले दो दशकों में पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मदरसों की आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली भूमिका के बाद बाकी देश भी चिंतित हो उठे हैं। पिछले दिनों पाकिस्तान जैसे मुस्लिम देश के सूचना मंत्री परवेज रशीद ने कहा, 'ये जहालत के विश्वविद्यालय, जिन्हें हम दान और (जानवरों की) खाल देते हैं, समाज को घृणा और रूढि़वादिता की विचारधारा दे रहे हैं।' उनकी टिप्पणियों ने कट्टरपंथी संगठनों के बीच तूफान मचा दिया और कुछ मदरसों ने मंत्री को 'मजहब विरोधी' करार दिया। मदरसों से जुड़े लोगों ने सड़कों पर उतरकर मंत्री को बर्खास्त करने की मांग की। पाकिस्तान के शिक्षा मंत्री ने पाकिस्तान में बढ़ते दीनी मदरसों पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा है कि मदरसों की तालीम बच्चों को कट्टरवादी और संकीर्ण बनाती है। उन्होंने कहा कि पिछले तीन दशकों से जिस प्रकार पाकिस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा मिला, उसके पीछे सबसे बड़ा कारण दीनी मदरसे हैं। आज पाकिस्तान वैज्ञानिक दृष्टि से पिछड़ता जा रहा है, जबकि कट्टरवाद की जड़ें मजबूत होती जा रही हैं। वहां के शिक्षा मंत्री ने कहा कि पिछले तीन दशकों में पाकिस्तानी राजनीति में कट्टरपंथियों का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है और इसे जितना नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही है, यह उतनी गति से बढ़ता जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि पाकिस्तानी मदरसों में भारत के देवबंद के मदरसों वाला पाठ्यक्रम ही पढ़ाया जाता है। एक बार संयुक्त राष्ट्र संघ में पाकिस्तानी राजदूत ने कहा था,'पाकिस्तान के अंदर जो आतंकवाद है, वह आतंकवाद मदरसे की मजहबी शिक्षा का प्रतिफल है और उसके लिए भारत भी कम जिम्मेदार नहीं है, क्योंकि भारत स्थित देवबंदी मदरसे से मजहबी शिक्षा लेकर निकले लोग ही पाकिस्तान के अंदर आतंकवाद के प्रचार-प्रसार के लिए दोषी हैं।'
जहां तक अपने देश की बात है तो कौन नहीं जानता कि भारत में मदरसे कुकुरमुत्तों की तरह फैले हुए हैं और उनमें जिहाद की ही शिक्षा मिलती है। लेकिन मुस्लिम स्कूली शिक्षा का प्रयोग भी खतरनाक ही रहा है। सर सैयद मुसलमानों की शिक्षा को केवल कुरान, हदीस एवं अरबी भाषा तक सीमित नहीं रखना चाहते थे। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में समस्त आधुनिक पाठ्यक्रमों को सम्मिलित कराया, किन्तु एक बिन्दु पर ये दोनों समान विचार रखते थे जो था मुसलमानों की अलग पहचान, जो इस्लाम के आधार पर बनी है। यह विचार ही आगे चलकर द्विराष्ट्र के सिद्धांत का जनक बना जिसकी परिणति देश के विभाजन के रूप में हुई।
इसलिए दिक्कत मदरसों से नहीं है। असल दिक्कत वहां दी जाने वाली इस्लामी तालीम से है,क्योंकि इस्लाम का दर्शन ही लोकतंत्र विरोधी, पंथनिरपेक्षता विरोधी, अलगाववादी और चरम असहिष्णु है। वह दर्शन जब मदरसों या मुस्लिम शिक्षा संस्थाओं में पढ़ाया जाता है तो नफरत का जहर ही बोता है। दरअसल इस्लामी दर्शन को समझने की गंभीर कोशिश करनी चाहिए। उनकी उपासना पद्धति ही अलग नहीं है, बल्कि इस्लाम कहता है कि 'अल्लाह एक है, उस के अलावा और कोई ईश्वर नहीं है। अल्लाह ने एक पैंगंबर भेजा है, एक किताब (कुरान) भेजी है, उम्माह है। उसने इस्लाम के रूप में मानवता को यह एकमात्र सच्चा, सनातन, अंतिम, पूर्ण, आदर्श और अपरिवर्तनीय मजहब दिया है। अल्लाह को इसके अलावा और कोई मजहब स्वीकार नहीं है। बाकी सब मजहब मनुष्य निर्मित, झूठे, सनकभरे अनुमान पर आधारित हैं। जो इस्लाम को मानता है वह मोमिन है बाकी सब काफिर हैं। काफिर का मतलब होता है अपराधी, विद्रोही, पापी, नीच से नीच। अल्लाह इस लोक में और परलोक में भी इन्हें कड़ी से कड़ी सजा देगा। मुसलमानों से कुरान में कहा गया है कि इन काफिरों के साथ जिहाद करें। इस धरती को दारल हरब से दारुल इस्लाम बनाएं। दारुल इस्लाम तब बनेगा जब बाकी सारे मजहब खत्म कर दिए जाएंगे। इस्लामी राज्यों में भी काफिरों की स्थिति कमतर होगी यानी वे दूसरे दर्जे के नागरिक होंगे। शरिया कानून में उनकी और महिलाओं की गवाही को आधा ही माना जाता है। उनसे जजिया लेने का प्रावधान है।'
जब मदरसों में केवल ऐसी असहिष्णुतापूर्ण शिक्षा दी जाएगी तो वहां पढ़ने वाले छात्रों की क्या मानसिकता बनेगी, इसकी  कल्पना कर  सकते हैं। उनसे निकलने वाले छात्र मजहबी उन्मादी और असहिष्णु ही होंगे। समाज में अलगाव फैलाने वाले होंगे। मदरसे के इन छात्रों को यह भी बताया जाता है कि उनके द्वारा छेड़ा गया यह 'जिहाद' अथवा इस रास्ते पर चलते हुए होने वाली उनकी मौत उन्हें सीधे 'जन्नत' में पहुंचा देगी। इस प्रकार गुमराही का शिकार हुए मदरसों के यही बच्चे पाकिस्तान से लेकर अफगानिस्तान तक आत्मघाती हमलावर के रूप में अब तक जगह-जगह हजारों बेकसूर लोगों की हत्याएं कर चुके हैं और अब भी करते आ रहे हैं। इस तरह से मदरसों की शिक्षा आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली है। इस्लाम की शिक्षा लोकतंत्र विरोधी भी है, क्योंकि उसके मुताबिक ईश्वरीय राजनीतिक व्यवस्था, खिलाफत और ईश्वरीय कानून, शरिया पहले ही दिए जा चुके हैं। यदि ईश्वरीय कानून पहले से ही मौजूद है तो  लोकतंत्र के चुने हुए जन-प्रतिनिधि क्या कानून बनाएंगे? यदि बनाएंगे तो उसे शरियत के अनुकूल होना चाहिए। इस तरह जब तक इस्लाम और आधुनिक लोकतांत्रिक और पंथनिरपेक्ष मूल्यों के बीच टकराव बना रहेगा तब तक कोई भी देश पंथनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक समाज की रचना कैसे कर पाएगा? हमारे देश का संविधान पंथ के नाम पर हर तरह की पांथिक शिक्षा देने की इजाजत देता है। इतना ही नहीं, इसके लिए अल्पसंख्यकों को अपनी शिक्षा संस्थाएं स्वायत्त तरीके चलाने की स्वतंत्रता दी गई है। यह स्वतंत्रता बहुसंख्यक समाज को तक को हासिल नहीं है।
आखिर रास्ता क्या है? कहा जाता है कि कुरान में अल्लाह के बाद सबसे ज्यादा कोई शब्द आया है तो वह है इल्म। मोहम्मद पैगंबर ने कहा था-इल्म पाने के लिए चीन जाना पड़े तो जाओ। लेकिन मुसलमान इल्म पाने के लिए चीन तो नहीं गए मगर लड़ने के लिए हिन्दुस्थान चले आए। तबसे लड़ ही रहे हैं। कभी-कभी लगता है कि मुसलमान हमेशा लड़ते ही रहते हैं। काश, उन्हें किसी दिन यह इल्म हो कि वे राह भटक गए हैं। तभी वे उस राह से मुक्ति पा सकेंगे। एक प्राच्य विद्या विशारद एल्स्ट कोनरॉड ने गोवा के एक सेमिनार में  कहा था-'मुस्लिमों को इस्लाम से मुक्त होने की जरूरत है। मगर आज तो यह दिवास्वप्न ही लगता है।'

सतीश पेडणेकर

ShareTweetSendShareSend

संबंधित समाचार

पश्चिम बंगाल : कालियाचक कांड की सीबीआई से जांच की मांग पर हाई कोर्ट में याचिका

“राष्ट्रगान को अस्त्र की तरह नहीं करें इस्तेमाल” : कलकत्ता हाईकोर्ट की बंगाल पुलिस को फटकार, भाजपा विधायकों को दी राहत

जो हैं आयुर्वेद के जनक केरल के डॉक्टर को उन्हीं से तकलीफ; धर्मनिरपेक्षता एक बहाना! भगवान धन्वंतरि पर निशाना

हमारी धरोहरों को संजीवनी देते हैं प्रतीक चिन्ह और नाम, राष्ट्र की विचारधारा का करते हैं प्रतिनिधित्व

Snow Fall Destinations, best snowfall places in india, best snowfall places in india in december, snow tourist places in india, travel news

Snow Fall Destinations: स्नोफॉल देखने के लिए भारत की ये जगहें हैं सबसे एकदम बेस्ट

UKGIS 2023 :  उत्तराखंड ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट की तैयारी पूरी, प्रधानमंत्री मोदी करेंगे शुभारंभ

UKGIS 2023 : उत्तराखंड ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट की तैयारी पूरी, प्रधानमंत्री मोदी करेंगे शुभारंभ

ABVP 69th National Convention : एनईसी बैठक में नारी शक्ति वंदन अधिनियम तथा श्री राम मंदिर विषय पर प्रस्ताव हुए पारित

ABVP 69th National Convention : एनईसी बैठक में नारी शक्ति वंदन अधिनियम तथा श्री राम मंदिर विषय पर प्रस्ताव हुए पारित

UP News, Yogi Adityanath, CM Yogi, up traffic rules, traffic rules in up, today up news,Uttar Pradesh news

सड़क सुरक्षा को लेकर योगी सरकार सख्त, तीन बार चालान होने पर निरस्त होगा डीएल

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

पश्चिम बंगाल : कालियाचक कांड की सीबीआई से जांच की मांग पर हाई कोर्ट में याचिका

“राष्ट्रगान को अस्त्र की तरह नहीं करें इस्तेमाल” : कलकत्ता हाईकोर्ट की बंगाल पुलिस को फटकार, भाजपा विधायकों को दी राहत

जो हैं आयुर्वेद के जनक केरल के डॉक्टर को उन्हीं से तकलीफ; धर्मनिरपेक्षता एक बहाना! भगवान धन्वंतरि पर निशाना

हमारी धरोहरों को संजीवनी देते हैं प्रतीक चिन्ह और नाम, राष्ट्र की विचारधारा का करते हैं प्रतिनिधित्व

Snow Fall Destinations, best snowfall places in india, best snowfall places in india in december, snow tourist places in india, travel news

Snow Fall Destinations: स्नोफॉल देखने के लिए भारत की ये जगहें हैं सबसे एकदम बेस्ट

UKGIS 2023 :  उत्तराखंड ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट की तैयारी पूरी, प्रधानमंत्री मोदी करेंगे शुभारंभ

UKGIS 2023 : उत्तराखंड ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट की तैयारी पूरी, प्रधानमंत्री मोदी करेंगे शुभारंभ

ABVP 69th National Convention : एनईसी बैठक में नारी शक्ति वंदन अधिनियम तथा श्री राम मंदिर विषय पर प्रस्ताव हुए पारित

ABVP 69th National Convention : एनईसी बैठक में नारी शक्ति वंदन अधिनियम तथा श्री राम मंदिर विषय पर प्रस्ताव हुए पारित

UP News, Yogi Adityanath, CM Yogi, up traffic rules, traffic rules in up, today up news,Uttar Pradesh news

सड़क सुरक्षा को लेकर योगी सरकार सख्त, तीन बार चालान होने पर निरस्त होगा डीएल

Sharmistha Mukherjee Book : पीएम मोदी को प्रखर राष्ट्रवादी मानते थे प्रणब मुखर्जी, राहुल को नहीं माना PM पद के काबिल

Sharmistha Mukherjee Book : पीएम मोदी को प्रखर राष्ट्रवादी मानते थे प्रणब मुखर्जी, राहुल को नहीं माना PM पद के काबिल

Dehradun news, Uttarakhand News, Major General R Prem Raj, GOC, Uttarakhand Latest News

मेजर जनरल आर प्रेम राज ने GOC उत्तराखंड सब एरिया का पदभार संभाला

Prayagraj Maulvi rape of hindu girl and islamic conversion

ये पाकिस्तान नहीं: हिंदू महिला के पति को कबूलवाया इस्लाम, बेटी का मजार पर रेप, मौलवी और उसके बेटों की दरिंदगी

Breakfast Foods, healthy Breakfast ideas, healthy diet, Best High Energy Breakfast Foods, health tips, health tips hindi

Breakfast Foods: ब्रेकफास्ट में शामिल करें ये 4 फूड्स, पूरे दिन रहेंगे एनर्जेटिक

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

No Result
View All Result
  • होम
  • भारत
  • विश्व
  • सम्पादकीय
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • संघ
  • राज्य
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • बिजनेस
  • विज्ञान और तकनीक
  • खेल
  • मनोरंजन
  • शिक्षा
  • साक्षात्कार
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • जीवनशैली
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • संविधान
  • पर्यावरण
  • ऑटो
  • लव जिहाद
  • श्रद्धांजलि
  • बोली में बुलेटिन
  • Web Stories
  • पॉडकास्ट
  • Vocal4Local
  • पत्रिका
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies