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शिव-त्रयी से विश्व में ख्यात लेखक अमीष त्रिपाठी अब भगवान राम पर आधारित पुस्तकों की शृंखला लाने वाले हैं। रामनवमी के संदर्भ में अजय विद्युत के साथ एक लम्बे भाव-विनिमय में उन्होंने बताया कि भगवान राम ने भ्रष्ट, अराजक और पतित समाज में भी धर्म, आचरण, शील और मर्यादाओं की पुनर्स्थापना का काम किया। भले भारी कीमत चुकानी पड़ी हो पर उन्होंने देश और समाज को सबल व उन्नत बनाने के लिए हर नियम का पालन किया। आज व्यक्ति, परिवार, समाज, देश और पूरी दुनिया के सामने जो खतरे हैं, उनको हम तभी टाल सकते हैं, जब एक बार फिर से मर्यादाओं और नियमों की पुनर्स्थापना हो। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश:
आज एक तरफ हमारे चरित्र, संबंधों, व्यवहार से लेकर समाज और राजनीति तक सभी जगह मर्यादाएं तार-तार हो रही हैं… और दूसरी तरफ हम रामनवमी भी मनाते हैं। क्या कहेंगे?
हमारी अधिकतर समस्याएं असंतुलन से उत्पन्न हुई हैं। ऐसे में हमारे सनातन धर्म की यह देन है कि वह हमें अपने व्यक्तिगत जीवन और सामाजिक आचरण में संतुलन लाने का मार्ग सुझाता है। किसी भी चीज की अति ठीक नहीं होती। हमें स्वतंत्रता है अपना जीवन अपनी मर्जी से जीने की। लेकिन यह स्वतंत्रता अराजकता लाने वाली नहीं हो सकती जिसमें किसी नियम की, कानून की कोई कद्र ही न हो। हमारे भारत में भी आज कई लोग पश्चिम की संस्कृति को ज्यादा सुविधाजनक मानते हैं और खुद भी वैसा ही बनने का प्रयास करते नजर आते हैं। मैं खुद भी पश्चिम विरोधी कतई नहीं हूं और ऐसी कई अच्छी बातें हैं जो हम उनसे सीख सकते हैं। लेकिन मैं यह भी मानता हूं कि ऐसा बहुत कुछ है जो हम अपने भगवानों और पूर्वजों से सीख सकते हैं। जैसे उदाहरण के तौर पर, हम भगवान राम से यह सीख सकते हैं कि कैसे सहजता के साथ नियमों-कानूनों का पालन किया जाए, जिससे हमारे समाज और देश का उत्थान हो।
युवाओं के जीवन में आगे बढ़ने में राम की क्या भूमिका हो सकती है?
भगवान राम हमें प्रगति का मूल्य और उसे प्राप्त करने का सही रास्ता दिखाते हैं। भगवान राम की कथा कई प्रकार से कही गई है। इनमें सबसे ज्यादा लोकप्रिय संत तुलसीदास की रामचरितमानस है। लेकिन और भी रामायण हैं जैसे अद्भूत रामायण, जिसमें अंत में सीता माता को एक योद्धा के रूप में दिखाया गया है। और फिर तमिल की कम्ब रामायण है जिसमें राम नायक तो हैं, लेकिन रावण को उतना बुरा राक्षस नहीं दिखाया गया है। 'उत्तररामचरित' में भगवान राम और मां सीता अंत में फिर से मिल जाते हैं और खुशहाल जीवन बिताते हैं। इसके अलावा वाल्मीकि रामायण है जिसे मूल रामायण माना जाता है। लेकिन इन सभी में भगवान राम को हम सदैव नियम-कानून का पालन करने वाला पाते हैं, भले इसके लिए उनको भारी कीमत ही क्यों न चुकानी पड़ी हो। यह हम सभी के लिए भगवान राम की बहुमूल्य सीख है। हमें सदैव देश के कानून का पालन करना ही चाहिए।
जो जमाना राम का था, वह युग अब नहीं रहा। फिर ऐसी क्या बात है जो उन्हें आज भी इतना प्रासंगिक और जरूरी बनाती है?
मेरे दादा बनारस में पंडित थे और कहते थे कि प्राचीन हिन्दू मान्यताओं के अनुसार एक भक्त को सभी भगवानों की पूजा करनी चाहिए क्योंकि वे सृष्टि की उसी एक चेतना को अलग-अलग रूपों में व्यक्त करते हैं। अब जैसे ऋग्वेद में कहा गया है कि 'एकम् सद् विप्र: बहुधा वदन्ति।' ऐसे में आप शिवभक्त (शैव) हो सकते हैं और भगवान विष्णु की भी पूजा करते हैं। या फिर आप विष्णुभक्त (वैष्णव) हो सकते हैं और शिव व उनके परिवार की भी पूजा करते हैं। दरअसल हमारे सभी देवता पूरे ब्रह्मांड को संचालित करने वाली अनन्त ऊर्जा के भिन्न-भिन्न स्वरूपों की अभिव्यक्ति हैं, इसलिए हम उनसे अपने को सुधारने और फिर अपने ही भीतर ईश्वर को खोजने का रास्ता तलाशने का मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं। भगवान राम ऐसा करने में हमारी बहुत मदद करते हैं। इसीलिए हम पूरे निश्चय के साथ कह सकते हैं- जब तक सूरज चांद रहेगा, भगवान श्रीराम का नाम रहेगा। हालांकि वास्तविकता तो यह है कि सूरज और चांद के बाद भी उनका नाम रहेगा।
इसीलिए मैं तो गर्व से कहता हूं- जय श्रीराम।
कुछ लोग भगवान राम का विरोध भी करते हैं। कोई उन्हें स्त्री-विरोधी बताता है, तो कोई अपने परिवार के प्रति अत्याचारी। क्या आपको भी कभी ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा?
बात थोड़ी लम्बी हो जाएगी। एक बार मैं वाकई थोड़ा दु:खी हो गया था। एक कार्यक्रम में हिन्दुत्व के दर्शन की व्याख्या के दौरान मैंने भगवान राम का उल्लेख किया था। कार्यक्रम के बाद एक महिला ने, काफी कड़ी टिप्पणी की। जहां तक मैं जानता हूं, वह कोई 'अतिवादी धर्मनिरपेक्ष' नहीं थी। ये वे लोग होते हैं जो धर्म से दूरी बनाकर रहते हैं, खासकर अपने धर्म से। वह धार्मिक और स्वतंत्र विचारों की महिला है। उसका कहना था कि मैं राम के प्रति भगवान जैसे आदर सूचक शब्द का प्रयोग क्यों करता हूं। मैंने कहा कि मैं उनका सम्मान करता हूं, उनकी पूजा करता हूं, इसलिए मैं उनको भगवान ही कहूंगा। उसने कहा कि वह मुझे खुले विचारों वाले व्यक्ति के रूप में देखती है जो अपने परिवार की महिलाओं का सम्मान करता है। ऐसे में मैं भगवान राम का सम्मान कैसे कर सकता हूं जिन्होंने अपनी पत्नी के साथ इतना बुरा बर्ताव किया। उसके बाद उसने भगवान के बारे में कुछ कड़ी टिप्पणियां कीं, जिनसे मैं बहुत क्षुब्ध हुआ।
दु:ख की बात है कि खुले विचारों के नाम पर भगवान राम की आलेचना करने का फैशन सा बन गया है। हिन्दू धर्म में मन में आई शंकाएं या प्रश्न पूछने को हमेशा प्रोत्साहित किया गया है। भगवान श्रीकृष्ण स्वयं भगवद्गीता में इसे बहुत स्पष्टता से कहते हैं। हमें सभी दर्शनों और यहां तक कि ईश्वर के बारे में भी, अपना मत व्यक्त करने को कहा गया है। लेकिन साथ ही यह भी कहा गया है कि हम अपना मन बनाने से पहले उस विषय में सभी पक्षों का गहन मनन और परीक्षण करें। लेकिन जब हम भगवान राम के संबंध में अपना मत व्यक्त करते हैं तो संभवत: हम ऐसा नहीं करते।
चूक कहां हुई है?
आम तौर पर भगवान राम का उल्लेख 'आइडियल मैन' (आदर्श पुरुष) के रूप में किया जाता है, जो संभवत: संस्कृत की उक्ति 'मर्यादा पुरुषोत्तम' का अंग्रेजी अनुवाद है। लेकिन संस्कृत की सामान्य समझ रखने वाला भी आपसे कहेगा कि यह अनुवाद अपूर्ण है। अंग्रेजी के 'आइडियल मैन' का समानार्थी शब्द 'पुरुषोत्तम' है। लेकिन आपने 'मर्यादा' को तो छोड़ ही दिया। मर्यादा का अर्थ हुआ नियमों और प्रचलित परंपराओं, रीति-रिवाजों का सम्मान। तो अगर आप पुरुषोत्तम के साथ मर्यादा को जोड़ दें, तो अंग्रेजी में सही अनुवाद क्या होगा? वह 'आदर्श पुरुष' नहीं बल्कि 'नियमों का आदर्श अनुयायी' (आइडियल फॉलोअर ऑफ रूल्स) होगा।
अब जरा हिन्दू धर्मग्रंथों में रामायण और महाभारत की भूमिका पर तनिक विचार करें। ये दोनों महाकाव्य वेदों और उपनिषदों की तरह श्रुति पर आधारित नहीं हैं। रामायण और महाभारत हमारा इतिहास हैं जो कहानियों में हमें बताते हैं कि उस काल क्या कुछ हुआ था। हम उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं। वहां भगवान राम आदिरूप में नियमों के आदर्श अनुयायी के रूप में हैं।
भगवान राम का यह स्वरूप हमारे लिए क्या प्रेरणा लेकर आता है?
वे नियमों के आदर्श अनुयायी क्यों बने, ताकि संपूर्ण जगत बेहतर बने। उन्होंने ऐसी स्थितियां बनाईं जहां लोग खुशहाल और संपन्न रहें, जीवन में कोई बड़ा मकसद हो। इसीलिए तो उसे 'रामराज्य' कहा गया।
लेकिन उनके परिजनों को जो दु:ख झेलना पड़ा?
हां, सबका जीवन सुखी बनाने की मशक्कत में ऐसे लोगों का परिवार अच्छा जीवन नहीं बिता पाता। बल्कि उनका अपना जीवन भी दु:खों से भरा रहता है। भगवान राम द्वारा त्याग दिए जाने के बाद माता सीता का जीवन कितने दु:खों से भरा रहा वह हम सब जानते हैं। मैं उनके दु:खों की अनदेखी नहीं कर सकता। निश्चय ही, उनके प्रति श्रीराम का व्यवहार अनुचित था। वह अपने बच्चों के प्रति भी उचित नहीं लगते, जिनका बालपन पिता के बिना बीता। लेकिन हममें से कितने जानते हैं कि भगवान राम ने भी कुछ कम दु:ख नहीं झेला। उन्होंने फिर पुनर्विवाह नहीं किया। उन्होंने जलसमाधि लेकर जीवनलीला समाप्त की। कहा तो यहां तक गया है कि शरीर त्याग के पूर्व अंतिम क्षणों में सरयू नदी में प्रवेश के समय वे सीता के नाम का जाप कर रहे थे। इतिहास से लेकर अभी थोड़ा पीछे तक देखें तो बुद्ध और गांधी का पारिवारिक जीवन भी ऐसा ही रहा है।
लेकिन जब हम गहरी समझ के साथ समग्रता से देखते हैं तो बुद्ध और महात्मा गांधी से भी प्रेम ही कर सकते हैं, श्रद्धा ही कर सकते हैं। कारण यह कि उन्होंने अपने स्वयं के जीवन का बलिदान इसलिए किया ताकि हम बेहतर जीवन जी सकें। हो सकता है कि अगर हम उनके परिवार में होते तो हमें उनसे शिकायत की कई वजहें होतीं।
आप बताइए, आप भगवान राम के बारे में क्या सोचते हैं। मैं तो अपने मत में बिल्कुल स्पष्ट हूं, मेरे लिए वे भगवान राम हैं। और इसीलिए मैं एक बार फिर गर्व से कहता हूं- जय श्रीराम।
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