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प्रा़ श्रीपाद केशव चितले
परम पूज्य डॉक्टर हेडगेवार नागपुर में जिस घर में रहे थे वह आज सही मायनों में स्वयंसेवकों का तीर्थ ही बन गया है। उसके पुण्य भवन के मूल स्वरूप की चर्चा करें तो उसका मुख्य द्वार पूर्व दिशा में था। आगे की तरफ छोटा बरामदा था, लोहेे की ग्रिल से संरक्षित। यहीं बैठकर डॉक्टर साहब आगंतुकों से चर्चा वार्ता किया करते थे। इसी जगह पूज्य श्री गुरुजी और डॉक्टर साहब की सर्वप्रथम भेंट हुई थी। कहा जाता हैै कि यहीं बैठकर डॉक्टर साहब लोकमान्य तिलक केे छायाचित्र पर नजरें गढ़ाकर घंटों उनकी आंखों को देखा करते थे । 1925 में डॉक्टर साहब ने रा़ स्व़ संघ की नींव इसी भवन के कक्ष में रखी थी, जिसे स्वयंसेवक रा़ स्व़ संघ की गंगोत्री भी कहते हैं। प़ू डॉक्टर साहब ने भारत माता के उत्थान का भव्य चित्र समाज केे सम्मुख रखकर संघ कार्य को एक छोटे से बीच से खड़ा किया था। अपने निवास स्थान की ऊपरी मंजिल पर बैठकर शुरुआती दौर में डॉक्टर साहब किशोर एवं प्रौढ़ स्वयंसेवकों से संघ-चर्चा किया करते थे। इसमें संदेह नहीं कि किसी व्यक्ति का घर उसके व्यक्तित्व की पहचान कराता है।
डॉ़ हेडगेवार के पिता बलीराम पंत 1825 आस-पास तेलंगाना के कंदकूर्ती गांव से श्रीमंत भोसलेे राजवंश केे पुरोहित बनकर नागपुर आए थे। श्रीमंत उनका बहुत सम्मान करते थे। 1850-1870 तक डाक्टर साहब का परिवार तुलसीबाग के समीप रहा करता था। तत्पश्चात डाक्टर साहब के बडे़ भ्राता श्री सीताराम पंत को भोसले परिवार ने यह घर निवास हेतु दिया था। तब डॉक्टर साहब का वह निवास स्थान शुक्रवारी बस्ती में था। इसकोे पहलेे शिर्केे गली कहा जाता था। अब इसे स्व़ मार्तण्डराव जागे गली के नाम सेे पहचाना जाता है। श्रीमंत भोसले का महल यहां से बहुत नजदीक है। आज भी इस प्रतिष्ठित क्षेत्र को 'महल क्षेत्र' कहा जाता है। डाक्टर साहब का निवास स्थान तब 85 फुट लम्बा एवं 65 फुट चौड़ा था। घर के चारों और दीवार थी। नीचेे तीन एवं ऊपर तीन यानी कुल मिलाकर छह कमरों का घर था। पुराने मकानों में आमतौर पर पीछे की तरफ एक छोटा सा कमरा हुआ करता था जहां अंधेरा सा रहता था। इसी कमरे में संघ के आद्य सरसंघचालक केशवराव का जन्म 1 अप्रैल 1889 (वर्ष प्रतिपदा) को हुआ। घर का फर्श कच्चा था। डाक्टर साहब की भाभी उसे गोबर से लीपा करती थीं। कुछ समय तक सामने के गलियारे में लोहे की ग्रिल थी। बाद में जाली निकाल दी गई थी। लकड़ी और बांस की छत। रसाईघर में सामने एक अगींठी हुआ करती थी। यहीं पर कभी कभी डाक्टर साहब रसोई बनाने में अपनी भाभी की मदद किया करते थे। भू-तल पर एक ओर से सीढि़यां ऊपरी मंजिल तक जाती हैं।
1925 में रा़ स्व़ संघ आरम्भ करने का विचार यहीं उपजा। बताते हैं उस समय भूतल पर सामने के कक्ष में छत्रपति शिवाजी महाराज का बड़ा छायाचित्र एवं भगवाध्वज लगा था। यहीं पर डाक्टर साहब ने एक संक्षिप्त भाषण में रा. स्व. संघ के शुभारम्भ की घोषणा की थी। यहीं से संघ -गंगा का अवतरण हुआ था। इसी घर में एक छोटा सा पूजा गृह था, जहां उनके कुलदेवता विष्णु भगवान की प्रतिमा लगी थी और पूजा अर्चना की जाती थी। यहां दोे तलवारें भी लगी होती थीं, जो शस्त्र पूजा के प्रतीक रूप में सजाई हुई थीं। पूजागृह छोटा सा था, उसमें केवल एक ही व्यक्ति बैठकर पूजा कर सकता था। घर से बाहर जाते-आते डाक्टर साहब यहां अपना शीष झुकाया करते थे। जैसा पहले बताया, डॉक्टर हेडगेवार केे बड़े भाई पुरोहित थे, उनको कभी कभी दान में गाय मिला करती थी, इसलिए घर के दक्षिण भाग में एक छोटी सी गोशाला हुआ करती थी। घर के पीछे एक कुंआ था। डाक्टर साहब के लिए उनके बड़े भाई पिता समान ही थे। उनके माता- पिता का एक ही दिन देहांत हुआ था। घर की पूर्व दिशा में आंगन के कोने में एक छोटा सा गैरेज जैसा था। यहा डाक्टर साहब की पुरानी कार खड़ी रहती थी। उनकी भतीजी श्रीमती वेणुताई देशकर उसी गाड़ी में बचपन में केशव काका के साथ घूमने जाती थी। श्री नानासाहब देशकर (उनके दामाद) का परिवार इसी घर में रहता था। डॉक्टर हेडगेवार यहीं पर कोजागिरी पूर्णिमा का कार्यक्रम बड़े उत्साह से आयोजित किया करते थे। यहां उनसे मिलने नागपुर के अनेक प्रमुख लोग आया करते थे। उनके सहयोगी सर्वश्री मार्र्तण्ड राव जोग, नानासाहब तेलंग, बाबासाहब घटाटे आदि विद्वतजन का यहां निरंतर आना-जाना हुआ करता था। मानवीय जीवन में आमतौर पर जोे घटता है वह सब डॉक्टर साहब के जीवन में घटा,परंतु उन्होंने अपनी दूरदृष्टि से संघ जैसा संगठन समाज को प्रदान किया।
इस पवित्र घर में डॉक्टर जी का पूरा जीवन (1889-1940) बीता, परंतु उनका अवसान हुआ श्री बाबासाहब घटाटे (नागपुर के सघ्ंाचालक) के धरमपेठ स्थित निवास पर। डॉक्टर जी के उस मूल निवास में उनके कुछ पुराने दुर्लभ चित्र आज भी देखे जा सकते हैं। डॉक्टर साहब ने अपने संस्कारों, अपने जीवनादर्शों सेे अनेक त्यागी, कर्मठ एवं संस्कारित कार्यकर्ता खड़े किये। स्व़ यादवराव जोशी के एक बौद्धिक का संदेश आज भी मेरे हृदय पटल पर शिलालेख के समान अंकित है। उन्होंने कहा था-हम डॉक्टर हेडगेवार के सुपुत्र हैं। हम अपने पिता का सपना निश्चित ही पूरा करेंगे।
(लेखक प्राचीन भारतीय कला-विद्या (संस्कार भारती),नागपुर के अ़ भा़ सहसंयोजक हैं)
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