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नई दिल्ली में 21, 22 एवं 23 फरवरी को विश्व की अनेक संस्कृतियों को एक सूत्र मंे पिरोने का सफल प्रयास हुआ। कई दर्शनशास्त्रों और विचारों का मिलन हुआ। पूरब और पश्चिम को समीप लाने की चेष्टा हुई। साथ ही यह बताया गया गया कि आज विश्व में जिस तरह का मजहबी उन्माद है, पागलपन है, धन-सम्पत्ति को लेकर खींचतान है, उन सबका हल वैदिक संस्कृति, वैदिक सभ्यता और वैदिक जीवन में है।
अवसर था विश्व वेद सम्मेलन का। इसमें विश्व के 40 देशों से वैदिक विद्वान और साधक आए। इनमें 40 प्रतिशत ईसाई, 10 प्रतिशत बौद्ध, 5 प्रतिशत यहूदी, 3 प्रतिशत मुसलमान, 5 प्रतिशत नास्तिक और शेष मानवतावादी थे। वक्ताओं ने वैदिक शिक्षा, वैदिक तकनीक, वैदिक विज्ञान, वैदिक समाज, योग, ध्यान आदि विषयों पर बहुत ही शोधपूर्ण बातें कीं। तीन दिवसीय यह कार्यक्रम इतना प्रभावी था कि लोग सुबह से शाम तक वेद ज्ञान प्राप्त करते रहे। तीनों दिन अध्यक्ष के आसन पर ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानन्द जी सरस्वती विराजमान रहे और विश्व हिन्दू परिषद् के संरक्षक श्री अशोक सिंहल की गरिमामय उपस्थिति रही। सम्मेलन का आयोजन 'फाउण्डेशन फॉर वैदिक इण्डिया' और 'महर्षि वेदव्यास प्रतिष्ठान' ने किया था।
सम्मलेन का उद्घाटन 21 फरवरी को शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानन्द जी ने दीप प्रज्वलित कर किया। इसके बाद महाराजाधिराज राजाराम प्रो. टोनी नादर (अमरीका) ने अपने बीज भाषण में बताया कि भारत को अपने वेद पर गौरव अनुभव करना चाहिए। हालांकि वेद केवल भारत का नहीं है, यह वैश्विक और प्राकृतिक है। वेद हर किसी के लिए है। वेद विज्ञान है और यह हमारे जीवन से अंधेरा दूर करता है, आनन्द देता है। वेद में मस्तिष्क, विज्ञान और तकनीक का समावेश है। वेद हमें आत्मा की साक्षात् अनुभूति कराता है। वेद के अनुसार जीना ही वेद को अपनाना है। उन्होंने कहा कि वेद में ब्रह्माण्ड की पूरी संरचना मिलती है। वेद ही ब्रह्म है। यह सभ्यता और शान्ति को सन्तुलित करता है। उन्होंने कहा कि हमारे गुरु देव महर्षि महेश योगी ने बताया है कि अक्षर, ध्वनि, तरंग सबमें वेद है। वेद शाश्वत है। वेद ज्ञान का भण्डार है। वेद की ऋचाएं पूरी तरह वैज्ञानिक हैं। वेद में प्रयुक्त 'विराम','अल्पविराम','पूर्ण विराम' आदि से जो ध्वनि निकलती है उसका भी महत्व है। वेद तकनीक का प्रतिनिधत्व करता है। विश्व में ऐसी कोई तकनीक नहीं है जिसका वर्णन वेद में नहीं है। ऋषि-मुनियों ने जो मार्ग बताया है उसी पर चलकर हम वेद को जान सकते हैं।
अपने आशीवर्चन में शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानन्द जी ने कहा कि महर्षि महेश योगी जी ने विदेशों में भारतीय वैदिक परम्परा का जो एक नया स्वरूप स्थापित किया था उसी का विस्तार यहां दिखाई दे रहा है। जो कुछ ब्रह्माण्ड में है वह सब कुछ शरीर में है। इसी को समष्टि और व्यष्टि कहते हैं। समष्टियों को मिलाकर व्यष्टि बनती है। उन्होंने कहा कि वेद किसी धर्म से बंधा नहीं है। चाहे हिन्दू हों, मुस्लिम हों, ईसाई हों, यहूदी हों, बौद्ध हों सबके लिए वेद है। वेद में सबके सुख और कल्याण की कामना की गई है। इसलिए वेद का ज्ञान जन-जन तक पहुंचे। इसका प्रारंभ इस सम्मेलन से हो गया है।
वरिष्ठ भाजपा नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि वेद अनन्त ज्ञान का स्रोत है। सारे ज्ञान वेद से आते हैं। आप जितनी बार वेद का अध्ययन करेंगे उतनी बार आपको नया ज्ञान मिलेगा। आधुनिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान को वेद से जोड़ने का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि वेद इस सृष्टि के साथ आया है। इस पर जितना अधिक शोध होगा उतना ही अधिक अच्छा होगा। जब तक पिण्ड ब्रह्म नहीं बनेगा तब तक हम वेद को समझ नहीं सकते हैं। योग के द्वारा हम वेद ज्ञान तक पहुंच सकते हैं। उन्होंने कहा कि वेद हमें बताता है कि आत्मा ही ब्रह्म है। हम सब एक ही ब्रह्माण्ड के भाग हैं। यदि यह विचार पूरे विश्व में जाता तो आज जो सीरिया, इराक आदि देशों में लड़ाई-झगड़े हो रहे हैं वे नहीं होते। इसलिए हमें वैदिक ज्ञान को पूरी दुनिया में ले जाना है। वैदिक संस्कृति हमें बताती है कि आपके पास जो कुछ भी है उसे बांटें। सबके हित और कल्याण की चिन्ता करें। पशु, पक्षी, प्रकृति सबके साथ सामंजस्य बनाकर चलें। यदि ऐसा होगा तो निश्चित रूप से यह दुनिया बहुत सुन्दर होगी।
दूसरे सत्र के प्रथम वक्ता और 'ग्लोबल यूनियन ऑफ साइंटिस्ट फॉर पीस' के अध्यक्ष डॉ. जॉन हेगल ने कहा कि अपनी संरचना की अनुभूति हम वेद को जानकर ही कर सकते हैं। विश्व को सुन्दर बनाने के लिए वैदिक ज्ञान को जानना जरूरी है। यह ज्ञान हमें परासत्ता की अनुभूति कराता है। वैदिक ज्ञान की जानकारी रखेंगे तो हमें आधुनिक दवाइयों की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। यह ज्ञान त्रिदोष को साम्य रखने में मदद करता है। उन्होंने कहा कि आत्मानुभूति से किया गया उपचार वैदिक उपचार है। वैदिक परम्परा हमें आत्माधारित ज्ञान सिखाती है और आत्माधारित शिक्षा देती है। आत्मानुभूति से हमारा कोई शत्रु भी नहीं होगा और कुछ कारणवश होगा भी तो वह स्वयं ही समाप्त हो जाएगा।
माता अमृतानन्दमयी (अम्मा जी) मठ के उपाध्यक्ष स्वामी अमृतस्वरूपानन्द जी ने कहा कि वैदिक पद्धति जीवन को नकारती नहीं है, उसे अपनाने को प्रेरित करती है। वैदिक दर्शन और ज्ञान को अपनाने के लिए लोगों को मानसिक रूप से तैयार करने की आवश्यकता है। यदि ऐसा होगा तो हमारा जीवन पवित्र हो जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि देश में कई ऐसे सन्त और महापुरुष हैं जिनकी प्रेरणा से लाखों लोग वैदिक पद्धति से जीवन-यापन कर रहे हैं। ऐसे लोगों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है।
प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. विजय भाटकर ने कहा कि वेद इस दुनिया को समझने का और शान्ति का उपकरण है। वेद सम्पूर्ण ज्ञान देता है, बाकी चीजें अधूरी जानकारी देती हैं। वेद अप्रतिम और परमज्ञान है। वैदिक सभ्यता शाश्वत है। यह नित्य नूतनता का आभास कराती है। इसलिए यह सबसे पुरानी होते हुए भी अभी तक टिकी हुई है, जबकि इसके बाद की सभ्यताएं समाप्त हो चुकी हैं। वरिष्ठ भाजपा नेता डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा कि वैदिक पद्धति सबकी समृद्धि और कल्याण की बात करती है। वेद ही हमें बताता है कि समाज में कोई कष्ट में न रहे और सब स्वस्थ रहें। ऐसी सोच का दूसरी जगह अभाव है। वेद यह भी बताता है कि आध्यात्मिक और आर्थिक नीतियों में सदैव सन्तुलन रहना चाहिए। महर्षि विश्वविद्यालय प्रबंधन, अमरीका के प्रो. डॉ. मिखाइल डिलबेक ने कहा कि सक्रिय ज्ञान और मानसिक सन्तुलन योग से मिलता है। इसको अमरीका के चिकित्सकों ने भी माना है। पूरी मानव जाति को वैदिक ज्ञान का सहारा लेना चाहिए।
दूसरे दिन के पहले सत्र में महर्षि वेदव्यास प्रतिष्ठान, भारत के संस्थापक और अध्यक्ष स्वामी गोविन्ददेव गिरि जी महाराज ने कहा कि भारतीय संस्कृति को वैदिक संस्कृति कहा जाता है। यही संस्कृति समस्त मानव की बात करती है। यह संस्कृति जन्मभूमि को मां मानती है और अपने पुत्रों को श्रवण बन कर मां की सेवा करने को प्रेरित करती है। यह बहुत ही गहरी सोच है। उन्होंने यह भी कहा कि वेद हमें समस्त जीव-जगत से जोड़ता है। उन्होंने वैदिक संस्कृति को पुन: स्थापित करने पर जोर देते हुए कहा कि वेद में राष्ट्र और समाज कैसा हो, इसका बहुत ही अच्छा वर्णन किया गया है।
भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. जी. माधवन नायर ने कहा कि भारतीय संस्कृति पर हमें गर्व है। यह ज्ञान-विज्ञान का भण्डार है। आज कम्प्यूटर के जरिए हम नक्षत्रों और ग्रहों की स्थिति को देखकर कुछ भविष्यवाणी करते हैं, लेकिन हमारे ऋषि-मुनि हजारों वर्ष पहले ही इस विद्या में पारंगत थे। हमारे यहां हजारों वर्ष पूर्व भी शल्यक्रिया होती थी। यह सब ज्ञान वेद से ही मिला है। उन्होंने यह भी कहा कि संस्कृत की जानकारी के बिना हम वेद के ज्ञान को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। इस सत्र को सम्बोधित करते हुए भौतिकशास्त्री डॉ. जॉन हेगल ने कहा कि बुद्धि से परे की बात वैदिक शिक्षा बताती है। वैदिक शिक्षा आत्मज्ञान कराती है। इसलिए हम वैदिक शिक्षा प्राप्त करें। उन्होंने कहा कि योग और यज्ञ एक ऐसा मार्ग है, जो वैश्विक शान्ति ला सकता है।
'इन्टरनेशनल फाउण्डेशन ऑफ कॉन्सेसनेस-बेस्ड एडुकेशन, अमरीका' की अध्यक्ष डॉ. सुसेन डेलबेक ने कहा कि चेतना आधारित शिक्षा के तीन माध्यम हैं-ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय। इस पद्धति से शिक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्ति का सर्वागींण विकास होता है। जितनी हमारी चेतना जागृत होगी उतना ही हमारा समाज् ा सुन्दर और व्यवस्थित होगा। उन्होंने कहा कि आदर्श जीवन जीने की कला वैदिक शिक्षा बताती है। शाश्वत, नित्य और अपौरुषेय ज्ञान है वैदिक शिक्षा। आर्ष विद्या मन्दिर के संस्थापक आचार्य स्वामी परमात्मानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आज समाज में स्वतंत्रता के नाम पर स्वच्छंदता बढ़ रही है, यह हमारी संस्कृति के विरुद्ध है। हमारी संस्कृति वैदिक संस्कृति है और यह हमें मर्यादा सिखाती है। वैदिक संस्कृति हमें योगदान देने की प्रेरणा देती है, जबकि आज हम केवल उपभोक्ता बन कर रह गए हैं। इसलिए वैदिक संस्कृति की पुनस्स्थापना अति आवश्यक है। संन्यास आश्रम, मुम्बई के अध्यक्ष स्वामी विश्वेश्वरानन्द जी ने कहा कि वेद कहता है कि कर्म करते रहो। कर्म ही तुम्हारी पहचान है। कर्म के आधार पर निम्न कुल में पैदा हुआ व्यक्ति एक दिन शिव बन सकता है, तो उच्च कुल में जन्मा व्यक्ति शूद्र बन सकता है। इसलिए हमारे यहां जीव को शिव कहा गया है। उन्होंने यह भी कहा कि अर्थशक्ति और वेदशक्ति दोनों मिलकर सुन्दर विश्व का निर्माण कर सकती हैं। महर्षि विश्वविद्यालय प्रबंधन, अमरीका के अध्यक्ष डॉ. बेवन मोरिस ने कहा कि वैदिक शिक्षा हमें पूर्ण विकसित करती है। व्यक्ति के अन्दर सहनशक्ति बढ़ाती है, चिन्ता का निराकरण करती है, बौद्धिक क्षमता का विकास करती है और सबसे बढ़कर आत्मा का साक्षात्कार कराती है। एस.जी.वी.पी. इन्टरनेशनल स्कूल के संस्थापक सद्गुरु श्री माधवदास जी ने कहा कि विश्व की समस्त समस्याओं और जिज्ञासाओं का समाधान वेद में है। वेद मार्ग से ही रामराज्य स्थापित होगा। कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय के डॉ. कीथ वालेस ने कहा कि प्राकृतिक नियमों का उल्लंघन किए बिना जीवन कैसे जिया जाए, इसकी सीख वेद से मिलती है। जीवन जीने का सही तरीका वेद में निहित है।
सम्मेलन के अन्तिम दिन के पहले वक्ता थे आदिचनचनगिरि मठ (कर्नाटक) के प्रमुख निर्मलानन्द स्वामी जी। उन्होंने कहा कि हमने ही दुनिया को गिनती करना सिखाया। अपने अन्दर जो विकृतियां हैं उनको आधुनिक शिक्षा समाप्त नहीं कर सकती है, इसके लिए हमें वैदिक शिक्षा (भारतीय शिक्षा) की शरण लेनी पड़ेगी। कर्नल डॉ. ब्राइन रीज (अमरीका) ने भावातीत ध्यान की चर्चा करते हुए कहा कि भावातीत ध्यान करने वाला व्यक्ति आनन्दित जीवन जी सकता है। उन्होंने बताया कि अफगानिस्तान में तैनात अमरीकी सैनिकों को भावातीत ध्यान कराया जाता है जिससे कि वे युद्ध की स्थिति में भी आनन्द महसूस करते हैं। उन्होंने कहा कि शस्त्र से कोई स्थाई विजय नहीं प्राप्त कर सकता है, शास्त्र ही स्थाई विजय दिला सकता है। अमरीकी गणितज्ञ डॉ. कैथी गोरिनी ने वेद और गणित के सम्बंधों को बताते हुए कहा कि शून्य की शक्ति, शून्य की सत्ता और शून्य की महत्ता भारत ने ही दुनिया को बताई थी।
योग गुरु स्वामी रामदेव ने कहा कि वैदिक योग ही वास्तविक योग है। उन्होंने कहा कि इस समय विश्व की तीन प्रमुख समस्याएं हैं। एक, मजहबोन्माद, दूसरा, युद्धोन्माद और तीसरा भोगोन्माद। एक वर्ग मजहबी उन्माद का पागलपन दिखा रहा है। यही पागलपन युद्धोन्माद खड़ा करता है। भोगोन्माद वाले हर चीज का भोग स्वयं ही करना चाहते हैं, जबकि वैदिक संस्कृति हमें बताती है कि जितनी आवश्यकता है उतना ही लो। वेद के मार्ग पर चलने से ही इन समस्याओं का समाधान हो सकता है। वेद सम्पूर्ण ज्ञान का मूल स्रोत है। उन्होंने वैदिक भारत और फिर वैदिक विश्व बनाने के लिए सबका आह्वान करते हुए कहा कि हर कोई इसके लिए प्रयास करे। भारत सरकार भी वेद को बढ़ावा देने के लिए सार्थक प्रयास करे। वेद ही शक्ति और समृद्धि का मार्ग खोलेगा। डॉ. ई. हर्टमन ने वास्तु शास्त्र पर जोर देते हुए कहा कि वास्तु के अनुसार बनाया गया घर व्यक्ति में सकारात्मक सोच पैदा करता है और वह उसी के भरोसे अपने जीवन में सफल होता है। इन सबके अलावा अनेक विद्वानों ने भी सम्मेलन को सम्बोधित किया।
सम्मेलन का समापन वैदिक भारत और इसके बाद वैदिक विश्व की स्थापना के संकल्प के साथ हुआ। ल्ल
'वैदिक विश्व बनाएंगे'
'फाउण्डेशन फॉर वैदिक इण्डिया' के अध्यक्ष और विश्व वेद सम्मेलन के सूत्रधार स्वामी ब्रह्मस्वरूपानन्द से हुई बातचीत के प्रमुख अंश
ल्ल इस सम्मेलन का उद्देश्य क्या है?
वेद में वह शक्ति है, जो पूरे विश्व को मार्ग दिखा सकती है। वेद भारत की धरोहर है। दुर्भाग्यवश आज वैदिक ज्ञान, वैदिक शिक्षा, वैदिक तकनीक आदि की उपेक्षा भारत में ही हो रही है, जबकि विदेशों में वेद पर शोध हो रहे हैं और उसके ज्ञान-विज्ञान का उपयोग समाज को सुखी बनाने के लिए किया जा रहा है। भारत में भी ऐसा हो इसलिए इस सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में जो लोग आए वे कई संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। भारत एक नए प्रयोग की भूमि बन रहा है। हिन्दुत्व की भूमि होने के कारण ही भारत में ऐसा हो पा रहा है। इस प्रयोग से जो नई संस्कृति और विचार निकलेंगे वही इस विश्व को शासित करेंगे, यह हमारा विश्वास है।
ल्ल सम्मेलन में जो विदेशी वैदिक विद्वान आए, उन तक वेद कैसे पहंुचा?
महर्षि महेश योगी जी ने इन सबको वेद से जोड़ा। 1960 में महर्षि महेश योगी अमरीका गए थे। तब वहां का धनिक वर्ग अनेक व्यसनों का शिकार था। उन्होंने उन्हें समझाया कि वेद पर आधारित जीवन जीयो सब कुछ ठीक हो जाएगा। उन लोगों ने उनकी बात मान ली और उनका जीवन संभल और संवर गया। आज वही लोग और उनके बच्चे वेद के प्रकाण्ड पंडित हैं और शोध कर रहे हैं। शोध के द्वारा उन्हें जो ज्ञान प्राप्त हो रहा है उसी को और लोगों के बीच बांटा जा रहा है। उन्हीं लोगों के सहयोग से महर्षि जी ने अमरीका सहित अनेक देशों में अनेक केन्द्र खोले और आज वही केन्द्र लोगों तक वेद पहंुचा रहे हैं। उम्मीद है ये केन्द्र विश्व में वैदिक संस्कृति, वैदिक जीवन, वैदिक समाज और वैदिक सभ्यता की पुनस्स्थापना करने में सफल होंगे। इस समय प्रतिदिन 6 लाख लोग विदेशों में ध्यान करते हैं। इनकी संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।
ल्ल इस समय विश्व के किन-किन देशों में वैदिक शिक्षा दी जा रही है?
अमरीका के सभी शहरों में वैदिक शिक्षा दी जा रही है। इसके अलावा चीन, जापान, इण्डोनेशिया, मलेशिया, थाईलैण्ड, कनाडा, हालैण्ड, जर्मनी, स्वीडन, नार्वे, आईसलैण्ड, इंग्लैण्ड आदि देशों में वैदिक शिक्षा दी जा रही है।
भावातीत ध्यान करने वाला व्यक्ति आनन्दित जीवन जी सकता है।
-कर्नल डॉ. ब्राइन रीज (अमरीका)
वैदिक संस्कृति समस्त मानवता की बात करती है।
-स्वामी गोविन्ददेव गिरि जी अध्यक्ष, महर्षि वेदव्यास प्रतिष्ठान, भारत
वैदिक सभ्यता शाश्वत है। यह नित्य नूतनता का आभास कराती है।
-डॉ. विजय भाटकर
प्रसिद्ध वैज्ञानिक
आज कम्प्यूटर के जरिए हम नक्षत्रों और ग्रहों की स्थिति को देखकर कुछ भविष्यवाणी करते हैं, लेकिन हमारे ऋषि-मुनि हजारों वर्ष पहले ही इस विद्या में पारंगत थे।
-डॉ. जी. माधवन नायर, पूर्व अध्यक्ष, इसरो
आदर्श जीवन जीने की कला वैदिक शिक्षा बताती है। शाश्वत, नित्य और अपौरुषेय ज्ञान है वैदिक शिक्षा।
-डॉ. सुसेन डेलबेक, अध्यक्ष, इन्टरनेशनल फाउण्डेशन ऑफ कांशियसनेस-बेस्ड एडुकेशन
शून्य की शक्ति, शून्य की सत्ता और शून्य की महत्ता भारत ने ही दुनिया को बताई थी।
-डॉ. कैथी गोरिनी
अमरीकी गणितज्ञ
अर्थशक्ति और वेदशक्ति दोनों मिलकर सुन्दर विश्व का निर्माण कर सकती हैं।
-स्वामी विश्वेश्वरानन्द
अध्यक्ष, संन्याय आश्रम, मुम्बई
कौन हैं महाराजाधिराज राजाराम प्रो. टोनी नादर
ये लेबनान के सबसे धनी व्यक्ति थे। अमरीका में इनकी पहचान जाने-माने न्यूरोलॉजिस्ट के रूप में है। महर्षि महेश योगी जी के सम्पर्क में आने के बाद इन्होंने वैदिक जीवन जीना शुरू किया। 30 वर्ष तक इन्होंने वेद का अध्ययन किया। इनके वैदिक विज्ञान से महर्षि महेश जी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इन्हें महाराजाधिराज राजाराम की उपाधि दे दी। 2008 में योगी जी के स्वर्गगमन के बाद यही राजाराम उनके उत्तराधिकारी हैं। इन्हीं के नेतृत्व में योगी जी के लाखों भक्त विश्वभर में वेद का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। -अरुण कुमार सिंह
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