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फजिल्का में बलबीर के खेतों में अब गेंहू और चावल की जगह फोटोवोल्टिक (पीवी) सेल लगे हुए हैं। पिछले साल एक कंपनी को उन्होंने अपनी जमीन लीज पर दी और उसके बाद से ही उनकी जमीन पर बिजली की खेती शुरू हो गई। ऐसा सिर्फ बलबीर के खेत में ही नहीं हो रहा है। देश में इन दिनों बिजली क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति हो रही है। सूरज की रोशनी को जमा करके बिजली बनाने की क्रांति। कुछ लोग इसे 'सोलर फार्म' भी कह रहे हैं। ये नई तरह की खेती है, जो नई सरकार के आने के बाद तेजी से बढ़ी है। ये नई खेती है बड़े काम की। ये खेती उन खेतों में ज्यादा फायदे का सौदा है जहां जमीन खेती के लिए बेहतर नहीं है। यानी बंजर जमीन पर खेती।
सौर ऊर्जा के संयत्र अब पूरे देश में लग रहे हैं। पहले ये सिर्फ गुजरात, मध्यप्रदेश या फिर पंजाब के कुछ हिस्सों तक ही सीमित था। लेकिन अब सभी राज्यों के बिजली विभाग इसके लिए या तो तैयार हैं या फिर तैयारी में लगे हुए हैं। नीति आयोग में ऊर्जा सलाहकार के तौर पर काम कर रहे आर के कौल के मुताबिक इसके दो मुख्य कारण हंै। पहला सौर ऊर्जा संयत्र के फायदों की जानकारी अब लोगों के बीच में काफी बढ़ी है। दरअसल देश में कोयले की बढ़ती कीमत ने कोयले से बनने वाली बिजली की कीमत बढ़ा दी है। साथ ही थर्मल कोयले से बनने वाली बिजली के लिए कोयले को बड़ी मात्रा में जलाना पड़ता है । इससे बहुत बड़ी मात्रा में प्रदूषण होता है । इसको कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी पहल हुई है। इसी वजह से पूरी दुनिया में कोयला आधारित बिजली का उपयोग कम किया जा रहा है। लेकिन इससे भी बड़ा कारण ये है कि पूरी दुनिया को ऊर्जा देने वाले सूर्य देवता की ऊर्जा का उपयोग बिजली बनाने में किया जाने लगेगा तो ये ऊर्जा बिजली का सबसे सस्ता और प्रदूषण रहित माध्यम होगी। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय में सचिव उपेंद्र त्रिपाठी के मुताबिक प्रदूषण से सबसे ज्यादा नुकसान आम आदमी को होता है। चाहे वह किसान हो, मजदूर हो या फिर नौकरी करने वाला। चूंकि अमीर आदमी के पास ये सुविधा है कि वह 'एयरप्यूरीफायर' लगवा सकता है लेकिन आम आदमी और आने वाली पीाढ़यों को ध्यान में रखकर सौर ऊर्जा एक बेहद सराहनीय कदम है । अगर दुनिया भर का तापमान बढ़ता है तो देश के तटीय भागों में समुद्र का पानी ऊपर आ जाएगा तो इनके विस्थापन की जिम्मेदारी भी तो हमारी ही होगी। लिहाजा अगर आज कुछ ज्यादा खर्चे के साथ सौर ऊर्जा संयंत्र लगाए भी जाते हैं तो वो आने वाले कल के लिए सस्ती ही पड़ेंगी।
सौर ऊर्जा के फायदों को देखते हुए सरकार ने भी सौर ऊर्जा के जरिए अगले सात वर्षों में इसका लक्ष्य बढ़ाकर एक लाख मेगावाट उत्पादन कर कर दिया है और इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारें सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने के लिए कंपनियों को प्रोत्साहित भी कर रही हैं । हालांकि जानकार मानते हैं कि जब देश में अभी तक कुल मिलाकर 4000 मेगावाट के आसपास सौर ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है। ऐसे में एक लाख मेगावाट का लक्ष्य रखना ठीक नहीं है। हालांकि इसमें से कितना काम हो पाता है। ये अब सरकार और निवेश पर निर्भर करता है। निवेश को बढ़ावा देने के लिए हाल में आर-ई निवेश 2015 कराया था और इसमें देसी विदेशी कंपनियों ने कुल मिलाकर 200 अरब अमरीकी डॉलर निवेश करने की कहा है। लेकिन इस निवेश को भारत में जमीन पर उतारना इतना आसान नहीं है । क्योंकि इतना निवेश करने के लिए इन कंपनियों को जो सुविधाएं चाहिए। उनमें राज्यों की भूमिका ज्यादा होती है। चाहे वह जमीन हो या फिर बिजली खरीदने का करार।
दरअसल इन दिनों बिजली क्षेत्र में सबसे बड़ी मुसीबत राज्यों के बिजली बोर्ड की माली हालात का खराब होना है । विभिन्न राज्यों के बिजली बोर्ड पर करीब 2 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है और इस कर्ज के चलते राज्य न तो अपने बुनियादी ढांचे को सुधार पा रहे हैं और न ही महंगी बिजली को खरीद पा रहे हैं । राज्यों के बिजली बोर्ड फिलहाल 3 से 4 रुपये प्रति यूनिट के मूल्य पर भी बिजली खरीदने में हिचक रहे हैं। ऐसे में सौर ऊर्जा संयंत्र की 6-7 रुपये प्रति इकाई की दर से कैसे खरीदेंगे इसपर भी सवालिया निशान लग रहे हैं। हालांकि बिजली बोर्ड की माली हालत खराब होने के कारण वे कई-कई घंटे बिजली काट रहे हैं। इसकी वजह से डीजल जनरेटर से बिजली इस्तेमाल करने वालों की संख्या बढ़ रही है। एक अनुमान के मुताबिक सालाना करीब 90,000 मेगावाट बिजली डीजल जेनसेट से बन रही है और आपको जानकर आश्चर्य होगा कि डीजल जेनसेट से बनने वाली बिजली की कीमत करीब 12 से 14 रुपये प्रति इकाई आती है। लेकिन राज्यों की लापरवाही के चलते खुद ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने बिजली बोर्ड की सहायता को मना कर दिया है। इसलिए सौर ऊर्जा संयंत्र लगाकर उससे पैसा कमाना आसान नहीं है। ये सवाल जब नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के सचिव से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि ये बात ठीक है कि फिलहाल ये बिजली महंगी है। लेकिन सौर ऊर्जा संयंत्र से बनने वाली बिजली का मूल्य अगले 25 सालों के लिए निश्चित किया जा रहा है। जबकि पिछले पांच वर्षों में कोयले से बनने वाली व्यवसायिक बिजली का मूल्य 3़29 प्रति यूनिट से बढ़कर 6.91 रुपये प्रति इकाई पहुंच गया है। इसलिए लंबे समय में सौर ऊर्जा संयंत्र की बिजली न सिर्फ सस्ती पड़ेगी। बल्कि इससे आने वाली पीढि़यों को भी भारी फायदा होगा। चालू वर्ष में सरकार करीब 15000 मेगावाट के सोलर पावर संयंत्रों के लिए ठेके देना चाहती है। सरकार ने इसके लिए तैयारी भी शुरू कर दी है। दरअसल अगर अगले छह महीनों में सरकार ये ठेके लेकर आ जाती है तो अगले साल के शुरुआत में इन संयंत्रों पर काम शुरू हो जाएगा और अगले साल बाकी ठेके भी आ जाएंगे इससे उम्मीद है कि बड़े स्तर पर सौर ऊर्जा संयंत्र का काम शुरू हो जाएगा ।
एक और बड़ी बात है जो कि सौर ऊर्जा संयंत्रकी राह में रोड़ा बनी हुई है। वह ये कि इस तकनीक में जितनी क्षमता बताई जाती है। उसका सिर्फ 20 प्रतिशत ही उत्पादन होता है। यानी इसका उत्पादन कम है। लेकिन दूसरी ओर इसमें न तो ईंधन की जरूरत है और न ही इसकी मरम्मत की जरूरत होती। एक बार पैनल लग जाने के बाद इनको सिर्फ बीच-बीच में धोने का काम होता है। बाकी बिजली बनाने के लिए तो सूर्य देवता ही काफी हैं।
उल्टा घूमेगा मीटर
अभी तक 'सोलर पैनल' को घर पर लगाने के बाद इसकी बनी अतिरिक्त बिजली का कोई उपयोग नहीं होता था। यानि की जब आप घर में नहीं होते हैं तब सोलर पैनल कितनी भी बिजली बना लें। उसका कोई उपयोग नहीं होता था । इसी वजह से बहुत बार लोग इसको लेकर नाक मुंह भी सिकोड़ते थे। लेकिन अब इसका हल भी सरकार ने निकाल लिया है। सरकार ने एक नई योजना शुरू की है। इसको 'नेट मीटरिंग' का नाम दिया गया है। इस योजना में अगर आपके घर पर सौलर पैनल बिजली बना रहे हैं तो आपके घर एक ऐसा मीटर लगेगा, जोकि दोनों तरफ घूमेगा। जब आप खंभे की बिजली का इस्तेमाल कर रहे होंगे तो आपका मीटर सीधा घूमेगा यानी आपकी इकाई खपत बढ़ेगी। लेकिन जब आपके घर में बिजली की खपत कम होगी और सोलर पैनल ज्यादा बिजली बना रहे होंगे तो ये मीटर उल्टा घूमेगा यानी आपके बिजली की यूनिट कम होने लगेगी। इससे सरकार को उम्मीद है कि अब आम आदमी इस तकनीक के जरिए न सिर्फ अपने बिजली के बिल को कम कर सकेगा, बल्कि एक बड़ी बचत सोलर पैनल से बनने वाली बिजली से कर सकेगा। इस बारे में एनडीएमसी में इस योजना की शुरुआत करने वाले ओ पी मिश्रा ने बताया कि जब सौर ऊर्जा संयंत्र को लेकर कई योजनाएं नाकाम हुई और न तो कंपनियों ने कोई उत्साह दिखाया और न ही आम आदमी ने इन पर ध्यान दिया तो हमने 'नेट मीटरिंग' की स्कीम पर ध्यान देना शुरू किया। दिल्ली मे ही एक ऐसा बड़ा हिस्सा है जोकि अपनी छत पर ही सौलर पैनल लगाकर बिजली बना सकता है । लेकिन इन लोगों को इससे बड़ा फायदा मिलना चाहिए। इसी को देखते हुए 'नेट मीटरिंग' की योजना को तैयार किया गया था। फिर हमने प्रयोग के तौर पर नई दिल्ली इलाके में एक सरकारी स्कूल की छत पर इस तरह का संयंत्र लगाने का विचार किया। जब ये प्लांट लगना शुरू हुआ तब हमने सोचा भी नहीं था कि ये इतना बेहतर तरीके से काम करेगा। इससे न सिर्फ स्कूल के बिजली के बिल में 25 से 30 प्रतिशत की कमी आई बल्कि स्कूल के ऊपर वाले हिस्से में छात्रों को गर्मी लगनी भी कम हो गई। इस प्लांट की वजह से छत पर सूरज की किरणें अब सीधी नहीं पड़ती और इससे स्कूल की कक्षाओं में गर्मियों के दिनों का तापमान काफी कम हो गया है।
छत पर लगने वाले सोलर पैनल से बनने वाली बिजली के प्रति न सिर्फ सरकारी बल्कि निजी क्षेत्र को भी अब लग रहा है कि अगर वह भी अपनी छत पर सौर ऊर्जा संयत्रं लगवा लेते हैं तो इसका बड़ा फायदा मिल सकता है। दरअसल किसी भी सौर ऊर्जा संयत्रं को लगाने के बाद करीब छह साल में आपको उसको लगाने का खर्चा निकल आता है और इसके बाद करीब 18-19 वषार्ें तक आपको लगभग मुफ्त में बिजली मिलती है। इसी को देखते हुए दिल्ली के होली फैमिली अस्पताल ने भी अपनी छत पर सोलर पैनल लगवाने का फैसला लिया है। इस अस्पताल ने करीब 300 किलोवाट का सोलर प्लांट लगाने के लिए जर्मनी की कंपनी से करार भी कर लिया है। इस प्लांट के लगने के बाद इस 350 बिस्तर वाले अस्पताल में बिजली की जरूरतें सौर ऊर्जा से भी पूरी की जाएंगी। इससे अस्पताल को अपने खर्चे कम करने में भारी मदद मिलेगी । इसी तरह हरियाणा सरकार ने भी राज्य में 500 गज से बड़े घरों की छत पर सोलर पैनल लगाने का आदेश दे दिया है। यानी इस आकार से बड़े घरों पर सोलर पैनल लगाना अनिवार्य होगा।
सौर ऊर्जा संयत्रं के फायदों को देखते हुए देश में अब कंपनियों और संस्थानों के बीच सोलर पैनल से बिजली बनाने की होड़ लगी हुई है। देश के सबसे बेहतरीन संस्थानों में से एक दिल्ली मेट्रो ने भी हाल ही में एक सात मेगावाट का सौर ऊर्जा संयत्रं लगाया है। इस संयंत्र के जरिए से मेट्रो न सिर्फ अपनी खुद की बिजली बना सकेगी साथ ही मेट्रो आने वाले वर्षों में ईंधन पर होने वाले खर्चे को भी कम सकेगी। मेट्रो ने सोलर पावर को लेकर जो खाका खींचा है, उसके मुताबिक मेट्रो कोयले से बनने वाली बिजली का इस्तेमाल कम करना चाहत् ाी है। इसके लिए उसने किसी दूसरे राज्य में लगने वाले वर्षों से बिजली खरीदने का मन भी बनाया हुआ है। दसरअसल मेट्रो या फिर दूसरी कंपनियां जोकि बिजली का इस्तेमाल करती है या फिर उसे दूसरी बिजली बनाने वाली कंपनियों से खरीदती हैं। लेकिन खुद की छत या अन्य स्थान पर सोलर पैनल लगाकर उनसे बिजली पैदा करना न सिर्फ आसान है, बल्कि लंबे समय में ये फायदे का सौदा भी है। बेशक कंपनियां अभी इसमें बड़ा निवेश कर रही हैं। लेकिन करीब पांच छह साल में ये निवेश फायदा देना शुरू कर देता है। लिहाजा मेट्रो ने भी अपने यहां प्लांट लगाने के साथ-साथ किसी दूसरे राज्य में संयंत्र लगाने वाली कंपनी से बिजली खरीदने का मन बना लिया हैं। मेट्रो की योजना के मुताबिक अभी वह कोयले से बनने वाली बिजली की कीमत करीब सात रुपये प्रति इकाई में खरीद रहे हैं। अगर वो अपना संयंत्र लगाते हैं या फिर किसी दूसरी कंपनी से बिजली खरीदते हैं तो उन्हें प्रति इकाई कम से कम 50 पैसे की बचत होगी। मेट्रो ईंधन पर सालाना करीब 412 करोड़ रुपये खर्च करती है। जोकि उसके कुल खर्चे का 34 प्रतिशत होता है। अगर मेट्रो कोयला आधारित बिजली ही खरीदती है तो बिजली खरीदने का खर्चा लगातार बढ़ता रहेगा, पिछले चार वर्षों में ये खर्चा करीब दोगुना हो गया है। आने वाले समय में भी इसके लगातार बढ़ने की ही आशंका है, क्योंकि ये बिजली कोयले से बनाई जाती है और कोयले की उपलब्धता सीमित है। लेकिन सूरज की रोशनी की उपलब्धता सीमित नहीं है । लिहाजा इससे बनने वाली बिजली की लागत अभी बेशक ज्यादा हो, लेकिन आने वाले समय में जैसे ही बेहतर तकनीक आएगी ये और तेजी से कम होगी। ऐसे में मेट्रो का ये फैसला इस बड़े संस्थान के लिए बड़े फायदे का सौदा हो सकता है। साथ ही अभी मेट्रो जो सोलर से बिजली खरीद रही है। वह अगले 25 वर्षों के लिए निर्धारित है। यानि अगले 25 वर्षों तक इसकी कीमत में बढ़ोतरी नहीं होगी। इस लिहाज से भी मेट्रो को इस बिजली का फायदा मिलेगा।
राज्यों ने भी ये समझ लिया है कि आने वाला भविष्य सौर ऊर्जा का ही है तभी तो केंद्र जितनी कोशिश कर रहा है उससे ज्यादा राज्य इस तकनीक से बिजली बनाने की कोशिशों मे लगे हुए हैं। सोलर पार्क बनाने की योजना बेशक गुजरात में शुरू हुई हो, लेकिन अब बाकी राज्यों ने गुजरात को सोलर पार्क के मामले में पीछे छोड़ने का मन बना लिया है। पूरे देश के राज्यों में इस होड़ से सोलर पावर संयंत्र बनाने वाली कंपनियों को भी अच्छा मौका मिल रहा है। गुजरात के अलावा राजस्थान सरकार ने भी सोलर पार्क और सोलर संयंत्र विकसित करने के लिए कंपनियों को आकर्षित करना शुरू कर दिया है। राजस्थान में करीब 2700 मेगावाट के तीन सोलर पार्क विकसित किए जा रहे हैं ।
ये तीनों पार्क जैसलमेर और भदला इलाके में लगाए जा रहे हैं। यहां की बंजर भूमि में सूरज की रोशनी में विकिरण इतना ज्यादा है कि देश में सबसे बेहतर सौलर पार्क इसी इलाके में काम कर सकते हैं। इन तीनों पार्क में करीब 17-18000 करोड़ रुपये का निवेश राज्य और दूसरी एजेंसियां कर रही हैं। एक खास बात और केंद्र सरकार की मदद के बाद अब राज्य सरकार निजी कंपनियों के साथ बिजली खरीदने का करार कर रही हैं। सौर ऊर्जा संयत्रं की बिजली खरीदे जाने के वादे के बाद निजी कंपनियां भी अब तेजी से इस क्षेत्र में निवेश कर रही हैं। राजस्थान के अलावा आंध्र प्रदेश भी 2500 मेगावाट के सौर ऊर्जा संयत्रं पर काम कर रहा है। मध्यप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडू जैसे राज्य भी सरकारी और निजी कंपनियों के साथ मिलकर सोलर पावर प्लांट स्थापित करने में लगे हुए हैं। सरकार तो चाहती है कि 500 मेगावाट के कम से कम 25 सोलर पार्क विकसित कराए जाएं ताकि 20000 मेगावाट बिजली इन सोलर पार्क से ही बनाई जा सके। लेकिन काफी कोशिशों के बाद भी सरकार अभी इस लक्ष्य से पीछे है। इसके पीछे मुख्य कारण एक ही है कि राज्य सरकारों को भी इनमें करीब 50 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदनी होती है। लेकिन सभी राज्य सरकारें इस योजना को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं है। बल्कि कई राज्य तो केंद्र सरकार से अनुदान लेकर सोलर पार्क बनाने के ज्यादा इच्छुक है। लेकिन केंद्रीय सरकार ने इसके लिए सख्ती से मना कर दिया है। ताकि केंद्र सरकार के पैसे के भरोसे ही सोलर पार्क की पूरी योजना ही ठप न हो जाए। लेकिन ये बात भी तय है कि इन योजनाओं के जरिए सभी तो नहीं लेकिन बड़ी मात्रा में राज्य सरकारें केंद्र सरकार का साथ देने लगा है।
ऐसा नहीं है कि सोलर पर सिर्फ भारत सरकार ही ध्यान दे रही है। बल्कि विश्व में तो कई ऐसे देश हैं जहां बिजली बनाने के पारंपरिक तरीकों को पूरी तरह से छोड़ने का मन बना लिया है। जर्मनी इसका बड़ा उदाहरण है। यूरोप का ये देश 2050 तक बिजली के लिए सिर्फ सोलर, विंड और बायोमास पर ही निर्भर होगा और बाकी तरीकों को ये देश बिलकुल ही तिलांजली दे देगा। कई देश जर्मनी के इस कदम को सही नहीं मानते। लेकिन पर्यावरण के मद्देनजर जर्मनी का ये कदम इस देश को विश्व की नजरों में बहुत ऊंचा उठा देता है। जहां तक भारत का सवाल है तो देश ने महतवकांक्षी और चुनौतीपूर्ण लक्ष्य हासिल करने के लिए ताल ठोक दी है। सरकार का 2022 तक एक लाख मेगावाट सोलर उत्पादन लक्ष्य देश को सौलर के मामले में देश को नए आयाम तक ले जाएगा। एक बात जरूर ध्यान में रखनी चाहए कि दुनिया का सबसे बड़ा सोलर बिजली संयंत्र अमेरिका का कैलिफोर्निया सबसे ऊपर है। अमेरिका ने टोपास परियोजना में करीब 90 लाख सौलर पैनल लगाए थे इस परियोजना से करीब एक लाख घरों को बिजली दी जा सकता है। यानि ये दुनिका की सबसे बड़ा सोलर पावर संयंत्र है। भारत में जो सबसे बड़ा संयंत्र है वो करीब 500 मेगावाट का है। लेकिन भारत अब इस तरह के संयंत्र बड़ी मात्रा में विकसित करने जा रहा है
आने वाले कुछ वर्षों में अगर भारत भी अपने लक्ष्य से आधे तक भी पहुंच जाएगा तो वह दिन दूर नहीं होगा जब कोयला और धुएं की जगह एक ऐसी रोशनी ले लेगी जिसमें हरियाली की जगमग हो । -दीपक उपाध्याय
सोलर प्लांट को छत पर लगाने का गणित़…
कुछ साल पहले तक आम आदमी को अपनी छत पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने के लिए पैसा भी ज्यादा लगता था और उससे बनाने वाली बिजली को वह बेच नहीं पाता था। ़इसके पीछे सबसे बड़ा कारण था कि सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने में सबसे महत्वपूर्ण फोटोवोल्टिक (पीवी) सेल की कीमत ज्यादा होती थी और वह सूरज की ज्यादा रोशनी भी नहीं खींच पाते थे। लेकिन अब तकनीक बेहतर हो गई है। पहले जहां सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने के बाद एक इकाई की कीमत करीब 14-15 रुपये प्रति यूनिट होती थी। वो अब घटकर 6-7 रुपये प्रति यूनिट हो गई है। आप जानते हैं कि सोलर सैल लगाने पर कितना खर्चा इन दिनों आता है। अगर किसी प्लांट लगाने वाली कंपनी से संपर्क करते हैं तो वो आपको एक किलोवाट के संयंत्र की कीमत 70,000 से लेकर 1,00,000 लाख रुपये तक बताएंगे। संयंत्र की कीमत इस बात निर्भर करती है कि आप किस गुणवत्ता का पीवी सेल इस्तेमाल करना चाहते हैं। अगर आप बेहतर गुणवत्ता वाला सेल लगवाएं तो ये ज्यादा लंबे समय तक आपका साथ निभाएगा और इससे ज्यादा यूनिट बिजली बनाई जा सकेंगी। सौर ऊर्जा संयंत्र के लिए जरूरी पीवी सेल यानि जो सेल बिजली बनाते हैं़.़उस एक सेल की औसतन कीमत 10000 से 12000 रुपये के बीच आती है ये पैनल करीब 250-300 वाट का होता है और इससे पूरे दिन में करीब 8 से 9 इकाई बनती हैं़.़.एक किलोवाट के लिए तीन से चार पीवी सेल लगाए जाते हैं, जिनके लिए करीब 10 वर्ग मीटर का स्थान चाहिए और उस जगह सूरज की रोशनी बिना रुकावट के आनी चाहिए ।
सौर ऊर्जा
हरियाणा के फरीदाबाद में पिछले साल गर्मियों में बिजली की आंख मिचौली ने यहां रहने वाले लोगों का जीना दूरभर कर दिया था, दिन में कई घंटे बिजली नदारद रहती थी और जब आती भी थी तो वोल्टेज कम ज्यादा होता रहता है। इस जिले की एक कालोनी ग्रीन फील्ड में दिल्ली से नए नए रहने आए सुखविंदर सिंह इससे बड़े परेशान थे। लगातार शिकायतों के बाद भी बिजली की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हो रहा था। बकौल सुखविंदर जब सुबह पानी आता था तो उस वक्त लाइट बहुत ही लो हो जाती थी, इस वजह से पानी भरने में भी बहुत दिक्कत होती थी और कई बार तो पानी चढ़ता ही नहीं था। फिर उन्होंने अखबार में 'सोलर पैनल' के जरिए अपनी बिजली बनाने के बारे में पढ़ा । बात सुखविंदर को जांच गई। सुखविंदर ने इस तकनीक और इससे जुड़े फायदे और नुकसान के बारे में फिर इंटरनेट पर खोजबीन की, जब सुखविंदर को ये लगा कि इसको छत पर लगाने से उनकी कई परेशानियों का हल हो सकता है तो उन्होंने सोलर पैनल लगाने वाली कंपनियों से संपर्क किया। जब मैं सोलर पैनल लगवाने के लिए काम कर रहा था तो मुझे चिंता थी कि कहीं जो इवेस्टमेंट मैं कर रहा हूं़.़कहीं वह डूब न जाए क्योंकि इसके बारे में बड़ी-बड़ी बातें अखबारों या टीवी में तो आ रही थी, लेकिन हकीकत में उन्होंने ये किसी की छत पर अभी तक नहीं देखा था। जब उन्होंने एक कंपनी को सोलर पैनल लगाने के लिए चुन लिया तो उनके सामने परेशानी थी कि क्या विदेशी फोटोवोल्टिक (पीवी) सेल लगाए या फिर देशी कंपनियों के पीवी सेल लगाए। सुखविंदर ने आखिर देश में ही बनने वाले पीवी सेल लगाने का फैसला लिया। हालांकि इससे उनका खर्चा करीब 10 हजार रुपये बढ़ गया। लेकिन अब दो साल बाद उन्हें अपने इस फैसले पर बड़ा संतोष है़.़.सुखविंदर के घर न सिर्फ सोलर पैनल के चलते 24 घंटे बिजली रहती है। बल्कि दिन में तो इन पैनल्स के चलते वो उनका बिजली का बिल भी करीब 25 से 30% तक कम हो गया है। सुखविंदर ने बताया कि इन पैनल के लगाने से जो बड़ा फायदा हुआ वो गर्मियों के दिनों में हुआ वो ये था कि इससे मेरे घर का तापमान भी कम हो गया। यानि पैनल लगाने से बिजली तो मिल ही रही है। बल्कि मेरे घर में एसी का इस्तेमाल भी कम हो गया है। पहले जून जुलाई में दोपहर को लगता था कि एसी भी काम कम कर रहा है और कई बात तो लगता था कि ये चल ही नहीं रहा है। लेकिन अब पीसी सेल के कारण उनकी छत पर सूरज की किरणें छत को गर्म नहीं कर पाती। बकौल सुखविंदर मैंने जो 1़20 लाख रुपये इन पैनल को लगाने में लगाई थी। उसकी पूरी कीमत वो अगले कुछ सालों में वसूल लेंगे। लेकिन जो मानसिक परेशानी बिजली और पानी को लेकर होती थी उससे सुखविंदर और उनके परिवार को छुटकारा मिल गया।
अनोखा मिट्टी
का फ्रिज
अक्सर समाज में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो रचनात्मक कार्य करने का प्रयास करते रहते हैं और सतत लगे रहने के चलते वह अपने कार्य में सफल होते हैं। उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रुस्तमपुर गंाव में एक किसान के बेटे हैं कमलेश कुमार। जिन्होंने हाल ही में मिट्टी के घड़े में फ्रिज और कूलर बनाया है। पूरी तरीके से यह सौर ऊर्जा से चलने वाला अनोखा कूलर व फ्रिज है। इसको बनाने में महज 800 रु. की लागत लगी है। इस आविष्कार की कुछ खूबियां हैं। इसमें छह वोल्ट का पंप है । साथ ही इसे पांच वाट के सोलर प्लेट से ऊर्जा मिलती है। पानी का संचार घड़े में लगातार होता रहे इसके लिए एक 'डीसी' पंप लगा हुआ है जो पानी का संचार करता रहता है। घड़े की क्षमता 10 लीटर की है। साथ ही पानी की सफाई के लिए एक फिल्टर प्लेट भी लगा हुआ है। मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे कमलेश ने इस आविष्कार के जरिए लोगों के सामने एक अनोखी चीज प्रस्तुत की है। कमलेश का मानना है कि इस प्रकार के उपकरणों के आने से बिजली की बहुत ही बचत होगी।
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