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इस्लाम की पहली पीढ़ी ने जो भी किया वह 'अल्लाह से जुड़ा' था, यह मानकर लकीर का फकीर बनकर उस समय की हर चीज को आईएस (इस्लामिक स्टेट) लागू कर रहा है। जब आईएस ने लोगों को गुलाम बनाना शुरू किया तो कुछ ने विरोध जताया, लेकिन उस गुट ने कोई अफसोस जताए बगैर लोगों को गुलाम बनाना और सूली पर चढ़ाना जारी रखा।
सतीश पेडणेकर
ईराक और सीरिया के एक हिस्से पर बना स्वतंत्र राष्ट्र आईएसआईएस या इस्लामिक स्टेट दुनिया में हैवानियत का पर्याय बन गया है। हर नया दिन उसकी नृशंसता की नई रौंगटे खड़े कर देने वाली कहानी लेकर आता है। तालिबान, अल कायदा, बोकोहराम, अल शहाब आदि इस्लामी आतंकी संगठनों की क्रूरता और जुल्म की मिसालें काफी नहीं थीं इसलिए इस्लामी दुनिया की चरम क्रूरता की नई मिसाल लेकर आया है आईएसआईएस या इस्लामिक राज्य। उसकी हैवानियतपूर्ण हरकतों की मुस्लिम जगत में ही तीखी आलोचना हो रही है।
कुछ अर्से पहले दुनिया के 126 मुस्लिम मजहबी नेताओं और बुद्धिजीवियों ने खलीफा बगदादी को खुली चिठ्ठी लिखकर इस्लामिक स्टेट की करतूतों की कड़ी निंदा की है। अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने भी कहा है कि इस्लामिक स्टेट गैर इस्लामी है। ओबामा इस आंदोलन को लेकर वही बात बोल रहे हैं जो राजनीतिक नजरिए से सुविधाजनक हो। इस संगठन की सोच और रणनीति को न समझ पाने के कारण ही तमाम पश्चिमी देश मिलकर भी इस संगठन का बाल बांका नहीं कर पाए और दुर्भाग्य से वह फलता-फूलता जा रहा है। लेकिन पिछले कुछ समय से पश्चिमी देशों मे उसका गंभीरता से अध्ययन हो रहा है। आखिरकार दुनियाभर के देशों से हजारों लड़ाकों को आकर्षित करने वाले आईएस संगठन में ऐसा क्या है कि उन्मादी सोच के हजारों लोग अपनी जान जोखिम में डालकर उसकी तरफ खिंचे चले जा रहे हैं?
यदि आप आईएसआईएस को समझना चाहते हैं तो सबसे पहले यह बात मन से निकाल दीजिए कि वह पागल या विक्षिप्त लोगों का समूह है। उसके पीछे मध्यकालीन मजहबी सोच काम कर रही है। यहां हम बता दें कि आईएस का नेता और खलीफा अल बगदादी केवल युद्धशास्त्र का नहीं मजहबी पोथों का भी जानकार है। वह बगदाद विश्वविद्यालय से मजहबी शास्त्र में पीएच.डी. है। आईएस के वीडियो, उसकी पत्रिका दबिक और अन्य प्रचार साहित्य को पढ़ने पर एक बात उभरकर आती है कि आईएस एक वहाबी या सलफी आंदोलन है जो 'शुद्ध इस्लाम' या इस्लाम के मूल स्वरूप पर विश्वास करता है। उसका मानना है कि इस्लाम की चौदह सौ साल पहले की पीढ़ी के मोहम्मद और उनके साथियों की सोच और तरीके ही 'शुद्ध इस्लाम' है। इसमें किसी तरह का संशोधन करने का मतलब है कि आप इस्लाम के मूल रूप की शुद्धता पर विश्वास नहीं करते। यह कुफ्र है और कुफ्र की इस्लाम में एक ही सजा है-मौत। आईएस का मानना है कि बाद की पीढि़यों में 'शुद्ध इस्लाम' में बाहरी प्रभावों की मिलावट हो गई है। अपने इस नजरिये के कारण आईएस लोकतंत्र, समाजवाद, फासीवाद आदि आधुनिक विचारधाराओं को नकारता है। उसका मानना है कि इस्लाम की पहली पीढ़ी ने जो व्यवस्थाएं तैयार कीं वे 'पैगम्बर की बनाई' व्यवस्थाएं हैं जबकि अन्य व्यवस्थाएं मानव निर्मित हैं। वह इन मानव निर्मित व्यवस्थाओं को पूरी तरह से नकारता है। यही वजह है कि वह उन इस्लामवादी दलों को भी गुनाहगार मानता है जो चुनाव में हिस्सा लेते हैं। वह केवल 'अल्लाह की व्यवस्था' यानी 'शुद्ध मोहम्मदी इस्लाम' में विश्वास करता है, जिसके दो स्तंभ हैं-खिलाफत और अल्लाह का कानून शरिया, जिसे वह ठीक उस तरह लागू करना चाहता है जैसे मोहम्मद और उनके साथियों ने अपने समय में लागू किया था। वैसे आईएस इस धारणा को खत्म करना चाहता है कि इस्लाम 'शांति का मजहब' है। उसका कहना है कि इस्लाम से शांति आएगी मगर इस दुनिया के दारुल इस्लाम बन जाने के बाद, जब बाकी सारे पंथों को खत्म किया जा चुका होगा।
कुछ अर्से पहले जानी-मानी पत्रिका 'अटलांटिक' में अमरीकी प्रोफेसर ग्राहम वुड का इस्लामिक स्टेट पर लिखा लेख बौद्धिक हल्कों में बहुत चर्चा में है। इसमें वे कहते हैं, 'मध्यपूर्व और यूरोप के बहुत से मनोविक्षिप्त और दुस्साहसी लोग आईएस में शामिल हो गए हैं, लेकिन इसके ज्यादातर अनुयायी इस्लाम के गहन अध्ययन पर आधारित किताबों को मानते हैं। इस्लामिक स्टेट द्वारा किए गए हर फैसले और कानून में वह पैगंबर के तौर-तरीकों को अपनाता है यानी 'मोहम्मद की भविष्यवाणियों और उदाहरणों का पूरी तरह से पालन' करता है। मसलन, आईएस की ऑनलाइन पत्रिका का नाम है दबिक। दबिक वह जगह है जिसके बारे में मोहम्मद ने भविष्यवाणी की थी कि इस्लाम की सेनाओं का रोम की सेनाओं से आखिरी युद्ध वहीं होगा।'
ग्राहम वुड कहते हैं कि असल में अगर हम इस्लामिक स्टेट जैसी प्रवृत्ति से लड़ना चाहते हैं तो इसके बौद्धिक विकास को समझना होगा। इस्लाम में तकफीर यानी बहिष्कार की अवधारणा है, जिसके तहत एक मुसलमान दूसरे मुसलमान को मजहब-द्रोही कहकर गैर मुसलमान करार दे सकता है। हर वह मुसलमान मजहब-द्रोही भी है जो इस्लाम में संशोधन करता है। कुरान या मोहम्मद के कथनों को नकारना पूरी तरह से मजहब-द्रोह माना जाता है, लेकिन इस्लामिक स्टेट ने कई और मुद्दों पर भी मुसलमानों को इस्लाम से बाहर निकालना शुरू कर दिया है। इसमें शराब, मादक पदार्थ बेचना, पश्चिमी कपड़े पहनना, दाढ़ी बनाना, चुनाव में वोट देना और मुस्लिमों को मजहब-द्रोही कहने में आलस बरतना आदि शामिल हैं। इस आधार पर शिया और ज्यादातर अरब मजहब-द्रोह के निकष पर खरे उतरते हैं। क्योंकि शिया होने का मतलब है इस्लाम में संशोधन करना और आईएस के अनुसार कुरान में कुछ नया जोड़ने का मतलब है उसकी पूर्णता को नकारना। शियाओं में जो इमामों की कब्रों को पूजने और अपने को कोड़े मारने की परंपरा है उसकी कुरान या मोहम्मद के व्यवहार में कोई मिसाल नहीं मिलती। इसलिए मजहब-द्रोही होने के कारण करोड़ों शियाओं की हत्या की जा सकती है। (यही बात सूफियों पर भी लागू होती है) इसी तरह राज्यों के प्रमुख भी मजहब-द्रोही हैं, जिन्होंने पाक माने जाने वाले इस्लामी कानून शरिया के बाद मनुष्य निर्मित कानून बनाया और उसे लागू किया। इस तरह इस्लामिक स्टेट या आईएस इस विश्व को 'शुद्ध' करने के लिए बड़े पैमाने पर लोगों की हत्या करने को प्रतिबद्ध है। उसके नजरिए से जो भी मूल इस्लाम में संशोधन करता है वह मजहब-द्रोही है इसलिए हत्या ही उसका एकमात्र दंड है। इस्लामिक स्टेट एक-दो हत्याएं लगातार और सामूहिक हत्याकांड कुछ कुछ हफ्तों में करता रहता है। ज्यादातर कथित मुस्लिम मजहब-द्रोही ही उनके शिकार बनते हैं।
सभी मुसलमान मानते हैं कि मोहम्मद के शुरुआती विजय अभियान कोई बहुत सुव्यवस्थित नहीं थे, कुरान में जो युद्ध के नियम बताए गए और पैगंबर के राज का जो वर्णन है वह उथल-पुथल भरे और हिंसक समय के अनुकूल है। लेकिन इस्लामिक स्टेट के लड़ाके इन युद्धों के नियमों का पूरी ईमानदारी से पालन कर रहे हैं। इनमें से बहुत सी बातें ऐसी हैं जिनके बारे में आधुनिक मुसलमान मानते हैं कि वे उनके मजहब का अपरिहार्य अंग नहीं हैं। गुलाम बनाना, सूली चढ़ाना, सर कलम करना, यौन-गुलाम आदि मध्ययुगीन बाते हैं जिन्हें आईएस के लड़ाके थोक के भाव में आज के जमाने में ले आए हैं। कुरान में साफ तौर पर इस्लाम के शत्रुओं को सूली पर चढ़ाना एकमात्र दंड बताया गया है। ईसाइयों के लिए जजिया और इस्लाम के वर्चस्व को स्वीकार करने का प्रावधान किया गया है। ये नियम पैगंबर ने लागू किए हैं। आईएस के नेताओं, जो पैगंबर का अनुसरण करना अपना कर्त्तव्य मानते हैं, ने उन दंडों को फिर लागू किया जिनकी कोई परवाह नहीं कर रहा था। हाईकेल कहते हैं कि इस्लामिक स्टेट के समर्थकों ने इस्लाम के मजहबी ग्रंथों के शाब्दिक अर्थ को ही ग्रहण नहीं किया वरन् उन्हें बहुत गंभीरता से पढ़ा। आम मुसलमान में आमतौर पर ऐसी गंभीरता नहीं होती।
इस्लाम की पहली पीढ़ी ने जो भी किया वह 'अल्लाह से जुड़ा' था, यह मानकर लकीर का फकीर बनकर उस समय की हर चीज को आईएस लागू कर रहा है। जब इस्लामिक स्टेट ने लोगों को गुलाम बनाना शुरू किया तो कुछ ने विरोध जताया, लेकिन इस्लामिक स्टेट ने कोई अफसोस जताए बगैर लोगों को गुलाम बनाना और सूली पर चढ़ाना जारी रखा। इस्लामिक स्टेट के प्रवक्ता अदनानी ने कहा-'हम तुम्हारे रोम को जीतेंगे, तुम्हारे सलीब तोड़ेंगे, तुम्हारी महिलाओं को गुलाम बनाएंगे। अगर हम नहीं कर सके तो हमारे बेटे-पोते ये करके दिखाएंगे। वे तुम्हारे बेटों को गुलाम बनाकर बाजार में बेचेंगे।' इस्लामिक स्टेट की ऑनलाइन पत्रिका-दबिक-में तो गुलामी की पुनस्स्थापना पर एक पूरा लेख लिखा है। इस लेख में लिखा गया-'यजीदी महिलाओं और बच्चों को शरिया के मुताबिक सिंजर संघर्ष में भाग लेने वाले लड़ाकों के बीच बांट दिया गया है। काफिरों के परिवारों को गुलाम बनाकर उनकी महिलाओं को जबरन अपने पास रखना शरिया का स्थापित हिस्सा है। अगर कोई कुरान की इन आयतों और मोहम्मद की बातों को नकारेगा या उनका मजाक उड़ाएगा तो वह इस्लाम का द्रोही होगा।' बाकी इस्लामी संगठनों और इस्लामी स्टेट संगठन में एक बहुत बड़ा फर्क यह है कि उसने ब्रिटेन से भी ज्यादा क्षेत्रफल वाला स्वतंत्र देश स्थापित किया है। खिलाफत की स्थापना के लिए यह जरूरी है। इस कारण दुनियाभर के खिलाफत की स्थापना चाहने वालों ने बगदादी द्वारा अपने को खलीफा घोषित करने पर जश्न मनाया। पिछली खिलाफत 'ऑटोमन' साम्राज्य थी जो 16वीं शताब्दी में अपनी कीर्ति के शिखर पर पहुंची। 1924 में तुर्की के तानाशाह कमाल अतातुर्क ने उसे खत्म कर दिया। लेकिन इस्लामी स्टेट के समर्थक उसे वैध खिलाफत नहीं मानते, क्योंकि उसने पूरी तरह से शरिया कानून लागू नहीं किया था, गुलाम बनाना, पत्थर मारकर हत्या करना और शरीर के अंग काटना उसके जरूरी हिस्से हैं।
बगदादी ने मोसुल में दिए अपने भाषण में 'खिलाफत के महत्व' पर प्रकाश डाला था। उसने कहा था कि इस संस्था ने पिछले एक हजार साल से कोई काम नहीं किया। खलीफा का एक दायित्व शरिया को लागू करना है। इस्लामी स्टेट के कुछ समर्थक मानते हैं कि शरिया को आधे-अधूरे तरीके से लागू किया गया। जैसे, सऊदी अरब में सर कलम कर दिया जाता है और चोर के हाथ काट दिए जाते हैं। इस तरह से 'पीनल कोड' लागू किया जाता है लेकिन शरिया के सामाजिक-आर्थिक न्याय को लागू नहीं किया जाता। शरिया एक पूरा पैकेज है। उसे पूरा लागू न करने से उसके प्रति नफरत फैलती है। खलीफा का दूसरा काम है हमलावर जिहाद शुरू करना। इसका मतलब है कि गैर मुसलमानों द्वारा शासित देशों में जिहाद फैलाना, खिलाफत का विस्तार करना खलीफा का कर्तव्य है।
इस तरह इस्लामी स्टेट के समर्थक लोगों को इस्लाम की चौदह सौ साल पुरानी दुनिया में ले जाना चाहते हैं जहां 'अल्लाह का कानून' शरिया पूरी तरह से लागू होगा। इस सपने की भी दुनिया के अनेक मुसलमानों में पूछ है। इस्लामी स्टेट के एक समर्थक का बयान अखबार में छपा था कि मजहबी कानून यानी शरिया में जीने का अपना आनंद है। इसी आनंद का स्वाद लेने दुनिया के कई देशों के हजारों मुसलमान वहां पहुंच रहे हैं। यह बात अलग है कि बाकी लोग इस्लामी स्टेट की करतूतों को हैवानियत मानते हैं।
अब आईएसआईएस के निशाने पर ऐतिहासिक धरोहरें भी आ गई हैं। कुछ दिनों पहले आईएसआईएस के आतंकियों ने इराक के मोसुल में 3 हजार साल पुराने ऐतिहासिक शहर निमरुद को तबाह कर दिया। और इसी के साथ मिट्टी में मिल गई सदियों पुरानी सभ्यता की दास्तान। वह लंबे समय तक असीरियन साम्राज्य की राजधानी भी रहा था। लेकिन इस्लामिक स्टेट के आतंकियों को इतिहास की ये निशानी भी रास नहीं आई। उन्होंने इतिहास के सुनहरे पन्ने को हमेशा-हमेशा के लिए मिटा दिया।
पूरी दुनिया ने कड़े शब्दों में आईएसआईएस की इस कार्रवाई की निंदा की है। लेकिन इन ऐतिहासिक धरोहरों को तबाह करने के पीछे आईएसआईएस के अपने मजहबी तर्क हैं। उसका कहना है कि ये प्राचीन मकबरे और मूर्तियां झूठी हैं और इन्हें तबाह किया जाना चाहिए। इसके पीछे आईएस की दलील यह है कि अपने को एकमात्र सच्चा मजहब मानने वाले इस्लाम ने मनुष्यों और स्थल-काल को इस्लाम को आधार पर विभाजित किया हुआ है। मनुष्यों को उसने मोमिन और काफिरों के बीच बांटा हुआ है।
इस धरती को दारुल हर्ब और दारुल इस्लाम के बीच और मनुष्य के इतिहास को जाहिलिया और इस्लामी युग में बांटा है। इस्लाम के इस विभाजन के अनुसार इस्लाम, इस्लाम-पूर्व के युगों को जाहिलिया या अज्ञान और अंधकार का युग मानता है। यही वजह है कि दुनिया के तमाम देशों के मुसलमान अपनी प्राचीन और इस्लाम पूर्व की सभ्यताओं से जुड़ना पसंद नहीं करते, क्योंकि इस्लाम की नजर में ये सभयताएं और संस्कृतियां जाहिलिया या अज्ञानमूलक हैं।
इस आधार पर आईएस इस्लाम पूर्व की सभ्यताओं को जाहिलिया और अज्ञानमूलक सभ्यताएं बताकर उनकी धरोहरों को खत्म कर रहा है। उसकी हर एक हैवानियत के पीछ उसका केवल पागलपन नहीं है, उसके पीछे है इस्लामी मजहबी किताबों की उनकी अपनी व्याख्या।
आईएसआईएस का बढ़ता प्रभाव पूरे विश्व के लिए खतरे का संकेत है। इसका दायरा दिन-प्रतिदिन तेजी से फैलता जा रहा है। आईएसआईएस के सदस्य निर्ममता से निदार्ेष लोगों की जानें ले रहे हैं। समय रहते यदि इस विषय पर गंभीरता से ठोस कदम नहीं उठाए गए तो न जाने कितने लोग इनके हाथों मारे जाएंगे। अनेक देशों में मुसलमान युवक अपनी पढ़ाई-नौकरी छोड़कर उनके जिहाद का हिस्सा बन रहे हैं।
दरअसल जितने भी आतंकी संगठन हैं, वे बेशक अलग-अलग नाम से सक्रिय हैं, लेकिन उनका मकसद सिर्फ और सिर्फ मानवता का गला घोंटना ही है। आईएसआईएस के स्वयंभू खलीफा ने अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए नए-नए हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए हैं। आईएसआईएस ने अपनी 'नंबरप्लेट' और सिक्के जारी किए हैं। एक अनुमान के तौर पर आईएसआईएस में 300 से लेकर 1000 भारतीय मुसलमान युवक शामिल हो चुके हैं। खासकर जो भारतीय खाड़ी देशों में नौकरी करते हैं, वे भी इसमें शामिल हैं। 'अंसार उत तौहीद फी-बिलाद अल-हिन्द (एयूटी) की वेबसाइट को 270000 भारतीय मुसलमान रोजाना देखते हैं। यदि इसके मात्र 10 फीसद युवक भी आईएसआईएस में शामिल हो गए तो काफी बड़ी संख्या में भारतीय इसका हिस्सा बन जाएंगे। पाकिस्तान में आतंकवादी हाफिज सईद पहले ही आईएसआईएस के साथ खड़ा होने की बात कर चुका है। वर्तमान में खलीफा का दायरा ब्रिटेन के भू-भाग से भी विस्तृत हो चुका है।
आईएसआईएस के लड़ाके लोगों के साथ मध्यकालीन युग में गुलामों को दी जाने वाली प्रताड़ना से भी कई गुना ज्यादा बेरहम बर्ताव करते हैं। निर्दयता से लोगों की गर्दन काट दी जाती है। खलीफा अल बगदादी आईएसआईएस में अबु बकर नाजी के सिद्धांतों पर चलकर भयंकर बर्बरता फैला रहा है। नाजी के बर्बर सिद्धांतों को 2004 में विलियम मैक कैन्ट्स ने अनुवादित किया था, जो 2006 में वेस्ट प्वाइंट कोमबैटिंग टेरर सेंटर से जुड़ा था। आईएसआईएस के लड़ाके हिंसा और दमन अपना दायरा बढ़ाना चाहते हैं।
(लेखक इस्लाम से जुड़े विषयों के विशेषज्ञ और अरुणाचल प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक हैं)
यजीदी महिलाओं और बच्चों को शरिया के मुताबिक सिंजर संघर्ष में भाग लेने वाले लड़ाकों के बीच बांट दिया गया है। काफिरों के परिवारों को गुलाम बनाकर उनकी महिलाओं को जबरन अपने पास रखना शरिया का स्थापित हिस्सा है। अगर कोई कुरान की इन आयतों और मोहम्मद की बातों को नकारेगा या उनका मजाक उड़ाएगा तो वह इस्लाम का द्रोही होगा।
इस्लामिक स्टेट की ऑनलाइन पत्रिका दबिक में प्रकाशित अंश
यजीदी महिलाओं और बच्चों को शरिया के मुताबिक सिंजर संघर्ष में भाग लेने वाले लड़ाकों के बीच बांट दिया गया है। काफिरों के परिवारों को गुलाम बनाकर उनकी महिलाओं को जबरन अपने पास रखना शरिया का स्थापित हिस्सा है। अगर कोई कुरान की इन आयतों और मोहम्मद की बातों को नकारेगा या उनका मजाक उड़ाएगा तो वह इस्लाम का द्रोही होगा।
इस्लामिक स्टेट की ऑनलाइन पत्रिका दबिक में प्रकाशित अंश
अमरीका की एजेंसी 'नेशनल काउंटर टेरेरिज्म' के अनुसार, आईएसआईएस के आतंकियों द्वारा कब्जाया गया कुल क्षेत्रफल 81,000 वर्ग मील है।
इस्लामी स्टेट जून 2014 में निर्मित एक अमान्य राज्य तथा इराक एवं सीरिया में सक्रिय जिहादी सुन्नी समूह है।
आईएसआईएस का नियंत्रण सीरिया के पूर्वी अलेप्पो प्रांत में अल-बाब से लेकर 670 किमी. दूर इराक के सलाउद्दीन प्रांत में सुलेमान बेक तक के इलाके पर हो चुका है।
यह दुनिया का सबसे पैसे वाला आतंकी संगठन है जिसका बजट 2 अरब डॉलर है। इसके सक्रिय सदस्यों की संख्या करीब 10,000 है।
इस्लामिक स्टेट द्वारा कब्जाई गई जमीन में बहुत से तेल कुएं आते हैं, वॉल स्ट्रीट जनरल के अनुसार इन कुओं से प्रतिदिन लगभग तीस से सत्तर हजार बैरल तेल निकाला जाता है।
आईएस के स्वयंभू खलीफा अल बगदादी का जन्म इराक के समरा नगर में वर्ष 1971 में हुआ था। उसके कई नाम हैं जैसे अल बदरी, सामरोई, अबू दुआ, डाक्टर इब्राहिम और अल कर्रार।
आईएसआईएस एक अनुमान के अनुसार तेल उत्पादन, अपहरण,बैंक डकैती और दूसरे संस्थानों की लूट से प्रतिदिन लगभग एक लाख डॉलर से ज्यादा की उगाही कर रहा है।
'सीरियन सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स' के मुताबिक आईएस आईएस प्रत्येक लड़ाके को उसके निकाह के बाद 1200 डॉलर के अलावा एक बेहतरीन अपार्टमेंट मिलता है।
पिछली खिलाफत 'ऑटोमन' साम्राज्य थी जो 16वीं शताब्दी में अपनी कीर्ति के शिखर पर पहुंची। 1924 में तुर्की के तानाशाह कमाल अतातुर्क ने उसे खत्म कर दिया। लेकिन इस्लामी स्टेट के समर्थक उसे वैध खिलाफत नहीं मानते, क्योंकि उसने पूरी तरह से शरिया कानून लागू नहीं किया था। गुलाम बनाना, पत्थर मारकर हत्या करना और शरीर के अंग काटना उसके जरूरी हिस्से हैं।
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