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स्वतंत्रता के समय 15 अगस्त, 1947 को ब्रिटिश सरकार ने सशस्त्र सेनाओं का भी विभाजन किया। भारत या पाकिस्तान की सेनाओं को देश अपनाने की छूट थी। उस समय जो हमारे ऊपर उत्तरदायित्व था वह समय के अनुपात में सेना की तीनों अंग निभा सकते थे। ऐसा भी माना जा रहा था कि चूंकि स्वतंत्रता मिल चुकी है अत: सशस्त्र सेनाओं की विकास की ओर ध्यान बाद में दिया जा सकता है। किन्तु 1948 में पाकिस्तान द्वारा जम्मू कश्मीर पर हमला और राज्य के शासक द्वारा भारत में विलय की घटना ने हमें सतर्क कर दिया।
प्रारम्भ के दशक
सीमा पर हुई इस घटना से भारत सरकार ने यह समझा कि सेना का विकास करना आवश्यक है। यहां से प्रारंभ हुई आधुनिकीकरण की प्रक्रिया। किन्तु सरहद का मौसम और उस समय उपलब्ध हथियार अत्यन्त ही पुराने किस्म के थे। अत: सिर्फ सैनिकों की बहाली का काम तेजी से होने लगा। जहां तक अस्त्र-शस्त्र से लैस करने का प्रश्न है भारत को सिर्फ रूढि़ किस्म की राइफल एवं फील्ड बन्दूकें और गोला बारूद ही उपलब्ध थे। देश में गरीबी थी और यंत्र निर्माण की क्षमता नहीं थी। सरकार का ध्यान जन साधारण की शिक्षा स्वास्थ्य एवं खेती-बाड़ी पर ज्यादा केन्द्रित था। हथियार देने के लिए प्रगतिशील पश्चिमी देश उत्सुक नहीं थे। उस वक्त सोवियत रूस ने भारत का साथ दिया। किन्तु पश्चिमी देशों ने यह एक गलत धारणा बना ली कि भारतवर्ष रूस की तरह ही एक कम्युनिस्ट देश बन जाएगा। इस धारणा ने पश्चिम को भारत से अलग-थलग कर दिया। भारत की क्षमता कारखाने लगाने और उद्योग में कम थी। औद्योगिक क्रांति के समय ब्रिटिश सरकार ने भारत को इसका लाभ उठाने से वंचित कर दिया था। अत: हर चीज मूल रूप से स्थापित करनी पड़ रही थी। भारतवर्ष इन गुत्थियों में उलझा रहा और 1962 में चीन ने पूर्वोत्तर सीमा पर धावा बोल दिया। इससे भारत की सुरक्षा कमजोरियां और सामने आ गईं।
1962-71 का दौर
इस नौ वर्ष के दौरान भारतवर्ष को तीन बार युद्ध लड़ने पड़े। 1962 में चीन ने हमला किया और 1965 में पाकिस्तान ने। जब भी पाकिस्तान में आन्तरिक संघर्ष होते हैं तो वह भारत की सीमा का उल्लंघन करता है ताकि वहां की जनता का ध्यान दूसरी ओर डाला जाए। साथ ही वहां की सेनाएं अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए भी लड़ाइयां करती रहती हैं। चीन को ध्यान में रखते हुए भारत ने रक्षा सामग्रियों की खरीद पर खर्च बढ़ाया। देश के अन्दर की सरकारी कम्पनियां भी धीरे-धीरे रूस की तकनीकी के मार्ग पर चलकर खुद भी रक्षा उपकरण बनाने लगे। किन्तु भारत की सीमा (थल एवं समुद्री) बहुत बड़ी है और भारत एक विशाल देश है। देश के नागरिकों के विकास के साथ-साथ रक्षा सामग्रियों का आधुनिकीकरण एक चट्टान जैसा जटिल है।
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भारत की तकनीकि क्षमता उस हिसाब से प्रगति नहीं कर पाई जो विकसित देश करने में सक्षम थे। आर्थिक उतार-चढ़ाव की वजह से हमारा देश विश्व के अग्रिणी देशों की श्रेणी में नहीं आ पा रहा था। फिर भी भारत की सशस्त्र सेनाएं अत्यंत ही कर्मठ एवं बहादुर हैं। उन्होंने 1961 के युद्ध में पाकिस्तान को हराकर उसके दो टुकड़े कर दिए और उसके बाद एक नए देश बंगलादेश का जन्म हुआ। इस युद्ध ने यह साबित कर दिया कि भारत किसी से कम नहीं है।
1971 के बाद
1961 के युद्ध के बाद भारतवर्ष अपनी आर्थिक अवस्था को ठीक करने में जुट गया। पाकिस्तान ने देखा कि अब बड़ी लड़ाई भारत के साथ लड़नी संभव नहीं। उन्होंने फिर घुसपैठ वाली युद्ध कला को आरम्भ किया । वहां के 'मुजाहिदीन' एवं युवक, पाकिस्तान सेना की देखरेख में भारत में आकर कम दुर्घटना वाली लड़ाई लड़ने लगे, जिसमें साधारण जनता को ज्यादा क्षति पहुंचने लगी। चीन भी यदा-कदा इसका फायदा उठाते हुए घुसपैठ करने लगा। चीन का आर्थिक विकास तेजी से हो रहा था,जबकि भारत में ऐसा नहीं हो पा रहा था। इस बीच अल-कायदा, लश्कर-ए-तैएबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठन पाकिस्तान में अत्यन्त सक्रिय हो गए थे। उनका सिर्फ एक ही ध्येय था भारत को क्षति पहुंचाना। भारत इनसे जूझता रहा है। चीन इस क्षेत्र में पहला देश है,जो परमाणु बम से लैस हो गया। भारत ने समझ लिया कि ये भारत की जनता के लिए भस्मासुर जैसा काम कर सकता है। अत: श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जो उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री थे, परमाणु परीक्षण करवाकर भारत को एक मजबूत देश के रूप में विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया। प्रक्षेपास्त्र एवं राकेट तकनीकी में भी भारत ने काफी प्रगति की और लगातार जारी है। आज भारत विश्व के शक्तिशाली देशों में से एक है। किन्तु बहुत सारी चुनौतियां हैं,जो सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक हैं। इसका वर्णन मैं अब करूंगा।
किस रास्ते पर चलना है?
अब प्रश्न उठता है कि आखिर हम बाकी विकसित देशों के बराबर क्यों नहीं आ सके हैं? किसी देश की शक्ति के दो पहलू होते हैं-
1. आर्थिक शक्ति 2. सामरिक शक्ति
अगर गौर से देखा जाए तो इसका अनुभव होगा कि सभी विकसित देश ने अपनी आर्थिक शक्ति को बढ़ाकर ऐसे स्तर पर पहुंचा दिया कि उस शक्ति की सुरक्षा के लिए सामरिक शक्ति को मजबूत करना आवश्यक हो गया। ये दो शक्तियां एक दूसरे के ऊपर निर्भर हैं। आर्थिक शक्ति से देश के नागरिकों का सामूहिक विकास होता है और सामरिक शक्ति से कोई और ताकत विकास पर आर्थिक प्रगति पर क्षति नहीं पहुंचा सकता है। अत: भारतवर्ष को सामरिक शक्ति मजबूत करने के लिए आर्थिक शक्ति को मजबूत करना अनिवार्य है। इसके लिए आज की सरकार वचनबद्ध है।
किन चीजों का विकास होना आवश्यक है?
1. पेय जल व्यवस्था
2. मानव संसाधन-जैसे- साफ-सफाई, बीमारी उन्मूलन एवं शिक्षा
इन सबके लिए आर्थिक सुधार आवश्यक है। यह हम अन्य देशों के सहयेाग से ही करने होंगे।
1. व्यापार बढ़ाने के उपाय ताकि अग्रिम देशों को भारत के साथ व्यापार करने में कठिनाइयों का सामना न करना पड़े।
2. कृषि विकास के आधुनिक तरीकों एवं तकनीकी का भारत में निर्माण हो।
3. रक्षा के क्षेत्र में उत्पादन एवं कारखानों के क्षेत्र का काम-काज तेजी से हो।
इन चीजों से हमारी अर्थ व्यवस्था में सुधार होगा और भारत की जनता का जीवन ज्यादा विकसित होगा। सड़क निर्माण, पोत निर्माण, सरकारी कार्यों की प्रवीणता में सुधार करना आवश्यक है।
जहां तक सशस्त्र सेनाओं की सामरिक शक्ति बढ़ाने का प्रश्न है। हमें यह मानकर चलना है कि जब तक हम अस्त्र-शस्त्र बनाने की क्षमता नहीं बढ़ाएंगे- हम विकसित देश नहीं हो सकते हैं। इसके लिए भारत की जो निजी कम्पनियां हैं, उन कंपनियों की क्षमता को भारत में अपने बलबूते शस्त्र निर्माण करना आवश्यक है। सरकारी उपक्रमों में कुशलता तो अवश्य है किन्तु उसका दायरा सीमित रह गया है। विदेशी पूंजी निवेश अगर निजी क्षेत्र में हो तो कारखानों, पोत, पनडुब्बी एवं हवाई जहाज बनाने की क्षमता बढ़ेगी और हम इनका निर्यात भी कर सकेंगे, जिससे देश की पूंजी और आर्थिक स्थिति और सुदृढ़ होगी। आज हम प्रक्षेपास्त्र एवं उपग्रह बना लेते हैं, किन्तु हवाई जहाज और आधुनिक अस्त्र-शस्त्र नहीं बनाते हैं। जब औद्योगिक क्रान्ति हुई तो भारत पराधीन था। विदेशी ताकतों ने हमारे उद्योग उपक्रम के आधुनिकीकरण से वंचित कर दिया। अब आवश्यकता है कि इस क्षेत्र के लिए निजी कम्पनियों को देश की सामूहिक शक्ति समझकर राष्ट्र निर्माण में सम्मिलित करना होगा। इसके लिए जो कानूनी परिवर्तन लाने चाहिए उसका सही समय आ गया है। एक बहुमत सरकार और शक्तिशाली नेतृत्व में ही यह सब कुछ संभव है। भारत की ओर अभी भी कोई आंख उठाकर नहीं देख सकता किन्तु हमे अन्य देशोंं की आंखों में आंख डालकर एक भारतीय होने का गर्व महसूस कराना आवश्यक है।
-शेखर सिन्हा, लेखक भारतीय नौसेना में पूर्व वाइस एडमिरल हैं।
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