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जीवन में नवस्फूर्ति का संचार करते संदेश

by
Mar 29, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 29 Mar 2014 14:29:32

वैसे तो स्वामी विवेकानंद के जीवन तथा विचारों से संबंधित विपुल साहित्य प्रकाशित हो चुका है, साथ ही समाज उनके जीवन के अनेकानेक घटनाक्रमों से परिचित है। आज स्वामी जी समाज के प्रत्येक वर्ग चाहे वह विद्यार्थी वर्ग हो, व्यापारी, राजनेता अथवा अन्य कोई वर्ग के लिए एक आदर्श पुरुष और प्रेरणा स्रोत के रूप में हैं।
लेखक त्रिलोकी नाथ सिनहा की ह्यविश्व-वंद्य ह्णऐसी ही एक पुस्तक है,जिसमें स्वामी जी के जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी बातोंं को, जो अधिकाधिक लोगों के संज्ञान में नहीं हैं। प्रमुखता से समाहित कि या गया है। पुस्तक में विशेष रूप से स्वामी जी के जीवन चरित्र के साथ उनके पूज्य गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस,गुरुमाता शारदा मां,शिष्या भगिनी निवेदिता, बेलूर मठ व रामकृष्ण मिशन का विस्तृत उल्लेख किया गया है। वैसे तो स्वामी जी के जीवन में अनेक ऐसी घटनायें हैं, जिन्हें एक पुस्तक या लेखनी द्वारा पृष्ठों की सीमाओं में बांधना शायद अकल्पनीय ही होगा। फिर भी लेखक ने इस अथाह सागर में से कुछ मोती निकालने का सतत प्रयास जरूर किया है।
पुस्तक के पहले खंड में स्वामी जी के संदेशों व घटनाओं को समाहित किया गया है। ह्यवंदनीय भारत! अभिनंदनीय भारतह्ण नाम से ही स्पष्ट है कि स्वामी जी के लिए अगर कोई सबसे अधिक पूज्य था तो वह भारत देश। स्वामी जी प्राय: कहा करते थे-ह्यपश्चिम कर्म भूमि है,जहांं का हर व्यक्ति नि:स्वार्थ कर्म करके अपने को शुद्ध कर सकता है किन्तु भारत एक पुण्यभूमि है,देव भूमि है,जहां शुद्ध ह्दय वाला व्यक्ति साक्षात् परमेश्वर से तादात्म्य स्थापित कर लेता है। भारत मेरी पुण्य भूमि है,धर्मभूमि है और कर्मभूमि।ह्ण स्वामी जी की स्पष्ट मान्यता थी कि यदि पृथ्वी पर ऐसा कोई देश है, जिसे हम धर्मभूमि,पूण्यभ्ूामि कह सकते हैं तो वह सिर्फ भारत भूमि ही है, जहां के कण-कण में इंर्श्वर का वास है। ऐसी है हमारी वंदनीय भूमि,अभिनंदनीय भारत।
स्वामी जी कहा करते थे कि युवा ही राष्ट्र का कर्णधारहै। उसको सही दिशा दिखाने की जरूरत है और जिस दिन उसे सही दिशा का भान हो गया उस दिन भारत को पुन: विश्व गुरु बनने से कोई रोक नहीं सकता। वे कहते थे कि हमारे देश के युवाओं को अपने देश की संस्कृति का पूरा ज्ञान होना चाहिए । पुस्तक के खंड ह्यस्वामी विवेकानंदह्ण में वर्णित है कि वे युवाओं को याद दिलाते थे कि तुम हिन्दू हो। उनका बोधपूर्ण आह्वान होता था -ह्यगर्व से कहो हम हिन्दू हैं।
हिन्दू होने के योग्य बनोह्ण उनका कथन था कि तुम तभी हिन्दू होने के अधिकारी हो,जब इस नाम को सुनते ही तुम्हारी रगों में शक्ति की विद्युत तरंग दौड़ जाये और यदि तुम अपने देश का कल्याण करना चाहते हो तो तुममें से प्रत्येक को गुरु गोविन्द सिंह बनना होगा।
स्वामी जी शुरू से जानते थे कि अपनी बात को जन-जन के ह्दय तक कैसे पहुंचाना है। अपनी बात को बिना किसी लाग-लपेट के प्रखरता व निर्भीकता के साथ पूरे विश्व के समक्ष कहना स्वामी जी से सीखा जा सकता है।
पुस्तक के खंड ह्यविवेकानंद जी की विदेश यात्रा एवं शिकागो सम्मेलनह्णमें साफ बताया है कि स्वामी जी ने ईसाई मत प्रचारकों द्वारा भारत में लालच देकर लोगों को मतान्तरित करने की कटु आलोचना की थी। बड़ी निर्भीकता से उन्होंने सम्मेलन में उपस्थित पादरियों को संबोधित करते हुए कहा था कि भारत में तो स्वयं धर्म की प्रधानता है। वहां चर्च बनाने व ईसा का संदेश देने की कोई आवश्यकता नहीं है, वहां अभाव है रोटी का ,अन्न का। हिन्दुस्थान के लाखों भूखे लोग सूखे गले से ह्यअन्न-अन्न,रोटी-रोटीह्ण चिल्ला रहे हैं।ह्ण क्षुधातुरों को धर्म का उपदेश देना उनका अनादर और तिरस्कार करना है। भूखों को आध्यात्मिक ज्ञान सिखाना उनका उपहास करना है। सम्मेलन में मौजूद पादरी अपनी आलोचना सुनने को विवश थे। ऐसी थी विलक्षणता स्वामी विवेकानन्द के महान व्यक्तित्व की।
स्वामी जी ने अपने पूरे जीवन में सेवा,शिक्षा व्यवस्था,नारी उत्थान, साहित्य,वेदान्त दर्शन सहित अनेक क्षेत्रों में अपने असीम योगदान से इस देश व समाज को एक असीम सौगात दी है। उनके दिए संदेश प्रत्येक व्यक्ति के लिए बहुमूल्य मोती के समान हैं,जिन्हें धारण करने से ही जीवन की दशा और दिशा बदल जाती है। वे अनंतकाल तक समस्त युवाओं के ह्दयों में उमंग,नवजीवन एवं नवस्फूर्ति का संचार करते रहेंगे। ल्ल अश्वनी कुमार मिश्र

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