गुजरात का सरदार
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गुजरात का सरदार

by
Dec 28, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 28 Dec 2013 14:38:04

-मायाराम पतंग

बारदोली गुजरात का एक प्रसिद्ध तालुका है। यहां भयंकर बाढ़ से पूरी तरह राहत भी नहीं मिल पाई थी कि अकाल ने आक्रमण कर दिया। किसानों के पास न बैल न बीज। जुताई के बिना बुवाई कैसे करें? सरकार विदेशी थी। भला अंग्रेज को इससे क्या? वह तो जनता से समय पर कर लेने के लिए सख्त कदम उठाती थी। सरकार ने देर से कर जमा करने वालों पर तीस प्रतिशत अधिक वसूली का ऐलान कर दिया। ऐसे समय में लोग वल्लभ भाई पटेल के पास पहुंचे। लोग बोले, 'आप ही मार्गदर्शन कीजिए। अब हमें तो कुछ सूझता नहीं।' सरदार ने दृढ़तापूर्वक कहा, 'खूब सोच-समझ लो। सरकार का विरोध करेंगे तो सरकार भी आपको दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। चावल-दाल, यहां तक कि दूध तक के लिए तरस जाओगे। महिलाओं और बच्चों को तड़पते देखना पड़ेगा। यदि सरकार की हर यातना सहने को तैयार हो तो आओ, हम सब मिलकर सरकार के विरुद्ध संघर्ष करें।'
किसान तैयार हो गए। उन्हें सरदार पटेल के नेतृत्व पर भरोसा था। उनकी दृढ़ता, चतुराई और गंभीरता पर भी विश्वास था। उन्होंने सरदार के बचपन की घटना एक-दूसरे से सुन रखी थी। जब उनकी कांख में फोड़ा निकला था। वैद्य ने कहा था, सलाख गरम करके इसे फोड़ दें। मवाद निकल जाएगी और फोड़ा बैठ जाएगा। वल्लभभाई लुहार के पास गए। सलाखें भट्ठी में लाल कर दी गईं। लोहार ने जब बालक वल्लभ को देखा, तो उसकी हिम्मत नहीं हुई। इतने छोटे बालक के गरम सलाख दागने की बात से उसका दिल दहल गया। वल्लभ ने झट से सलाख उससे छीनी और अपने फोड़े में घेांप दी। पास खड़े लोग चकित रह गए, पर वल्लभ ने उफ तक नहीं की।
ऐसे दृढ़ मन वाले नेता की अगुवाई में किसानों को अपनी विजय का भरोसा दिखाई पड़ रहा था। उन्हें लग रहा था कि वल्लभभाई में कर्तव्यनिष्ठा कूट-कूटकर भरी है। जब वे वकील थे तो एक दिन किसी मुकदमे की पैरवी कर रहे थे। वे अपनी दलीलें लगातार पेश कर रहे थे। तभी एक चपरासी ने उन्हें तार पकड़ाया। उन्होंने पढ़ा और कागज जेब में रख लिया। पुन: अपनी जिरह आगे बढ़ाई। जिरह समाप्त होने पर दूसरे वकील ने पूछा- परचे में क्या किसी ने विशेष बिन्दु लिखे थे? सरदार ने सहज भाव से कहा- नहीं मेरी धर्मपत्नी की मृत्यु की सूचना थी। वह वकील चकित रह गया। इतनी बड़ी घटना पर जिरह रोकी की जा सकती थी। पर सरदार पटेल तो लोहे के बने थे, उनके लिए कर्तव्यनिष्ठा महत्वपूर्ण थी। सरदार पटेल ने नेतृत्व करना स्वीकार कर लिया। संघर्ष का बिगुल बज गया। ऐलान कर दिया, कोई किसान एक पाई भी लगान नहीं देगा। पटेल ने हर क्षेत्र में स्वयंसेवक भर्ती किए। हर केन्द्र में नेता और संदेशवाहक नियुक्त किए गए। सरकारी अधिकारियों की प्रत्येक गतिविधि की जानकारी प्राप्त करने के लिए गुप्तचर नियुक्त किए।
बंबई के गवर्नर ने घोषणा कर दी, सरकार किसान आंदोलन को दबाने के लिए हर सख्त कदम उठाएगी। सरकार ने पहला कदम उठाया, किसानों को धमकाने के लिए गुंडे भेजे गए। ये गुंडे मारपीट करते, परिवार को लूटते, बेइज्जती करते, परंतु किसान नहीं झुके। सरकार ने इस कदम के असफल होने पर दूसरा बड़ा कदम उठाया। जिन किसानों का लगान जमा नहीं  हुआ, उनकी संपत्ति को नीलाम कर दिया जाए, नीलाम करने वाले अधिकारी जैसे ही किसी गांव में आने वाले होते, स्वयंसेवक बिगुल बजा देते। किसान अपने घरों में ताला लगाकर जंगलों में भाग जाते। जब खरीदने वाला भी कोई न होता तो नीलामी कैसे होती? अगले कदम में सरकार शहरों से अमीर आदमी साथ लाने लगी, ताकि वे नीलामी में किसानों के घर तथा खेत खरीद लें। सरदार पटेल ने गांव वालों को कह दिया कि शहर से आए अमीरों को कोई अन्न-पानी तक न दें। अवसर मिले तो उन्हें धमका भी दें। कोई शहरी गांव की जमीन नीलामी में न ले सका। इस प्रकार जन आंदोलन ने जोर पकड़ लिया। वल्लभभाई को तभी से सरदार पटेल कहा जाने लगा। किसान आंदोलन की विजय हुई। बारदोली के किसानों ने सरदार पटेल की सराहना की, उनकी महान नेतृत्व क्षमता के लिए उन्हें मानपत्र भेंट किया। सरदार ने अपने उद्बोधन में कहा, महान मैं नहीं, महात्मा गांधी हैं। सत्याग्रह की जड़ी उन्होंने ही मुझे दी। आप लोगों की आत्मा और दृढ़ता से ही आंदोलन सफल हुआ। अत: मानपत्र के शब्द आपकी प्रशंसा के हैं और कोरा कागज मेरे हिस्से का है।

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