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कौन्तेय नहीं राधेय कहो
अधिरथ ही पिता रहेंगे अब
अवमान घृणा की वृष्टि में
कुल उच्च का छत्र कहां था तब ?
पथ उचित-अनुचित जो कुछ भी हो
अब ज्ञान-शून्य चलना होगा
उपकार अकूत दुर्योधन के
प्रतिफल से दीन नहीं होगा।।
सम्बोधित करते सूर्य पुत्र
और स्मरण नहीं-यशु के नन्दन
रश्मियां सूर्य की चलें यदि
कब होता है उनमें विचलन
प्रयत्न थे मोहावर्तन के
फलीभूत न होंगे अब गिरिधर
शीतल कैसे कर लूं माधव
किरणें हैं ये अति उष्ण प्रखर।।
इतिहास स्मरण कर ले मुझको
परिस्थिति यदि विपरीत रहे
जो देता शरण है पूज्य वही
शुक नहीं श्वान की नीति रहे
जो वृक्ष तुम्हें देता प्रश्रय
देखो उस पर न कुठार उठे
मूलों को लहुसिंचित कर दो
पतझड़ में नव कोपल फूटे।।
जिसके फल से है क्षुधा मिटी
उस तरु पर प्राणोत्सर्ग करो
जो भरण और पोषण करती
उस मातृभूमि को स्वर्ग कहो।।
ल्ल अमरनाथ शर्मा
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