जम्मू कश्मीर राज्य के संवैधानिक प्रावधानों में राज्य के स्थाई निवासी संबंधी परिभाषा का समावेश किया गया और इसके लिए महाराजा हरी सिंह के शासन द्वारा राज्यों के विषयों को लेकर वर्ष 1927 और 1932 में जारी की गई सूचनाओं के कुछ प्रावधानों को आधार बनाया गया। लेकिन दुर्भाग्य से जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने संघीय संविधान के अनुच्छेद 370 को लेकर इस प्रकार का शोर मचाना शरू कर दिया कि मानो इस अनुच्छेद के माध्यम से राज्य को कोई विशेष दर्जा दे दिया गया हो। मामला यहां तक बढ़ा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इस अनुच्छेद की ढाल में एक प्रकार से तानाशाही स्थापित करने का प्रयास किया और इसकी सबसे पहली शिकार राज्य की महिलाएं हुईं। राज्य के स्थाई निवासियों में केवल महिला के आधार पर भेदभाव करने वाली कोई व्यवस्था न तो राज्य के संविधान में है और न ही भारत के संविधान में और न ही महाराजा हरि सिंह के शासन काल में राज्यों के विषयों को लेकर जारी किए गए प्रावधानों में। लेकिन दुर्भाग्य से नेशनल कॉन्फ्रेंस की सोच महिलाआंे को लेकर उसी मध्यकालीन अंधकार युग में घूम रही थी, जिसमें महिलाओं को हीन समझा जाता था और उनका अस्तित्व पति के अस्तित्व में समाहित किया जाता था।
जम्मू कश्मीर राज्य के संवैधानिक प्रावधानों में राज्य के स्थाई निवासी संबंधी परिभाषा का समावेश किया गया और इसके लिए महाराजा हरी सिंह के शासन द्वारा राज्यों के विषयों को लेकर वर्ष 1927 और 1932 में जारी की गई सूचनाओं के कुछ प्रावधानों को आधार बनाया गया। लेकिन दुर्भाग्य से जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने संघीय संविधान के अनुच्छेद 370 को लेकर इस प्रकार का शोर मचाना शरू कर दिया कि मानो इस अनुच्छेद के माध्यम से राज्य को कोई विशेष दर्जा दे दिया गया हो। मामला यहां तक बढ़ा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इस अनुच्छेद की ढाल में एक प्रकार से तानाशाही स्थापित करने का प्रयास किया और इसकी सबसे पहली शिकार राज्य की महिलाएं हुईं। राज्य के स्थाई निवासियों में केवल महिला के आधार पर भेदभाव करने वाली कोई व्यवस्था न तो राज्य के संविधान में है और न ही भारत के संविधान में और न ही महाराजा हरि सिंह के शासन काल में राज्यों के विषयों को लेकर जारी किए गए प्रावधानों में। लेकिन दुर्भाग्य से नेशनल कॉन्फ्रेंस की सोच महिलाआंे को लेकर उसी मध्यकालीन अंधकार युग में घूम रही थी, जिसमें महिलाओं को हीन समझा जाता था और उनका अस्तित्व पति के अस्तित्व में समाहित किया जाता था।
राजस्व विभाग ने एक कार्यपालिका आदेश जारी कर दिया,जिसके अनुसार राज्य की कोई भी महिला यदि राज्य के किसी बाहर के व्यक्ति के साथ शादी कर लेती है तो उसका स्थाई निवास प्रमाण पत्र रद्द कर दिया जाएगा और वह राज्य में स्थाई निवासियों को मिलने वाले सभी अधिकारों और सहूलियतों से वंचित हो जाएगी। तब वह न तो राज्य में सम्पत्ति खरीद सकेगी और न ही पैतृक सम्पत्ति में अपनी हिस्सेदारी ले सकेगी। न वह राज्य में सरकारी नौकरी कर पाएगी और न ही राज्य के किसी सरकारी व्यावसायिक शिक्षा के महाविद्यालय या विश्वविद्यालय में शिक्षा हासिल कर सकेगी। उस अभागी लड़की की बात तो छोडि़ए ,उसके बच्चे भी इन सभी सहूलियतों से वंचित कर दिए जाएंगे। मान लो किसी पिता की एक ही बेटी हो और उसने राज्य के बाहर के किसी लड़के से शादी कर ली हो तो पिता के मरने पर उसकी जायदाद लड़की नहीं ले सकेगी। आखिर राज्य की लड़कियों के साथ यह सौतेला व्यवहार करने का कारण क्या है? जिसकी इजाजत कोई भी कानून नहीं देता क्या नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास इसका उत्तर है? इनकी इस हरकत से राज्य का तथाकथित विशेष दर्जा घायल होता है। इससे राज्य की जनसांख्यिकी परिवर्तित हो जायेगी । इन लड़कियों ने राज्य के बाहर के लड़कों के साथ शादी करने का जुर्म किया है। सरकार उनके इस अपराध को किसी भी ढंग से माफ नहीं कर सकती। ऐसी बेहूदा कल्पनाएं तो वही कर सकता है जो या तो अभी भी 18 वीं शताब्दी में जी रहा हो या फिर खतरनाक किस्म का धूर्त हो । यदि किसी ने प्रदेश की लड़कियों के साथ हो रहे इस अमानवीय व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाई तो नेशनल कॉन्फ्रेंस ने उनके आगे अनुच्छेद 370 की ढाल कर दी। नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए तो अनुच्छेद 370 उसके सभी गुनाहों और राज्य में की जा रही लूट खसोट पर परदा डालने का माध्यम बन गया है। सरकार की इस नीति ने जम्मू -कश्मीर की लड़कियों पर कहर ढा दिया। शादी करने पर एम़बी़बी़एस. कर रही लड़की को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, सरकारी नौकरी कर रही लड़की की तनख्वााह रोक ली गई। उसे नौकरी से निकाल दिया गया। सरकारी नौकरी के लिए लड़की का आवेदन पत्र तो ले लिया गया लेकिन साक्षात्कार के समय उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया। योग्यता और परीक्षा के आधार पर विश्वविद्यालय में प्रवेश पा गई लड़की को कक्षा में से निकाल दिया गया। इन सब लड़कियों का केवल एक ही अपराध था कि उन्होंने प्रदेश के बाहर के किसी लड़के से शादी की थी या फिर निकाह करवाने आए मौलवी के पूछने पर कह दिया था कि निकाह कबूल। लेह आकाशवाणी केन्द्र की निदेशक छैरिंग अंगमो अपने तीन बच्चों समेत दिल्ली से लेकर श्रीनगर तक हर दरवाजा खटखटा आईं, लेकिन सरकार ने उन्हें प्रदेश की स्थायी निवासी मानने से इनकार कर दिया,क्योंकि उन्होंने उ़.प्र. के एक युवक से शादी करने का जुर्म जो किया था। राज्य के न्यायालयों में इन दुखी महिलाओं के आवेदनों का अम्बार लग गया। ये लड़कियां जानती थीं कि न्याय प्रक्रिया जिस प्रकार लम्बी खिंचती जाती है, उसके चलते न्यायालय में गुहार लगाने वाली लड़की एम़बी़बी़एस़ तो नहीं कर पाएगी, क्योंकि जब तक न्याय मिलेगा, तब तक उसके बच्चे एम़बी़बी़एस. करने की उम्र तक पहुंच जाएंगे। लेकिन ये बहादुर लड़कियां इसलिए लड़ रही थीं ताकि राज्य में भविष्य में महिलाओं को नेशनल कॉन्फ्रेंस और उस जैसी मध्ययुगीन मानसिकता रखने वाली शक्तियों की दहशत का शिकार न होना पड़े। राज्य की इन बहादुर लड़कियों की मेहनत आखिरकार रंग लाई। जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के पास सभी लम्बित मामले निर्णय के लिए पहुंचे। लम्बे अर्से तक कानून की धाराओं में माथा पच्ची करने और अनुच्छेद 370 को अच्छी तरह जांचने, राज्य के संविधान और महाराजा हरि सिंह द्वारा निश्चित किए गए स्थाई निवासी के प्रावधानों की परख करने के उपरान्त उच्च न्यायालय ने बहुमत से अक्तूबर 2002 में ऐतिहासिक निर्णय दिया। इस निर्णय के अनुसार जम्मू-कश्मीर की लड़कियों द्वारा राज्य से बाहर के किसी युवक के साथ विवाह कर लेने के बाद भी उनका स्थायी निवासी होने का प्रमाण पत्र रद्द नहीं किया जा सकेगा। न्यायिक इतिहास में यह फैसला सुशीला साहनी मामले के नाम से प्रसिद्घ हुआ । सारे राज्य की महिलाओं में खुशी की लहर दौड़ गई।
विरोधी बेनकाब जिस वक्त जम्मू -कश्मीर के इतिहास में यह जलजला आया उस वक्त राज्य में नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार थी । अत: निर्णय किया गया कि इस बीमारी का इलाज यदि अभी न किया गया तो एक दिन यह लाइलाज हो जायेगी। बीमारी का इलाज करने में नेशनल कॉन्फ्रेंस भी उग्र हो गई । उच्च न्यायालय के इस फैसले के निरस्त करने के लिये तुरन्त एक अपील उच्चतम न्यायालय में की गई। जम्मू -कश्मीर की बेटियों को उनकी हिम्मत पर सजा सुनाने के लिये माकपा से लेकर पी. डी. पी तक अपने तमाम भेदभाव भुला कर एकजुट हो गये। प्रदेश के सब राजनैतिक दल एक बड़ी खाप पंचायत में तब्दील हो गये। बेटियों की ह्यआनर किलिंगह्ण शुरू हो गई। लेकिन मामला अभी उच्चतम न्यायालय में ही लम्बित था कि नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार गिर गई। कुछ दिन बाद ही सोनिया कांग्रेस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने मिल कर सांझा सरकार बनाई। यह नई सरकार नेशनल कान्फ्रेंस से भी आगे निकली। इस ने सोचा उच्चतम न्यायालय का क्या भरोसा राज्य की लड़कियों के बारे में क्या फैसला सुना दे। नेशनल कॉन्फ्रेंस प्रदेश उच्च न्यायालय में इसका सबूत मिल ही चुका था। इसलिये लड़कियों को सबक सिखाने का यह ऑप्रेशन सरकार को स्वयं ही अत्यन्त सावधानी से करना चाहिये था। इसलिये सरकार ने उच्चतम न्यायालय से अपनी अपील वापस ले ली और विधानसभा में उच्च न्यायालय के निर्णय के प्रभाव को निरस्त करने वाला बिल विधानसभा में पेश किया और यह विधेयक बिना किसी विरोध और बहस के छह मिनट में पारित कर दिया गया। विधि मंत्री मुज्जफर बेग ने कहा महिला की पति के अलावा क्या औकात है? विधानसभा में एक नया इतिहास रचा गया । उच्च न्यायालय में दो दशक से भी ज्यादा समय में लड़ कर प्राप्त किये गये जम्मू -कश्मीर की बेटियों के अधिकार केवल छह मिनट में पुन: छीन लिये गये। उसके बाद विधेयक विधान परिषद में पेश किया गया । लेकिन अब तक देश भर में हंगामा हो गया था। सोनिया कांग्रेस के लिये कहीं भी मुंह दिखाना मुश्किल हो गया। विधान परिषद में इतना हंगामा हुआ कि कुछ भी सुनाई देना मुश्किल हो गया। नेशनल कॉन्फ्रेंस और पी. डी. पी. चाहे बाहर एक दूसरे के विरोधी थे लेकिन अब विधान परिषद के अन्दर नारी अधिकारों को छीनने के लिये एकजुट हो गये थे। सभापति के लिये सदन चलाना मुश्किल हो गया। उसने सत्र का अवसान कर दिया । इस प्रकार यह विधेयक अपनी मौत को प्राप्त हो गया। लेकिन नेशनल कॉन्फ्रेंस का गुस्सा सातवें आसमान पर था। खिसियानी बिल्ली खंभा नोंचे। राज्य की पहचान को खतरा घोषित कर दिया गया। उधर प्रदेश में ही श्रीनगर,जम्मू और लेह तक में महिला संगठनों ने प्रदेश के राजनैतिक दलों की मध्ययुगीन अरबी कबीलों जैसी सोच को धिक्कारा। कश्मीर विश्वविद्यालय में छात्राओं में आक्रोश स्पष्ट देखा जा सकता था । यह प्रश्न हिन्दू, सिख या मुसलमान होने का नहीं था। यह राज्य में नारी अस्मिता का प्रश्न था। लेकिन इससे नेशनल कॉन्फ्रेंस, पी. डी. पी. की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा। यहां तक कि माकपा भी महिलओं को इस अपराध के लिये सबक सिखाने के लिये इन दोनों दलों के साथ मिल गई। लेकिन इस बार इन तीनों दलों के सांझा मोर्चा के बावजूद विधेयक पास नहीं हो पाया । प्रदेश की महिलाओंें ने राहत की सांस ली। महिलाओंें को उनके कानूनी और प्राकृ तिक अधिकारों से वंचित करने की कोशिश कितनी शिद्दत से की जा रही थी इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस को बीच मैदान में शक हो गया कि उनके सदस्य और विधान परिषद के सभापति अब्दुल रशीद डार इस मामले में नारी अधिकारों के पक्ष में हो रहे हैं। पार्टी ने तुरन्त उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। इतना कुछ हो जाने के बावजूद राजस्व विभाग के अधिकारियों ने लड़कियों को स्थाई निवासी का प्रमाणपत्र जारी करते समय उसमें यह लिखना जारी रखा कि यह केवल उसकी शादी हो जाने से पूर्व तक मान्य होगा । इसके खिलाफ सितम्बर में भारतीय जनता पार्टी के प्रो. हरि ओम ने जम्मू -कश्मीर उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर दी । उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि प्रमाण पत्र पर ये शब्द न लिखे जायें । सरकार ने ये शब्द हटा नये शब्द तैयार कर लिये । स्थाई प्रमाणपत्र लड़की की शादी हो जाने के बाद पुन: जारी किया जायेगा, जिस पर यह सूचित किया जायेगा कि लड़की ने विवाह प्रदेश के स्थाई निवासी से ही किया है या किसी गैर से प्रो.हरि ओम इसे न्यायालय की अवमानना बताते हुये फिर न्यायालय की शरण में गये । सरकार ने अपना यह बीमार मानसिकता वाला आदेश 2 अगस्त 2013 को वापिस लिया तब जाकर मामला निपटा । सुशीला साहनी मामले में उच्च न्यायालय के इस निर्णय के बाद इतना भर हुआ कि सरकार ने स्वीकार कर लिया कि जो लड़की प्रदेश से बाहर के किसी लड़के से शादी करती है, वह भी पैतृक सम्पत्ति की उत्तराधिकारी हो सकती है। लेकिन वह इस सम्पत्ति का हस्तान्तरण केवल प्रदेश के स्थायी निवासी के पास ही कर सकती है। यह हस्तान्तरण वह अपनी सन्तान में भी नहीं कर सकती। अब उस सम्पत्ति का क्या लाभ जिसका उपभोग उसका धारक अपनी इच्छानुसार नहीं कर सकता? इस हाथ से दिया और उस हाथ से वापस लिया। इधर प्रदेश का नारी समाज इस अन्तर्विरोध को हटाने के लिये आगामी लड़ाई की योजना बना रहा था,उधर प्रदेश की अन्धकारयुगीन ताकतें इन्हें सबक सिखाने को अपने तिकड़मों में लगी थीं। साम्प्रदायिक, महिला विरोधी और उग्रवादी सब मिल कर मोर्चा तैयार कर रहे थे। इन साजिशों की पोल तब खुली जब अचानक 2010 में एक दिन पी. डी. पी के प्रदेश विधान परिषद में नेता मुर्तजा खान ने प्रदेश की विधान परिषद में स्थाई निवासी डिस्क्वालिफिकेशन विधेयक प्रस्तुत किया। विधेयक में प्रदेश की उन्हीं लड़कियों के अधिकार छीन लेने की बात नहीं कही गई थी जो किसी अन्य राज्य के लड़के से शादी कर लेतीं हैं बल्कि दूसरे राज्य की उन लड़कियों के अधिकारों पर भी प्रश्नचिन्ह लगाया गया था जो प्रदेश के किसी स्थाई निवासी से शादी करती हैं। आश्चर्य तो तब हुआ जब विधान परिषद के सभापति ने इस बिल को विचार हेतु स्वीकार कर लिया, जबकि उन्हें इसे स्वीकार करने का अधिकार ही नहीं था,क्योंकि ऐसे विधेयक पहले विधान सभा के पास ही जाते हैं । इससे ज्यादा आश्चर्य यह कि सोनिया कांग्रेस ने भी इसका विरोध नहीं किया। इन पोंगापंथियों के लिहाज से आज जम्मू -कश्मीर में अनुच्छेद 370 के लिये सबसे बड़ा खतरा वहां की महिला शक्ति ही है। यह अलग बात है कि मुर्तजा खान का यह बिल विधान परिषद में अपनी ही मौत अपने आप मर गया। चोर दरवाजे से यह सेंध , प्रदेश की जागृत नारी शक्ति के कारण असफल हो गई। परन्तु एक बात साफ हो गई कि राज्य में नेशनल कॉन्फ्रेंस और पी. डी. पी दोनों ही अनुच्छेद 370 को अरबी भाषा में लिखी ऐसी इबारत समझते हैं जिसको केवल वही पढ़ सकते हैं,वही समझ सकते हैं और उन्हें ही इसकी व्याख्या का अधिकार है। ये मानवता विरोधी शक्तियां अनुच्छेद 370 से उसी प्रकार प्रदेश के लोगों को आतंकित कर रही हैं जिस प्रकार कोई नजूमी अपने विरोधियों को जिन्नों से डराने की कोशिश करता है। डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
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