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.प्रो. राजेन्द्र सिंह
देश के अन्य महापुरुषों के समान डॉ. हेडगेवार जी बड़े विनोदी स्वभाव के थे। देश की गम्भीर समस्याओं का चिन्तन करते समय यदि सदैव ही चिन्ताग्रस्त मुखमण्डल बना रहता तो हजारों तरुणों और किशोरों को वे आकर्षित नहीं कर पाते। डॉक्टर जी के इस उन्मुक्त और निश्छल हास्य-विनोद के कुछ प्रसंग यहां प्रस्तुत हैं जो उन्हें समझने में सहायक होंगे –
1. अपने विदर्भ के एक संघचालक की बड़ी-बड़ी मूंछें थीं। ऐसी मूंछें स्वाभाविक ही नीचे की ओर आती रहती हैं और उनके कानों को मरोड़ देकर ऊपर रखना पड़ता है। प्रायश: ऐसी मूंछ वालों को उनको ऐंठने का अभ्यास हो जाता है। पर वे भी समय पाते ही नीचे हो जाती हैं। एक दिन डॉक्टर साहब के घर पर बैठक में उनकी एक ओर की मूंछ ऊपर की ओर तथा दूसरी नीचे की ओर एक विचित्र हास्य प्रस्तुत कर रही थी। कुछ स्वयंसेवकों ने डॉक्टर जी का ध्यान उस ओर आकर्षित किया। डॉक्टर जी ने मुस्कुराते हुए कहा-'हमारे बन्धु की एक ओर की मूंछ प्राचीन गौरव की याद दिलाती है तो दूसरी ओर की आज की अवनति की द्योतक है। एक ही साथ दोनों स्थितियों का चित्रण कितना उत्तम और प्रभावकारी है। सभी बैठे हुए स्वयंसेवक ठहाका लगाकर हंस पड़े और संघचालक जी को झेंपने की आवश्यकता नहीं हुई।'
2. नागपुर के समाजवादी मजदूर नेता श्री रूईकर से तो डॉक्टर जी की नोक-झोंक सदा चलती रहती थी। एक बार रूईकर जी ने डॉक्टर जी को अपने नेता बै. सकलतवाला के भाषण का निमंत्रण दिया। पर जब रूईकर जी ने बताया कि भाषण पर एक 5/- रुपए का टिकट है तो डॉक्टर जी ने हंसते हुए कहा- ङ्म४ ं१ी ं १्रूँ 'ंुङ्म४१ी१, ६ँी१ी ं२ क ंे ं स्रङ्मङ्म१ ूंस्र्र३ं'्र२३, क ूंल्लल्लङ्म३ ंाा्रङ्मि ी५ील्ल ३ँ्र२ २ें'' ंेङ्म४ल्ल३ 'तुम ठहरे एक धनी श्रमिक, और मैं हूं गरीब पंूजीवादी, यह छोटी रकम देना भी मेरे बस से बाहर है।'
3. एक बार रूईकर जी ने किसी भाषण में डॉक्टर जी को सम्प्रदायवादी कह दिया- क्योंकि डॉक्टर जी हिन्दू राष्ट्र की चर्चा करते थे। दूसरे दिन प्रात: डॉक्टर जी कुछ स्वयंसेवकों के साथ उनके घर पर पहुंच गए। दरवाजा खटखटाने पर रूईकर जी जगे और उन्होंने दरवाजा खोला और सभी को आदरपूरर्वक अन्दर बुलाया। डॉक्टर जी ने रूईकर जी से पूछा कि मानों मैं इस समय आपको यह समाचार सुनाता कि बम्बई में शिवाजी महाराज का पुतला जीवित हो गया है और शिवाजी महाराज अपनी सेना इकट्ठी करते हुए विजय की यात्रा पर आगे बढ़ रहे हैं और शीघ्र ही नागपुर पहुंचने वाले हैं तो आपको कैसा लगता। रूईकर जी बेले-'इसमें भी कोई पूछने की बात है क्या डॉक्टर। इस समाचार पर मैं गाता, नाचता, मिठाई बांटता, प्रसन्नता से भर उठता। डॉक्टर जी ने पुन: हंसते हुए कहा कि फिर हम दोनों में कैसा अन्तर-आप भी शिवाजी महाराज के शासन के प्रशंसक-मैं उसे लाने के लिए प्रयत्नशील-या तो हम दोनों ही राष्ट्रीय हैं या दोनों ही साम्प्रदायिक। खिलखिलाती हंसी में एक सत्य सिद्धान्त स्पष्ट हो गया।
4. बडकस चौक के पास एक छोटा सा होटल था जिसके मालिक से डॉक्टर जी का बड़ा आत्मीयता का सम्बन्ध था। जब कभी डॉक्टर जी उधर से निकलते थे वह उन्हें रोककर अन्दर ले जाता और दूध पिलाता था।
एक बार डॉक्टर जी अन्य कई व्यक्तियों के साथ उधर से निकले। होटल के मालिक ने बड़ी आत्मीयता से सबको अन्दर बुलाया। मालिक ने ओरों को चाय और डॉक्टर जी को दूध प्रस्तुत किया। स्वाभाविक ही कुछ लोगों को वह खला और उन्होंने डॉक्टर जी से मजाक में कहा- 'अच्छा डॉक्टर जी, आज हमें पता चला कि आप अभी भी दूध पीते हैं।' डॉक्टर जी ने उसी सहजता से उत्तर दिया-दूध अवश्य पीता हूं पर चम्मच से नहीं गिलास से, अपने विनोद की शक्ति के साथ त्वरित बुद्धि का भी परिचय दे दिया। डॉक्टर जी की बैठक में ऐसे ही आनन्द और विनोद का ठहाका चलता रहता था जिसमें किसी का दिल बिना दुखाए मार्गदर्शन भी रहता था। इसीलिए बैठकें स्वयंसेवकों के लिए एक विशेष आकर्षण का केन्द्र रहती थीं।
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