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पूर्वी उत्तर प्रदेश में राप्ति नदी के किनारे बसा है गोरखपुर। यह प्राचीन और सीमांचल शहर है। त्रेता युग में महायोगी गोरखनाथ ने इसी भूमि पर तपस्या की थी। यहां से नेपाल की सीमा मात्र 70 किलोमीटर दूर है। सीमा पर स्थित बाजार सनौली के लिए दिन-रात वाहन चलते रहते हैं। सनौली से त्रिसूली नदी के किनारे से नेपाल का राष्ट्रीय उच्च मार्ग जाता है जो भारत को काठमांडू से जोड़ता है। काठमांडू यहां से लगभग 270 किमी है। सीमा के पास भारत का अंतिम रेलवे स्टेशन नौतनवां है। गोरखपुर से यहां रेलगाडि़यां चलती हैं। 130 किमी पूरब में बिहार राज्य की सीमा है। गोरखपुर में एनई रेलवे का मुख्यालय है। नई दिल्ली से गोरखपुर की दूरी 790 किलोमीटर है। राज्य की राजधानी लखनऊ लगभग 350 किमी की दूरी पर स्थित है।
गोरखपुर रेल और सड़कमार्ग से भारत के प्राय: सभी शहरों से जुड़ा है। सिर्फ दिल्ली की ओर से प्रतिदिन लगभग डेढ़ दर्जन एक्सप्रेस गाडि़यां गोरखपुर के रास्ते पूर्वी भाग में जाती हैं। प्रतिवर्ष भारी संख्या में धर्मप्रेमी लोग गोरखनाथ मंदिर में दर्शन करने आते हैं। मकर संक्रंाति और विजयादशमी के समय यहां मेला लगता है। प्रत्येक मंगलवार को सर्वाधिक श्रद्धालु बाबा गोरखनाथ का दर्शन करते हैं। स्टेशन से मंदिर की दूरी चार किमी है। यात्रियों को गोरखनाथ जी का दर्शन करने के पश्चात् गीताप्रेस अवश्य देखना चाहिए। गीता वाटिका भी देख सकते हैं। यहीं धर्म-साहित्य के प्रसिद्ध लेखक हनुमान प्रसाद पोद्दार (भाई जी) ने जीवन बिताया था। यदि आप पर्यटन की दृष्टि से गोरखपुर आते हैं तो पास में ही स्थित कबीर की साधना स्थल मगहर और स्वतंत्रता आन्दोलन में अग्रणी चौराचौरी जरूर जाएं। ठहरने के लिए सबसे बड़ी धर्मशाला गोरखनाथ मंदिर परिसर में है। स्टेशन रोड पर दर्जनों होटल उपलब्ध हैं जिनमें आप ठहर सकते हैं।
धरती पर आए गोरखनाथ
कहते हैं कि एक बार योगसिद्ध गुरु मत्स्येन्द्र नाथ भिक्षाटन करते हुए जयश्री नगर में पहुंचे। वहां एक महिला भिक्षा देने आई। वह बहुत उदास थी। पूछने पर बताया कि संतान नहीं होने से संसार फीका जान पड़ता है। गुरु मत्स्येन्द्र नाथ दया की मूर्ति थे। उन्होंने अपनी थैली से भभूत निकाला और महिला के हाथों में रखते हुए कहा इसे खा लेना तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। इतना कहकर वह वहां से चले गए। महिला ने डरकर भभूत को गोबर के ढेर पर रख दिया। इस घटना के बारह वर्ष पश्चात् मत्स्येन्द्र नाथ पुन: जयश्री नगर में आए। उन्होंने महिला के दरवाजे पर अलख लगाया। उससे पूछा- तेरा बेटा तो बारह वर्ष का हो गया होगा, देखूं तो वह कहां है। यह बात सुनकर वह महिला घबरा गई। उसने सब हाल कह सुनाया। गुरुजी बोले मैया वह भभूत अभिमंत्रित था। असफल नहीं हो सकता। मत्स्येन्द्र नाथ उसे अपने साथ लेकर गोबर की ढेरी के पास पहुंचे। वहां अलख जगाया। गुरु का शब्द सुुनते ही बारह वर्ष का तेजपुंज बालक प्रकट हुआ। बालक गोरखनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मत्स्येन्द्र नाथ ने उसे अपने साथ रखा और योगशास्त्र की पूरी शिक्षा दी।
गोरखपुर पहुंचे गोरखनाथ
गोरखनाथ ने घोर तपस्या कर अनेक सिद्धियां प्राप्त कीं। एक बार वे घूमते हुए ज्वाला देवी के मंदिर में पहुंचे। वहां ज्वाला मां ने उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया। गोरखनाथ ने कहा- खिचड़ी बनेगी, तुम पानी गर्म करो तब तक मैं भिक्षाटन करके चावल-दाल लाता हूं। मां पानी गर्म करने लगी, इधर गोरखनाथ भिक्षा मांगते हुए एक घने जंगल में पहुंच गए जिसका नाम बहुत बाद में गोरखपुर रखा गया। जिस दिन गोरखनाथ यहां पहुंचे वह खिचड़ी (मकर संक्रांति) का दिन था। तब से प्रतिवर्ष खिचड़ी के दिन यहां के मन्दिर में खिचड़ी बनाने के लिए चावल-दाल चढ़ाने की परंपरा चल पड़ी। यहां खिचड़ी के दिन विशाल मेला लगता है। जिस समय गोरखनाथ ने इस पुण्यभूमि को तपस्या के लिए चुना उस समय यह सारा क्षेत्र वन प्रदेश था। जंगली पशुओं के साथ यहां लुटेरों का बड़ा आतंक था। निवासी असभ्य थे। यहां की सीधी-सादी जनता जरूर इस दिव्य मानव की ओर आकर्षित हुई। हालांकि वे सांसारिक परिस्थितियों पर बिल्कुल ध्यान नहीं देते थे। फिर भी यहां की दीन-हीन जनता उनके प्रति भक्ति भावना से भर गई। जब वे कोई सेवा का मौका देते तो यहां के लोग अपना अहोभाग्य मानते थे। कलांतर में यहां योग साधना केन्द्र की स्थापना हुई। कुछ ही दिनों में इस आश्रम के महान संत ने इस स्थान को छोड़ दिया, फिर भी उनकी आध्यात्मिक उपस्थिति का अनुभव सभी लोग करते रहे। उनके द्वारा स्थापित आश्रम विकसित हुआ। उसके प्रभाव का विस्तार हुआ। बड़ा मन्दिर, मठ, तालाब, बाग-बगीचा आदि बनाया गया।
मुस्लिम शासकों ने मंदिर तोड़ा
यह मठ संसार से विरक्ति रखने वालों का मुख्य केन्द्र बन गया। इस मठ की प्रसिद्धि अनेक देशों में फैली। इसका परिणाम यह हुआ कि मुसलमान आततायियों ने यहां भयंकर जुल्म किया। प्राप्त जानकारी के अनुसार तीन बार यहां के मठ और मंदिर को ध्वस्त किया गया। एक बार अलाउद्दीन के आदेश से मंदिर को तोड़ डाला गया और यहां के योगियों को मार पीट कर भगा दिया गया। परन्तु जनता के दिलों से गोरखनाथ जी को नहीं निकाला जा सकता था। मठ-मन्दिर का निर्माण हुआ और योगी पुन: लौट आए। दूसरी बार बाबर के शासनकाल में राम मंदिर को तहस-नहस करने वाला अब्दुल मीर बाकी ने इस धर्मस्थल को नष्ट किया। यहां के योगियों ने फिर से मठ का निर्माण किया। मठ का विस्तार हुआ। औरंगजेब के शासनकाल में इसे पूर्णत: नष्ट कर दिया गया, परन्तु शिव-गोरख की कृपा ने इस स्थान को अमर बना दिया। बाद में अवध के एक मुसलमान शासक ने इस मठ के लिए अच्छी भू-सम्पत्ति प्रदान की। बार-बार मंदिर के टूटने के बावजूद भक्तों ने गोरखनाथ के तपस्या स्थान को कभी नहीं छोड़ा और हर बार मंदिर का निर्माण उसी पुण्य भूमि पर हुआ।
महन्तों की दिव्य परम्परा
गोरखनाथ मठ के महन्त गुरु गोरखनाथ के प्रतिनिधि माने जाते हैं। यहां के प्रथम महन्त योगी बदरनाथ जी थे। उन्होंने यहां मन्दिर का निर्माण कराया। आधुनिक मन्दिर के एक भवन में सभी स्वर्गीय महन्तों की प्रस्तर प्रतिमाएं सजायी गई हैं। इन प्रतिमाओं को देखकर यहां आने वाले भक्तों को प्रेरणा मिलती है। योगसिद्ध गंभीर नाथ को गोरखनाथ का अवतार माना जाता है। उनके यौगिक चमत्कार के अनेक किस्से कहे जाते हैं। एक बार धनी परिवार की विधवा रोती हुई गंभीर नाथ के पास आई और निवेदन किया कि मेरा पुत्र शिक्षा प्राप्ति के लिए लंदन गया है। उसके मित्र का तार आया है कि वह यहां नहीं है। योगीराज ने उसे बाहर प्रतीक्षा करने को कहा और स्वयं एक कोठरी में चले गए। आधे घंटे बाद वह बंद कोठरी से बाहर निकले। उन्होंने महिला से कहा तुम्हारा लड़का ठीक है, वह सोमवार को तुम्हारे पास आ जाएगा। अगले बुधवार को वह नौजवान अपनी मां के साथ मंदिर में आया। बाबा को देखते ही वह चकित हो गया और पूछा आप कब आ गए? उसने बताया कि हमारे जहाज को मुम्बई पहुंचने में तीन दिन शेष रह गए थे। मेरे कैबिन के सामने बाबाजी खड़े थे। मेरे से पांच मिनट तक बात की। फिर मुझे कभी नहीं मिले। यह उसी समय की बात है जब गंभीरनाथ कोठरी में बन्द थे। उनके जीवन की अनेक कहानियां लोकोक्ति बन गई हैं।
गोरखनाथ मंदिर की ऐश्वर्यवृद्धि करने के कारण महन्त दिग्विजयनाथ जी का नाम अमर है। वे नरकेशरी महाराणा प्रताप के वंशज थे। मंदिर का पुनर्निर्माण कर उसका भव्य कायाकल्प किया। उन्होंने अनेक शिक्षण संस्थाओं का निर्माण किया। उनके प्रयास से गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। अब इस मंदिर के महंत अवेद्यनाथजी हैं। वे उत्तराखंड के सूर्यवंशी राजाओं के वंशज हैं। वे काफी लोकप्रिय महंत हैं। तभी तो पांच बार विधायक बने और चार बार संसद सदस्य निर्वाचित हुए थे। अब यहां से उनके पट्ट शिष्य योगी आदित्यनाथ संसद सदस्य हैं।
मन्दिर-परिसर की कुछ विशेषताएं
गोरखनाथ का मन्दिर परिसर 52 एकड़ क्षेत्र में फैला है। मन्दिर के भीतरी कक्ष में मुख्यवेदी पर शिवावतार अमरकाय महायोगी गुरु गोरखनाथ जी की श्वेत संगमरमर की दिव्यमूर्ति ध्यानावस्था रूप में प्रतिष्ठित है जिनकी विधिपूर्वक पूजा अर्चना की जाती है। इस मन्दिर की भव्यता और गौरवमय निर्माण का श्रेय योगदर्शन के गंभीर विद्वान दिग्विजयनाथ और उनके सुयोग्य शिष्य वर्तमान महंत अवेद्यनाथ जी को है।
यहां के अन्य दर्शनीय स्थल
अखंड ज्योति- गोरखनाथ मंदिर परिसर में गोरखनाथ जी द्वारा जलाई गई अखंड ज्योति त्रेतायुग से आज तक अखण्ड रूप से जलती आ रही है। बहुत सी माताएं इस ज्योति का काजल अपने बच्चे की आंखों में लगाती हैं।
देव मूर्तियां – मंदिर के परिक्रमा मार्ग में कुछ देवमूर्तियां प्रतिष्ठित हैं। इनमें काली माता, शीतला देवी, गणेश जी, हनुमान जी, शिवजी आदि प्रमुख हैं।
महाबली भीमसेन- मंदिर परिसर में ही सरोवर के पास महाबली भीमसेन का मन्दिर है। भीमसेन धर्मराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में पधारने के लिए गोरखनाथ जी को आमंत्रित करने आए थे। उस समय गोरखनाथ जी समाधि में लीन थे। उन्हें दर्शन के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ी। उनकी स्मृति में लेटे हुए उनकी प्रतिमा स्थापित है। मंदिर परिसर में ही एक विशाल गोशाला है जिसमें लगभग एक हजार गायें हैं। यहां देशी नस्ल की कई दुर्लभ प्रजातियां देखी जा सकती हैं। हाल ही में यहां एक चिकित्सालय का शुभारम्भ किया गया है जहां मुफ्त में इलाज होता है। हम कह सकते हैं कि धर्म और अध्यात्म के साथ गोरखनाथ मन्दिर जनसेवा में भी अग्रगण्य है। उमेश प्रसाद सिंह
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