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आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए सोनिया-मनमोहन सरकार एक बार फिर मुस्लिम आरक्षण का राग अलापने लगी है। इसके लिए उसने 17 फरवरी को सर्वोच्च न्यायालय में एक अर्जी देकर गुहार लगाई है कि वह मुस्लिमों को आरक्षण देने की अन्तरिम इजाजत दे। अर्जी में सरकार ने लिखा है कि केन्द्रीय शैक्षणिक संस्थानों में पिछड़े वर्ग के मुस्लिमों को अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए निर्धारित 27 प्रतिशत के कोटे से 4.5 प्रतिशत आरक्षण देने की अनुमति दी जाए। महान्यायवादी मोहन पाराशरन ने आवेदन में न्यायालय से गुहार लगाते हुए लिखा है कि वह 13 जून,2012 को दिए गए अपने आदेश से राहत दे। इसके लिए उन्होंने 25 मार्च,2010 को न्यायालय द्वारा दिए गए उस आदेश को उद्धृत किया है,जिसमें आंध्र प्रदेश सरकार को पिछड़े मुस्लिमों को आरक्षण देने की अनुमति दी गई है। श्री पाराशरन ने मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम,न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल की खण्डपीठ से निवेदन किया है कि इस मामले की जल्दी सुनवाई हो। न्यायालय ने इस पर विचार तो किया, पर अन्तरिम आदेश नहीं दिया।
उल्लेखनीय है कि केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 22 दिसम्बर,2011 को कई राज्यों के विधान सभा चुनावों से पहले एक आदेश जारी कर कहा था कि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े अल्पसंख्यकों को केन्द्रीय शैक्षणिक संस्थानों में 4.5 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के इस आदेश को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। आंध्र उच्च न्यायालय ने 28 मई,2012 को सरकार के इस आदेश पर रोक लगा दी थी। इसके बाद केन्द्र सरकार ने आंध्र उच्च न्यायालय के इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने भी 13 जून,2012 को केन्द्र सरकार को झटका देते हुए आंध्र उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा था। तभी से यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में पड़ा हुआ है। अब जब लोक सभा चुनाव ने दस्तक दे दी है तब केन्द्र सरकार को लग रहा है कि इस मुद्दे को गरमाने से उसे चुनाव में मुस्लिमों का समर्थन मिल जाएगा, जबकि भाजपा इसको कांग्रेस के मुस्लिम तुष्टीकरण का ही एक हिस्सा मानती है। इसलिए वह इस आरक्षण का पुरजोर विरोध कर रही है,जबकि अन्य सेकुलर दल इस मामले पर चुप हैं। प्रतिनिधि
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