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झूठ को बार-बार बोलने पर वह सच बन जाता है।' हिटलर के प्रचार मंत्री जोसेफ गोयबल्स का ये कथन आजकल कांग्रेस-प्रायोजित मीडिया के बहुत काम आ रहा है। व्यापम घोटाले के नाम पर कुछ ऐसा ही तमाशा हो रहा है। पहले गवाहों की मौत की संख्या को लेकर अफवाह फैलाई गई। फिर फर्जी दस्तावेजों के सहारे आरोपों का सिलसिला चल निकला। जांच अभी चल ही रही है, लेकिन मीडिया ने राय बनानी शुरू कर दी कि दोषी कौन है।
व्यापम घोटाले के बारे में कहानियां बुनने का सिलसिला अभी चल ही रहा था, कि 'आजतक' के पत्रकार अक्षय सिंह की मृत्यु ने हर किसी को चौंका दिया। हम नहीं जानते कि ये स्वाभाविक मौत थी या कोई षड्यंत्र। लेकिन इस घटना के बाद टीवी टुडे समूह की प्रतिक्रिया वाकई विचित्र रही। किसी अज्ञात कारण से समूह के चैनलों पर काफी देर तक ये खबर दिखाई ही नहीं गई। बाद में जब सोशल मीडिया और दूसरे चैनलों के जरिए बात फैल गई, तब कहीं जाकर 'आजतक' और 'इंडिया टुडे टेलीविजन' ने ये समाचार दिखाना शुरू किया।
टीवी टुडे समूह को घटना की अगली सुबह होते-होते अपने ही एक पत्रकार की मौत में भी टीआरपी नजर आने लगी। अंतिम संस्कार में आए नेताओं की बयानबाजियों को लेकर जैसे कार्यक्रम 'आजतक' चैनल पर दिखाए गए वे मीडिया की संवेदनशीलता पर एक प्रश्नचिन्ह हैं। अपने होनहार पत्रकार की मौत का सच जानने की कोशिश के बजाय 'आजतक' की रुचि ये अफवाह फैलाने में थी कि मध्य प्रदेश भाजपा में 'गृह युद्ध' छिड़ गया है। बाकी कई चैनल भी पत्रकार की मौत को व्या से जोड़कर देखने लगे। जबकि यही सब चैनल तब सितम्बर, 2013 में आईबीएन-7 के पत्रकार राजेश वर्मा की मुजफ्फर नगर में मजहबी दंगों में हुई संदिग्ध मौत के बारे में एक शब्द नहीं बोले थे। शायद वे उस सच की तह में जाने से कतराते रहे, क्योंकि मामला उनके सेकुलरवाद की परीक्षा का था। व्यापम पर उमा भारती का एक साक्षात्कार किया गया और दिनभर ये खबर चली कि उमा भारती ने शिवराज सिंह चौहान सरकार की आलोचना की है। जबकि मूल साक्षात्कार में एक शब्द भी ऐसा नहीं पाएंगे।
मीडिया की तथाकथित निष्पक्षता का एक और नमूना देखने में आया। टेलीफोन पर बातचीत का टेप सामने आया, जिसमें मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी को खुलेआम धमकी दे रहे हैं। कुछ को छोड़कर लगभग सभी मीडिया समूहों ने इस खबर को 'ब्लैकआउट' कर दिया। विशेषरूप से नोएडा में दफ्तर वाले मीडिया समूहों को बताना चाहिए कि ये खबर दिखाने में उन्हें किससे डर लग रहा था। जरा सोचिए अगर टेप में भाजपा के किसी जिला स्तरीय नेता की भी टेप में आवाज होती तो देश का मीडिया कितना बड़ा हंगामा खड़ा कर चुका होता।
बिहार में विधान परिषद के नतीजों ने कांग्रेस-प्रायोजित मीडिया को उदास ही कर दिया। भाजपा की जीत को बहुत से स्वयंभू विश्लेषकों और राजनीति के पंडितों ने अपनी निजी हार की तरह लिया। एबीपी न्यूज चैनल पर बैठे एक विश्लेषक ये तक समझाने लगे कि कैसे ये नतीजे बहुत मायने नहीं रखते। सोचने वाली बात है कि अगर नतीजे भाजपा के पक्ष में नहीं होते तो भी क्या यही विश्लेषण होता।
इस बीच, इफ्तार के बहाने सियासी रोटी सेंकने की कोशिश जारी रही। इफ्तार पार्टी में प्रधानमंत्री क्यों नहीं गए? उन्होंने टोपी क्यों नहीं पहनी? ऐसे बेमतलब के सवाल लगभग हर टीवी चैनल पर तैरते रहे। एक टीवी चैनल पर किसी ने ये पलट कर पूछ दिया कि क्या आप किसी मौलवी को नवरात्र के मौके पर तिलक लगाने या माता की चुनरी ओढ़ने को मजबूर करेंगे, तो जवाब में चेहरा देखने लायक बन गया। कुछ दिग्गज पत्रकारों ने सोशल मीडिया के जरिए प्रधानमंत्री के इफ्तार पार्टियों में न जाने को मुद्दा बनाने की कोशिश की। एक ने तो ट्वीट किया कि अगर प्रधानमंत्री गंगा पूजा करते हैं तो उन्हें इफ्तार पार्टी में भी जाना चाहिए। सवाल ये कि क्या इस आग्रह को एक व्यक्ति के तौर पर प्रधानमंत्री की धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं माना जाना चाहिए?
उधर, 'टाइम्स ऑफ इंडिया समूह' का दुष्प्रचार अभियान जारी रहा। 14 जुलाई के अंक में खबर छपी कि अमित शाह ने कहा है कि अच्छे दिन 25 साल बाद आएंगे। झूठ की पोल खुलते भी देर नहीं लगी। अखबार ने माफी की बजाय अगले दिन एक स्पष्टीकरण छाप दिया। लेकिन एक झूठी खबर अपना काम कर चुकी थी और सोशल मीडिया से लेकर मुख्यधारा मीडिया तक पर इसे लेकर तरह-तरह की बातें चल निकलीं। ये खबर सिर्फ भूलवश छप गई थी ऐसा तो कतई नहीं लगता। 'पेड मीडिया' आज एक सच्चाई है और प्रेस काउंसिल जैसी संस्था को जांच करनी चाहिए कि जानबूझकर झूठी खबरें फैलाने और अगले दिन छोटा सा स्पष्टीकरण छाप देने के पीछे की असली कहानी क्या है। जहां तक 'टाइम्स ऑफ इंडिया' की बात है, बीते कुछ महीनों में इस अखबार में ऐसी गलतियों का एक पूरा सिलसिला है।
मीडिया के एक तबके और उसके तथाकथित कर्णधारों के लिए ये सोचने का वक्त आ चुका है कि राष्ट्रवादी ताकतों के खिलाफ उनके दुष्प्रचार पर जनता विश्वास क्यों नहीं करती है।
नारद
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