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देश के नए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी इन दिनों बहुत से प्रांतों में नए-नए प्रोजेक्टों का उद्घाटन और श्रीगणेश करते जा रहे हैं। कारगिल से लेकर मुंबई के गहरे सागर तक सेना और जल सेना से मिलने तथा सैनिकों का उत्साह बढ़ाने का प्रशंसनीय कार्य भी वह कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात है कि उनकी आंखों में भ्रष्टाचार मुक्त और विकसित भारत का एक स्वप्न है। वह देश के कोने-कोने से गरीबी, पिछड़ापन, अशिक्षा तथा सांप्रदायिक भेदभाव निकालकर पूरे भारत को वहां तक ले जाना चाहते हैं जिसका प्रत्यक्षदर्शन स्वामी विवेकानंद ने अपनी आध्यात्मिक शक्ति द्वारा करके यह भविष्यवाणी की थी कि आगामी दिनों में भारतमाता फिर उसी विश्व गुरु के सिंहासन पर आसीन होगी, जिसकी वह पूर्व में स्वामिनी रही है, जिसके चरणों में बैठ कर विश्व के अनेक विद्वानों एवं महापुरुषों ने धर्म, मानवता और नैतिकता का पाठ सीखा था। अभी दो दिन पूर्व श्री मोदी जनता को एक संदेश दे रहे थे कि बिजली बचाओ। अगर एक महीने बिजली का बिल सौ रुपये आता है तो उसे अगले महीने नब्बे पर ले जाओ। इसलिए नहीं कि किराया कम देना पड़ेगा, बल्कि इसलिए कि देश की बिजली बचेगी और श्री मोदी के अनुसार बिजली बचाना भी बहुत बड़ी राष्ट्रसेवा है, क्योंकि बिजली के बिना विकास कार्य संभव ही नहीं हैं।
श्री मोदी का यह संदेश बहुत अच्छा लगा। हम सबका यही प्रयास रहता है कि बिजली का उपयोग तो करें पर दुरुपयोग नहीं। मैं प्रधानमंत्री जी के ध्यान में लाना चाहती हूं कि मेहनत करके आम राष्ट्रभक्त, पर गरीब आदमी सौ रुपये में से दस रुपये की बचत कर भी ले तब भी उसे सरकारी दंड पूरा करने के लिए 13 प्रतिशत तो पहले ही ज्यादा देना पड़ेगा। इसके बावजूद बिजली आपूर्ति कैसी रहेगी, कम से कम हम पंजाब के लोग नहीं जानते, क्योंकि यहां घोषित कटौती से ज्यादा अघोषित कटौती होती ही रहती है।
यह सच है कि सरकार और उच्च सरकारी कार्यालयों में केवल बल्ब और पंखे ही नहीं चलते, बड़े-बड़े एयरकंडीशनर भी निर्बाध चलते हैं और विडम्बना यह है कि उन्हें किराया भी नहीं देना पड़ता। यह दस प्रतिशत काटने का लक्ष्य और तेरह प्रतिशत बढ़ा हुआ किराया देने का मानसिक बोझ उन्हें सहना नहीं पड़ता। उनकी आमदनी और जेब पर भी इसका कोई असर नहीं पड़ता।
पिछले दिनों एक प्रदेश की मुख्यमंत्री द्वारा अपने आवास और कार्यालय में दो दर्जन से कुछ ज्यादा ही एयरकंडीशनर प्रयोग में लाने की चर्चा निजी टीवी चैनलों पर रही। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि क्या केवल एक ही मुख्यमंत्री इतने ए़सी. की ठंडक में रहता है और ज्यादा बिजली का प्रयोग करता है। कम से कम एक दर्जन मुख्यमंत्रियों के आवास और कार्यालय मैंने देखे। अतिशयोक्ति नहीं होगी अगर यह कह दूं कि वहां तो रसोई कक्ष भी स्थायी-अस्थायी साधनों द्वारा ठंडा रखा जाता है। बहुत पहले पंजाब के प्रत्येक मंत्री को अपने बंगले में तीन से पांच एयरकंडीशनर लगाने की आज्ञा थी, लेकिन प्रभावी और समझदार मंत्री अपने विभागीय साधनों-संसाधनों द्वारा इनकी संख्या बढ़ा लेते थे। ऐसे ही प्रधानमंत्री जी तो जानते ही हैं कि देश भर के साढ़े सात सौ से ज्यादा सांसद प्रतिवर्ष पचास हजार यूनिट बिजली बिना किराया दिए प्रयोग कर सकते हैं। मैं नहीं जानती कि इस सीमा के बाद भी वे बिजली का कितना प्रयोग करते हैं अथवा बचाते हैं, पर यह सच है कि मुफ्त बिजली योजना न भी बंद करनी हो तब भी यह सीमा अधिक से अधिक दो हजार यूनिट प्रतिमास से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
उचित तो यह रहेगा कि सांसदों का वेतन चाहे बढ़ा दें, पर जब तक वे बिजली का किराया अपने वेतन में से नहीं देंगे तब तक बिजली का संयमित प्रयोग हो ही नहीं सकता। इससे राष्ट्रीय बिजली बचत अभियान श्री मोदी जी के लक्ष्य अनुसार अवश्य ही बहुत कामयाब हो जाएगा।
बात केवल मुख्यमंत्रियों और अधिकारियों की नहीं, राजभवनों के बड़े-बड़े प्रांगणों, आंगनों और बाग-बगीचों में आवश्यकता से अधिक केवल सजावट के लिए अथवा बगीचों को जगमगाने के लिए जो बड़े-बड़े बल्ब लगाए जाते हैं, जिन पर किसी भी कटौती अथवा बिजली संकट का असर नहीं होता उन पर भी नियंत्रण तो होना ही चाहिए। संविधान के किसी अनुच्छेद की किसी भी धारा में यह नहीं लिखा गया है कि असीमित बिजली और पानी का प्रयोग राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री कर सकते हैं।
राष्ट्रपति भवन प्रतिदिन कितने यूनिट बिजली का दोहन करता है, यह भी पूरे देश को वैसे ही पता होना चाहिए जैसे सांसदों को दी गई छूट का ज्ञान है। जितना मैं जानती हूं उसमें राष्ट्रपति जी को, राज्यपाल जी को और प्रधानमंत्री जी सहित सभी मंत्रियों को सुसज्जित आवास की सुविधा देश के कानून ने दी है, पर आज के युग में जब भारत की जनसंख्या 125 करोड़ तक पहुंच गई तथा देश के करोड़ों लोग एक कच्ची छत के बिना ही समय व्यतीत कर रहे हैं ऐसे समय में कुछ व्यक्तियों के लिए कई एकड़ में फैले हुए विशाल भवन तथा हजारों गज में बने बंगले लोकतंत्र में सामान्य लोगों के साथ क्रूर मजाक है। सच यह है कि देश के हित शहीद होने वाले मदनलाल ढींगरा जैसे अनेक शहीदों को अपने वतन में स्मारक के लिए दो गज जमीन नहीं मिलती, पर कुछ बड़े नेताओं के लिए कई एकड़ का प्रबंध हो जाता है।
मैं यह जानती भी हूं और मानती भी हूं कि हमारे नए प्रधानमंत्री गरीब-अमीर के बीच की दूरी कम करना चाहते हैं। हर हाथ को काम और काम के पूरे दाम भी देना चाहते हैं, पर मुझे ऐसा लगता है कि उन्हें भी बिजली के सदुपयोग के लिए लाल बहादुर शास्त्री जी की तरह पहले अपने तथा सहकारी मंत्रियों से कम बिजली प्रयोग करने का आदर्श प्रस्तुत करना होगा। फिर बिजली भी बचेगी और जनता का यह दर्द भी दूर हो जाएगा कि एक बल्ब और पंखे की हवा के नीचे गुजारा करने वाला तो पूरा किराया दे, पर जनता के खून पसीने की कमाई से हजारों यूनिट प्रतिवर्ष प्रयोग करने वाले बिजली का दुरुपयोग करते रहें। इससे दो लाभ होंगे बिजली तो बचेगी ही प्रधानमंत्री जी का स्वप्न भी पूरा होगा और जनता जिस विषमता से पीडि़त है, वह पीड़ा भी समाप्त हो जाएगी। -लक्ष्मीकांता चावला
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