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तुफैल चतुर्वेदी
इस्लाम के जन्म से ही वहाबी विचारधारा उसका प्रमुख अंग रही है। ये विचारधारा वहाब ने नहीं पैदा की थी बल्कि फैलायी थी और यही असली इस्लाम है। इस्लाम की अन्य विचारधारायें उस ओर बढ़ती हुई धारायें हैं । कई बार ये बिदअत (इस्लाम के इतर जाना) कहलाती हैं। कई बार इन्हें इज्तिहाद (इस्लाम के आधार ग्रंथों में किसी बात पर स्पष्ट आदेश न होने पर मूल इस्लाम के सापेक्ष्य किन्तु स्वतंत्र चिंतन) कहा जाता है। इस सिलसिले में पूरे संस्थान रहे हैं। जैसे शिया मुसलमानों में खानदाने-इज्तिहाद, यानी उसी विषय पर काम करने वाले परिवार स्वयं में संस्था रही है। इस्लाम ह्यकनवर्जनह्ण का मजहब है। कोई भी व्यक्ति पहले दिन पूर्णतया मुसलमान नहीं बनता। ये कई बार पीढि़यों तक चलने वाला कार्य है। भारत के मुसलमान अब तक उन अथोंर् में मुसलमान नहीं बने हैं और इसी काम को करने में दशकों से तब्लीगी जमातें लगी हुई हैं। इकबाल (फतवा और जवाबे-फतवा) और हाली (मुसद्दस) ने अपने काव्य में इसी का रोना रोया है। इन्हें सामान्य चीज मत मानिये। कश्मीर को इस स्थिति में तब्लीगी जमातों और मदरसों ने ही पहुंचाया है। इस्लाम के पांच अंगों में पहला तौहीद है और यही उसका आधार है। तौहीद यानी खुदा एक है और उसी की इबादत होनी चाहिये। कुरआन उसकी वाणी है और मुहम्मद उसका आखिरी पैगम्बर है। शेष बातें इसे आधार मानने के बाद आती हैं। किसी भी इस्लामी किताब से इसकी पुष्टि की जा सकती है। इसे लागू करने की विधि के बारे में कुरआन की कुछ आयतें और हदीस के दृष्टान्त प्रस्तुत हैं।
मूर्ति पूजक लोग नापाक होते हैं (9-28)जो कोई अल्लाह के साथ किसी को शरीक करेगा, उसके लिये उन्होंने जन्नत हराम कर दी है। उसका ठिकाना जहन्नुम है(5-72)ओ मुसलमानो तुम गैर मुसलमानों से लड़ो। (9-123)और तुम उनको जहां पाओ कत्ल करो(2-191) काफिरों से तब तक लड़ते रहो जब तक दीन पूरे का पूरा अल्लाह के लिये न हो जाये (8-39) ऐ नबी! काफिरों के साथ जिहाद करो और उन पर सख्ती करो। उनका ठिकाना जहन्नुम है(9-73और 66-9)।
तुम मनुष्य जाति में सबसे अच्छे समुदाय हो, और तुम्हें सबको सही राह पर लाने और गलत को रोकने के काम पर नियुक्त किया गया है (3-110)।
आप इन पंक्तियों की अवहेलना इस कारण नहीं कर सकते कि यही वास्तविक इस्लाम है। स्वयं मुहम्मद जी ने मक्का के मंदिर की 360 मूर्तियां तोड़ी थीं और उस मंदिर को मस्जिद में बदला था। आप इस बात को सदियों पहले बीती बात कह कर नहीं टाल सकते कि मुहम्मद जी का स्तर सामान्य पैगम्बरों जैसा नहीं है। उनका किया सुन्नत है यानी उनके किये को, जो हदीसों में लिखा है अपने जीवन में उतारना सबाब का काम है फर्ज है।
सेम्युअल हटिंगटन की किताब ह्यक्लेशेस ऑफ सिविलाइजेशनह्ण गलत मानी जा सकती है मगर उसके कथन और तथ्यों की पुष्टि तो न केवल इस्लाम के मूल ग्रंथों से होती है बल्कि विभिन्न देशों के इस्लामी समाज के नेताओं के वक्तव्य, उन नेताओं का मुसलमानों द्वारा चयन ही बताता है कि वस्तुस्थिति क्या है। 9 -11 में मारे गये हत्यारों की फोटो की टीशर्ट सारी दुनिया में मिलती और बिकती है। तालिबान के पक्ष में सामान्य मुसलमान में सहानुभूति का भाव पाया जाता है।
विद्वानो! आतंकवाद मुख्य क्रिया नहीं है। इस्लाम को बढ़ाने के लिये उसके पक्ष में डर पैदा कर के उसकी आक्रामकता पर चुप रहने की योजना है। ये कार्य स्वयं मुहम्मद जी, उनके साथियों ने सफलतापूर्वक अरब इत्यादि देशों में किया था। यही अब सारी दुनिया में चल रहा है। ये वैचारिक लड़ाई है और इसे विचार के आधार पर चुनौती दी ही जानी चाहिए। इसी आतंकवाद की नीति से अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगलादेश ही नहीं बल्कि अरब देश इसका शिकार हुए थे। ये सारे क्षेत्र इस्लाम की जकड़ में इसी तरह से आये हैं। अरब के लोगों ने भी इस्लाम सहज रूप से नहीं स्वीकारा था। वहां भी रक्तपात हुआ, नरसंहार हुए और परिणाम सामने है। खुर्शीद अनवर के लेख एक चतुर वकील के केस की तरह होते हैं जो अपना केस जीतने के लिये तथ्यों का चयन करता है। शुद्घ इस्लाम वही है जो वहाबी, तालिबानी चाहते और कहते हैं। इस्लाम के शेष सभी फिरके बिदअत हैं और जहां-जहां इस्लाम का शासन आता है वहां इनकी कोई सम्भावना नहीं रह जाती। उन्हें बलपूर्वक नष्ट कर दिया जाता। कवाल (मुजफ्फरनगर का एक गांव, जहां दो हिन्दुओं को बड़ी निर्ममता पूर्वक मारा गया था) से कीनिया तक यही योजना काम कर रही है।
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