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देश में 'अखिल भारतीय शिक्षा स्वायत्त आयोग' बने। तभी देश की शिक्षा व्यवस्था सुधरेगी। शिक्षा शिक्षकों के हाथ में आए। शिक्षा को नौकरशाहों के हाथ से निकालकर शिक्षा विशेषज्ञों के
हाथों में दे देनी चाहिए। इसके लिए 'अखिल भारतीय शिक्षा सेवा' बने। जैसे आईएएस अधिकारी होते हैं उसी तरह आईईएस अधिकारी होने चाहिए। जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपना जीवन खफा दिया है, वही लोग परीक्षा दें और शिक्षा अधिकारी बनें, वही लोग शिक्षा की समितियों में आएं , शिक्षाविद् बनें। जब कोई छात्र एक सीढ़ी आगे बढ़ता है यानी वह अगली कक्षा में जाता है तो उसके बीच में तीन महीने का 'सेवा मिशन' का एक पाठ़्यक्रम होना चाहिए। इसके तहत वह छात्र गांवों और सेवा बस्तियों में जाए। वहां के लोगों को जाने, वहां की कमियों को परखे। इसी आधार पर उसे सेवा में डिप्लोमा का प्रमाणपत्र दिया जाए। विश्वविद्यालयों को कम से कम 10 गांव गोद लेने चाहिए। किसी बड़े विद्यालय को भी एक गांव या सेवा बस्ती गोद लेना चाहिए।
शिक्षा को एक राष्ट्रीय विषय बनाना चाहिए और सारे राजनीतिक दल यह घोषित करें कि शिक्षा से राजनीति का कोई सम्बंध नहीं है। कोई भी बच्चा देश की सम्पत्ति है। उसी के हाथ में देश का भविष्य है। इसलिए हर बच्चे को हर प्रकार से कुशल बनाना हमारा दायित्व है। हर विद्यालय में नौवीं कक्षा से प्रत्येक छात्र के लिए व्यावसायिक और शैक्षणिक दो धाराएं बननी चाहिए। इन दोनों में 60 और 40 का अनुपात होना चाहिए। जो छात्र व्यावसायिक धारा को चुनेगा उसे 40 प्रतिशत शैक्षणिक भी लेना होगा और जो छात्र शैक्षणिक लेगा उसे 40 प्रतिशत व्यावसायिक भी लेना होगा।
जब ये बच्चे 12वीं कर लेंगे तब देश के सामने इस तरह के आंकड़े सामने आ जाएंगे कि किन-किन क्षेत्रों में किस विधा के छात्र कितने हैं। इससे बच्चों को रोजगार पाने में बड़ी मदद मिलेगी। शोध के लिए जो बाधाएं हैं उन्हें भी दूर करने की जरूरत है। इससे शोधार्थियों की छिपी प्रतिभा सामने आएगी। देश को उनसे कुछ ऐसी चीज मिल सकती है जिसकी बड़ी जरूरत हो।
गुजरात की पुस्तकों का सत्य एवं तथ्य गत 25 जुलाई को इंडियन एक्सप्रेस में गुजरात पाठ्य-पुस्तक मंडल द्वाराप्रकाशित पुस्तकों के पर एक समाचार प्रकाशित हुआ। तत्पश्चात् इन पुस्तकोंपर देश के अधिकांश समाचार चैनलों पर चर्चाएं होने लगीं एवं अंग्रेजी समाचारपत्रों में लेख और समाचार प्रकाशित होने लगे, जो आज तक जारी है। अधिकतरसमाचार माध्यमों के द्वारा इस विषय की चर्चा के साथ श्री दीनानाथ बत्रा एवंराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम जोड़कर कहा जा रहा है कि शिक्षा काभगवाकरण किया जा रहा है। सच तो यह है कि इस सम्बंध में तथ्यों एवं प्रमाणोंको तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करने के प्रयास किए जा रहे हैं। |
इन मुकदमों में मिली जीत |
राजस्थान |
दिल्ली दिल्ली उच्च न्यायालय -वाद संख्या –3307/2011
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चण्डीगढ़ |
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