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नार्वे में भारतीय चाहे किसी प्रदेश से यहां आए हों, पर अपना पर्व साथ मनाते हैं। होली और दिवाली दो त्योहार ऐसे हैं कि हम दुनिया में जहां भी हों मन, स्फूर्ति, उमंग और खुशी से भर जाता है।
नार्वे में भी होली बड़े जोर शोर से मनायी जाती है। इसका आयोजन भारतीय लोग करते हैं। इसमें नार्वे के लोग भी उत्साह से भाग लेते हैं।
यहां भारत की तरह होली चौराहों पर जलाई नहीं जाती, वरन् हॉलों और सार्वजनिक स्थलों पर मनायी जाती है। इसका आयोजन भारतीय संस्थाओं, मंदिरों, हिन्दी स्कूलों आदि में होता है।
यहां रंग छुड़ाने के लिए घंटों रगड़ना नहीं पड़ता और त्वचा पर भी इसका हानिकारक असर नहीं होता। सेहत के लिए ये रंग हानिकारक नहीं होते और धोने पर थोड़े प्रयास से ही छूट जाते हैं. परन्तु अपनों से गले मिलकर प्रेम और सौहार्द का रंग ऐसा चढ़ता है, जो अगली होली की प्रतीक्षा कराता है।
बफीर्ले मौसम की विदाई शुरू
जब होली के समय नार्वे में बफीर्ले मौसम की विदाई शुरू हो गयी है, लेकिन जोरदार ठंड तब भी होती ही है। इस पर भी घरों में और सामूहिक रूप से भी कुछ घर परिवार के लोग एकत्र होकर होली पर एक दूसरे के मुंह पर रंग पोतते हैं। बिल्कुल भारत की तरह। आप कितना ही छिपना चाहें, लोग आपको ढूंढ़ लेते हैं और सभी के मुखों पर रंग इतराने लगते हैं। जो भी इन चेहरों को देखता है, मुस्कराये बिना नहीं रह सकता।
मिठाइयों का स्वाद
मिठाई बिना कोई होली नहीं होती है। यहां भारतीय व्यंजनों के चटखारे नार्वे के मूल निवासी भी लेते हैं। खास बात यह भी कि यदि किसी को मधुमेह है तो उनके लिए भी शुगरफ्री मिठाई और केक खूब बनते हैं।
अर्द्धरात्रि का सूरज
उत्तरी नार्वे में जहां ध्रुवीय रेखा गुजरती है वहां दो महीने जून और जुलाई के महीने में दिन-रात सूरज निकलता है। दूसरे अर्थों में इन भागों में सूरज डूबता ही नहीं है। इसी कारण नार्वे को मध्य रात्रि के सूरज वाला देश भी कहा जाता है। अगर होली का त्यौहार जून -जुलाई में होता तो नार्वे में तो कुछ और ही नजारे होते।
खैर होली तो फागुन महीने में यानी मार्च में ही आती है, अत: किसी भी मायने में आनंद कम नहीं हुआ।
इनकी भी सुन लें
सपना रस्तोगी का कहना है कि होली तो बस मिल जुलकर ही मनाने का मजा है। इसीलिए हम हिन्दी स्कूल में होली मना रहे हैं। संगीता शुक्ल का कहना है कि रंगों के बिना तो त्योहार मनाने का मजा ही नहीं है. इसीलिए हम पापा से कहकर भारत से त्वचा के लिए स्वास्थ के हिसाब से अच्छे रंग मंगा लेते हैं, ताकि बच्चे आनंद और मस्ती से होली मनाने से वंचित न रह जायें।
माया भारती लखनऊ से नार्वे आई हैं तो अलका भरत पंजाब से। दीपा उत्तरांचल से हैं और रूबी जी दिल्ली से। इन सभी का मानना है कि व्यंजनों के बिना तो त्योहार फीका है। अलका होली की महफिलों में चुटकुले सुनाकर मनोरंजन करती हैं तो अनुराग विद्यार्थी यू ट्यूब से डाउनलोड करके छोटी-छोटी मजाकिया फिल्में दिखाकर सभी को हंसाते हैं।
रंग और हुड़दंग की छूट
बच्चों के लिए खेल नृत्य और हुड़दंग की इजाजत होली के त्यौहार में चार चांद लगा देता है। स्कूल और घर में अनुशासन के बाद बच्चों को रंग लगाने और हुड़दंग करने की छूट से उनका मजा वही देख सकता है जिसने यहां हिन्दी स्कूल में होली मनाई हो।
नार्वे में दो हिन्दू मंदिर, एक हरे कृष्णा मंदिर और दो तमिल मंदिर हैं। इसके अलावा भारतीय संस्थाएं भी इस अवसर पर कार्यक्रम आयोजित करती हैं जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम का आनंद मुख्य आकर्षण होता है। आप भी कभी नार्वे आइए हमारे साथ होली मनाने। -ओस्लो से सुरेश चंद्र शुक्ल/शरद आलोक
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