|
पुस्तक का नाम |
: मैं और मेरा पाकिस्तान |
प्रकाशन |
: ओरियंट पब्लिसिंग |
लेखक |
: इमरान खां |
मूल्य |
: 425 रु |
पृष्ठ |
: 248 |
गुलामी से आजादी किसी भी सभ्यता के लिये अविस्मरणीय क्षण होते हैं। 1947 में भारत और पाकिस्तान के लिए एक ऐसा ही क्षण था। हालांकि विभाजन की बड़ी गहरी पीडा़ थी, जिसमें मजहब के विसंगतिपूर्ण आधार पर दो मुल्कों का बंटवारा हुआ था, लाखों लोग मारे गए थे और विस्थापित हुए थे। वह उस समय की एक ऐसी ऐतिहासिक घटना थी, जिसकी उम्मीद और परिणाम की कल्पना संभवत: उस समय के राजनेताओं ने भी ना की हो। बंटवारे के बाद जो रास्ता भारत ने अपनाया और जो पाकिस्तान ने वह दोनों देशों को कितना अलग करता है। साफ देखा जा सकता है। पाकिस्तान की छवि कैसी है। यह पूरी दुनिया जानती है।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान के साथ खडे़ रहने वाले और उसके मित्र देश उस पर भरोसा नहीं करते। पैंटागन की हाल ही की रपट पाकिस्तान के दोहरे चरित्र को बताने वाला एक ताजा दस्तावेज है। पाकिस्तान के हालात पर बहुत कुछ बोला और लिखा गया है, लेकिन पाकिस्तान की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक हालात पर सबसे सटीक टिप्पणी मुल्क के संभवत: सबसे लोकप्रिय शख्स की किताब से मिलती है। इमरान खां अपनी किताब 'मैं और मेरा पाकिस्तान' में अपने मुल्क के बारे में अनकही लेकिन सच्ची कहानी लेकर सामने आए हैं। किताब एक आत्मकथा है लेकिन लेखन में एक नई पहल है। अपनी आत्मकथा को उन्होंने देश की कहानी के साथ ऐसे जोड़ा है जो जो किसी भी शख्स के लिये पाकिस्तान को जानने और समझने का अभूतपूर्व दस्तावेज बनती है कहते हैं कि जीवन की सच्चाई जैसी भी हो चकित तो करती ही है। साथ ही बहुत कुछ सिखाती भी है। आत्मकथाएं हमेशा पढ़ी जाएंगी क्योंकि उनमें जिंदगी का यथार्थ मिलता है और मिलेगा, महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला की आत्मकथा, सोमालिया की आयान अली हिरसी की जीवनी, एन फैंक की डायरी लोगों को हमेशा अपनी ओर खींचती रहेंगी। आत्मकथा लेखन में इमरान सफल रहे हैं। उन्होंने किताब को न सिर्फ पठनीय और दिलचस्प बनाया है बल्कि किताब को विख्यात आत्मकथाओं की श्रेणी में ला खड़ा किया है।
इमरान फिलहाल पाकिस्तान की सरकार की नाक में दम किए हुए हैं। राजनेता के तौर पर उनकी समझ को लेकर बहस होती है। उनके विरोधी भी हैं और लेकिन उनकी ईमानदारी और अपने देश के लिये उनके समर्पण का उनके विरोधी भी सम्मान करते हैं। इमरान पाकिस्तान के बनने के 5 साल बाद जन्मे, उन्होंने अपने देश के इतिहास को बनते बिगड़ते देखा है किताब में उन्होंने देश की आजादी के बाद की तमाम बड़ी घटनाओं का जिक्र करते हुए तानाबाना बुना है, लाहौर में खुशियों भरा बचपन, ऑक्सफोर्ड में उच्च शिक्षा, एक बेमिसाल क्रिकेट करियर, जेमिमा के साथ शादी फिर तलाक, अपने मजहब और देश की खोज, कैंसर अस्पताल को खोलने के लिये जुनून की हद तक दीवानगी, राजनीतिक जीवन का आरंभ और उनके अपने आदर्श और सपने- सभी का विस्तार से वर्णन है। आज पाकिस्तान असफल देशों की श्रेणी में आता है, विषमताओं से सराबोर, लगभग टूटने की कगार पर- भारत के खिलाफ जिस जहर को पाला पोसा गया वह आज पाकिस्तान को गला रहा है, पाकिस्तान आतंक की पनाहगाह और नर्सरी बन गया है। हालात ऐसे हैं कि पाकिस्तान के वजीरिस्तान और फाटा में पाकिस्तानी नहीं तालिबानी कानून चलता है। यदि पाकिस्तानी सेना यहां कोई ऑपरेशन करती है तो उसका नतीजा या तो रावलपिंडी में हमला होता है, या फिर वाघा बार्डर पर धमाका। इमरान इन सब पर लिखते हैं। वे 1965, 1971 के युद्ध का भी जिक्र करते हैं और बंगलादेश विभाजन के मामले पर बड़ी ईमानदारी से स्वीकार करते हैं कि बंगालियों के साथ जिस तरह जुल्म किये गये थे उसका नतीजा यह हुआ कि 1971 में पाकिस्तानी सेना को हिन्दुस्थान से कड़ी हार का सामना करना पड़ा। पाकिस्तान में सत्तासीन लोगों, उनकी गलत नीतियों और सरकारी मीडिया पर उनका कहना है कि पहले मैं टीवी प्रचार को सही नहीं मानता था, लेकिन अब सोच बदली है, मीडिया आज पठानों और बलूचियों के लिए वही कह रहा है, जो बंगलादेशियों के लिये कहता था।
हालांकि पूरी दुनिया में पाकिस्तान की पहचान बनते जा रहे मुल्ला मौलवी की संस्कृति पर उनके विचार निष्पक्ष, तार्किक होने के साथ साथ देश की छवि को सुधारने का प्रयास लगते हंै। किताब में जो बात सबसे ज्यादा दिलचस्प लगती है वह इमरान की साफगोई पाकिस्तान के इस्लामीकरण, तमाम राजनेताओं और तानाशाहों की लूट का अंतहीन सिलसिला, अमरीकी दोहरी विदेशनीति, करगिल युद्ध, 9/11 के बाद अफगानिस्तान के हालात, कबीलाई इलाकों में ड्रोन हमलों, पर इमरान अपनी सोच बेबाक तरीके से रखते हैं। वह ये मानते हैं कि करगिल पाकिस्तान की जबरदस्त हार थी, पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देख रहा शख्स यदि ये स्वीकार करता है कि 2002 के चुनावों के बाद उसने अपना कर्जा क्रिकेट के सट्टे के पैसे से उतारा था, तो आप उसके साहस को सलाम किए बिना कैसे रह सकते हैं। पूरी किताब में जो बात चौंकाती है वह है इमरान का ज्ञान, उनके द्वारा तमाम विद्वानों का जिक्र और जिनके बारे में उन्होंने उल्लेख किया है। 'इस्लाम पर यदि वे यह स्वीकार करते हैं कि बचपन में उनकी अम्मी की इच्छा होने के बाद भी वे कुरानशरीफ नहीं पढ़ पाए। सभी मानते हैं कि इमरान जब चाहते पाकिस्तान में कोई बड़ा पद लेकर आराम का जीवन गुजार सकते थे। वर्ष 2007 में इमरान मुशर्रफ से टकराये, उनको जेल हुई, जेल के अनुभवों से ही किताब की शुरुआत होती है। किताब के सार से इमरान के उस दर्द से समझा जा सकता है जिसमें वे कहते है कि यदि आज पाकिस्तान का ख्वाब देखने वाले जिन्ना और इकबाल भी आ जाएं तो इस मुल्क को पहचान नहीं पाएंगे।
-अनुराग पुनेठा
पुस्तक का नाम |
: मैं और मेरा पाकिस्तान |
प्रकाशन |
: ओरियंट पब्लिसिंग |
लेखक |
: इमरान खां |
मूल्य |
: 425 रु |
पृष्ठ |
: 248 |
टिप्पणियाँ