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फोर्ड फाउण्डेशन के भारत स्थित कार्यालय के प्रभारी, स्टीवेन स्लोनिक ने भी स्वीकार किया कि फोर्ड फाउण्डेशन ने केजरीवाल के एन.जी.ओ. कबीर को प्रथम बार 2005 में 1,72,000 डॉलर व दूसरी बार 2008 में 1,97,000 अमरीकी डॉलर स्वीकृत किये गये थे। उन्होंने इसकी अन्तिम किश्त 2010 में दी गयी बतलायी और यह भी बतलाया कि 2011 में भी फाउण्डेशन ने एन.जी.ओ. कबीर को सहायता स्वीकृत की थी पर एन.जी.ओ. कबीर ने सहायता की आवश्यकता नहीं होने की बात कही थी। स्लोनिक ने यह भी कहा कि 2005 से दी जा रही यह सहायता उनके एन.जी.ओ. को सूचना के अधिकार हेतु अभियान चलाने के लिये दी गयी थी। स्मरण रहे, वर्ष 2006 में ही फोर्ड फाउण्डेशन प्रायोजित रमन मैग्सेसे पुरस्कार से केजरीवाल को सम्मानित किया गया था। प्रश्न यह उठता है कि देश में उन्होंने भष्ट्राचार रोधी आन्दोलन को चाहे प्रायोजित नहीं किया, लेकिन, सूचना के अधिकार सम्बन्धी अभियान के प्रायोजन में फाउण्डेशन की क्या प्रेरणा रही है?
फोर्ड फाउण्डेशन भारत में वर्ष 1952 से कार्यरत है। प्रारम्भिक काल में यह योजना आयोग के साथ मिलकर कार्य करता था। देश में रासायनिक कृषि को बढ़ावा देकर हरित क्रान्ति में फाउण्डेशन सक्रिय था। लेकिन, 1972 से फाउण्डेशन ने देश में अपने सहायता कार्यक्रमों में आन्दोलन धर्मी संगठनों के विशिष्ट अभियानों के लिये अर्थात एन.जी.ओ. श्रेणी के संगठनों को प्राथमिकता देना प्रारम्भ कर दिया। स्थापना से अब तक फोर्ड फाउण्डेशन 3500 अनुदानों के रूप में 1250 संस्थाओं को 50.8 करोड़ अमरीकी डॉलर (आज की विनिमय दर पर 3150 करोड रुपये तुल्य) राशि बांट चुका है।
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