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-आलोक गोस्वामी
बंगलादेश की पुलिस ने बीएनपी अध्यक्ष, पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया को उनके घर में लगभग नजरबंद कर लिया है और पार्टी कार्यकर्ताओं को भीतर जाने की मनाही है। ऐसा शायद खालिदा जिया के उग्र तेवर को देखते हुए किया गया है। उन्होंने आगामी 5 जनवरी को होने जा रहे आम चुनावों के विरुद्घ झंडा उठा रखा है और अपने समर्थकों से ढाका कूच करने का आह्वान किया है। खालिदा इस चुनाव को एक ढकोसला बताती हैं। दरअसल बंगलादेश में '71 के युद्घ अपराधियों को सजा देने का जो सिलसिला शुरू हुआ और कट्टरवादी जमाते इस्लामी के नेता कादिर मुल्ला को 12 दिसम्बर को फांसी चढ़ाया गया उस पर बीएनपी ने जमात के साथ मिलकर खूब उपद्रव मचाया था। लेकिन पुलिस को सख्त हिदायतें थीं कि उन्मादियों से ढिलाई नहीं होगी, इसलिए जान माल की हानि उतनी नहीं हुई जितनी जमात वाले शायद चाहते थे। मुख्य निशाना हिन्दुओं को बनाया गया था, क्योंकि मुल्ला और उसके साथी जमातियों ने '71 में हिन्दुओं की हत्याओं और बलात्कार में बढ़-चढ़कर भाग लिया था। खालिदा को तब लगा होगा कि हसीना सरकार दबाव में आ जाएगी, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। लिहाजा खालिदा ने अब 5 जनवरी के चुनाव टालने के लिए कथित अफरातफरी मचाने की गरज से ढाका को जड़ कर देने की योजना बनाई है। अपनी मुख्य घटक जमाते इस्लामी को चुनाव से बाहर कर देने के बाद वैसे भी खालिदा की चुनावी ताकत बहुत कम हो चुकी है। बंगलादेश के राजनीतिक जानकारों का मानना है कि खालिदा जिस ह्यलोकतंत्रह्ण की दुहाई देती हैं उस पर खुद उनकी पार्टी ही नहीं चलती।
'मुस्लिम ब्रदरहुड' अब आतंकी घोषित, पर अमरीका का इनकार
इजिप्ट की सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति मुरसी की मुस्लिम ब्रदरहुड पर शिंकजा कस दिया है। ब्रदरहुड के प्रति खुलेआम समर्थन जताने वालों को जेल में डाला जा रहा है। सेना को चौकस कर दिया गया है। ब्रदरहुड के जमावड़ों को तुरत रफा-दफा कर देने के आदेश दिए गए हैं। इजिप्ट में एक महीने से कथित इस्लामी आतंकियों की हिंसक कार्रवाइयां चल रही हैं। 24 दिसम्बर को पुलिस मुख्यालय पर बम धमाके में 13 मारे गए और 100 से ज्यादा घायल हुए थे। सरकारी प्रवक्ता ने धमाके के पीछे मुरसी की मुस्लिम ब्रदरहुड को दोषी ठहराते हुए उसे 'आतंकी संगठन' करार दिया। इजिप्ट की एक अदालत मुस्लिम ब्रदरहुड की तमाम गतिविधियों को पहले ही गैरकानूनी ठहरा चुकी है। लेकिन अमरीका फूंक-फूंककर कदम रख रहा है। अमरीकी विदेश मंत्री जॉन कैरी ने इजिप्ट के नेताओं को फोन करके ब्रदरहुड को आतंकी घोषित करने कर ह्यचिंताह्ण जताई है। ओबामा प्रशासन के सूत्रों की मानें तो, अमरीका ब्रदरहुड पर आतंकी लेबल लगाने के बारे में न बात कर रहा है, न उस दिशा में सोच ही रहा है। अमरीका से आने वाली खबरों से पता चलता है कि अमरीकी नेता ब्रदरहुड पर हो रही सरकारी कार्रवाई को 'जरूरत से ज्यादा' मान रहे हैं।
माओवादी संविधान सभा में आने को राजी, पर धंधलका जारी
नेपाल में संविधान सभा का बहिष्कार खत्म करने को हालांकि माओवादी तैयार तो हुए हैं, लेकिन उनका रिकार्ड देखते हुए उन पर किसी को सहज भरोसा नहीं होता। 24 दिसम्बर को माओवादियों ने नया संविधान तैयार करने वाली संविधान सभा में बैठने और राजनीतिक गतिरोध दूर करने की घोषणा की। उनकी 'चुनावों में धांधली' की शिकायत पर कार्रवाई के लिए एक संसदीय बोर्ड गठित करने की बात है। नई संविधान सभा की राह में रोड़ा सिर्फ इतना ही नहीं है। नए घटनाक्रम में वहां राष्ट्रपति रामबरन यादव और मंत्रिमंडल के प्रमुख खिलराज रेग्मी में इस बात को लेकर ठनी हुई है कि संविधान सभा को आहूत करने का अधिकार किसका है। सरकारी प्रवक्ता और मंत्री माधव पौडेल की मानें तो यह हक मंत्रिमंडल के मुखिया का है। प्रधानमंत्री के नाते जी़ पी. कोइराला ने पहली संविधान सभा आहूत की थी। लेकिन राष्ट्रपति यादव, सूत्रों के अनुसार, रेग्मी से संविधान में संशोधन कराना चाहते हैं ताकि यह हक उनको मिले। हालांकि रेग्मी ने इसके लिए साफ इनकार कर दिया है। माओवादी रोड़ा हटने के बाद राष्ट्रपति और मंत्रिमंडल प्रमुख के बीच पैदा हुई इस नई खींचतान ने नई संविधान सभा की पहली बैठक से पहले धुंधलके को गहरा ही किया है।
शिंतो मंदिर में शिंजो का जाना पड़ोसियों को नहीं भाया
26 दिसम्बर को जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे टोकियो के शिंतो समुदाय के यासूकुनी मंदिर क्या गये, पड़ोसी देशों की भौंहें तन गईं। चीन, दक्षिण कोरिया, रूस और अमरीका ने शिंजो के शिंतो मंदिर में जाने को लेकर सरकारी प्रेस विज्ञप्तियां जारी करके अपनी नाराजगी जगजाहिर की। आखिर मामला क्या है? शिंजो का उस मंदिर में जाना पड़ोसियों को रास क्यों नहीं आया? अपने पहले प्रधानमंत्रित्व काल में शिंतो ने जिस मंदिर से दूरी बनाए रखी अब वे उस मंदिर में तमाम विरोधों की आशंका के बावजूद गए तो क्यों गए? दरअसल यासूकुनी मंदिर वही मंदिर है जिसने जापान द्वारा लड़े गए तमाम युद्धों के साथ ही दूसरे विश्वयुद्ध में जापान की तरफ से लड़ते हुए मारे जाने वाले सैनिकों का बड़े स्तर पर सम्मान किया था यानी उसकी नजर में वे 'जापान के शहीद' थे। लेकिन विवाद की जड़ यह है कि दूसरे विश्वयुद्ध में चीन, दक्षिण कोरिया और मित्र सेनाओं के सैनिक बड़ी संख्या में मारे गए थे। चीन और दक्षिण कोरिया वालों को जापानी सैनिक 'हत्यारे' ही लगते हैं। तो जापान के नेताओं ने भी अब तक उस मंदिर से दूरी बनाए रखी थी ताकि चीन और दक्षिण कोरिया से रिश्तों में नजदीकियां बढ़ें। लेकिन टापू और वायुक्षेत्र के मामले में पिछले दिनों चीन से खींचतान बढ़ने के बाद जापान के प्रधानमंत्री ने इस मंदिर में जाकर चीन को साफ संकेत दिये हैं। अमरीका और रूस उन संकेतों को समझने में देरी कर ही नहीं सकते।
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