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मिट्टीकैसा भी आकार बना लो
मिट्टी को होना है मिट्टी।
रंग-रूप-रस रास भले हैं
इनसे तो पत्थर पिघले हैं
हिमखंड तपे, मौसम बदले
पर कितने दिन तक साथ चले?
जितने दिन तक साथ रहेगी
उतने दिन ढोना है मिट्टी।।
माया कब जीवन कहलाती ?
काया कब कंचन रह पाती ?
भ्रम के ताने-बाने हैं सब
खुशियां हर क्षण रास न आतीं।।
अपने को जीना है पाना
अपने को खोना है मिट्टी।।
आंख खुले तो सब कुछ खोया
आंख मुंदे तो जीवन सोया।
देह-कामिनी करे प्रतीक्षा
मन भीतर तक रोया-रोया।
धूप-छांव है जिसके पीछे
ऐसा मृगछौना है मिट्टी।।
ल्ल डॉ.तारादत्त 'निर्विरोध'
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