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यमुना की निरंतर बिगड़ती दशा, उसके सुधार के लिए सरकार की योजनाओं, पानी की बर्बादी रोेकने से सम्बधित सरकार द्वारा किए जाने वाले उपायों समेत कई मुद्दों पर पाञ्चजन्य संवाददाता आदित्य भारद्वाज ने जल संसाधन नदी विकास एवं गंगा सफाई मंत्री सुश्री उमा भारती से विशेष बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश :-
गंगा सफाई अभियान की बात सभी कर रहे हैं। क्या आपको लगता है यमुना का जिक्र हाशिए पर चला गया है ?
जब भी मैं गंगा की बात करती हूं उसकी सहयोगी नदी यमुना, ऐसा कहती हूं। गंगा सफाई अभियान के लिए जितने कोष की स्वीकृति मिली है उसमें से 1600 करोड़ रुपए हम ने यमुना के लिए सुरक्षित रखे हैं। इस विषय में मेरी दिल्ली सरकार के मंत्री कपिल मिश्रा के साथ भी बैठक हुई है। उनसे मैंने जल्द से जल्द यमुना के विषय में योजना बनाकर देने को कहा है और पूछा है कि वे 1600 करोड़ रुपए का कैसे उपयोग करेंगे। मैंने स्वयं यमुना की यात्रा की है और डाक पत्थर से जहां यमुना पर पहला बैराज बना है, और हथिनीकुंड मैं स्वयं देखने गई। मैंने स्वयं दिल्ली में यमुना की यात्रा की है, जो कि मथुरा-वृंदावन में यमुना का हिस्सा हैं। यह हमारी 'नमामि गंगे योजना' की 11 परियोजनाओं में से एक है। दिल्ली के लिए जो राशि दी गई है, वह उससे अलग है। इसके अलावा यमुना के प्राकृतिक बहाव के लिए जो प्रमुख समिति बनी है उसमें भी हमने अपने विचार रखे हैं कि यमुना का प्राकृतिक बहाव होना चाहिए।
ल्ल हाल ही में आपने प्रयाग में कहा कि गंगा के अविरल प्रवाह को बनाए रखने के लिए नई बांध परियोजनाओं को अनुमति नहीं दी जाएगी, जब तक कि न्यूनतम प्रवाह तय न हो जाए। यमुना के प्रवाह को अविरल बनाए रखने के लिए मथुरा से यात्रा भी निकल चुकी है, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता क्यों ?
ऐसा इसलिए नहीं हो पाता क्योंकि यमुना पर कोई नया बांध प्रस्तावित ही नहीं है। जो नए बांध प्रस्तावित हैं वे सभी गंगा, अलकनंदा, मंदाकिनी और भागीरथी पर हैं। यदि कोई बांध प्रस्तावित होता है तो उसका स्वरूप इस तरह से बनाया जाएगा कि यमुना का प्राकृतिक प्रवाह बना रहे। गंगा और यमुना ही नहीं भारत में यदि किसी भी नदी पर बांध बनेगा तो उसका स्वरूप ऐसा रहेगा कि नदी के मुख्य मार्ग में प्राकृतिक बहाव में कोई बाधा न आए। पुराने बांधों में जो स्वरूप तैयार किया गया है वह इस अविरल प्रवाह के अनुसार नहीं है। इसके लिए राज्यों को यह तय करना होगा कि यमुना से निकलने वाली जो नहरें हैं उनमें से कम पानी निकालें। एक ही रास्ता है कि पुराने बांधों से ज्यादा पानी छोड़ा जाए, इसके लिए राज्यों को तय करना पड़ेगा कि वे पानी का कम से कम इस्तेमाल करें। तीन राज्य दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश यमुना के ऊपर सबसे अधिक निर्भर हैं। इन तीनों राज्यों की बैठक बुलाकर मैंने कहा है कि हम एक रपट भेजने वाले हैं। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने आदेश पारित करके एक प्रधान समिति बनाई है। उसकी अध्यक्ष जल संसाधन विभाग की सचिव हैं। इस समिति में उन राज्यों के मुख्य सचिव भी शामिल हैं, जिन-जिन राज्यों में यमुना बहती है। उनको प्राकृतिक प्रवाह का एक मॉडल बनाकर देना था तो उन्होंने दे दिया। उसमें हमारा मंत्रालय भी शामिल है। हमने भी उसीके अनुसार मॉडल बनाकर दे दिया है कि इतना पानी यमुना में छूटना चाहिए। प्राकृतिक बहाव के लिए अब एनजीटी को आदेश देना है। एनजीटी जब इस बारे में अधिसूचना जारी करेगा तब पर्यावरण मंत्रालय इस बारे में अधिसूचना कर राज्यों को सूचित करेगा कि कितना पानी यमुना में छोड़ना है। एनजीटी का जो भी आदेश होगा वह राज्यों को मान्य होगा। इसके बाद यमुना में प्राकृतिक अविरल प्रवाह बना रह सकेगा।
क्या सरकार की ऐसी कोई योजना है जिससे भूजल संरक्षण को बढ़ावा मिले ?
इसके लिए तीन चीजें करनी पड़ेंगी। पहला यह कि किस चीज के लिए कहां से पानी निकालें नदियों को गंदा पानी फेंकने की एक नाली समझ लिया। धरती के गर्भ से पानी निकालकर उसे भी सुखा दिया। हमने तीनों को प्रदूषित कर दिया तालाबों को, नदियों को और भूजल को। इसके लिए कानून बने कि कितना साफ-सुथरा पानी हमें इस्तेमाल करना है। बाकी कार्यों के लिए या तो आप 'ट्रीटिड' पानी इस्तेमाल करें, या 'रेन वाटर हार्वेस्टिंग' करें। आप बारिश के पानी को रोकने के उपाय निकालें। माननीय प्रधानमंत्री ने कई बार कहा है कि कई ऐसी जगह हैं, जहां तीन तरफ पहाडि़यां हैं। केवल एक तरफ दीवार बनानी है और उससे सारा बरसात का पानी रोका जा सकता है। खेती के काम में भी इस पानी को इस्तेमाल किया जा सकेगा। तमिलनाडु में यह हो भी रहा है। हमें यह तय करना होगा कि नदी का पानी बहुत ही आवश्यक कार्यों में इस्तेमाल करें। उद्योगों को भी चाहिए कि वे साफ पानी की बजाय संशोधित किए हुए पानी का प्रयोग करें। ज् ौसे नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) दिल्ली बागवानी के लिए 'ट्रीटिड' पानी का इस्तेमाल कर रही है। हमने गंगा सफाई अभियान के तहत जो नई योजना बनाई उसमें यही चेष्टा की है कि गंगा में संशोधित पानी को फेंकने की बजाए उसका इस्तेमाल किसी अन्य कार्य के लिए किया जाए। हम इसी तरह की परियोजना तैयार कर रहे हैं।
मोदी जी द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान का बड़ा महत्व और बड़ा लक्ष्य है, जो नदियों की सफाई से भी जुड़ता है। गंगा सफाई को लेकर जो मुहिम शुरू की गई है क्या यमुना के लिए भी ऐसा कोई कार्ययोजना तैयार की गई है?
हमने इस पर कार्ययोजना तैयार की है कि हमें यमुना को भी वैसा ही देखना है जैसा कि गंगा को क्योंकि यमुना गंगा की मुख्य सहायक नदी है। इसलिए मैंने दिल्ली सरकार को कहा है कि वह जल्द से जल्द परियोजना बनाकर हमें दें। दिल्ली से थोड़ा पहले ही यमुना मैली होनी शुरू हो जाती है। वैसे भी हथिनीकुंड से छोड़ा गया पानी कम होता है। रास्ते में यमुना में अनेक नाले गिरते हैं। दिल्ली तो प्रमुख शहर है, जो यमुना को सबसे अधिक प्रदूषित करता है। यह पूरी गंदगी ही मथुरा-वृंदावन जाती है यमुना के नाम पर। एनजीटी जो आदेश जारी करेगा उसके आधार पर यमुना में पानी छूटेगा। प्रयाग में जो पानी जा रहा है वह पूरी चंबल नदी है वह भी यमुना का जल नहीं है। मुझे यकीन है एनजीटी को जो रपट हमने दी है। उसको देखते हुए फैसला आएगा जो राज्यों को मानना होगा।
सरकार चाहे किसी की भी रही हो, लेकिन जब दिल्ली को पानी देने की बात आती है तो हरियाणा की तरफ से जवाब आता है कि दिल्ली की जरूरत के हिसाब से उसे पानी दे दिया गया है। मुनक नहर भी अभी तक शुरू नहीं हो सकी है। आपको क्या लगता है कि भाजपा के शासनकाल में वर्षों से चला आ रहा यह मुद्दा सुलझ पाएगा?
दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सबसे अधिक यमुना के पानी का इस्तेमाल करते हैं। इन तीनों ही राज्यों को यह निर्णय करना पड़ेगा कि पानी के और स्रोत क्या हो सकते हैं। विशेषकर हरियाणा और उत्तर प्रदेश को यह देखना होगा कि कम पानी के इस्तेमाल से ज्यादा सिंचाई कैसे हो सकती है। इसके लिए नई तकनीकों को अपनाना होगा। हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकार को अपने किसानों को इन तकनीकों की जानकारी देनी होगी, ताकि हथिनीकुंड से ज्यादा पानी छोड़ा जा सके। जिस दिन हथिनीकुंड से अधिक पानी छोड़ दिया जाएगा उस दिन दिल्ली की भी समस्या सुलझ जाएगी। दिल्ली को भी यह तय करना होगा कि कितना पानी उसे यमुना से लेना है। गत 19 अप्रैल को हुई बैठक में सभी राज्यों ने इस मुद्दे पर सहमति भी जताई कि यमुना में न्यूनतम प्रवाह होना चाहिए। हमने तय किया है कि यह योजना हम यमुना और गंगा पर प्राथमिक तौर पर लागू कर देंगे। तीन मंत्रालय इसके सदस्य हैं- ग्रामीण विकास मंत्रालय, कृषि मंत्रालय और जल संसाधन मंत्रालय। जो भी अनुदान इस योजना के तहत मिला है उसका इस्तेमाल हम यमुना और गंगा से निकलने वाली नहरों पर करेंगे ताकि कम पानी से ज्यादा सिंचाई की जा सके और यमुना में प्रवाह अविरल हो सके।
यमुना एक्शन प्लान की शुरुआत वर्ष 1993 में हुई थी। आज लगभग 23 वर्ष हो चुके हैं, इस बीच कई सरकारें बदलीं। भाजपा भी शासन में रही, लेकिन यमुना को लेकर जो दावे किए गए थे उसके अनुसार कुछ नहीं हो पाया। आपको लगता कि भाजपा के इस शासनकाल में ऐसा हो पाएगा। भाजपा के एक वर्ष के शासनकाल में आपके विचार में कितना विकास हुआ?
प्रधानमंत्री की सोच संपूर्ण सोच है वे किसी भी चीज के बारे में आधा नहीं सोचते हैं। पुरानी योजनाओं की जो खामियां रहीं वह रहीं, उसमें लगभग हजारों करोड़ रुपए भी खर्च हुए। अब यमुना के लिए हमने 1600 करोड़ रुपए तय किए हैं। यदि हम समग्रता के साथ सोचेंगे तो समाधान होगा। जिसमें हमें हर चीज सोचनी होगी। नाले तो 'ट्रीट' कर दिए, लेकिन प्राकृतिक प्रवाह तय नहीं किया तो यमुना साफ नहीं होगी। पहले भी नदियों में गंदगी बहती थी, लेकिन नदियों का वेग इतना होता था कि पानी स्वत: साफ हो जाता था। हमें धैर्य रखना होगा, निश्चित ही यमुना का हल निकलेगा।
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