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दिल्ली चुनाव में शीला सरकार को महंगाई, महिला अपराध, भ्रष्टाचार, बिजली-पानी की बढ़ी दरें और अनधिकृत कॉलोनियों के नियमितिकरण के मुद्दे ने घेरा हुआ है। सरकार के पास इनमें से किसी बात का जवाब नहीं है, बल्कि सवाल किए जाने पर दिल्ली की तुलना भाजपा शासित राज्यों से कर सरकार वहां की महंगाई, भ्रष्टाचार और अपराधों को गिनाती है मगर दिल्ली के मुद्दों पर सभी की बोलती बंद है। इस बार जनता भी बदलाव के लिए तैयार है और अपनी कमर कस चुकी है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में महंगाई, भ्रष्टाचार महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा अहम दिल्ली के विकास का दावा कर रही कांग्रेस की कोशिश है कि महंगाई चुनाव का मुद्दा न बने। पार्टी नेताओं का तर्क है कि वैश्विक स्तर पर बढ़ी महंगाई का राज्य सरकार से वास्ता नहीं है। यह बात अंदरखाने भाजपा नेता भी मानते हैं, लेकिन उनकी कोशिश है कि इस मुद्दे पर दिल्ली सरकार के बजाय कांग्रेस को खींचा जाए। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर शीला सरकार को घेरने की कोशिश में जुटी भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार श्री नरेंद्र मोदी भी दिल्ली सरकार पर निशाना साध चुके हैं कि राष्ट्रमंडल खेलों में हुए भ्रष्टाचार में दिल्ली सरकार भी शामिल थी। दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा का मसला भी महत्वपूर्ण है। पिछले साल वसंत विहार सामूहिक दुष्कर्म की वारदात के बाद से यह मुद्दा बेहद अहम बन चुका है। राजधानी होने के कारण दिल्ली पुलिस राज्य सरकार के अधीन न होने के कारण कोई भी दल इस मुद्दे का कोई ठोस समाधान लोगों के समक्ष नहीं रख पा रहा है। भाजपा का प्रयास है कि सत्ता में आने पर दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाया जाएगा, लेकिन लगातार तीन बार से काबिज शीला सरकार ने इस विषय को कभी गंभीरता से लिया ही नहीं। चुनाव के ऐन मौके पर शीला दीक्षित ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने संबंधी राग फिर से छेड़ दिया है। उन्होंने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से इस संबंध में मांग की कि जब वह केंद्र सरकार की सत्ता संभालें तो दिल्ली के लिए ऐसी व्यवस्था करें जिससे यहां की सरकार पूरी तरह अधिकार संपन्न बने। उन्होंने इसके पीछे दलील दी कि दिल्ली की बहुनिकाय व्यवस्था की वजह से विकास की राह में परेशानी आ रही है। राहुल गांधी को भविष्य की रोशनी करार देते हुए शीला दीक्षित ने कहा कि वह दिल्ली की कमान एक ही हाथ में चाहती हैं जिससे विकास की गति और तेज हो सके। जहां तक बिजली आपूर्ति में सुधार की बात है तो यह सभी मानते हैं कि पिछले वर्षो में आपूर्ति में सुधार जरूर हुआ है, लेकिन बिजली की बढ़ती दरों ने लोगों की कमर तोड़कर रख दी है। बाहरी दिल्ली, पश्चिमी दिल्ली व दक्षिणी दिल्ली में 30 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में पेयजल संकट गंभीर मुद्दा है। इन विधानसभा क्षेत्रों में पानी कई-कई दिन तक नहीं आता, जहां आता भी है तो गंदे पानी की आपूर्ति होती है। अनधिकृत कॉलोनियों का नियमितीकरण फिर एक बड़ा मुद्दा है। सरकार के दावों के बावजूद सैकड़ों कॉलोनियां नियमित नहीं हो सकी हैं। जो कागजों में नियमित हो गई हैं, वहां अभी तक रजिस्ट्री बंद है।
महंगाई और प्याज गिरा सकते हैं सरकार
भाजपा इस बार कांग्रेस के कुशासन को उखाड़ फेंकने की पूरजोर कोशिश कर रही है। पार्टी लगातार सत्ताधारी दल को घेरने में जुटी है। ऐसे समय में डेंगू का प्रकोप दिल्ली सरकार के लिए बड़ी मुसीबत साबित हो सकता है। दिल्ली में 1993 से 1998 तक भाजपा की सरकार रही। उस समय प्याज की कीमतें भी खूब बढ़ीं जिससे भाजपा की तत्कालीन सरकार प्याज की कीमतों के दबाव में भी आ गई। इस बार प्याज की बढ़ी कीमतों का असर उसकी संभावनाओं पर पड़ रहा है। कुछ दिनों पहले तक भाजपा नेता सस्ता प्याज बेचकर शीला सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कवायद में जुटे थे। शहर के माहौल को देखते हुए कयास लगाए जा रहे हैं कि कोई बड़ी बात नहीं कि प्याज का मुद्दा सरकार पर हावी हो जाए। पिछले दो सालों में बिजली की दरों में 65 प्रतिशत की बढ़ोतरी भाजपा के लिए एक बड़ा मुद्दा बन गई हैं। गरीब हों या अमीर, सभी वगोंर् के लोगों ने यह बात मानी है कि बिजली की बढ़ी दरें उनके मासिक बजट को प्रभावित करती रही हैं और मतदान करते समय अन्य मुद्दों के साथ-साथ यह मुद्दा भी उनके दिमाग में रहेगा। कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि लोगों की भावनाएं कांग्रेस के खिलाफ हैं। विशेषकर महंगाई को लेकर जनता में काफी नाराजगी है। पिछले तीन बार से कांग्रेस आसानी से विजय हासिल करती आ रही है, लेकिन इस बार उसे नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं। अब एक-एक सीट का हिसाब लगाया जा रहा है कि कहां से जीत हासिल हो सकती है और कहां हार।
शीला सरकार ने अपने कार्यकाल में जनता को तीन रुपये किलो चावल मुहैया कराने का सपना दिखाया। मिलेगा बाजरा या बासमती ये तो पता नहीं, लेकिन सरकार ने बिजली कंपनियों और निजी अस्पतालों को एक रुपये प्रति गज की दर से भूमि जरूर मुहैया कराकर दी है। शीला सरकार 15 साल से सत्ता में है और लोग राशन कार्ड बनवाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। खाद्य वस्तुओं की कालाबाजारी जारी है जिसे जनता अब की बार अनदेखा नहीं करेगी। जनता चुनाव में कोरे आश्वासनों पर अब भरोसा करने वाली नहीं है।
अनिल गोयल, पूर्व निगम पार्षद-साकेत एवं कार्यकारिणी सदस्य प्रदेश भाजपा।
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