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'जम्मू-कश्मीर को लेकर पिछले कुछ दशकों से कई भ्रांतियां फैलाई गई हैं। इसके कारण देशभर में यहां तक कि मीडिया में भी, सही सूचना का अभाव है। समय आ गया है कि सभी को तथ्यों की जानकारी हो ताकि जम्मू-कश्मीर से सम्बंधित विषयों को सही दिशा में ले जाया जा सके।' ये विचार हैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अ.भा. सह संपर्क प्रमुख और जम्मू-कश्मीर अध्ययन केन्द्र के निदेशक श्री अरुण कुमार के। वे 23 फरवरी को दिल्ली में जम्मू-कश्मीर पीपुल्स फोरम और नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट द्वारा आयोजित 'संकल्प दिवस' कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ऐसा क्यों है कि कश्मीर शब्द के साथ हमेशा 'समस्या' शब्द को जोड़कर ही बोला जाता है, जबकि यह समस्या है ही नहीं। ऐसी धारणाओं के कारण देश को और खासकर जम्मू-कश्मीर प्रान्त के निवासियों को बहुत नुकसान पहुंचा है। इसलिए जरूरत है कि सभी लोग जम्मू-कश्मीर से सम्बंधित दस्तावेज अच्छी तरह से पढ़ें
और समझें।
उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में कुल 22 जिले हैं, उनमें से 17 जिलों में आज तक भारत के विरुद्ध एक भी प्रदर्शन नहीं हुआ। मगर ऐसा लगता है कि पूरा प्रान्त अलगाववाद से त्रस्त है। सच तो यह है कि जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रवादी सोच ज्यादा प्रबल है, न कि अलगाववाद। हमें जम्मू-कश्मीर को लेकर अपना नजरिया बदलने की जरूरत है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की उप कुलपति डॉ़ सुषमा यादव ने कहा कि जम्मू-कश्मीर को लेकर शोध की जरूरत है। सभी विश्वविद्यालयों में इसे अध्ययन का विषय बनाना चाहिए ताकि तथ्यों को सामने लाया जा सके। उल्लेखनीय है कि भारत की संसद ने 22 फरवरी, 1994 को जम्मू-कश्मीर पर एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसको जनता के ध्यान में लाने तथा जम्मू-कश्मीर के वर्तमान परिदृश्य की जानकारी देने के लिए पीपुल्स फोरम हर वर्ष इस प्रकार का कार्यक्रम आयोजित करता है। -आभा खन्ना गुप्ता
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